भाग्य और राजा – Hindi Moral Stories – हिंदी कहानी

भाग्य और राजा – Moral Story in Hindi

Hindi Moral Stories

बीकानेर के पास गांव में दो मित्र रहा करते थे | वे दोनों बीकानेर नरेश के यहां काम करते थे | उनमें से एक ब्राह्मण था, जो कि राजा के दरबार में पूजा-पाठ किया करता था | राजा को उसकी आवश्यकता यदा-कदा उत्सव, त्योहार या श्राद्ध, जन्म-मरण आदि में ही होती थी |  

दूसरा मित्र नाई था | नाई की आवश्यकता राजमहल में प्रतिदिन हीं पड़ती रहती थी, क्योंकि राजमहल में किसी न किसी के बाल आदि प्रतिदिन ही काटते रहते थे | इसके बाद भी राज्य की ओर से दोनों को समान आय की प्राप्ति होती थी | राजा के अधिक करीब होने के कारण नाई राजा का कुछ मुंह लगा भी अधिक था |

एक दिन ब्राह्मण और नाई में बहस हो गयी | ब्राह्मण कह रहा था कि – “ मनुष्य अपने भाग्य का खाता है, वैसे तो हम राजा के यहां काम करते हैं; किंतु देने वाला हमारा भाग्य ही है |” इसके विपरीत नाई कह रहा था कि – “ भाग्य-भाग्य कुछ नहीं होता | अगर राजा हमें काम से निकाल दे, तो हम दर-दर की ठोकरें खाते फिरेंगे |”

उनकी बहस बढ़ती गयी | दोनों में से कोई भी एक दूसरे की बात मानने को राजी नहीं था | उनकी बहस ने झगड़े का रूप ले लिया | उधर से राजा के गस्ती से पहरेदार जा रहे थे | उन्होंने जब दोनों को झगड़ा करते देखा तो, वे  उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गये |

राजा उन दोनों की मित्रता को जानता था | उन के बीच झगड़े की बात सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने दोनों से इसका कारण पूछा –

ब्राह्मण बोला – “ महाराज! मेरा कहना है कि हमें देने वाला हमारा भाग्य है | इसमें राजा कुछ नहीं कर सकता |

राजा को  यद्यपि यह बात अच्छी नहीं लगी; किंतु वह बोला कुछ नहीं उसे नाई की बात अच्छी लगी थी | उसने नाई से पूछा – “ तुम्हारा क्या विचार है |”

नाई थोड़ा अकड़कर बोला – “ महाराज! इस ब्राह्मण की बात सरासर गलत है, यदि आप हमें काम से निकाल दें |  तो हम भूखे मर जायेगे, मेरे विचार से तो हमें देने वाले आप हैं | आप ही हमारा भाग्य हैं |” नाई चापलूसी पर उतर आया |

उसकी बात सुनकर राजा मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ; किंतु इस बात को भी उसने सबके सामने जाहिर नहीं किया | क्योंकि इसमें उसका अभिमान दिखाई देता | यद्यपि राजा को नाई की बात ही पसंद आई थी | किंतु  अपनी व्यक्तिगत राय के आधार पर तो राजा कोई फैसला नहीं कर सकता | अतः उसे एक तरकीब सूझी | उसने उन दोनों को अगले दिन दरबार में आने के लिए कहा |

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अगले दिन ब्राह्मण और नाई दोनों दरबार में उपस्थित हुये | अपनी योजना के अनुसार राजा ने पहले नाई को अपने पास बुलाया और उसे एक एक सेर चावल, घी तथा एक बहुत बड़ा कुम्हडा दिया | इसके बाद उसने नाई से कहा कि – “ वह नदी किनारे जाकर भोजन पकाये और शाम को आकर मिले |” नाई अपना सामान लेकर चल दिया |

तत्पश्चात राजा ने ब्राह्मण को अपने पास बुलाया | उसे दाल, चावल तथा घी आदि देकर वही बात कही जो उसने नाई से कही | साथ ही यह भी कहा कि – “ वह नाई से दूर हटकर अपना भोजन पकाये |”

ब्राह्मण भी अपना सामान लेकर नदी के किनारे नाई से दूर हटकर एक स्थान अपना भोजन बनाने की तैयारी करने लगा |

नाई ने अपना सामान देखकर सोचा न जाने क्या सोचकर राजा ने मुझे यह कुम्हड़ा दे दिया | कुम्हड़ा खाकर तो पेट खराब हो जायेगा | जबकि ब्राह्मण को तो अक्सर विवाह आदि में कुम्हड़े की सब्जी खाने को मिलती है इसे खाने की आदत होती है | चलो चल कर देखू राजा ने ब्राह्मण को क्या दिया है | अगर कुछ और होगा तो उसे अपने  कुम्हड़े से बदल लूंगा |

यह सोचकर वह अपना कुम्हड़ा लेकर ब्राह्मण के पास पहुंचा और उससे पूछा कि – “ राजा क्या दिया है |” ब्राह्मण ने बताया कि – “ राजा ने उसे दाल चावल दिये हैं |”  तो नाई ने उससे दाल के बदले उसका कुम्हड़ा लेने की विनती की |

कुम्हड़ा की सब्जी ब्राह्मण को पसंद थी | उसने खुशी-खुशी दाल नाई को दे दी और कुम्हड़ा ले लिया | नाई भी दाल को लेकर खुशी-खुशी वहां से चलता बना |

नाई ने दाल-चावल पकाये खाये और शाम की प्रतीक्षा में सो गया |

इधर ब्राह्मण ने जैसे ही सब्जी बनाने के लिए कुम्हडे को काटा तो उसकी आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गयी |  कुम्हड़े के अंदर हीरे-मोती, माणिक भरे हुए थे | राजा ने बड़ी ही सफाई से नाई के कुम्हड़े के अंदर इन्हें रखवा दिया था | ब्राह्मण ने सभी हीरे-मोती, माणिक अपनी धोती में बांधे तथा आधे कुम्हड़े की सब्जी बनाकर आधा कुम्हड़ा संभाल कर रख दिया |

शाम को दोनों दरबार में पहुंचे तो सबसे पहले राजा ने नाई से पूछा – “ तुमने खाने में क्या खाया |”

नाइस प्रसन से घबरा गया | उसने सोचा कि राजा को पता चल गया है कि उसने कुम्हड़े के बदले ब्राह्मण से दाल ले ली थी | अतः भलाई इसी में है कि सच बता दिया जाये | उसने बता दिया कि “ कुम्हड़ा खाकर उसके पेट में दर्द हो जाता है | अतः उसने इसके बदले ब्राह्मण से दाल ले ली थी |”

राजा की प्रश्नवाचक निगाहें ब्राह्मण की ओर ठहर गयी | ब्राह्मण ने सारे हीरे-मोती और आधा कुम्हड़ा राजा के आगे रख दिया |

राजा अपनी हार मानता हुआ बोला – “ तुम ठीक कहते हो | ब्राह्मण देवता! भाग्य के आगे किसी का बस नहीं चलता | यह हीरे-मोती तुम्हारे भाग्य में थे | अतः मेरे द्वारा नाई को देने के बाद भी यह तुम्हारे पास चले गये | अतः तुम जीत गये |

इसके पश्चात राजा ने वह सारे हीरे-मोती ब्राह्मण को ही दे दिये | नाई को भी सच्चाई का पता चल गया था | अतः दोनों मित्र खुशी-खुशी वहां से विदा हो गये ||

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Written by lokhindi
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