चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय [ हिंदी में ] Chanakya Neeti

चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय

‘पंडित’ विष्णुगुप्त चाणक्य की विश्व प्रसिद नीति का प्रथम भाग हिंदी में। चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय ( Chanakya Neeti First Chapter in Hindi )


१. प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम् ।

नाना शास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ।।

  • तीनों लोकों के स्वामी, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक ईश्वर को प्रणाम कर मैं अनेक शास्त्रों से उधृत करके राजनीति समुच्य नाम के इस महाग्रन्थ का कार्य आरम्भ कर रहा हूं। हे प्रभु! मुझे शक्ति दो, आशीर्वाद दो।

२. अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति उत्तमः।चाणक्य नीति प्रथम अध्याय

धर्मोपदेशविख्यातं कार्याकार्यं शुभाशुभम् ।।

  • मैं इस शास्त्र द्वारा श्रेष्ठ प्राणियों को यह मार्ग दिखाना चाहता हूं कि वे सब इस ग्रन्थ का विधिवत् अध्ययन करके शास्त्रों में उपदिष्ट कर्त्तव्य- अकर्तव्य, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म को ठीक प्रकार से जानकर अपने जीवन को प्रकाशमान करके ज्ञान प्राप्त करें।

३. तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया।

येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते।।

  • मैं लोगों के कल्याण की कामना करते हुए इस राजनीति समुच्य का वर्णन करूंगा। जिसे जानकर मानव सर्वज्ञ हो जाता है।

४. मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च।

दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।

  • बुद्धिहीन शिष्यों को पढ़ाने से, दुष्ट नारी का भरण-पोषण करने से बुद्धिमान प्राणी भी दुःख ही पाता है।

५. दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।

ससर्षे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः।।

  • बुरे शब्द बोलने वाली और दुष्ट नारी, पापी स्वभाव वाला मित्र, मालिक के सामने हर बात का उत्तर देने वाला नौकर और सांपों वाले घर में रहना। यह सब बातें मौत का ही स्वरूप हैं। इसमें कोई संदेह अथवा दो राय नहीं।

६. आपदर्थे धनं रक्षेदू दारान् रक्षेद्धनैरपि।

आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि।।

  • बुद्धिमान लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बुरे समय के लिए धन कमाकर रखें और उस धन की रक्षा भी पूरे ध्यान से करें। परन्तु धन और स्त्री से भी अधिक उन्हें अपनी रक्षा की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है, क्योंकि जब उनका अपना ही नाश हो जाएगा तो धन और स्त्री किस काम आएंगे?

७. आपदर्थे धनं रक्षेच्छ्रीयतां कुत आपदः।

कदाचिच्चलिता लक्ष्मीः संचितोऽपि विनश्यति।।

  • किसी व्यक्ति ने किसी धनी से कहा कि क्या बुरे समय के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए। वह धनवान हंस कर बोला कि बन्धु यह बुरा वक्त कब आता है? तभी वह व्यक्ति बोला-सेठजी ! लक्ष्मी चंचल है, न जाने कब चली जाए। धनवान फिर जोर से हंसकर बोला कि तो इकट्ठी की गई लक्ष्मी भी नष्ट हो सकती है।

८. यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।

न च विद्याऽगमः कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत् ।।

  • जिस देश में आदर सम्मान न हो, न खाने-पीने के साधन हों, न बन्धु-मित्र और साथी हों, न ही योग्य शिक्षा की प्राप्ति के साधन हों, ऐसे किसी भी देश में नहीं रहना चाहिए। ऐसे देश को जितनी जल्दी छोड़ दो अच्छा है।

९. धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।

पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ।।

  • जिस देश में धनवान, वेद, यज्ञ, ब्राह्मण, राजा आदि पांच विद्यमान न हों, ऐसे किसी भी देश में बुद्धिमान को नहीं ठहरना चाहिए।

१०. लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।

पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात् तत्र संस्थितिम् ।।

  • जहां पर लोग ईश्वर से विमुख हों, निर्लज्ज हों, चातुर्य व त्याग की भावना से रहित हों, वहां कभी नहीं रहना चाहिए।

११. जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनाऽऽगमे।

मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।।

  • काम पर रखे गए नौकरों पर जब कष्ट आ जाए अथवा वे किसी मुसीबत में फंस जाएं, अपने मित्रों, सगे-सम्बन्धियों के दु:ख के समय, धन चले जाने पर स्त्री की परीक्षा होती है।

१२. आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रु-संकटे।

राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।।

  • बीमारी के समय, दु:ख होने पर, अकाल पड़ने पर, दुश्मनों से घिर जाने पर, किसी मुकदमे आदि में फंस जाने पर, सहायक एवं गवाह के रूप में, राज्य सभा में और मरने पर जो श्मशान में भी साथ देता है, वही सच्चा दोस्त व साथी होता है, दु:ख के साथी को ही साथी मानो।

१३. वरयेत कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।

रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुलो।।

  • जो लोग बुद्धिमान हैं, ज्ञानी हैं उन्हें चाहिए कि वे उच्च कुल में जन्मी कुरूप कन्या के साथ अपना विवाह करें और जो कन्या सुन्दर है, उसका जन्म नीच कुल में हुआ है, ऐसी कन्या के साथ कभी भी बुद्धिमान, ज्ञानी पुरुष को विवाह नहीं करना चाहिए, ऐसे विवाह से घर की शांति कभी नहीं रह सकेगी।

१४. यो धुवाणि परित्यज्य अधुवं परिषेवते।

ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव च।।

  • जो लोग बने हुए काम को छोड़कर न बनने वाले काम के पीछे भागते हैं, उनका बना हुआ काम भी बिगड़ जाता है। जो पहले से ही न होने वाला है वह तो पहले से नष्ट है ही।

१५. नखीनां च नदीनां च श्रृंगीणां शस्त्रपाणिनाम् ।

विश्वासौ नैव कर्तव्यः स्त्रीषु राजकुलेषु च।।

  • बड़े-बड़े नाखून वाले प्राणियों का, तीव्र बहती नदियों का, सींग वाले प्राणियों का और शस्त्रधारी लोगों का, स्त्रियों और राजकुल के लोगों का भूलकर भी विश्वास न करें। इन पर विश्वास करने वाले लोग कभी सुख को प्राप्त नहीं कर सकते।

१६. विषादप्यमृतं ग्राह्यमेध्यादपि काञ्चनम्।

नीचादप्युत्तमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।

  • विष में भी अमृत को, अशुद्ध पदार्थों में सोने को, नीच से भी शिक्षा को और दुष्ट कुल से नारी रत्न को बिना किसी संकोच के ग्रहण कर लेना चाहिए।

१७. स्त्रीणां द्विगुणा आहारो बुद्धिस्तासां चतुर्गुणा।

साहसं षड्गुणं चैव कामीऽष्टगुणः उच्यते।।

  • पुरुषों से नारियों का आहार दुगुना, बुद्धि चौगुनी, साहस छः गुना और काम भाव आठ गुना बताया गया है।

यह भी पढ़े:  कौन था चाणक्य? चाणक्य की प्रतिज्ञा – चाणक्य नीति

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Written by lokhindi
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