सम्राट हर्षवर्धन History – Samrat harshvardhan Biography Hindi
सम्राट हर्षवर्धन History
– सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास / Samrat Harshvardhan Biography in Hindi। सम्राट हर्षवर्धन का जीवन परिचय – सम्राट हर्षवर्धन की History कहानी हिंदी में !
थानेश्वर एक छोटा ही राज्य था। वहां के राजा प्रभाकर वर्धन ने अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा से किया था। प्रभाकर वर्धन की मृत्यु के बाद मालवा के राजा ने कन्नौज पर चढ़ाई की और राज्यश्री के पति को युद्ध में मार डाला। यह समाचार पाकर राज्यश्री के भाई राज्यवर्धन सेना लेकर बहन की सहायता को आए; क्योंकि प्रभाकर वर्धन की मृत्यु के बाद ही वही थानेश्वर के राजा थे। उन्होंने मालवा के नरेश को तो युद्ध में हरा दिया; किंतु गौड़ नरेश ससांक ने उन्हें धोखा देकर मार डाला।
बड़े भाई की मृत्यु का समाचार पाकर हर्षवर्धन थानेश्वर से कन्नौज के लिए चले। उनकी बहन राज्यश्री विद्यांचल के वनों में चली गई थी। जब ढूंढते हुए हर्षवर्धन वहां पहुंचे तो वह चिता बनाकर सती होने जा रही थी। किसी प्रकार उन्हें समझा कर वे कन्नौज लौट आए। मंत्रियों ने हर्षवर्धन से कन्नौज के सिहासन पर बैठने का अनुरोध किया; किंतु हर्ष ने अपनी बहन का राज्य लेना स्वीकार नहीं किया। वे राज्यश्री को ही महारानी मानते रहे थे और उनके संरक्षक रूप में शासन कार्य चलाते थे।
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लगातार छ: बरस तक हर्षवर्धन ने दिग्विजय के लिए यात्रा की। कामरूप से उड़ीसा तक का प्रदेश उन्होंने जीत लिया। दक्षिण में नर्मदा नदी उनके राज्य की सीमा थी। लेकिन हर्षवर्धन की महानता इस दिग्विजय में नहीं है उनकी महानता है उनकी प्रजावत्सलता, धर्मनिष्ठा और अपूर्व उदारता में। वर्षा के अतिरिक्त पूरे वर्ष में प्रजा की सुख-सुविधा का पता लगाने के लिए राज्य भर में दौरा किया करते थे।
सम्राट हर्ष की दानशीलता तो प्रख्यात है। प्रति पाँच वर्ष के अंतर से वे प्रयाग में त्रिवेणी तट पर “मोक्ष-सभा” करते थे। इस अवसर पर युद्ध सामग्री को छोड़कर, वे अपना सर्वस्व दान कर देते थे। उनके दान में बौद्ध, हिंदू आदि का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता था।
चीनी यात्री युवानचांग सम्राट हर्षवर्धन के समय में भारत वर्ष आया था। उसने सम्राट के संबंध में बहुत कुछ लिखा है- “सम्राट बौद्ध थे; किंतु शिव तथा सूर्य की भी उपासना करते थे। अपने सारे राज्य में उन्होंने पशु-वध बंद करवा दिया था।”
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सम्राट हर्षवर्धन स्वयं विद्वान और कवि थे। उन्होंने संस्कृत में कई नाटक लिखे हैं। महाकवि बाणभट्ट उनके दरबार में रहे थे। राज्य में शिक्षा तथा चिकित्सा की समुचित व्यवस्था उन्होंने करवाई थी।
सन 347 में उनका परलोक वास हुआ। बौद्ध कथा सनातनधर्मी सभी प्रजाजनों को समान रूप से आश्रय देने वाले ऐसे शासक प्रजा को पिता के समान प्रिय होते हैं, यह तो स्वत:सिद्ध बात है।
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