कौन था चाणक्य? चाणक्य की प्रतिज्ञा – चाणक्य नीति
कौन था चाणक्य?
‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य आज पूरे विश्व में चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध है। उसकी प्रसिद्धि का कारण उसकी रचना ‘चाणक्य नीति‘ है! जाने कौन था चाणक्य? क्या थी चाणक्य की प्रतिज्ञा।।
भारत की इस महान् धरती पर रचित चाणक्य नीति की सबसे बड़ी विशेषता यही रही है कि यह विश्व की अनेक जुबानों में अनुवादित होकर अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड़ चुकी है। यदि इसे नीति का सागर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इस नीति की सफलता का कारण क्या है? यह रहस्य जानने के लिए अनेक पाठकगण व्याकुल होंगे। जिस नीति की शक्ति से एक साधारण सैनिक भारत का सम्राट बन जाए, उस नीति को सबसे सफल ही माना जाएगा।
मौर्य वंश का इतिहास भारत वर्ष के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। इसी वंश का राजा था-‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ जिसे चाणक्य ने अपनी शिक्षा और नीतियों के ज्ञान से भारत का सम्राट बना दिया।
चाणक्य के जन्म के बारे में हमारा इतिहास कोई विशेष सहायता नहीं कर पाता। मगर जैसा कि इतिहास में लिखा गया है कि महापंडित विष्णुगुप्त ‘तक्षशिला विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का आचार्य था। उस विश्वविद्यालय में ही उसकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हुई थी। यह 325 ईसा पूर्व की बात है। उस समय भारत पर सम्राट चन्द्रगुप्त का शासन था। वही समय चाणक्य का भी था।
चाणक्य का निवास स्थान शहर से बाहर पर्णकुटी में था। यह देखकर चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने चाणक्य से ही प्रश्न किया कि इतने बड़े देश का प्रधान मंत्री ऐसी को में रहता है ? उत्तर में चाणक्य ने कहा कि जिस देश का प्रधान साधारण कुटिया में रहता हो, वहां के निवासी भव्य भवनों में निवा किया करते हैं और जिस देश का प्रधानमंत्री ऊंचे महलों में रहता हो। वहां की आम जनता तो झोंपड़ियों में ही रहती है।
इस प्रकार महापंडित चाणक्य ने आज के शासकों के मुंह पर हजारों वर्ष पूर्व ही करारा तमाचा मारा था। वह देश महान क्यों न होगा जिसका प्रधानमंत्री इतना ईमानदार हो।
काश! आज के नेतागण चाणक्य से कुछ सीख सकें। यही सोचकर इस मंहान् ग्रन्थ को सरल हिन्दी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि इस देश के आम लोग भी इस ज्ञान से लाभ उठा सकें।
विद्वान पंडित का सारा जीवन संघर्षों से भरा पड़ा था। इसीलिए अलग से जीवन परिचय भी लिखा है जो लोकहिंदी के पाठकों को पहली बार पढ़ने को मिलेगा।
वैसे चाणक्य का जन्म स्थान उसकी शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में होने के कारण पंजाब ही है। यह शहर आजकल बंटवारे के पश्चात् पाकिस्तान में है। जेहलुम नदी के किनारे बसे तक्षशिला शहर में इतिहास के खंडहर ही देखे जा सकते हैं। आज भी वहां चाणक्य की यादें उसकी नीति के रूप में हमें नजर आती हैं।
चाणक्य अपने साहित्य के कारण अमर है और जब तक यह संसार है तब तक लोग चाणक्य को नहीं भूलेंगे।
चाणक्य की प्रतिज्ञा
“यह कौन है? काला-कलूटा भूत जैसा कुरूप! जिसकी शक्ल देखने से ही मन खराब होता है। कैसे आया यह हमारे राज दरबार में ? कैसे बैठ गया यह मनहूस हमारे सामने?”
राजा नन्द क्रोध से लाल-पीला होता हुआ चीख उठा। उसकी आंखों से जैसे अंगारे बरस रहे थे। क्रोध के मारे उसके हाथ-पांव कांप रहे थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो राजा नन्द सामने बैठे उस काले आदमी को मृत्युदण्ड देगा। लेकिन न जाने कौन-सी ऐसी मजबूरी थी जिसके कारण वह अभी तक उसे मृत्युदण्ड न दे सका था।
“महाराज! आप क्रोध को थूक दीजिए। यह तो हमारे महापंडित विष्णुगुप्त शर्मा हैं।” महामंत्री ने राजा का गुस्सा ठंडा करने का प्रयास करते हुए नम्रतापूर्वक कहा।
“नहीं…नहीं…ऐसे भयंकर चेहरे वाला, भूत की नस्ल का आदमी कभी भी महापंडित नहीं हो सकता। इसे देखते ही मेरा मन खराब हो रहा है। यह ब्राह्मण है अथवा कोई चंडाल? मेरी नजरों में यह चंडाल है, ब्राह्मण नहीं । निकाल दो इसे हमारे दरबार से। दूर कर दो इसे मेरी नजरों से। कहीं ऐसा न हो कि मुझे इसका वध करने का आदेश देना पड़े।”
सभा में बैठे पंडित विष्णुगुप्त के मन पर यह अपमानजनक शब्द सुनकर क्या बीती होगी? एक तो ब्राह्मण और उस पर इतना बड़ा विद्वान। इतने पर भी वह त्यागी और तपस्वी।
ब्राह्मण का क्रोध तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है। मगर त्यागी, तपस्वी और विद्वान का अपमान जब कोई मूर्ख करता है तो ब्राह्मण की सहन शक्ति भी दम तोड़ देती है।
ब्राह्मण के पास कोई हथियार नहीं होता। मगर उसका प्रचंड क्रोध में प्रकट होता है तो बड़ों-बड़ों का भी नाश कर देता है। उसका शाप कई कुलों को नष्ट कर देता है। उसकी बद्धि की शक्ति से बड़े-बड़े बहादुर राजा भी धूल चाटने पर मजबूर हो जाते हैं।
ऐसे ही एक ब्राह्मण का नाम था पंडित विष्णुगुप्त शर्मा अथात् चाणक्य । उसने राजा नन्द के अपमानजनक शब्द सुनकर यह प्रतिज्ञा की थी-”मैं इस राजा का नाश करके रहूंगा। जब तक अपने इस अपमान का बदला न ले लू, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूँगा। जब तक इस राजा की मूर्खता का सबक इसको न सिखा दूंगा, तब तक सिर के बाल नहीं संवारूंगा।”
पंडित विष्णुगुप्त चाणक्य के एक-एक अध्याय को पढ़ने व सारपूर्ण समझने के लिए बने रहिये लोकहिंदी के साथ !!
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