भारत में बाल श्रम Essay in Hindi : हिंदी निबंध
भारत में बाल श्रम – Essay
Child Labor in India / भारत में बाल श्रम : सामाजिक विकास का विकृत चेहरा – Full Essay in Hindi | भारत में बाल श्रमिक समस्या पर निबंध |
आधार बिंदु :
- बाल श्रम : न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक सवाल
- भारत में बाल-श्रम के दर्दनाक स्थिति
- बाल श्रमिक क्यों ? भारत में बाल श्रम Essay
- भारत में बाल-श्रम को लेकर वैधानिक स्थिति
- बाल-श्रम और उच्चतम न्यायालय
- बाल-श्रम के संबंध में सरकार के विशेष प्रयास
- अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय बाल सम्मेलन
- बाल-श्रम की समाप्ति के लिए महत्वपूर्ण कदम
बाल-श्रम : न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक सवाल : भारत में बाल श्रम Essay
बाल-श्रम न केवल विश्वव्यापी सामाजिक-आर्थिक समस्या है बल्कि एक नैतिक-संकट भी है । ऐसी समाज-व्यवस्था जिसमें बच्चों और किशोरों को उनके शारीरिक-बौद्धिक विकास का सर्वाधिक मूल्यवान अवसर छीनकर उनके श्रम से रोजी-रोटी प्राप्त की जाए या लाभकारी धंधा किया जाए तो यह समाज के भविष्य को रौंदकर वर्तमान को समृद्ध करने का स्वार्थपूर्ण कृत्य हैं । बाल-श्रम के लिए बाल श्रमिक का अभिभावक तो अपनी आर्थिक मजबूरी के कारण जिम्मेदार है ही किंतु बाल-श्रम से अपनी पूंजी को बढ़ाने वाला रोजगारदाता तथा हमारी वह संपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था भी जिम्मेदार है जो अपने ही भाभी नागरिकों को अपने सहज विकास के मार्ग से हटाकर अपनी अर्थव्यवस्था का संचालन करती है । भारतीय अर्थव्यवस्था की विडंबना है कि दुनिया के सबसे अधिक बालश्रमिक यही है और कुल भारतीय श्रम का 20% भाग हमारे नौनिहालों, कच्ची विकासमान उम्रवाले बच्चों से प्राप्त होता है । इसलिए बाल श्रम का प्रशन बच्चों के शोषण के साथ साथ उनके विकास का भी है, बाल श्रमिक अभिभावक से ज्यादा पूरी व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है ।
भारत में बाल-श्रम की दर्दनाक स्थिति : भारत में बाल श्रम Essay
बाल-श्रम आजादी से पहले से ही किसी न किसी रूप में गैर-कानूनी घोषित कर दिया था, इसलिए भारत में वास्तव में बाल श्रम कितना है इसका आंकलन तो कठिन ही है किंतु यह तो निश्चित ही है कि दुनिया के 40 करोड़ बालश्रमिकों में से सबसे अधिक भारत में ही है । 1991 की जनगणना के अनुसार सरकारी आंकड़े 1.26 करोड़ बालश्रमिक बताते हैं । अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार (1996) भारत में 1.26 करोड़ बच्चे पूर्णकालीन एवं 1.05 करोड़ बच्चे अंशकालीन श्रमिक हैं । ऑपरेशन रिसर्च ग्रुप के अनुसार यह संस्था लगभग 5 करोड़ है, तो ‘सेंटर फ़ाँर कन्सर्न ऑफ़ चाइल्ड लेबर’ ने लगभग 10 करोड बाद श्रमिक माने हैं । राष्ट्रीय मानक सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ) के अनुसार 1999-2000 मैं 1.04 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं । इसमें 80% बच्चे को खेती में खप रहे हैं, शेष 20% बच्चों में 1.50 लाख बच्चे कालीन उद्योग में, 50 हजार बच्चे मासिस उद्योग में, 50 हजार बच्चे आतिश उद्योग में हैं । इसी तरह जयपुर-सूरत के रत्न-पाँलिश, मुरादाबाद के पीतल, खुर्जा के चीनी मिट्टी, संबलपुर के बीड़ी-उद्योग, लखनऊ के जरी की कढ़ाई, मंदसौर की स्लेट उद्योग, मेघालय की कांँच की खानों आदि में 20 लाख से ऊपर बच्चे अपनी आजीविका के लिए अत्यंत खतरनाक कार्यों में लगे हुए हैं ।
भारत में बाल श्रमिक की संख्या ही अधिक नहीं है बल्कि वे जिन स्थितियों में काम करते हैं, वे दर्दनाक है । फिरोजाबाद के चूड़ी उद्योग में बच्चे 1004 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान में दहकती भट्टियों के पास काम करते हैं, जिससे उनका कच्चा शरीर झुलस जाता है । दरियों और कालीनो की बुनाई में बच्चों की कोमल नन्ही अँगुलियाँ तेजी से थिरकती है किंतु उनका शरीर जकड़ जाता है तथा एक-एक कर उनके अंग खराब होने लगते हैं । इसी तरह आतिश के कारखाने में अंग-भंग होते रहते हैं, जानें चली जाती है तथा पोटाश, सल्फर एवं फास्फोरस गैस रसायनों के बीच रहने से सांस, यक्ष्मा आदि बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं । इसी तरह गंदगी के ढेरों से पॉलिथीन आदि का कचरा ढूंढनेवाले बच्चों में अनेक तरह की बीमारियां हो जाती हैं । वस्तुतः बाल-श्रमिक जिस तरह की खतरनाक कार्यों में लगे होते हैं वहीं से वे रोटी के लिए कुछ पैसा तो जुगाड़ लेते हैं किंतु बहुत ही जल्दी किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होकर अपना जीवन चौपट भी कर लेते हैं और फिर जीवनभर के लिए बेरोजगार हो जाते हैं । You Read This भारत में बाल श्रम Essay on Lokhindi.com
बाल श्रमिक क्यों ? : भारत में बाल श्रम Essay
गरीबी, मां-बाप की बेरोजगारी, जनसंख्या-वृद्धि, अभिभावक की अशिक्षा तथा बच्चों के लिए रोचक, सार्थक प्राथमिक शिक्षा का अभाव बाल-श्रमिक होने के प्रमुख कारण है । जब 26% जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे बसर कर रही है तो अभिभावकों के साथ-साथ उनके बच्चे भी रोजी-रोटी के लिए काम करते हैं । जनसंख्या की वृद्धि और उस अनुपात में रोजगार नहीं बढ़ने के कारण अभिभावक अंततः अपने बच्चे को स्कूल न भेजकर काम पर भेजता है लेकिन सबसे बड़ा कारण तो शिक्षा उसके जुड़ा हुआ है । अशिक्षित अभिभावक उसने अपने बच्चे की शिक्षा एवं विकास को महत्व नहीं देते । इसलिए थोड़ी-सी सुविधा या लोभ में वह अपने बच्चों को पढ़ाने से रोक लेते हैं । दूसरी ओर 5-6 वर्ष की उम्र में बच्चे स्कूल जाते हैं किंतु स्कूलों में रोचक ढंग से पढ़ाने का वातावरण नहीं मिलने से शिक्षक के भय से या पढ़ाई की जटिल पद्धति से बिदक कर बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं । 5 वर्ष से 14 वर्ष तक पहुंचते-पहुंचते 80% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं । और अंततः बाल-श्रमिक बन जाते हैं । ग्रामीण भारत में छोटी उम्र में विवाह कर देने से लड़कों पर घर चलाने की जिम्मेदारी भी उसे श्रमिक बना देती है । नियोक्ता भी कम मजदूरी, अधिक काम तथा बच्चों पर अनुकूल नियंत्रण की स्थिति के कारण बहुत-से कार्यों को बच्चों के द्वारा ही करवाना पसंद करते हैं । बाल विकास को लेकर एवं बाल श्रमिक के विरोध में समाज एवं शासन में जागृति नहीं है इसलिए शिक्षा एवं बाल-श्रम से संबंधित कानूनों का कड़ाई से पालन भी नहीं किया जा रहा । इन सबके फलस्वरुप देश में बाल श्रमिकों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है ।
भारत में बाल-श्रम को लेकर वैधानिक स्थिति : भारत में बाल श्रम Essay
देश ने बाल-श्रम को रोकने का प्रयत्न आजादी से पहले से ही किया जा रहा है । सबसे पहले सन् 1981 में कारखाना अधिनियम बना जिसमें सात वर्ष के बालक से कार्य करवाना गैर-कानूनी घोषित किया गया । फिर 1901, 1923, 1934, एवं 1993 में संशोधन किया गया तथा बाल श्रमिक को 14 वर्ष तक की आयु में सम्मिलित कर लिया गया । 1938 में ब्रिटिश सरकार ने बाल मजदूरी अधिनियम एवं 1946 में कोयला-अभ्रक कानून बनाया । 1951 में स्वाधीन भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 में बेगार एवं बलात काम करवाने पर प्रतिबंध है, अनुच्छेद-24 में 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बालक को किसी भी औद्योगिक संस्थान में काम पर लगाने एवं काम की अनुमति देने पर प्रतिबंध है, अनुच्छेद-39 ई. में बच्चों के स्वास्थ्य एवं शैशव के दुरुपयोग तथा आयु के लिए अनुपयुक्त कार्य में लगाने पर प्रतिबंध है । अनुच्छेद-39 एफ़ में बच्चों का शोषण रोकने तथा उन्हें स्वस्थ, उन्मुक्त एवं गरिमामय ढंग से विकसित होने के लिए अवसर देने तथा अनुच्छेद 45 में 14 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था सरकार द्वारा किए जाने का प्रावधान है । 1950 में संविधान लागू होने के बाद आवश्यकतानुसार एक पर एक अधिनियम पारित होते गए । चाय, कॉफी, रबर के बागानों में कार्यरत मजदूरों के संरक्षण का अधिनियम बनाया गया । 1952 में खान कानून, 1959 में श्रम नियोजन अधिनियम, 1960 में बाल अधिनियम तथा 1976 में बंधुआ मुक्ति अधिनियम बनाया गया किंतु 1988 में बाल-श्रम निरोधक एवं नियमन कानून बनाया गया जिसमें खतरनाक उद्योगों में कार्य कर रहे बच्चों के प्रतिबंध का प्रावधान है ।
भारत में बाल श्रम Essay in Hindi
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बाल-श्रम और उच्चतम न्यायालय : भारत में बाल श्रम Essay
दिसंबर, 1996 में उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर शिवकाशी (तमिलनाडु) के माचिस पटाखा उद्योग के बाद में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए खतरनाक उद्योगों में बच्चों के काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया तथा बालश्रमिकों के पुनर्वास के लिए कल्याण कोष बनाने का आदेश दिया जिनमें बाल-श्रमिक के उद्योग मालिक को 20 हजार रूपये जमा करवाने होंगे, सरकार को यह देखना होगा कि बच्चे के अभिभावक को अन्य कोई काम मिले अन्यथा सरकार प्रत्येक बच्चे के लिए उक्त कोष में 5 हजार रूपये जमा करे । उक्त बच्चों की अच्छी शिक्षा देने तथा गैर-खतरनाक उद्योगों में बाल श्रमिकों को चार से 6 घंटे के लिए कार्य करवाने एवं काम के दौरान प्रतिदिन 2 घंटे शिक्षा प्राप्त करने के समय देने तथा उसकी शिक्षा नियोजन को वहन करने का निर्णय दिया ।
बाल श्रम के संबंध में सरकार के विशेष प्रयास : भारत में बाल श्रम Essay
बाल-श्रम के संबंध में 1987 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाल-श्रमिक नीति बनाई जिसमें- (1) विभिन्न श्रम कानूनों के तहत बाल-श्रम से संबंधित कानूनी प्रावधानों के सख्त और प्रभावी प्रवर्तन पर जोड़ दिया गया, (2) अन्य विभागों तथा मंत्रालयों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न विकास कार्यक्रमों को बाल-श्रमिक के लाभ के लिए उपयोग में लाने पर बल दिया गया तथा (3) जिन क्षेत्रों में बालश्रम अधिक है उन क्षेत्रों में कार्यशील बच्चों के कल्याण के लिए विशेष प्रयोजनाएँ चलाने का निर्णय लिया गया ।
बालश्रम की समाप्ति के लिए 8 वीं पंचवर्षीय योजना में विशेष कार्य की गए । अगस्त, 1994 को स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने एक वृहत राष्ट्रीय कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें कालीन बुनाई, पत्थर खनन, माचिस निर्माण तथा पटाखा उद्योग जैसे ख़तरनाक उद्योगों में लगे 20 लाख श्रमिकों को लक्षित करके उनको उनके काम से हटाकर स्कूल भेजने में 850 करोड रुपए व्यय करने का प्रावधान किया गया है । बाल-श्रम उन्मूलन के लिए प्रभावी कार्य हेतु केंद्रीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता में ‘बाल-श्रम उन्मूलन प्राधिकरण’ भी गठित किया गया है । अब देश में 76 बाल श्रमिक योजनाएँ चल रही हैं जिनका उद्देश्य श्रम में रत बच्चों को शिक्षा देना, अन्य रोजगार की शिक्षा देना और इस प्रकार उन्हें पुनर्स्थापित करना है । स्कूलों में पोषाहार देकर भी बच्चों को बाल श्रम से रोकने का प्रयास किया गया है । मीडिया के द्वारा केंद्रीय स्तर पर जनजागरण अभियान भी छेड़ा गया है । 13 राज्यों में लगभग 100 राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजनाएँ कार्य कर रही हैं जिनमें 2.11 लाख बच्चे शामिल किए गए हैं । You Read This भारत में बाल श्रम Essay on Lokhindi.com
अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय बाल सम्मेलन : भारत में बाल श्रम Essay
बाल-श्रम सभी देशों की, विशेष रूप से विकासशील देशों की भारी समस्या है । इसलिए बाल-श्रम से मुक्ति के लिए पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है । अक्टूबर, 1997 में नार्वे की राजधानी ओस्लो में अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम सम्मेलन हुआ । ओस्लो सम्मेलन में बच्चों के काम के अधिकार की भी मांग उठाई गई तथा राजनेताओं, अंतरराष्ट्रीय टेड संघ आदि की नीतियों की आलोचना की गई । इस सम्मेलन के समानांतर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के बालश्रमिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें बेहतर सेवा-स्थिति, समुचित मजदूरी और वैकल्पिक रीति के रोजगार की मांग उठाई गई । इस सम्मेलन में बच्चों को भी काम का अधिकार मिलने की मांँग उठाई गई जिसका पेरू तथा भारत के प्रतिनिधियों ने समर्थन किया तो नेपाल, ब्राजील और कंबोडिया के प्रतिनिधियों ने विरोध किया ।
मार्च-अप्रेल, 1997 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमें अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाने के कानूनों को लागू करवाने, बस्ते के बोझ के बिना शिक्षा देने संबंधी, यशपाल समिति रिपोर्ट को लागू करने, बालिका-कल्याण के लिए विशेष कदम उठाने, बाल-श्रम की समाप्ति के लिए खतरनाक एवं गैर-खतरनाक उद्योगों का वर्गीकरण समाप्त करने, बच्चों को श्रम के लिए बाध्य होने से रोकने के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली विकसित करने तथा 14 साल से कम आयु के सभी बच्चों के लिए किसी भी क्षेत्र में रोजगार प्रतिबंधित करने के लिए 1986 के बाल-श्रम अधिनियम का सख्ती से पालन किए जाने की सिफारिश की । भारतीय संसद ने 2003 में प्राथमिक शिक्षा के मूल अधिकार में सम्मिलित कर बच्चों की अनिवार्य शिक्षा को महत्व दिया है जिसकी यदि प्रभावी क्रियान्विति होती है तो बालश्रम को समाप्त करने में मदद मिलेगी ।
बाल-श्रम की समाप्ति के लिए महत्वपूर्ण क़दम : भारत में बाल श्रम Essay
बाल श्रम मूलतः गरीबी, बेरोजगारी, अभिभावकों के अज्ञान और बच्चों की घटिया शिक्षा व्यवस्था के कारण है । इसलिए बाल-श्रम को चिन्हित करते हुए उन परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने तथा उनमें बाल-श्रम के विरुद्ध एवं शिक्षा के पक्ष में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है । पहले से कार्यरत बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा, रोजगार आदि के लिए अधिक प्रभावी एवं शीघ्रता के साथ प्रयोजनएँ चलानी चाहिए । सरकार एवं स्वैच्छिक संस्थाएं मिलकर प्राथमिक शिक्षा के अनुकूल तथा बालविवाह, बाल श्रम के विरोध में वातावरण बनाने एवं बाल श्रम अधिनियम को सख्ती से लागू करने का काम करें तो बाल श्रम को कम किया जा सकता है । निःशुल्क शिक्षा, निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, वर्दी, दोपहर का भोजन, छात्रवृति तथा व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए । पंचायतीराज संस्थाओं एवंस्वयंसेवी संगठनों के जरिए बाल श्रम की पहचान तथा बच्चों की शिक्षा एवं वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराने के बारे में सघन कार्य किया जा सकता है । मीडिया के द्वारा व्यापक स्तर पर बाल श्रम के विरुद्ध अभियान छेड़ने की आवश्यकता है । बाल-श्रम के उन्मूलन के लिए समाज के सामाजिक आर्थिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है जो समाज के छोटे-छोटे संगठनों, स्वैच्छिक संस्थाओं, विद्यालयों आदि के द्वारा जन-जागृति कर, राजनेताओं और प्रशासकों को इस कार्य के लिए संवेदनशील बनाकर किया जा सकता है ।
बाल श्रम के निवारण का सवाल एक संस्कृतिक-बोध का सवाल है कि हमारे बच्चे के प्रति, हमारे वंचित वर्ग के प्रति और हमारे भविष्य के प्रति कितना जुड़ाव रखते हैं और इसको बदलने की प्रति इतनी प्रतिबद्धता महसूस करते हैं । विभिन्न विकसित देशों ने विकासशील देशों के बाल निर्मित वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसमें भारतीय वस्तुओं के निर्यात के लिए भी एक नया संकट चल रहा है । दरअसल इस समस्या का समाधान बाल श्रमिकों की ठोस वैकल्पिक विकास-व्यवस्था के होने से ही हो सकता है, इकतरफा निर्णय लेने से समस्या अधिक उलझती है । वर्तमान में बालश्रमिकों की समस्या संपूर्ण समाज के विकास को लेकर काफी भयावक है, इसलिए इसका समाधान राजनीतिक, प्रशासनिक, गैर-सरकारी एवं व्यक्तिगत तौर पर मिलजुल कर, एक सघन वातावरण बनाकर किया जाना जरूरी है अन्यथा 21वीं सदी में भारतीय समाज की विकास का चेहरा और अधिक विकृत हो जाएगा । भारत में बाल श्रम Essay
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