चाणक्य नीति: नौवां अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti Hindi
चाणक्य नीति: नौवां अध्याय
‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का नौवां भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: नौवां अध्याय ( Chanakya Neeti The Ninth Chapter in Hindi )
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत् त्यज।
क्षमार्जवं दया शौचं सत्यं पीयूषवद् भज।।
- हे प्राणियो! यदि तुम लोग मुक्ति की इच्छा करते हो तो इन विषयों को विष के समान मानकर त्याग दो और क्षमा, धैर्य, सरलता, विनम्रता, ईमानदारी, उदारता, दूसरों की भलाई, दया एवं पवित्रता, सत्य इन सब चीजों को जीवन में अमृत के समान समझो।।
परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः।
त एवं विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत् ।।
- जो पतित लोग एक-दूसरे के प्रति अन्तरात्मा को दु:खदायक मर्मों को आहत करने वाले बोल बोलते हैं तो ऐसे लोग अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। जैसे बांबी में फंसकर सांप मर जाता है।
गन्धः सुवर्णे फलमिक्षुदण्डे
नाऽकारि पुष्पं खलु चन्दनस्य।
विद्वान् धनाढ्यश्च नृपश्चिरायुः
धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिदोऽभूत् ।।
- सष्टि के स्वामी ब्रह्मा ने सोने में सुगंध नहीं डाली, ईख के खेतों में फल नहीं लगाए, चन्दन के वृक्ष में फूल नहीं लगाए, विद्वान प्राणियों को धनी और राजा को दीर्घजीवी नहीं बनाया । इससे तो ऐसा पता चलता है। कि पूर्व काल में कोई भी ईश्वर को बुद्धि देने वाला नहीं था।
सर्वोषधीनाममृता प्रधाना सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम् ।।
- सारी दवाइयों और जड़ी-बूटियों में गिलोय, सब सुखों में भोजन, सब ज्ञानेन्द्रियों में आंख और सब अंगों में सिर सर्वश्रेष्ठ होता है।
दूतो न सञ्चरति खे न चलेच्च वार्ता ।
पूर्वं न जल्पितमिदं न च सङ्गमोऽस्ति ।
व्योम्नि स्थितं रविशशिग्रहणं प्रशस्तं
जानाति यो द्विजवरः स कथं न विद्वान् ।।
- आकाश में तो कोई दूत नहीं जा सकता और न ही वहां किसी से वार्तालाप कर सकता है। न ही इस बारे में पहले से किसी ने कुछ बता रखा है और न ही किसी का संगम हो सकता है। किन्तु फिर भी जो ब्रह्मश्रेष्ठ आकाश में स्थित सूर्य और चांद को लगने वाले ग्रहणों को जान लेता है वह विद्वान क्यों नहीं माना जाता?
विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधाऽऽर्ती भयकातरः ।
भाण्डारी प्रतिहारी च सप्त सुप्तान प्रबोधयेत् ।।
- विद्यार्थी, नौकर, राही, भूख से पीड़ित, डर से डरा हुआ, भंडारी और द्वारपाल यदि यह मात्र सोते हैं तो इन्हें हर हाल में जगा देना चाहिए। इनके सोने से हानि होती है और जांगते रहने से लाभ होता है।
अहिं नृपं च शार्दूलं किटिं च बालकं तथा ।
परश्वानं च मूर्ख च सप्त सुप्ता न बोधयेत् ।।
- सांप, राजा, बाघ, सूअर, बालक, दूसरे को कुत्ता और मूर्ख यदि यह सब के सब सो रहे हों तो इनको जगाने की भूल नहीं करनी चाहिए।
अर्थाऽधीताश्च यैर्वेदास्तथा शूद्रान्नभोजिनाः ।
ते द्विजाः किं करिष्यन्ति निर्विषा इव पन्नगाः ।।
- जो ब्राह्मण केवल धन कमाने के लिए ही वेदों का अध्ययन करते हैं। और जो शूद्रों, पतितों, शराबी-कबाबी और बुरे एवं नीच लोगों का अन्न खाते हैं, वे विषहीन सर्प के समान क्या कर सकते हैं? इसका उत्तर यही है कि वे इस संसार में कुछ नहीं कर सकते। उन्हें इस संसार में कोई यश, कोई गौरव प्राप्त नहीं होता। वे कहीं पर भी अपना नाम नहीं छोड़ते, कोई उन्हें नहीं पूछता।
यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनाऽऽगमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।
- जिसको गुस्सा आने पर उससे कोई नहीं डरता और खुश हो धन प्राप्त होने की आशा नहीं करता, जो न तो दण्ड दे सकता है । और न ही कृपा कर सकता है, ऐसा प्राणी यदि रूठ भी जाए तो किसी का क्या बिगाड़ सकता है।
निर्विषेणाऽपि सर्पण कर्तव्या महती फणा।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयंकरः ।।
- जिन सांपों में जहर नहीं होता, उन्हें भी अपना बड़ा फन फैलाना चाहिए। यह तो कोई नहीं जानता कि इस फन में जहर है भी कि नहीं। हां, आडम्बर से दूसरे लोग डर अवश्य ही जाते हैं।
प्रातर्भूतप्रसंगेन मध्याहे स्त्रीप्रसङ्गतः ।।
रात्रौ चौर्यप्रसंगेन कालो गच्छत्यंधीमताम् ।।
- मूर्ख लोग सुबह के शुभ समय जुआ खेलना आरम्भ कर देते हैं। दोपहर को नारी के साथ संभोग करते हैं और रात के समय चोरी करने अथवा अन्य बुरे काम करने के लिए घर से निकलते हैं।
स्वहस्तग्रथिता माला स्वहस्तघृष्टचन्दनम् ।
स्वहस्तलिखितं स्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ।।
- अपने हाथ से गुंथी हुई माला, अपने हाथ से घिसा हुआ चन्दन और अपने हाथ से लिखा हुआ स्तोत्र। यह सारे काम इन्द्र की भी शोभा और लक्ष्मी को हर लेते हैं। अथवा जो लोग माला को गूंथते हैं उसका परिश्रम उस लाभ से भी अधिक होता है, जो इसके धारण करने से होता है।
इक्षुदण्डास्तिलाः क्षुद्राः कान्ता हेम च मेदिनी।।
चन्दनं दधि ताम्बूलं मर्दनं गुणवर्धनम् ।।
- ईख, तिल, क्षुद्र नारी, सेना, जमीन, चन्दन-दही और पान को जितना भी मिलाया जाता है, उतने ही इनके गुण बढ़ते हैं।
दरिद्रता धीरतया विराजते कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते।।
- दरिद्रता उस समय तक दु:ख नहीं देती जब तक कि आपके पास धैर्य है। गन्दा वस्त्र साफ रखने से बहुत सुन्दर लगने लगता है। बुरा खाना भी यदि गर्म हो तो खाने में स्वादिष्ट लगता है। असुन्दर नारी यदि गुणवान है तो भी प्रिय लगती है।
- चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय
- चाणक्य नीति: दूसरा अध्याय
- चाणक्य नीति: तीसरा अध्याय
- चाणक्य नीति: चौथा अध्याय
- चाणक्य नीति: पांचवां अध्याय
- चाणक्य नीति: छठा अध्याय
- चाणक्य नीति: सातवां अध्याय
- चाणक्य नीति: आठवां अध्याय
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