परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Hindi Essay

परमाणु शक्ति और भारत

Nuclear power and India-World relations Full Essay in Hindi 2019 / परमाणु शक्ति और भारत  Full Essay – विश्वा संबंध हिंदी में निबंध |


आधार-बिंदु:

  • परमाणु शक्ति-अंतरराष्ट्रीय संबंधों का नया आयाम
  • परमाणु शक्ति का विकास और बदलते अंतरराष्ट्रीय संबंध
  • भारत में परमाणु शक्ति का विकास
  • परमाणु शक्ति बनने के बाद भारत के बदलते अंतरराष्ट्रीय संबंध
  • उपसंहार

परमाणु शक्ति-अंतरराष्ट्रीय संबंधों का नया आयाम:

दुर्भाग्य से अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा सच लाठी है। जिस देश के पास सबसे प्रखर सैन्य शक्ति है, जो दुनिया को सबसे अधिक भयभीत कर सकता है, वह उतना ही शक्तिशाली और वर्चस्वी माना है। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम का विस्फोट उसे विश्व की महाशक्ति के रूप में स्थापित कर गया,  सोवियत रूस अपनी आर्थिक-अन्तः संरचना के कमज़ोर रहते हुए भी सैन्य शक्ति के सर्वाधिक शक्तिशाली रूप-आणविक हथियारों के उत्पादन के बूते पर दुनिया की दूसरी महाशक्ति के रूप में स्थापित हुआ। इंग्लैण्ड, फ्रांस, चीन आदि देश भी दुनिया में परमाणु बमों के निर्माण के कारण बड़ी शक्तियों के रूप में ख्यात हैं। आज भी किसी देश की आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इतनी उत्तेजनात्मक और प्रभावी नहीं है जितनी उसकी पारमाणविक सामग्री के उत्पादन एवं व्यापार की सामर्थ्य। यद्यपि कमोवेश यह सही है कि जिन देशों की तकनीकी पहुँच जितनी गहरी रही है उन्हीं देशों ने पारमाणविक हथियारों की तकनीक को भी उतना ही मौलिक रूप से विकसित किया है। अत: आज के विश्व में परमाणु हथियार एक देश के तकनीकी विकास तथा उसके वर्चस्वी व्यक्तित्व को स्थापित करने की दृष्टि से प्रमुख आधार हैं और इसीलिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद 11 एवं 13 मई, 1998 को दूसरी बार परमाणु विस्फोट करके भारत ने नए भू-राजनीतिक-आर्थिक शक्ति का उद्घोष किया है।

परमाणु शक्ति का विकास और बदलते अंतरराष्ट्रीय संबंध:

1945 में अमरीका द्वारा किए गए परमाणु विस्फोट ने जहाँ विश्व की युद्धधप्रक्रिया को बदलकर रख दिया वहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में शक्ति-संतुलन का भी नया आधार बन गया। अमरीका की न केवल पूंजीवादी विचारधारा का साम्यवादी विचारधारा से मुकाबला करने के लिए, बल्कि उसकी पारमाणविक शक्ति का भी सामना करने के लिए तत्कालीन सोवियत रूस ने परमाणु हथियारों के निर्माण में पहल कर एक दूसरे महाशक्ति के रूप में स्थापित हुआ।

परमाणु शक्ति और भारत

परमाणु शक्ति और भारत

तथा इन दोनों महाशक्तियों बीच छठे दशक से आठवें दशक तक शीतयुद्ध का एक अपूर्व सामरिक संबंध इस दुनिया ने झेला। यद्यपि 1945 के बाद इनमें से तथा इनके मित्र राष्ट्रों में से भी किसी ने भी परमाणु हथियारों का सामरिक उपयोग नहीं किया, किंतु विश्व के देशों का ध्रुवीकरण भी परमाणु शक्ति के चुंबक के कारण हुआ। दरअसल रूस द्वारा परमाणु शस्त्रों के उत्पादन ने ही अमरीका को इसके पुन: उपयोग से वर्जित रखा। यह दुनिया के इतिहास में पहला अनुभव है कि हथियारों की एक तकनीक एक-दूसरे के विरूद्ध काम में तो नहीं ली गई, किंतु देशों के आपसी संबंधों को तनावपूर्ण बनाए रखने में उनके पीछे बराबर खड़ी रही। 1980 तक ही लगभग 60,000 परमाणु एवं हाइड्रोजन बम तैयार कर लिए गए जो इस पूरी पृथ्वी को सैंकड़ों बार ध्वस्त कर सकते थे। 1980 के बाद सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति गोर्बाचोव और अमरीकी राष्ट्रपति रीगन के बीच निरस्त्रीकरण वार्ताओं के दौर शुरू हुए किंतु 20 वर्ष की इस अवधि में अमरीका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और अब भारत तथा पाकिस्तान ने अनेक परीक्षण किए हैं एवं बहुत से अन्य देशों को परमाणु अस्त्रों की तकनीक या तैयार सामग्री भी निर्यात की गई है। चीन द्वारा परमाणु हथियार तैयार कर लेने के साथ ही उसके रूस और विशेष रूप से अमरीका के साथ के संबंधों में अधिक गंभीरता तथा आपस में सीधा न उलझने का व्यवहार पनपा है । हाल ही में पहले भारत और उसके बाद पाकिस्तान द्वारा परमाणु बमों के उत्पादन की ख़बर ने पहले भारत-पाक के आपसी संबंधों तथा इन दोनों ही देशों के वैश्विक संबंधों में अचानक परिवर्तन आया है। इस प्रकार परमाणु हथियार सैन्य संतुलन, यहाँ तक कि व्यापारिक संबंधों के भी नए स्विच-बोर्ड बन गए हैं।

भारत में परमाणु शक्ति का विकास:

भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण 18 मई, 1974 को राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे के पास करके विश्व-हृदय में एक कंपन पैदा की थी, किंतु 24 वर्षों की चुप्पी के बाद 11 एवं 13 मई, 1998 को क्रमश: 3 व 2 परमाणु विस्फोट करके भारत विश्व में छठा परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र बन गया । विश्व में शांति का प्रबल समर्थक रहते हुए तथा पिछले 50 वर्षों में परमाणु अस्त्रों को सर्वथा नष्ट कर देने की बराबर अपील करते रहने के बावजूद भारत ने परमाणु विस्फोट परमाणु अस्त्रों का प्रयोग करने की मंशा से नहीं किया बल्कि अपने बिगड़ते जा रहे शक्ति-संतुलन को ठीक करने के लिए ही किया। एक दशक पूर्व भारत के प्रबल मित्र सोवियत रूस के बिखर जाने, शीत-युद्ध के समाप्त होने तथा रूस के कमज़ोर होते जाने के कारण भारत रूस द्वारा की गई सैन्य-संधि के मायने बदल गए, इस बीच भारत पर 1962 में एक बड़ा युद्ध थोप देने वाले चीन ने परमाणु हथियारों का विकास कर लिया। चीन और भारत का सीमा-विवाद भी सुलझ नहीं पाया तथा उसने अण्डमान द्वीप समूह से मात्र 30 कि.मी. दूरी पर म्यांमार (बर्मा) के द्वीप में तथा स्वयं म्यांमार में भारत की ओर निशाना किए परमाणु प्रक्षेपास्त्रों को स्थापित किया, भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर संघर्ष जारी रहा तथा पिछले दो दशकों में आतंककारियों के माध्यम से सामग्री यहाँ तक कि परमाणु हथियारों से संबंधित सामग्री का निर्यात किया और ये तथ्य सामने आने लगे कि पाकिस्तान भी परमाणु हथियार बनाने के बहुत करीब है।

उदारीकरण गैटसी.टी.बी.टी. आदि के द्वारा भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ता गया और भारत पारमाणविक तकनीक से संपन्न होते हुए भी परमाणु हथियारों से रहित एक शक्तिहीन राष्ट्र की छवि ही देता रहा। इन सब परिस्थितियों के दबाव से मुक्त होने के लिए भारत ने ज्यों ही मई, 1998 में परमाणु विस्फोट किया तो पश्चिमी दुनिया विस्मित रह गई तथा भारत के मित्र देशों ने इस घटना का गर्व के साथ स्वागत किया । भारत ने समग्र परमाणु परीक्षण संधि (सी.टी.बी.टी.) पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, उस पर हस्ताक्षर करने का भारी दबाव था। अतः वह इस संधि पर हस्ताक्षर करने से पूर्व स्वयं को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित कर दक्षिण एशिया में अपने विरुद्ध तैयार होते जा रहे शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करना चाहता था और उसने ऐसा ही किया।

परमाणु शक्ति बनने के बाद भारत के बदलते अंतरराष्ट्रीय संबंध:

भारत के परमाणु शक्ति बनने के बाद उसके अन्य देशों से संबंध तेजी से बदले हैं तथा अनेक मोड़ ले चुके हैं और लेने की प्रक्रिया में है। इन संबंधों के बदलाव का पहला दौर तो परमाणु विस्फोट के तुरंत बाद ही सामने आया। विस्फोट होते ही अमरीका, जापान, आस्ट्रेलिया, स्वीडन आदि देशों ने भारत को दी जानेवाली आर्थिक सहायता पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि ने प्रतिबंध तो नहीं लगाया किंतु सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला तथा गुट निरपेक्ष आंदोलन के अनेक सदस्य राष्ट्रों ने भारत के परमाणु शक्ति बन जाने का स्वागत किया। इसी परमाणु विस्फोट की पाकिस्तान की प्रतिक्रिया यह हुई कि उसने एक सप्ताह में ही दो बार परमाणु विस्फोट करके वह भी परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया तथा भारत के परमाणु विस्फोट के औचित्य को उसने सिद्ध कर दिया। भारत के परमाणु राष्ट्र बन जाने के बाद संबंधों का दूसरा दौर शुरू हुआ जिसमें आर्थिक प्रतिबंध लगाने वाले देशों ने धीरे-धीरे ये प्रतिबंध हटाना शुरू कर दिया और अंततः वे हट भी गए । पाकिस्तान ने करगिल में युद्ध छेड़कर पराजित होकर अंततः अपनी सेनाओं को वापिस बुला लिया, भारत को करगिल संघर्ष में विश्व समुदाय द्वारा मुखर समर्थन मिला, संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में अनेक देशों ने भारत को बड़ी शक्ति मानते हुए उसे सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाए जाने की पैरवी की । रूस, फ्रांस, हालैंड, फिलिपिंस, जर्मनी तथा अन्य अनेक गुट निरपेक्ष देशों ने सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए मुखर समर्थन दिया है। अमरीका तथा यूरोप के अनेक देश अब भारत को 21वीं शताब्दी में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरते हुए मूल्यांकित कर रहे हैं। भारत के साथ अमरीका तथा चीन ने सकारात्मक रुख रखना शुरू कर दिया है। मार्च, 2000 में अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा तथा चीन एवं भारत के प्रधानमंत्रियों की एक-दूसरे देश में यात्राएँ तथा भूमि संबंधी मुद्दों को दरकिनार कर आर्थिक व्यापारिक क्षेत्रों को व्यापक करने का प्रयत्न इसका स्पष्ट प्रमाण है।

उपसंहार: (परमाणु शक्ति और भारत)

भारत के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय का यह बदलता दृष्टिकोण भारत को उनके व्यापारिक हितों का पोषक मानकर ही नहीं बना है बल्कि इसलिए भी बना है कि पारमाण्विक शक्ति बनने के बाद भारत के तकनीकी विकास की क्षमता आर्थिक प्रतिबंधों को भी झेल लेने की सामथ्र्य तथा भारत के एक बड़ी शक्ति के उभरने की संभावनाएँ एक साथ और स्वतः उजागर हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन में भारत का उभरता नेतृत्व रूस के अलावा अमेरिका, चीन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों से बनते सुदृढ़ संबंध भारत की उस छवि की महत्वपूर्ण भूमिका है जो उसने परमाणु शक्ति बनने के द्वारा अर्जित की है। भारत की अचानक बढ़ी इस सैन्य प्रतिरोधक क्षमता से भारत की उपेक्षा अब सहज नहीं रह गई है। आर्थिक विकास की दृष्टि से 174 देशों में भारत के 134वे स्थान में रहने के बावजूद यह परमाणु शक्ति की दृष्टि से छठा राष्ट्र बन गया है। यदि भारत विकास के अन्य क्षेत्रों में भी तेजी से परिवर्तन कर लेता है। तो 21वीं सदी में उसके निश्चय ही एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित होने की संभावना है।

यह भी पढ़े:

  1. भारत में आतंकवाद निबंध
  2. वैश्विक आतंकवाद निबंध
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Written by lokhindi
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