Moral Hindi Kahani – होई माता – Moral Story in Hindi
होई माता – Moral Story in Hindi
Moral Hindi Kahani
एक किसान था | उसके सात बेटे थे और एक बेटी | सातो लड़कों का ब्याह हुआ | सातो भाभिया अपनी सुंदर सी, प्यारी सी ननद से बहुत प्यार करती थी | सबसे अधिक प्यार बड़ी बहु किया करती थी |
कार्तिक मास की पहली सप्तमी का दिन था | उस दिन सातो बहुएं अपनी ननद को साथ ले, चूल्हा-चौके के लिए मिट्टी लेने गयी | खदान से मिट्टी खोदने लगी | नन्हीं ननद सबसे आगे खदान के कोने में मिट्टी खोद रही थी | दुर्भाग्य से उसकी खुरपी से होई के सात बच्चे कट गये | होई ने लड़की का पल्ला पकड़ लिया और बोली – “ तुमने मेरे बच्चे काटे हैं | मैं तुम्हें शाप दूंगी |”
सभी हैरान थे | नन्ही लड़की रोने लगी | वह बहुत डर गई थी | ननद की यह दशा देखकर बड़ी भाभी आ आयी बड़े नम्र भाव से उसने होई माता के चरण छुये और उसे प्रणाम करके बोली – “ हे होई माता! तू बड़ी दयालु है | मेरी नन्ही ननद को क्षमा कर दें |”
होई माता क्रोध में पागल सी हो गई थी | उसके सात बच्चों की हत्या जो हुयी थी | वह गरजकर बड़ी भाभी से बोली – “ मैं इस हत्यारी को क्षमा नहीं करूंगी | इसने मेरे सात बच्चों को काट डाला |”
थोड़ी देर के लिये सभी चुप हो गयी | तभी बड़ी बहु ने पैर पकड़कर होई माता से निवेदन किया – “ मां! ननद का पला छोड़ दो | दोष मेरा है | मैं ही इसे साथ ले आयी यह तो अबोध है, बच्ची है | आप मुझे शाप दे दे |”
“ तो सुन सारा जीवन तुझे संतान का सुख देखने को नहीं मिलेगा | तू बांझ बनकर जीवन गुजारेगी |” इतना कहकर होई माता वहां से अंतर्ध्यान हो गयी |
सभी बहुये तथा ननद वहां से लौट आयी | समय बीतता गया | सभी बहुओं के घर में बाल गोपालो की पैजनियो की गूंज थी | लेकिन बड़ी बहू का आंगन सुना था | सभी उसे बांझ कहा करते थे |
बड़ी बहू न तो किसी से कुछ बोलती और न ही जवाब देती | वह एक लंगडी गाय की सेवा में लीन रहने लगी | उसे पुचकारती, सहलाती तथा चारा खिलाती | लंगडी गाय बड़ी बहू की सेवा देख कर बड़ी प्रसन्न हुयी | उससे बड़ी बहू का दु:ख देखा नहीं जाता था |
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एक दिन उसने उससे पूछ ही लिया | बहु ने बताया “ होई माता ने मेरी कोख छीन ली | गौ माता | मेरी ननद से होई माता के बच्चे की हत्या हुई थी |” इस प्रकार उसने सारी बात बता दी | लंगडी गाय बड़ी बहू की करुण-कथा सुनकर आत्म विभोर हो गयी | वह सोचने लगी ‘ कितनी महान है | यह औरत! जिसने ननद के लिए अपनी कोख का बलिदान कर दिया |’
लंगडी गाय ने मन ही मन एक संकल्प लिया | बड़ी बहू के लिए कुछ करना चाहिये | लंगडी गाय अपनी बहन होई माता के पास गयी | इधर-उधर की बात के बाद होई माता ने आने का कारण पूछा –
“ मैं एक काम से आयी हूं, छोटी तेरे पास |” लंगडी गाय बोली |
“ कहो न बहन! जो भी तुम्हारा आदेश होगा, पालन करूंगी |”
“ तो सुन छोटी तूने जिसकी कोख छीनी है | उसकी कोख वापस कर दे |” लंगड़ी गाय दृढ़तापूर्वक बोली |
“ क्या तुम बड़ी बहु की बात कर रही हो |” होई माता ने पूछा |
“ हां छोटी मैं उसी महान स्त्री की बात कर रही हूं | जिसने ननद की कोख के लिए अपनी कोख का बलिदान कर दिया | इतने वर्षों उसने मुझ अपंग की सेवा की | वह नारी नहीं करुणा तथा ममता की मूरत है |” लंगडी गाय कहती गयी |
होई माता को लगा | जैसे उसने बड़ी बहु को शाप देकर अपराध किया है | उसे अपने आप से गलानी होने लगी | वह बोली – “ बहन! मुझे क्षमा कर दो | मैं बड़ी बहू की कोख लौटा देती हूं |” दस महीने बाद होई माता का पर्व आया | वहीं कार्तिक की पहली सप्तमी बड़ी बहू के आंगन में भी पैजनियो की झुनझुन थी | घर को लिप-पोत कर सजाया गया |
उधर सांस बेखबर | उसे कुछ पता ही नहीं था | सांस नौकरानी से बोली – “ जा री ! होई माता का त्यौहार है | एक तेल की पल्ली और गुड़ की डली उस बांझ के घर भी देआ |”
नौकरानी बड़ी बहू के घर गयी तो देखकर चकित रह गयी | नन्हा सा शिशु खेल रहा था | सारे गांव में है शुभ समाचार फैल गया | बधाई गीत गाये जाने लगे | लंगडी गाय आंगन में चारा खाते हुये मन ही मन प्रसन्न थी | उसने होई माता का धन्यवाद किया |
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