बादशाह अकबर History – Badshah Akbar Biography Hindi
बादशाह अकबर History
– बादशाह अकबर का इतिहास / Badshah Akbar in Hindi। बादशाह अकबर का जीवन परिचय – बादशाह अकबर की History और कहानी हिंदी में !
अमरकोट में सन् 1542 में अकबर का जन्म बड़ी विकट स्थिति में हुआ। शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। बादशाह हुमायूँ को भागना पड़ा था। उसके पास अकबर के जन्म के समय कुछ भी नहीं था। थोड़ी-सी कस्तूरी बाँटकर उसने पुत्र-जन्म का उत्सव मनाया।
हुमायूँ की जब मृत्यु हुई तो जलालुद्दीन अकबर केवल 13 वर्ष का था। उसके संरक्षक बैरमखाँ ने पंजाब में ही उसे बादशाह घोषित कर दिया। बैरमखाँ ने पानीपत के मैदान में हेमू की विशाल सेना को हराया। इस प्रकार दिल्ली पर अकबर का अधिकार हुआ। लेकिन बैरमखाँ अब अकबर को अपने हाथ की कठपुतली बनाये रखना चाहता था। शासनका सब काम वह स्वयं करता था। 18 वर्ष की अवस्था में अकबर ने बैरमखाँ को ‘हज’ के लिये मक्का जाने के लिये विवश किया और स्वयं शासन की बागडोर सँभाल ली।
अकबर ने शासन सँभालते ही उन अमीरों का दमन किया जो उसे बालक समझकर विद्रोही बन गये थे। विद्रोहों के दमन के अतिरिक्त उसने राज्य का विस्तार भी किया। उसने यह अनुभव कर लिया कि राजपूतों को अनुकूल बनाये बिना भारत में कोई शासन सुदृढ़ नहीं हो सकता। राजपूतों से मेल करने के लिये कई राजपूत नरेशों की कन्याओं से विवाह किया।
अकबर ने गुजरात तथा पूरे दक्षिण भारत पर अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप को छोड़कर राजस्थान के सभी नरेशों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, प्रताप के शौर्य का अकबर सम्मान करता था और उसने उनको तंग करना बंद कर दिया था।
विद्वानों का सम्मान और उदार व्यवहार ये दो बातें अकबर की सबसे बड़ी विशेषता थीं। उसके दरबार में विद्वानों का एक बड़ा समुदाय था, जिनमें नौ मुख्य थे और वे ‘नौ रत्न’ कहे जाते थे।
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विजित शत्रु-सैनिकों को उसने गुलाम बनाना बंद कर दिया। हिंदुओं पर ‘जजिया’ कर उठा दिया और गो-वध बंद करने का आदेश निकाल दिया।
अकबर में धार्मिक संकीर्णता सर्वथा नहीं थी। वह जिज्ञासु और उदार विचारक था। कई धर्मो के सिद्धान्तों को लेकर उसने ‘दीने इलाही’ नामक एक सम्प्रदाय ही चलाया। लेकिन वह सम्प्रदाय चल नहीं सका।
सन् 1605 में अकबर की मृत्यु हुई। अन्तिम दिनों अपने पुत्र सलीम से उसका मनमुटाव हो गया था; किंतु मृत्यु के दिन सलीम ने पिता से क्षमा माँग ली
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