अतिथि सत्कार – Hindi Moral Story – हिंदी में कहानी
Hindi Moral Story
यह कथा पुराण में आयी है | चिड़ियो को फंसा कर उन्हें बेचने वाला एक बहेलिया था | वह दिन भर अपना गोंद लगा बांस लिए वन में घूमा करता था | और चिड़ियों को फसाया करता था | एक बार सर्दी के दिनों में बहेलिया बड़े सवेरे जंगल में गया | उस दिन उसे कोई चिड़िया नहीं मिली | एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकते हुए उसे पूरा दिन बीत गया | वह इतनी दूर निकल गया था, कि घर नहीं लौट सकता था | अंधेरा होने पर एक पेड़ के नीचे रात बिता देने के विचार से वह बैठ गया |
उस दिन दिन में वर्षा हुई थी | ओले पड़े थे | सर्दी खूब बढ़ गई थी | बहेलिये के पास कपड़े नहीं थे | वह जंगल में रात बिताने की बात सोचकर घर से नहीं चला था | हवा जोर से चलने लगी | बहेलिया थर-थर कांपने लगा जाड़े के मारे उसके दांत कट-कट बजने लगे |
जिस पेड़ के नीचे बहेलिया बैठा था | उस पेड़ के ऊपर कबूतर का एक जोड़ा घोंसला बना कर रहता था | बहेलिये की दुर्दशा देखकर कबूतर ने अपनी कबूतरी से कहा – ” यद्यपि यह हम लोगों का शत्रु है; किंतु आज हमारे यहां अतिथि हुआ है | सेवा करना हम लोगों का धर्म है | अभी तो रात प्रारंभ हुई है, जाड़ा अभी बढ़ेगा | यदि इसे ऐसे ही रहना पडा तो रात भर में यह जाड़े के मारे मर जाएगा | हम लोगों को इसकी मृत्यु का पाप लगेगा | इसका जाड़ा दूर करने का उपाय करना चाहिए |
कबूतरी और कबूतर ने अपना घोंसला नीचे गिरा दिया | थोड़े और तिनके चोंच में दबा-दबा कर लाकर गिराये फिर कबूतरी उड़ गई और दूर से एक जलती लकड़ी चोंच में पकड़कर ले आयी | वह लकड़ी उसने तिनकों पर डाल दी तिनके जलने लगे | बहेलिया ने आसपास से इकट्ठी करके और लकड़ियां आग में डाल दी उसका जाडा दूर हो गया |
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बहेलिया दिन भर का भूखा था | वह अग्नि के प्रकाश में इधर-उधर देखने लगा, कि कहीं कुछ मिल जाए तो खाकर भूख मिटावे | उसका मुख भूख से सूख रहा था | कबूतरी ने यह देखा तो वह कबूतर से बोली – ” अतिथि साक्षात भगवान का स्वरूप होता है | जिसके घर से अतिथि भूखा चला जाता है | उसके सब पुण्य नष्ट हो जाते हैं | यह बहेलिया आज हम लोगों का अतिथि है | और भूखा है | इसकी भूख मिटाने को कुछ नहीं है, मैं इस जलती आग में कुदती हूं, जिससे मेरा मांस खाकर यह अपना पेट भर लें |”
कबूतरी इतना कहकर पेड़ से अग्नि में कूद पड़ी | कबूतर ने अपने मन में कहा – ” इस अतिथि का पेट कबूतरी के थोड़े से मां से कैसे भरेगा | मैं भी आग में कूद कर अपना मांस इसे दूंगा |” कबूतर भी आग में कूद पड़ा |
उसी समय आकाश में बाजे बजने लगे | फूलों की वर्षा होने लगी | देवताओं का विमान उतरा और उसमें बैठकर देवताओं के समान रूप धारण करके कबूतर और कबूतरी उस दिव्य लोक को चले गए | जहां बड़े-बड़े यज्ञ करने वाले राजा तथा बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी बड़ी कठिनाई से पहुंच पाते हैं |
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