अर्थव्यवस्था में उदारीकरण – Hindi Essay – निबंध
भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण : Hindi Essay
Liberalization in the Indian economy / Hindi Essay – अर्थव्यवस्था में उदारीकरण : दशा और दिशा |
आधार-बिंदु
1. भूमिका – उदारीकरण: भारतीय अर्थव्यवस्था का नया अध्याय
2. मिश्रित अर्थव्यवस्था का बढ़ता बोझ
3. उदारीकरण की अवधारणा और पृष्ठभूमि
4. भारत में उदारीकरण के कदम
5. उदारीकरण के सकारात्मक परिणाम
6. उदारीकरण के नकारात्मक दिशाएं
7. उपसंहार – उदारीकरण पर पुनरचिंतन की आवश्यकता
उदारीकरण: भारतीय अर्थव्यवस्था का नया अध्याय
भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण आजादी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के नए अध्याय की शुरुआत है | यह मिश्रित अर्थव्यवस्था के नियंत्रित चक्कर की समाप्ति तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के निर्बाध चक्र की शुरुआत है | सन 1991 के प्रारंभ में ही भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ओर विदेशी ऋण में बेतहाशा वृद्धि, मुद्रा भंडार में गिरावट, सरकारी खर्च में बढ़ोतरी, भारत से विदेशी पूंजी का पलायन, सार्वजनिक क्षेत्र में बढ़ता घाटा, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट और कृषि उत्पादक में ठहराव दृष्टिगत होता है | दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोवियत रूस का विघटन, पल्सर ब्रोक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में ध्रुवीकरण, पूर्वी यूरोपीय देशों मैं पूंजीवाद के अनुकूलन राजनीति उथल-पुथल, खाड़ी युद्ध, विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं का ठहराव आदी नजर आता है | इस प्रकार पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के दबाव और भारतीय अर्थव्यवस्था के अपने संकट के परीप्रक्षेय में सन 1991 के उत्तरार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्थाओं के मिश्रित स्वरूप के स्थान पर उदारीकृत अर्थव्यवस्थाओं को अनेक आशाओं-आशंकाओं, वादों और विवादों के बावजूद अपनाया गया, जिसके परिणामों में अब समीक्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है | यह इस रूप में भी प्रार्थना जरूरी है की तथाकथित उदारीकरण कहीं विकास का वह पूंजी मार्ग ही तो नहीं है, जो कहने को तो अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण है; किंतु वास्तव में यह है ‘ नव साम्राज्यवाद ’ जो विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के शोषण का छदमी नारा है तथा विश्व में देशों, वर्ग और व्यक्तियों के बीच आर्थिक विषमता की खाई और चौड़ी करने का नया वैश्विक अर्थ तंत्र है |
मिश्रित अर्थव्यवस्था का बढ़ता बोझ
भारतीय अर्थव्यवस्था को आजादी के बाद “ नेहरू- महालनोबिस विकास कार्यक्रम ” के अंतर्गत मिश्रित अर्थव्यवस्था का रूप दिया गया | इस अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र एवं राजकीय क्षेत्र का समन्वय सोच यह था कि समाज और सरकार मिलकर अर्थव्यवस्था का संचालन करेंगे; किंतु ऐसा संभव हुआ नहीं | सरकारी तंत्र को जनता के प्रति निष्ठावान नहीं बनाया जा सका और न जनता को इतना जागरूक किया जा सका कि वह राजकीय क्षेत्र में खुले कारखानों एवं राज्य द्वारा चलाई जा रही योजनाओं कार्यक्रमों को अपना माने, खुद सहभागिता निभाएं और राज्य एवं जनता के बीच की दूरी को पाटकर नए लोकतांत्रिक संबंध बनाएं | परिणाम स्वरूप सरकारी उद्योगों को भरपूर सरक्षण देने के बावजूद, वे देश विकास में भागीदार बनने के बजाय अर्थव्यवस्था पर उल्टा बोझ बन गए | Essay Hindi
सातवी योजना के काल में 230 से अधिक सरकारी उद्योग जिनमें 325 लाख रुपए की पूंजी लगी थी | हर वर्ष 10000 करोड़ रुपए के घाटे में चले गए | आशा तो यह थी कि इन के विकास के लिए जो विदेशी ऋण लिया गया था, उसे वापस करने के पश्चात यह उद्योग उचित मात्रा में लाभ कमाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद करेंगे, किंतु हुआ इसके विपरीत इनको चलाने के लिए अधिकाधिक ऋण लिए गए तथा भारत पर ऋण का भार बढ़ता गया | निर्यात भी अपेक्षित मात्रा में नहीं बढ़ा क्योंकि इन उद्योगों में कुशलता की विशिष्टकरण/ प्रबंधन की कमी के कारण इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की ऊंची लागत अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक सकी | इन सब कारकों के परिणाम स्वरूप आर्थिक विकास की सोच को बदलना पड़ा |
उदारीकरण की अवधारणा और पृष्ठभूमि
नई सोच की मुख्य दिशा थी – उदारीकरण | उदारीकरण का अर्थ है, सरकारों द्वारा आर्थिक क्रियाओं में न्यूनतम हस्तक्षेप | इस नीति के अंतर्गत वस्तुओं का उत्पादन बाजार की शक्तियों पर छोड़ दिया जाता है | वस्तु की किस्म, मात्रा, मूल्य आदि सब में सरकारी हस्तक्षेप न होकर इन्हें सवय बाजार तय करता है | मिश्रित अर्थव्यवस्था में बहुत सी वस्तुओं का उत्पादन, विक्रय, मूल्य निर्धारण आदि केवल सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा ही हो सकता है | निजी क्षेत्र में उत्पादन करने के लिए भी सरकार से लाइसेंस एवं अन्य प्रकार की कई स्वीकृतियां लेनी होती हैं | यही नहीं, कृषि द्वारा उत्पादित तथा अन्य कई आवश्यक वस्तुओं के मूल्य भी सरकार द्वारा निर्धारित किए जाते रहे हैं जैसे – चीनी, मिट्टी का तेल, पैट्रोल, रसोई गैस आदि | You Read This Hindi Essay on Lokhindi.com
उदारीकरण के सोच के पीछे वे विकसित देश भी जिम्मेदार हैं जो खुली बाजार की प्रतियोगिता के द्वारा अपने यहां की तकनीक एवं उत्पादित वस्तुओं को अल्पविकसित देशों के विस्तृत बाजारों में बेचना चाहते थे | वे चाहते थे कि अल्पविकसित देशों द्वारा अपने यहां आयात पर जो प्रतिबंध लगा रखे हैं, वे उठे और उनका माल अधिकाधिक बीके, विकसित देशों की अतिरिक्त पूंजी एवं तकनीक का निवेश अल्पविकसित देशों में हो इस प्रकार विकसित देशों के आर्थिक दबाव ने भी उदारीकरण की प्रक्रिया को और तिव्र किया |
भारत में उदारीकरण के कदम
भारत में पिछले 6 वर्षों में उदारीकरण के जो कार्यक्रम अपनाए गए उन में उद्योगों एवं आर्थिक गतिविधियों के गैर-सरकारी करण की ओर ले जाने का प्रयास हुआ है; किंतु उदारीकरण की प्रक्रिया तभी संपूर्ण होगी जब भारतीय उद्योगपति, नियोजनकर्ता यह समझ लेंगे कि उन्हें संपूर्ण विश्व से प्रतिस्पर्धा करनी है | निजी उद्योग सार्वजनिक उद्योगों की तुलना में अधिक कार्यकुशल है या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह है कि वह विश्व स्तर पर स्पर्धा कर सकते हैं या नहीं | सरकारी प्रतिबंधों को केवल सार्वजनिक उद्यमों के लिए ही नहीं हटाया जाता वरन उदारीकरण के अंतर्गत आयातो पर से प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं | वैश्वीकरण ही उदारीकरण की प्रक्रिया का अग्रणी चरण है | इसके लिए हमें रुग्ण उद्योगों से निजात पानी होगी, श्रमिकों को संरक्षण देकर उद्योग नहीं चलाए जाएंगे | Hindi Essay
उदारीकरण के लिए भारत में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जैसे अधिकतर क्षेत्रों में औद्योगिक लाइसेंस प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया; उद्योगों के विस्तार या नए निवेश के लिए सरकार से अनुमति लेने को आवश्यक नहीं समझा गया; सरकारी क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 3 कर दी गई; विदेशी प्रायोगिकी एवं पूंजी को आमंत्रित किया गया; सार्वजनिक क्षेत्र को आरक्षित क्षेत्रों में कार्य करने, अपनी रुग्णता को ठीक करने तथा सरकारी भागीदारी को वित्तीय संस्थानों, श्रमिको एवं जनता तक विस्तृत किया गया; आयातित वस्तुओं ( मात्रा लाभ प्रतिबंध समाप्त ) मैं और छूट दी गई, आयात निर्यात में मात्रात्मक प्रतिबंध समाप्त किए गए | निर्यात की वस्तुओं को अधिक प्रोत्साहन दिया गया | सन 1991 में आयातो पर सीमा शुल्क अधिकतम 300 प्रतिशत था | जिसे कम करते करते 25 प्रतिशत तक कर दिया गया | आगामी वर्षों में विश्व औसत 15% पर लगाया जाएगा |
अर्थव्यवस्था में उदारीकरण : Hindi Essay
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उदारीकरण के सकारात्मक परिणाम
उक्त निर्णयों के फलस्वरूप कुछ अच्छे परिणाम भी सामने आए हैं | 1991-92 का औद्योगिक सूचकांक ०.6% की वृद्धि दर से, 1993- 94 में 5.6% तथा 1994-95 में 8.4 प्रतिशत तक पहुंचा | जो 12 वी पंचवर्षीय योजना में 12% लक्षित किया गया है | सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी में सरकार के अलावा अन्य क्षेत्रों का विनिवेश कई गुना बढ़ा है | विदेशी सहयोग से हजारों प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई है | स्वीकृत प्रस्ताव विदयुक्त उत्पादन, विद्युत उपकरण, तेल शोधन, रसायन एवं निर्यात संबंधी क्षेत्रों से संबंधित है | कंपनियों में विदेशी निवेश भी बढ़ा है | कच्चा माल तथा पूंजीगत वस्तुओं के आयात शुल्क को काफी कम कर दिया गया है | अगस्त 1994 में चालू खाते में मुद्रा को पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया | You Read This Hindi Essay on Lokhindi.com
उदारीकरण की इस प्रक्रिया के कुछ और भी बेहतर परिणाम निकले हैं | व्यापार घटा जी.डी.पी के प्रतिशत के रूप में कम हुआ है फेमा ( FEMA – Foreign Exchange Management Act ) को जून, 2000 में लागू किया गया है | जो एक उदार अधिनियम है, भारत में बैंकिंग तथा पूंजी बाजार का कार्यक्षेत्र भी बढ़ा है तथा बैंकिंग व्यवस्था में भी काफी परिवर्तन किए गए हैं इसके फलस्वरूप बैंकों की कार्यकुशलता तथा लाभ बढे हैं | विदेशी बैंकों की संख्या बढ़ी है | भारत की कर प्रणाली एवं कर ढांचे में भी काफी परिवर्तन हुए हैं | प्रत्यक्ष कर का अनुपात बढ़ा है तथा उसकी दरों में भी काफी कमी की गई है | भारत के विदेशी निवेश में भी बढ़ोतरी हुई है इसी प्रकार भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 1990-91 में इतनी कमी आ गई थी कि तत्कालीन सरकार को सोना भी गिरवी रखना पड़ा था; किंतु अब विदेशी मुद्रा का भंडार कई गुना हो चुका है | इसी तरह ढांचागत क्षेत्र का विकास भी तेजी से हुआ है | पिछले वर्षों में बिजली, कोयला, इस्पात, उर्वरक, कच्चे पेट्रोलियम, सीमेंट से तथा विशेषकर दूर संचार के साधनों में तेजी से प्रगति हुई है | You Read This Hindi Essay on Lokhindi.com
आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण ( सेकंड जनरेशन )
आर्थिक सुधारों के इस प्रथम चरण से उत्साहित होकर अक्टूबर, 99 में नवगठित केंद्रीय सरकार ने आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण ( सेकंड जेनरेशन ) की घोषणा की है | इस दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों में विनिवेश के संबंध में अधिक प्रभावी नीति की आवश्यकता महसूस की गई है | अब केंद्र सरकार ने अपने अनेक उपक्रमों को संयुक्त उपक्रमों में बदला है, जो इन के निजीकरण की दिशा में ठोस कदम है | भारत में विदेशी निवेश की सीमा दूरसंचार में 74%, वित्त एवं हवाई अड्डे, विद्युत, सड़क, चाय, आधारभूत ढांचे, प्रिंट मीडिया में कुछ उपकरणों में 100%, निजी क्षेत्र की बैंकिंग, दूरसंचार में 74%, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग, स्वदेशी विमान सेवा में 49% है | विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, बीमा क्षेत्र का निजीकरण करते हुए विदेशी निवेश की सीमा 26% निर्धारित की गई है | ब्याज की दरें कम कर के उद्योगों में निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है, रोजगार बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है | देश में यूरोपीय, अमेरिकी कंपनियों का आउटसोर्सिंग बढ़ रहा है | देश की सुरक्षा और विकास के समन्वित लक्ष्य की ओर बढ़ा जा रहा है | Hindi Essay in HIndi
उदारीकरण के नकारात्मक प्रभाव
भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था से भिन्न, पूंजीवादी, निजीकरण-उन्मुखी, देसी और विदेशी प्रतिस्पर्धा के आधार पर विकसित हुई है | इस नीति का मूल्यांकन करना अब आवश्यक है | वस्तुतः देश की लुंज-पुंज अर्थव्यवस्था को ढुल-मूल राजनीति नेतृत्व द्वारा जिस तरह से बिना ठोस तैयारी के विश्व प्रतिस्पर्धा में झोंक दिया गया है | उसेसे नकारात्मक असर भी साफ नजर आने लगे हैं, बहुत से भारतीय उद्योग बंद हो गए हैं | बेरोजगारी बढ़ी है | भारतीय श्रमिकों के विदेशी तकनीक के साथ चलने के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य कुशलता बढ़ाने का कार्य नहीं किया गया है | सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की रूग्णता को दूर करने एवं उनके आधुनिकीकरण के ठोस उपाय नहीं किए गए हैं | ऐसी स्थिति में भारतीय पूंजी निवेशकों, उद्योगपतियों एवं श्रमिकों में निराशा भी व्याप्त हुई है तथा विदेशी शक्तियों के हाथों में भारतीय अर्थव्यवस्था के शोषण की स्थिति पैदा हो गई है | LOkhindi Hindi Essay
विश्वा में औद्योगिकरण एवं व्यापार से टक्कर लेने के लिए सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली, अच्छे बंदरगाह एवं आधुनिक चौड़ी सड़के चाहिए | उन्हें विकसित करने का हम सीमित ही प्रयास कर पा रहे हैं और सबसे प्रमुख बात यह है कि उदारीकरण को अपनाने के लिए जिन मूल्य नीतियों, वित्तीय नीतियों, शांति व्यवस्था एवं सामाजिक तत्वों से सुरक्षा का माहौल देने के लिए और विशेष रूप से गरीबी, बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य, कुपोषण एवं शिक्षा से ग्रस्त भारतीय जनता को उदारीकरण की दौड़ में दौड़ने के लिए जिस तरह के प्रशासनिक संरक्षण देने वाली संवेदनशील एवं कुशल नौकरशाही चाहिए वह भी हमारे पास नहीं है | हम आज भी राजाशाही दृष्टिकोण के साथ उपनिवेसीय प्रशासकीय संस्कृति से ग्रस्त अत्यंत खर्चीली, नकारात्मक, अकुशल, दंभी और भ्रष्ट नौकरशाही से ग्रस्त है |
पिछले 6 वर्षों के उदारीकरण को और व्यापक रूप से देखें तथा सुक्षमता से विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि देश की क्षेत्रीय विषमता पहले से ही अधिक बढ़ी है | अन्य पिछड़े देशों की तुलना में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे औद्योगिक दृष्टि से विकसित प्रदेश और अधिक विकसित हुए हैं | इसी तरह राष्ट्रीय आय के वितरण में भी अधिक असमानता बढ़ी है | उन बड़े व्यापार घरानों एवं समृद्ध व्यक्तियों की समृद्धि बढ़ी है, जो विदेशी कंपनियों से जुड़े हैं तथा छोटे व्यापारी एवं आम आदमी की आय में बहुत कम बढ़ोतरी हुई है | इस प्रकार हमारी अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी शिकंजा अधिक कस गया है | उपभोक्तावाद के दुश चक्कर में हम क्रमश: फंसते जा रहे हैं | विश्व की 16% जनसंख्या वाला देश विश्व व्यापार में मात्र 0.6 प्रतिशत भूमि रख रहा है |
उदारीकरण पर पुनरचिंतन की आवश्यकता
उदारीकरण का उद्देश्य सरकार की भूमिका में कमी लाना तो नहीं है, बल्कि उसमें अधिक उत्तरदायित्व, विवेक शीलता और समन्वय का कार्य बढ़ाना है | आर्थिक उदारीकरण का औचित्य भी इसी से सिद्ध किया जा सकता है कि उद्योग व्यापार की तमाम स्वतंत्रता और स्वचालिता के बावजूद उसका लाभ देश की आम जनता तक पहुंचना चाहिए | आर्थिक उदारीकरण में मूलत: उद्योग और व्यापार को ध्यान में रखा गया है; किंतु कृषि एवं ग्रामीण उद्योगों की भी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए; बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को ध्यान में रखकर उदारीकरण के फैसले किए जाने चाहिए | हमने विश्वा व्यापार संगठन के दोहा और कुन-कुन सम्मेलनों में अमेरिका और यूरोप के देशों से विरुद्ध कृषि सब्सिडी को लेकर जो विकासशील देशों को लाम्बंदकर नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है उसे जारी रखना चाहिए | इसी तरह विकसित देशों द्वारा आउटसोर्सिंग एवं श्रम के आदान-प्रदान पर लगाए जा रहे प्रतिबंध का भी संगठित रूप में विरोध जारी रखना चाहिए | हमें आर्थिक विषमता को दूर करने, सरकारी खर्च कम करने, नौकरशाही को स्वेदन सील एवं गतिशील बनाने तथा उदारीकरण की संपूर्ण अवधारणा को देश के गरीब तबके के हित में पुनरपरिभाषित करने की आवश्यकता है | हम टट्टू की सामर्थ्य और मानसिकता रखकर विकसित देशों की घुड़दौड़ में नहीं जीत सकते, इसलिए उदारीकरण के साथ-साथ कल्याणकारी एवं विकासोन्मुख राज्य की जवाबदेही तथा दखल को नजरअंदाज नहीं कर सकते | हमें उदारीकरण को विकसित देशों के नारे और उकसावे के रूप में नहीं बल्कि अपने सामाजिक आर्थिक यथार्थ के परीप्रेक्षय में देखना चाहिए | हमें कोरिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, फिलिपींस, मलेशिया आदि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की वर्ष 1997 में हुई आर्थिक दुर्गति से सबक लेकर अपनी बैंकिंग व्यवस्था, आत्मनिर्भरता बरकरार रखने वाली निजी उत्पादकता को मजबूत करने पर नजर रखनी चाहिए तथा विदेशी कर्ज के दुष्चक्र से बचना चाहिए | बड़े औद्योगिक निवेश के साथ-साथ भारी पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराने वाले लघु उद्योगों के विकास के प्रति और सचेत होना चाहिए | अर्थव्यवस्था का कोई भी वैश्वीकरण घातक साबित होगा यदि वह भारत के साधारण गरीब व्यक्ति की जिंदगी को बेहतर बनाने में सहायक साबित नहीं होता, वह भारतीय कृषि और कृषि आधारित उद्योगों को गति नहीं देता और भारतीय अर्थव्यवस्था को ओर अधिक आत्मनिर्भर, समतामूलक एवं भ्रष्टाचार मुक्त नहीं बनाता | वस्तुतः हमारी अर्थव्यवस्था का हर कदम ‘ मानवीय चेहरा ’ लिए हुए होना चाहिए |
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