छत्रपति शिवाजी History – Chhatrapati Shivaji Biography Hindi
छत्रपति शिवाजी History
– छत्रपति शिवाजी का इतिहास / Chhatrapati Shivaji in Hindi। छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय – छत्रपति शिवाजी की History और कहानी हिंदी में !
दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब के बैठते ही देश में असहिष्णुता तथा अत्याचार फैलने लगा। औरंगजेब अत्यन्त अनुदार शासक था। उस समय दक्षिण भारत में समर्थ स्वामी रामदास तथा संत तुकाराम की वाणी ने एक पवित्र धार्मिकता की लहर बहा दी थी।
मराठों की भोंसला जाति राजपूताने के सीसौदिया कुलकी ही शाखा है। इसी भोंसला कुल में 1627 ई० में शिवाजी का जन्म हुआ। उनके पिता शाहजी बीजापुर के मुसलमान शासक के जागीरदार थे। शिवाजी की माता जीजाबाई बड़ी ही धार्मिक तथा तेजस्वी महिला थीं। उन्होंने बचपन में ही शिवाजी को रामायण तथा महाभारत की कथाएँ सुनायीं। दादाजी कोणदेव- जैसे नीतिज्ञ एवं शूर की देख-रेख में शिवाजी का पालन हुआ।
शिवाजी ने मराठा युवकों का संगठन किया। उनकी सेना बनाकर बीजापुर के कुछ किलों पर अधिकार कर लिया।
बीजापुर के सुलतान ने अफजलखाँ नामक सेनापति को उनके विरुद्ध सेना के साथ भेजा। अफजलखाँ ने शिवाजी को मिलने के लिये बुलाया। वह धोखा देकर शिवाजी को मार डालना चाहता था; किंतु शिवाजी ने उसकी चाल समझ ली। समय मिलते जब उसने शिवाजी को मारने का यत्न किया, तब अपने हाथ में छिपे बघनखे से शिवाजी ने उसका पेट फाड़ डाला।
दूसरी बार औरंगजेब ने शाहजादा मुअज्जम तथा राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। शिवाजी नहीं चाहते थे। कि हिंदू हिंदुओं से ही लड़ें। उन्होंने राजा जयसिंह के कहने से दिल्ली जाना स्वीकार किया। लेकिन दिल्ली दरबार में औरंगजेब ने उन्हें पंचहजारी मनसबदारों में खड़े होने का स्थान दिया। इस अपमान को वे सह नहीं सके। दरबार से रुष्ट होकर चले आये। घूमते हुए फिर महाराष्ट्र पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने फिर युद्ध छेड़ दिया। लेकिन राजा यशवन्त सिंह ने औरंगजेब से उनकी सन्धि करा दी। औरंगजेब ने उन्हें राजा मान लिया।
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1674 ई० में शिवाजी का रायगढ़ में राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने छत्रपति उपाधि धारण की। धीरे-धीरे उनका राज्य पश्चिम में गोवा तक विस्तृत हो गया। कोंकण, नासिक, पूना आदि उनके राज्यमें आ गये।
53 वर्ष की अवस्था में 1680 ई० में इस अद्भुत वीर का परलोकवास हुआ। गौ, ब्राह्मण और धर्म की रक्षा के लिये ही शिवाजी का समस्त प्रयत्न था। लेकिन उनमें धार्मिक-द्वेष का नाम नहीं था। वे महान् शूर होने के साथ अतिशय उदार थे।
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