5 Best Hindi Moral Stories: बच्चों के लिए कहानियाँ
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Hindi Moral Stories
New collection of 5 best hindi moral stories in hindi for kids. Short hindi stories with moral values (बच्चों के लिए कहानियाँ)
1.अतृप्त तृष्णा (best hindi moral stories)
पुराने समय की बात है। एक नगर में एक नाई रहता था। वह राजा के यहाँ नौकरी करता था। राजा के यहाँ से जो मिल जाता उसी में उसकी जिन्दगी व्यतीत होती। वह अपनी पत्नी के साथ एक छोटी-सी कुटिया में रहता था।
जैसी कि मनुष्य प्रकृति होती है कि हर मनुष्य धन पाना चाहता है, उसी तरह वह नाई भी धनी बनना चाहता था।
वह अक्सर अपनी पत्नी से कहता था–“भाग्यवान! बचत करना सीखो। बचत करोगी तो हमारे पास कुछ धन इकट्ठा होगा, जब धन होगा तो तुम्हारे लिये स्वर्ण हार लाऊँगा, मैं चाहता हूँ कि तुम एक धनी की पत्नी के समान दिखो।”
तब उसकी पत्नी ने बचत करनी शुरू कर दी। और जल्दी ही उनके पास कुछ धन इकट्ठा हो गया, तो दोनों सुनार के पास गये और उससे सोने का एक हार खरीद लाए।
हार को देखकर नाई की पत्नी बहुत खुश होती । तब नाई ने अपनी पत्नी से कहा-“इस हार को पहन कर तो तुम सचमुच ही किसी बड़े घर की बहू लग रही हो।”
यह सुनकर नाई की पत्नी लजा गई।
मगर फिर भी नाई को सन्तोष ना हुआ। वह और अधिक धन पाना चाहता था। एक दिन वह अपने किसी मित्र के पास गया था। वापस लौटते में एक जंगल पड़ता था। थकान के कारण वह आराम करने के लिए पेड़ के नीचे बैठ गया।
वह अभी भी धन के विषय में ही सोच रहा था। तभी एक आवाज आई-“नाई! ओ नाई! तुझे धन चाहिए?”
नाई ने ऊपर-नीचे देखा। वह आवाज उसने पेड़ पर से आती सुनी थी।
नाई ने आवाज के उत्तर में कहा-“हाँ मुझे धन चाहिए,खूब सारा धन ।”
“सात घड़े धन चाहिए?” आवाज ने पूछा
“हाँ-हाँ. .!” नाई ने उत्तर दिया।
“जाओ अपने घर चले जाओ। वहाँ पर सात घड़े धन से भरे हुए तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।” आवाज ने कहा।
इतना सुनते ही नाई सरपट अपने घर की ओर दौड़ा चला गया।
घर पहुँचकर उसने देखा कि उसके घर में सात घड़े रखे , उसने एक घड़े का ढक्कन देखा तो उसकी आंखें
हटा कर चुंधिया गईं। घड़ा ऊपर तक सोने से भरा था। वह खुशी से चिल्ला पड़ा- “भाग्यवान, ओ भाग्यवान! जल्दी आ!”
“आई जी!” नाई की पत्नी जल्दी से उस कमरे में आई जिसमें सोने के घड़े रखे थे।
“यह देख भाग्यवान हम अमीर हो गये, हम अमीर हो गये, सात-सात घड़े सोने से भरे-सब हमारे हैं भाग्यवान” नाई खुशी के कारण नाचने लगा ।
“क्या सच?” नाई की पत्नी ने पूछा।
“बिल्कुल सच!” नाचते हुए नाई ने कहा।
नाई की पत्नी फुर्ती से एक-एक घड़े का ढक्कन हटाकर देखने लगी। साथ-ही-साथ वह गिनती जा रही थी-‘एक -दो-तीन- चार-पाँच-छ:सात… ।
“यह क्या? सातवाँ घड़ा तो आधा खाली है। इसका धन कहाँ गया ?” नाई की पत्नी ने नाई से कहा ।
“क्या कह रही है, सातवाँ घड़ा खाली कैसे है?” ,
नाई आश्चर्य से बोला। फिर कुछ देर सोचने के बाद पुनः बोला-“ भाग्यवान! लगता है यह ऐसे ही हमारे घर आया है, अब हमें यह चिन्ता करनी चाहिए कि यह घड़ा कैसे भरे, तुम ऐसा करो कि अब और ज्यादा खर्च में कमी कर दो, खाने-पीने पर हम ज्यादा ही खर्चा करने लगे हैं और अपने गहने भी मुझे दे दो।”
“गहने क्यों स्वामी?”
“उनको पिघलवा कर इस घड़े में भद्गा!”
“मगर स्वामी ?”
“जल्दी करो, कहीं कोई आ ना जाए ।” नाई ने पत्नी की काट बात दी। उसकी पत्नी ने खामोशी से अपने सभी गहने नाई को दे दिये । गहने ले कर नाई सुनार के पास पहुंचा और उन्हें पिघलवा कर सातवें घड़े में डाल दिया। मगर इस पर भी घड़ा नहीं भरा ।
नाई ने कहा- “कुछ और खर्च कम करो ।”
इस प्रकार उसने खर्च में इतनी कमी की कि वे दोनों सूख कर आधे रह गये। जब राजा ने नाई की यह हालत देखी तो उन्होंने कहा-“नाई क्या बात है, आजकल तुम कुछ ज्यादा ही चिंतित और हारे हुए प्रतीत होते हो?”
“नहीं महाराज, ऐसी कोई बात नहीं है। बस घर के खर्चे के कारण कुछ परेशान हैं।”
“ओह! तो ठीक है। आज से हम आपकी तनख्वाह दुगुनी किये देते हैं।” राजा ने कहा और उसकी तनख्वाह दुगुनी कर दी।
मगर इस पर भी नाई का सातवाँ घड़ा नहीं भरा। वह और ज्यादा चिंतित रहने लगा।
एक दिन अचानक ही राजा ने कहा-“क्यों नाई, तुम्हारी परेशानी का कारण वह धन का सांतवाँ घड़ा है ना?”
“जी महाराज, आपको कैसे पता?” नाई ने आश्चर्य से पूछा।
“नाई वे सात घड़े एक बार मुझे भी दिये गये थे, मगर मुझे लगा कि जरूर कुछ गोलमाल है क्योंकि सातवाँ घड़ा खाली था। तब मैं वृक्ष की उस आवाज के पास गया। वहाँ जाकर मैंने कहा कि सातवाँ घड़ा तो खाली है। आवाज ने
बताया कि वह सदा खाली रहता है। फिर मैं वापिस आ गया। महल में आकर मैं सातों घड़ों के बारे में सोचने लगा। अचानक मुझे याद आया कि उस आवाज़ ने मुझे यह क्यों कहा कि सातवाँ घड़ा हमेशा खाली रहता है, तो समझ में यह आया कि आवाज की बात का तात्पर्य यह था कि उस घड़े को चाहे कितना भरा जाए, वह भरेगा नहीं। तब मुझे अनुभव हुआ कि वह मुझे फांसने का फंदा था, जिससे मुझमें अधिक से अधिक सोना पाने की लालसा बढ़े, चूंकि वह घड़ा कभी भरता नहीं, अतः मेरी सोना पाने की तृष्णा भी नहीं भरती। इसका मतलब यह है कि वह घड़ा तृष्णा का है। तुम स्वयं ही देखो नाई, तुम उस घड़े में चाहे कितना धन डाल लो मगर वह नहीं भरेगा।” राजा ने अपनी बात पूरी कर दी।
“तब तो सातवाँ घड़ा भरा ही नहीं जा सकता महाराज ?” नाई ने कहा।
“इसमें तो कोई सन्देह नहीं। अब तुम अधिक विलम्ब होने से पहले ही उन घड़ों को वापस कर दो।” राजा बोले।
“मगर कैसे महाराज?” नाई ने पूछा।
तुम फिर से उसी वृक्ष के नीचे जाओ और आवाज से घड़ों को वापस लेने को कहो, जिस तरह मेरे पास से घड़े चले गये उसी तरह तुम्हारे पास से भी चले जायेंगे। जाओ नाई, जल्दी करो वर्ना कहीं अधिक विपत्ति में ना पड़ जाओ ।”
राजा की बात सुनकर नाई बहुत डर गया। वह तुरन्त जंगल में उस वृक्ष की ओर दौड़ गया। वृक्ष के पास पहुंचकर उसने उस आवाज से सातों घड़े वापस लेने को कहा।
“ठीक है, मैं ले गूंगी ।” उस आवाज ने कहा।
आवाज से आश्वस्त होकर नाई वापस लौट गया। उसने घर जाकर देखा, उसकी पत्नी रो रही थी और सातों घड़े गायब थे, साथ ही उनकी मेहनत का धन भी जो उन्होंने घड़े में डाला था।
मगर अब रोने से क्या फायदा होना था, नाई की अतृप्त तृष्णा ने उसकी मेहनत भी मिट्टी में मिला दी थी। इसीलिए तो बड़ों का कहना सच ही है कि तृष्णा (या चाहत) इतनी होनी चाहिए कि पाँव या सिर उससे बाहर ना निकलें।।
Moral of this short hindi stories–“The more thirsty makes the person disturbed and one day it also happens when the person has to lose his life in the hands of that craving. That is why it is good that man should have so much ‘desire’ of any object that he should not lose his life.”
2. आस्था का फल (5 best hindi moral stories)
वह पूरे तेरह वर्ष की थी । नाम था पुष्पा। वह अपने पिता के साथ रहती थी, माँ बचपन में ही गुजर गई थी, उसके पिता ने कुछ गायें पाल रखी थीं।
सुबह-सुबह उसके पिता गायों का दूध निकालते और वह आस पड़ौस के घरों में उसे बेच आती। इसी प्रकार उनकी गुजर-बसर हो रही थी।
एक दिन पास की नदी का एक मल्लाह, जो पुष्पा के पिता का मित्र था, उनके घर आया। बातों ही बातों में उसने बताया कि नदी के पास एक पण्डित जी रहते हैं, उन्हें सुबह दूध चाहिए तो उसी के बारे में वह बात करने आया है।
पुष्पा के पिता ने कहा- “दूध तो हम दे देंगे, मगर रोज नदी के पार जाया कैसे जाएगा?”
“इसमें कौनसी बड़ी बात है भय्या! मैं रोज़ पुष्पा को नदी के पार उतार दिया कहूँगा ।” मल्लाह ने अपना सुझाव रखा।
“ठीक है, भय्या जैसी तुम्हारी मर्जी ” पुष्पा के पिता ने स्वीकृति दे दी।
इसके बाद पुष्पा अगले ही दिन सुबह-सुबह पण्डित जी के लिए दूध लेकर मल्लाह के पास पहुँच गई। मल्लाह ने उसे नदी पार करा दी। पुष्पा दूध लेकर पण्डित जी के यहाँ पहुँच गई।
पण्डित जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा-“क्या तुम प्रतिदिन इसी समय मुझे दूध ला दिया करोगी?”
पुष्पा बोली-“जी हाँ महाराज। ला दूगी।”
पण्डित जी ने कहा- “देखो भई देर न करना। ठीक समय पर आ जाना दूध देर से आने पर मेरी सारी सुबह खराब हो जाती है।”
“मैं देर ना करूगी महाराज! सही समय पर आ जाया करुँगी।” पुष्पा ने कहा।
“ठीक है, मैं तुम्हें हर सप्ताह के अन्तिम दिन में दोपहर के बाद पैसे दे दिया करुँगा।”
और फिर।
पुष्पा प्रत्येक दिन सवेरे-सवेरे दूध लेकर मल्लाह की नाव में नदी पार कर पण्डित जी को दूध दे आती। नाव में बैठ कर वह भजन गाया करती थी। और हमेशा ठीक समय पर पण्डित जी के घर पहुँच जाती थी।
जैसे-जैसे वक्त गुजरने लगा, मल्लाह को सुबह उठना बोझ-सा लगने लगा वह कुछ देर से अपनी नाव खोलने लगा। पुष्पा उसके लिए नदी पर खड़ी प्रतीक्षा करती रहती।
इधर दूध देर से पहुँचने के कारण पण्डित जी नाराज हो गये। उन्होंने पुष्पा से कहा-“ऐसे बात नहीं बनेगी। तुम्हें दूध समय पर ही लाना होगा। “
तब पुष्पा ने मल्लाह से जल्दी उठने को कहा, मगर उठ ना सका। दूसरे दिन पण्डित रोष से चिल्ला उठे–आज भी तूमने देर कर दी”
पुष्पा ने उन्हें समझाना चाहा, मगर पण्डित जी ने उसे उल्टा डपट दिया।
वह उदास होकर घर चली आई।
अगले दिन पुष्पा नाव द्वारा नदी पार कर पण्डित जी से दूध के पैसे लेने पहुँच गई।
उस दिन पण्डित जी के घर पर बहुत से लोगों की भीड़ थी। वे लोग बरामद में बैठे हुए थे और पण्डित जी उन्हें कोई धर्मग्रन्थ पढ़कर सुना रहे थे।
उसमें प्रसंग आया कि जन्म से लेकर मृत्यु तक यह जो जीवन का चक्र है, वह समुद्र के पार जाने के समान् दुष्कर है।
“पर डरो नहीं,” पण्डित जी बोले- “तुम हरि का नाम लेकर चलते हुए इस समुद्र को सरलतापूर्वक पार कर सकते हो।”
ठीक इसी समय पुष्पा पण्डित जी के घर पहुँची थी। उसने वही सुना जो उन्होंने समुद्र को पार करने के सम्बन्ध में कहा।
और फिर ।
अगले दिन वह नदी घाट पर मल्लाह की प्रतीक्षा कर रही थी, मगर वह अभी तक नहीं आया था।
देर होने का ख्याल आते ही वह रो दी। अचानक उसे पण्डित जी के मुंह से सुने वचन याद आ गए।
उसने हरि-हरि कहना आरम्भ किया और पैर नदी के पानी पर रखा। और फिर तो वह इस प्रकार दौड़ी चली गई जैसे कि जमीन पर दौड़ रही हो।
रास्ते भर वह–“हरि-हरि” कहती गई और नदी पार कर पण्डित जी के घर पहुँच गई।
पण्डित जी उसे देख मुस्कुरा कर बोले-“आज तो तुम ठीक समय पर आ गईं। मल्लाह आज जल्दी उठ गया क्या?
“नहीं महाराज मल्लाह ने तो आज भी देर कर दी, मगर मैं उसके लिए नहीं रुकी।”
यह सुनकर पण्डित जी घोर आश्चर्य में पड़ गये । वे बोले- “तू मल्लाह के लिए नहीं रुकी, तो फिर तू आई कैसे?”
“मैं तो आपके बताए रास्ते से आई हूँ महाराज! और यह अधिक अच्छा रास्ता है। मुझे रोज डाँटने के बदले आपने पहले ही यह रास्ता क्यों ना बता दिया महाराज!”
पण्डित जी कुछ समझ ना सके। वे कुछ ऊँची आवाज में बोले-“तू क्या कह रही है, साफ-साफ क्यों नहीं कहती?।”
पण्डित जी की बात सुनकर पुष्पा ने कहा-“महाराज कल जब आप कुछ लोगों को उपदेश दे रहे थे तो मैंने आपके मुंह से कहते सुना कि यदि हरि का नाम लेकर समुद्र पार किया जाए तो बड़ी सरलता से यह कार्य हो सकता है। तब आज मैं हरि का नाम लेकर नदी पार कर आ गई ।”
“क्या?” पण्डित जी के मुंह से निकला।
“तुमने बिना नाव के नदी को पार कर लिया?” पण्डित जी ने आश्चर्य से पूछा। “हाँ, पण्डित जी! यह तो अत्यधिक सरल कार्य है, अब तो मैं रोज आपको समय पर दूध दे जाया करेंगी ।” पुष्पा ने प्रसन्नचित्त होकर कहा। पुष्पा की बात सुनकर पण्डित जी सोच में पड़ गये कि उसकी बात पर विश्वास करें अथवा नहीं । सोचते-सोचते उनके दिमाग में एक तरकीब आ ही गई।
वे पुष्पा को लेकर नदी तट पर पहुँचे। स्वयं तो तट पर खड़े हो गये और पुष्पा से बोले-“जाओ बेटी! तुम अपने घर जाओ।”
“आप भी चलिए पण्डित जी, मैं आपको पिता जी से मिलवाना चाहती हूं।”
पुष्पा ने कहा।
“नहीं, तुम जाओ।” पण्डित जी ने उसे समझाया लेकिन उसने उन्हें साथ चलने को कहा। परन्तु पण्डित जी ने उसे समझा-बुझाकर घर जाने को कहा तो वह मान गई ।
वह हरि-हरि का जप करती नदी पर चलने लगी। यह देखकर पण्डित जी आश्चर्य विभोर हो गये। जब पुष्पा आँखों से ओझल हो गयी तो पण्डित जी ने सोचा कि यदि वह तुच्छ लड़की नदी पार कर सकती है तो वे क्यों नहीं कर सकता।
यह सोचकर पण्डित जी हरि का नाम लेकर नदी के पानी में पैर रखने ही वाले थे कि उन्हें याद आया कि उनकी धोती कुछ लम्बी है, वह भीग जाएगी।
इस विचार के आते ही पण्डित जी ने अपनी धोती सम्भाली और हरि का नाम लेकर नदी में पैर रखा।
मगर यह क्या?
पण्डित जी छपाक से नदी में गिर पड़े ठीक उसी समय एक भविष्यवाणी हुई- –“पण्डित प्रिय! यह नकल का फल है, वैसे भी तुम्हारे मन में अपनी धोती की चिन्ता अधिक और हरि की श्रद्धा कम है।”
इतना सुनते ही पण्डित जी का सिर नीचा हो गया। वे मन ही मन खुद को कोसने लगे। मगर अब क्या हो सकता था, ईश्वर के यहाँ तो उनकी परख हो चुकी थी।
Moral of this short hindi stories– “Faith is a word that can not be found in God’s blessings unless it is too big to be worshiper. Just as the Pandit had the faith of his dhoti more than God and he was drowned in the river. ”
3.लुटेरा महर्षि बना (best hindi moral stories for kids)
प्रायः हर हिन्दू के घर में ‘रामायण’ मिलेगी। वह सन्त तुलसीदास ने लिखी है। उनसे बहुत पहले भी एक रामायण संस्कृत भाषा में लिखी गयी है। वह महर्षि वाल्मीकि की है।
तुम जानते हो वाल्मीकि कौन थे?
पहले वे डाकू थे। लोगों को लूटना, मारना और लूटे हुए माल से अपना गुजर-बसर करना, यही उनका काम था। बचपन का उनका नाम “वाल्या” था।
एक दिन वाल्या जंगल में घूम रहा था। उसे कुछ दूर पर एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह आदमी खुद नारद थे। जब वे वाल्या के और करीब आ गये तो वाल्या ने तलवार खींच ली।
नारद ने देखा एक आदमी हाथ में नंगी तलवार लिये मेरी तरफ आ रहा है। उन्होंने इकतारा छेड़ दिया और गाने लगे ।
वाल्या के बड़े कदम जहां के तहाँ रुक गये। उसकी अक्ल चकरा गयी। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। वह सोचने लगा कि यह कैसा अजीब आदमी है? अब तक तो दो ही तरह के आदमी मैंने देखे थे। एक तो , जो हमले के
लिए मुझे बढ़ते देखकर भाग खड़े होते हैं और दूसरे वे जो मेरी शरण में आकर रोने गिड़गिड़ाने लगते थे, दुहाई देकर प्राणों की भीख माँगने लगते थे। यह आदमी तो अलग ही है। इस पर मेरा कोई असर ही नहीं होता।
डाकू को ठिठकते देखकर नारद ने पूछा- “कहो, क्या चाहते हो?”
वाल्या ने कहा-“मैं तुम्हें लूटने आया हूं। मेरा पेशा यही है।”
नारद ने पूछा-“क्या तुम अपनी पत्नी से पूछकर आये हो? क्या वह भी तुम्हारे पाप के पेशे में शामिल है?”
वाल्या ने कहा-“क्यों नहीं शामिल होगी?”
नारद ने कहा- “जाओ, एक बार पूछ तो आओ।”
वाल्या घर गया। उसने पत्नी से पूछा तो पत्नी ने कहा-“तुम्हारे पापी पेशे में मेरा हिस्सा क्यों रहेगा?”
पत्नी के इस उत्तर से वाल्या की आँखें खुल गयीं। वह लौटकर नारद के चरणों पर गिर पड़ा और लगा रोने। रोते-रोते उसने कहा- “मैं पापी हूँ महाराज, मेरी रक्षा करो।”
नारद ने कहा-“उठो-उठो, पश्चाताप से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं। तुम तो अपनी गलती समझ गये और उसके लिए पश्चाताप कर रहे हो, इसलिए तुम्हारे भी सारे पाप कट गये, ये समझो कि नया जन्म हुआ है।”
वाल्या ने घबराकर पूछा-“महाराज, आपने तो माफ दिया, लेकिन क्या भगवान भी माफ कर देंगे?”
नारद ने कहा- “तुम राम का नाम याद करो। वे तुम्हें अवश्य माफ कर देंगे।” कहते हैं कि वाल्या को नारद का बताया–“राम” भूल गया और वह “मरा”- “मरा” का जप आदर पूर्वक करने लगा। राम-राम जपने में वह इतना
मग्न हो गया कि उसे अपने शरीर तक का ध्यान नहीं रहा। उसको ऐंठ समझकर दीमकों ने उस पर अपना घर बना लिया। बिमोह को संस्कृत में “वालमीक” कहते हैं। इस “वालमीक” में वाल्या का मानो पुनर्जन्म हुआ। इसलिए उसका नाम “वाल्मीकि” पड़ा।
इस तपस्या से उसका अज्ञान खत्म हो गया। उसकी अक्ल में उजाले का प्रवेश हुआ और लुटेरा वाल्या महर्षि वाल्मीकि बन गया।
Moral of this short hindi stories– “Even the wife did not accept the money earned from sin, she also wants her husband to do something that is good to society. Just as Valmiki’s wife rejected her sin. ”
4.उपकार काम आता है (5 best hindi moral stories)
एक जमाना था, जब आदमी खरीदा जाता था, आदमी बेचा जाता था। ऐसे आदमी को गुलाम कहते थे। वे गुलामी के दिन थे। उन्हीं दिनों की बात है।
एण्ड्रोक्लीज नाम का एक गुलाम था।
एक बार वह गुलाम किसी जंगल में जा रहा था। उसे किसी जानवर के रोने की आवाज सुनाई दी। वह उसी ओर चल पड़ा। उसने देखा कि एक शेर लेटा रो रहा है।
पहले तो एण्ड्रोक्लीज की हिम्मत न हुई, लेकिन शेर की दर्द भरी आवाज उससे सही न गयी। गुलाम आहिस्ता-आहिस्ता उसके पास गया। उसने देखा कि शेर के एक पैर में काँटा लगा हुआ है। पीड़ा से वह बेचैन है। जान हथेली पर रखकर गुलाम उसके बिल्कुल नजदीक पहुँच गया और उसने शेर का काँटा निकाल दिया। शेर उठा और अपने ऊपर दया करने वाले को मुड़-मुड़कर देखता हुआ घने जंगल में आहिस्ता-आहिस्ता लँगड़ाता हुआ चला गया।
बरसों बाद किसी गलती पर उस गुलाम को मौत की सजा सुनाई गयी।
उसको फाड़ खाने के लिए शेर के सामने छोड़ा गया। उस आदमी को देखते ही भूखा शेर लपक पड़ा।
लेकिन ज्यों ही वह एण्ड्रोक्लीज के पास आया, ठहर गया। उसे याद आया कि इसी आदमी ने मेरे पैर से काँटा निकाला था। उसे अपने घायल पैर का दर्द याद आ गया। वह एक बार काँप गया, फिर वह भूखा शेर पालतू कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ एण्ड्रोक्लीज के पास आया और उसका पैर चाटने लगा। उसकी आँखों में दया के भाव थे।
जानवर अपने ऊपर उपकार करने वाले को नहीं भूलते। उपकार का बदला उपकार से ही चुकाते हैं।
Moral of this short hindi stories– “The gratification done on someone never goes empty, sometimes it definitely works. The way Sherlock gave his life, as Andorklees took out a thorn bite and thanked him. ”
5. हार जीत में बदली ( 5 New best hindi moral story for kids )
कई सौ साल पहले की बात है। उस समय दिल्ली नगरी मुगलों की राजधानी थी। दक्षिण में मराठे अपनी बहादुरी के लिए मशहूर थे।
उन्हीं मराठों के इतिहास की कहानी है।
मराठों ने सिंहगढ़ पर हमला किया। किले की दीवारें बहुत ऊँची थीं। उसके अन्दर घुसना बहुत मुश्किल था।
उस समय की लड़ाइयों में “जोंक” की कमन्द इस्तेमाल की जाती थी। जोंक पानी का जानवर है। जोंक की यह खूबी है कि वह जहाँ चिपक जाती है, छूटने का नाम नहीं लेती। इसीलिए पहले के जमाने में इसका उपयोग किलों की दीवारों पर चढ़ने के लिए किया जाता था।
सिंहगढ़ में भी मराठों ने “जोंक की कमन्द” का इस्तेमाल किया और वे एक-एक करके किले में उतर गये। घमासान लड़ाई छिड़ गयी। लड़ाई में सेनापति “ताना जी” मारे गये। उस समय सेनापति के मारे जाने पर अक्सर सेना हिम्मत
हार बैठती थी और भाग खड़ी होती थी।
सिंहगढ़ की लड़ाई में भी ऐसा ही हुआ। मराठों की सेना सिर पर पाँव रखकर भाग खड़ी हुई, जिस “जोंक की कमन्द” से वह किले के अन्दर आयी थी, उसी के सहारे नीचे उतरने के इरादे से उधर दौड़ पड़ी।
ताना जी के छोटे भाई का नाम “सूर्या जी” था। सूर्या जी बहुत चतुर था। उसने अक्ल से काम लिया। सूर्या जी ने रस्सी काट दी और वहीं से चिल्लाकर कहने लगा ‘मराठे! भागते कहाँ हो? वह रसी तो मैंने पहले ही काट दी हैं।”
भागते हुए मराठे रुक गये।
उन्होंने सोचा- “चाहे लड़ें या भागे, मरना तो दोनों तरफ से है ही। फिर लड़कर क्यों न मरा जाये?”
सूर्या जी की ललकार पर मराठे भूखे शेर की तरह दुश्मन पर टूट पड़े।
मराठों के इस हिम्मत भरे भयानक हमले के आगे दुश्मन देर तक ठहर न सका। उसकी हिम्मत टूट गयी। मराठों की हार जीत में तब्दील हो गयी। सिंहगढ़ पर मराठों का झण्डा लहराने लगा।
Moral of this short hindi stories-“The weakness that Surya ji had thought was that the Marathas would now escape rather than fleeing to their borders, while they were actually running back after the death of their commander. Against the challenge of the sun, and with courage and courage, fought the enemy and hoisted his sign on Sinhagad. The pride of the sun became shattered. ”
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