चालाक प्रेमी Love Story – Cheating Story Hindi
चालाक प्रेमी Love Story
किस्सा तोता-मैना चालाक प्रेमी love story की रोचक दास्तान हिंदी में! प्यार में धोखे की एक सच्ची दास्तां की किस प्रकार एक प्रेमी ने धोखा दिया…
रामगढ़ राज्य में चन्द्रगुप्त नाम का राजा राज्य करता था। उसका पुत्र महेन्द्रगुप्त काफी सुशील और गुणवान होने के साथ काफी साहसी भी था। चन्द्रगुप्त को अपने बेटे पर काफी गर्व था।
लेकिन एक दिन राजा चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र को किसी दोष के कारण देश निकाला दे दिया। तब महेन्द्रगुप्त ने जाने से पहले अपने महल में आकर रास्ते के लिए कुछ जरूरी सामान लिया। उस सामान में चार लाल और कुछ रुपये थे। ये सारा सामान लेकर महेन्द्रगुप्त ने सफर करना प्रारम्भ किया।
जब वह अपने शहर से कुछ दूर पहुंचा तो उसे एक साधु का आश्रम दिखाई दिया। महेन्द्रगुप्त उस साधु को दण्डवत प्रणाम करके एक तरफ बैठ गया।
तब उसे साधु ने पूछा- “बच्चा! तुम कौन हो और यहां कैसे आए हो?”
“महाराज! मैं राजा चन्द्रगुप्त का पुत्र महेन्द्रगुप्त हूं। मुझे मेरे पिता ने देश निकाला दे दिया है, इसलिए मैं परदेस जा रहा हूं। रास्ते में आपका आश्रम दिखाई दिया तो मेरे मन में आया कि आपके दर्शन भी करता चलू ।” महेन्द्रगुप्त ने नम्रतापूर्वक कहा।
साधु ने महेन्द्रगुप्त की बात सुनकर कहा-“वत्स! तुम नेक इंसान हो और परदेस जा रहे हो, इसलिए हम तुम्हें चार बातें बताते हैं। उन बातों पर अवश्य अमल करना। परदेस में यह बातें तुम्हारे अवश्य ही काम आएंगी। साधु ने उसे चार बातों का निर्देश दिया।
एक तो यह कि परदेस में एक से भले दो होते हैं।
दूसरी बात परदेस में दूसरे के हाथ का बना खाना मत खाना। अगर खाना भी पड़े तो पहले किसी जानवर को खिला देना।
तीसरी बात यह कि परदेस में किसी दूसरे की बिछाई हुई चारपाई पर मत सोना । अगर सोना भी हो तो पहले बिस्तर को अच्छी तरह झाड़ लेना।
और चौथी बात यह है कि यदि कहीं शत्रुओं के फन्दे में फंस जाओ तो जहां तक हो सके नर्मी और ज्ञान की बातें सुनाकर अपना उद्देश्य प्राप्त करना।” साधु ने कहा-“मेरी ये चार बातें हमेशा याद रखना।”
साधु की बातें सुनकर महेन्द्रगुप्त परदेस को चल दिया। जब चलते-चलते, बहुत दिन बीत गए तो वह एक जंगल में जा पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक चील एक कछुए के बच्चे को लेकर उड़ी जा रही है। संयोगवश बच्चा उस चील के पंजे से निकलकर गिर गया।
महेन्द्रगुप्त ने कछुए के तड़पते हुए बच्चे को देखा तो उसे बड़ी दया आई। उसने अपने मन में सोचा कि इस बच्चे को पालना चाहिए। इस बच्चे को पालने से दो बातें होंगी, पहली तो यह कि इस बच्चे के प्राण बच जाएंगे और दूसरी यह
कि साधु द्वारा कही गयी पहली बात भी पूरी हो जाएगी कि सफर में एक से भलें दो होते हैं और इससे बातें करते हुए दिन भी आसानी से बीतेगा। यह सब सोचकर महेन्द्रगुप्त ने कछुए के बच्चे को अपने साथ ले लिया। वह कछुए के बच्चे को लेकर सफर करता रहा।
कई दिन के सफर के वाद एक अच्छा-सा स्थान उसे दिखाई दिया।
उस स्थान पर पहुंचकर उसने कुछ खाया-पिया और फिर कछुवे के बच्चे से बोला “तुम यहां बैठे रहना, मैं थोड़ी देर सो लू ।’ यह कहकर महेन्द्रगुप्त एक पेड़ के नीचे सो गया।
उसी पेड़ के ऊपर एक सांप और एक कौआ रहते थे। उन दोनों का यह दस्तुर था कि जब कोई मुसाफिर उस पेड़ के नीचे ठहरता तो सांप उसे डस लेता और कौआ उसकी आंखें निकाल लेता था। जब महेन्द्रगुप्त सो गया तो उस सांप ने आकर उसे डस लिया और स्वयं पेड़ पर चढ़ गया। कुछ देर बाद जब कछुए की नजर महेन्द्रगुप्त पर पड़ी तो वह उसे मरा हुआ देखकर बहुत घबराया और महेन्द्रगुप्त के सिर पर बैठ कर रोने लगा।
तभी कौआ भी पेड़ से नीचे उतरा और जैसे ही उसने महेन्द्रगुप्त की आंखें निकालनी चाहीं, वैसे ही कछुए ने झपट कर कौए की गर्दन को मुंह से पकड़ लिया।
कौए ने बहुत जोर लगाया मगर कछुए ने उसे नहीं छोड़ा। तब कौए ने सांप को पुकारा। कौए की आवाज सुनकर सांप आ गया। उसने बड़े जोर से कछुए की पीठ पर डंक मारा। परन्तु कछुए ने अपना मुंह भीतर कर लिया। सांप ने कई बार कछुए की पीठ पर डंक मारा किन्तु हर बार कछुआ अपना मुंह अन्दर करता रहा और उसका कुछ नहीं बिगड़ा। जब कछुए पर सांप का बस नहीं चला तो उसने कछुए से कहा-
“तुम मेरे मित्र को छोड़ दो।”
“तूने मेरे मित्र को डसा है, इसलिए में भी तेरे मित्र की जान लूंगा।” कछुए ने कहा।
“तू मेरे मित्र को छोड़ दे तो मैं तेरे मित्र को जीवित कर दूंगा।” यह कहकर सर्प ने काटी हुई जगह पर मुंह रखकर महेन्द्रगुप्त के शरीर से विष खींच लिया, और फिर बोला-“अब तो मेरे मित्र को छोड़ दे।”
अपने मित्र का विष उतरते देखकर कछुए ने कौए को छोड़ दिया। जब महेन्द्रगुप्त को होश आया तो उसने अपने मित्र को सांप के डसने का सारा हाल सुनाया। यह सुनकर महेन्द्रगुप्त ने मन में सोचा कि साधु की एक बात तो काम आई कि एक से भले दो होते हैं। वह फिर आगे बढ़ा और कुछ दिनों के बाद समुद्र के किनारे जा पहुंचा। तब कछुए के बच्चे ने कहा- “मित्र! मेरा देश आ गया है। यदि आप आज्ञा दें तो अपने माता-पिता से मिल आऊं। उनसे बिछड़े बहुत दिन हो गए हैं। वे बहुत दु:खी होंगे।”
महेन्द्र गुप्त ने उसे जाने की आज्ञा दे दी और स्वयं रात को वहीं समुद्र के किनारे उस जंगल में ठहर गया। उस जंगल में एक ठग परिवार रहता था। ठग की दो लड़कियां और चार बेटे थे। उसकी बड़ी बेटी ज्योतिष विद्या जानती थी।
वह अपने पिता से बोली- ”ऐसा प्रतीत होता है कि इस जंगल में एक मुसाफिर आया हुआ है। उस मुसाफिर के पास चार लाल हैं। यदि तुम लोग उस मुसाफिर को यहाँ ले आओ तो उससे लाल लेना मेरा काम है। यदि वे लाल हमको मिल गये तो जन्मभर के लिए निहाल हो जाएंगे। परन्तु उस मुसाफिर को मारना मत उसे जीवित ही पकड़ लाओ।”
यह सुनकर बाप-बेटे उसकी तलाश में निकल पड़े। थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि एक आदमी एक पेड़ के नीचे सो रहा है। उसे देखकर उन्होंने सोचा, यह वही मुसाफिर है, जिसके पास लाल हैं।
वे उसे पकड़कर ले गए और अपनी बड़ी बेटी के हवाले कर दिया और बोले- ‘‘इससे लाल निकलवाना अब तेरा काम है।”
“तुम लोग चिन्ता मत करो, मैं इससे लाल निकलवा लूंगी।”
मगर जब ठग की छोटी बेटी ने महेन्द्रगुप्त को देखा तो वह दिलो जान से उस पर आशिक हो गयी। भाइयों के डर से कुछ कह तो न सकी लेकिन मन ही मन उसको बचाने की युक्ति सोचने लगी।
कछ देर बाद ठग की बड़ी बेटी ने खाना बनाया और उसमें जहर मिला दिया।
यही खाना उसने महेन्द्रगुप्त को परोस दिया। जब थाली महेन्द्रगुप्त के सामने आई तो उसे साधु की कही गयी दूसरी बात याद आई। उसने थाली में से थोड़ा सा भोजन निकालकर कुत्ते के सामने डाल दिया। उस खाने को खाते ही कुत्ता मर गया। यह देखकर महेन्द्रगुप्त ने भोजन नहीं किया। उसने अपने मन में सोचा कि साधु की दूसरी बात भी काफी कारगर सिद्ध हुई।
अपनी इस चाल को असफल होते देखकर ठग की बेटी ने कच्चे सुत का पलंग तैयार करवाया और उसे एक ऐसे कुएं पर बिछाया जिसके नीचे आग सुलग रही थी।
बड़ी बेटी ने महेन्द्रगुप्त से कहा-“आप उस पलंग पर जाकर सो जाइये।”
जब महेन्द्रगुप्त पलंग के पास आया तो उसे साधु की तीसरी बात याद आई और उसने बिस्तर को झाडा। जैसे ही उसने बिस्तर को झाडा वैसे ही कच्चे सुत के धागे टूट गए और आग का कुंआ नजर आने लगा। तब उसने सोचा कि साधु की तीसरी बात भी काम आई। यह सोचकर वह सोने के लिए एक टूटी हुई चारपाई पर लेट गया और सोचने लगा कि आज की रात जान बचनी बहुत कठिन है।
इतने में ठग की छोटी बेटी मौका पाकर आई और कहने लगी-“हे प्रिये! मैं तुम पर दिलोजान से न्योछावर हूं। परन्तु आज की रात मेरे वश में कुछ नहीं है। आज की रात मेरी बहन की बारी है। जिस तरह भी हो सके आज की रात मेरी बहन से अपने प्राण बचाइये। कल मेरी बारी है, मैं आपकी दासी हूं, आपको साफ बचा लूंगी।”
चालाक प्रेमी Love Story in Hindi
यह कहकर ठग की छोटी बेटी चली गई। जब सब खाना खा चुके तो ठग की बड़ी बेटी हाथ में कटार लेकर आई और क्रोध से बोली-“ओ मुसाफिर! या तो अपने चारों लाल मुझे दे दे, नहीं तो मैं तुझको मार डालूंगी।”
उसी समय महेन्द्रगुप्त को साधु की चौथी बात याद आई। उसने सोचा आज रात बचना मुश्किल है। साधु की चौथी बात भी आजमानी चाहिए वरना आज की रात यह लड़की मेरा काम तमाम कर देगी।
महेन्द्रगुप्त ने यह सब सोचकर लड़की से कहा_“मेरे पास लाल नहीं हैं। यदि तु मुझको मारेगी तो वैसे ही पछताएगी जैसे कालू बंजारा कुत्ते को मारकर पछताया था।”
“बंजारा क्यों पछताया था, उसकी दास्तान शुरू से लेकर अन्त तक सुनाओ।” लड़की ने आवेश में कहा।
महेन्द्रगुप्त बंजारे की दास्तान सुनाने लगा–
एक बंजारे को किसी काम में ऐसी हानि हुई कि उसका सारा सामान बिक गया। सिर्फ एक कुत्ता उसके पास रह गया। बंजारे के मन में आया कि इस कुत्ते को किसी के पास गिरवी रखकर कुछ रुपया ले लूं। यह सोचकर बंजारा उस कुत्ते को लेकर एक साहूकार के पास गया और पांच रुपये में कुत्ता गिरवी रखकर बंजारे ने उस साहूकार से कहा-“जब तक मैं आपको ब्याज सहित रुपया अदा न कर दू, यह कत्ता आपके पास रहेगा।”
यह कहकर बंजारा चला गया और कुत्ता साहूकार की दुकान में रहने लगा।
अचानक एक रात को चोर आए और दुकान में घुस गए। वे चोर साहूकार की अशर्फियों की तमाम थैलियां लेकर चलते बने, लेकिन उस कुत्ते ने कान तक न हिलाए।
कुत्ते ने सोचा- ‘मैं अकेला हूं, अगर शोर-शराबा किया तो ये चोर मुझे मार डालेंगे। इससे उचित यही है कि इन्हें माल ले जाने दें और देखें कि ये चोर माल लेकर जाते कहां हैं।’
जब चोर थैलियां लेकर चले तो कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे चल दिया। वे चोर शहर के तालाब पर पहुंचे और उन्होंने सब थैलियों को तालाब में डाल दिया और वहां से चले गए।
यह देखकर कुत्ता वापिस आकर दुकान में लेट गया।
जब सवेरा हुआ और साहूकार ने दुकान पर आकर देखा तो सारी दौलत वहां से गायब थी। यह देखकर वह साहूकार अपनी छाती पीट-पीट कर रोने लगा। बहुत से लोग उसके रोने की आवाज सुनकर वहां जमा हो गए और सारी बात जानकर साहूकार को दिलासा देने लगे।
“मुझे इसका अफसोस नहीं कि मेरा सारा माल चला गया बल्कि मुझे अफसोस इस कुत्ते का है। लोग कहते हैं कि बंजारे का कुत्ता सौ आदमियों के बराबर काम करता है, पर ये नमकहराम तो भौंका तक नहीं। अगर ये भौंकता तो आस-पास के लोग जाग जाते और मेरा माल बच जाता।’ साहूकार ने रोते हुए कहा।
जब कुत्ते ने साहूकार की बातें सुनीं तो वह साहूकार का दामन पकड़कर खींचने लगा। लोगों ने कहा-“यह कुत्ता कुछ कह रहा है। इसके साथ चलो, देखें यह कहां ले जाता है?”
लोगों की यह बात सुनकर साहूकार अपने कुछ साथियों के साथ कुत्ते के पीछे चल दिया। कुत्ता उन सबको तालाब पर ले गया। फिर स्वयं उसी तालाब में कूद पड़ा और गोता मारकर एक थैली अपने मुंह में दबा लाया। उस थैली को देखकर सब लोग कहने लगे कि माल इसी तालाब में है।
तुरन्त ही साहूकार के कुछ साथी उस तालाब में कूद पड़े और सारा माल निकाल लाए और साहूकार के हवाले कर दिया। साहूकार बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला-
“इस कुत्ते को मैंने बेकार में बुरा-भला कहा। इसी के कारण आज मेरा चोरी गया माल मिल गया। अब मैं इसे मुक्त करता हूं।”
यह कहकर एक पर्चे पर सारा हाल लिखकर कुत्ते के गले में बांधकर कहा- “मैं तुझसे बहुत खुश हूं और तुझको आजाद करता हूं। जहां तेरा मालिक हो वहां चला जा। तेरे मालिक को मैंने जो रुपया दिया था, वो समझो पूरा हो गया।” यह कहकर उसने कुत्ते को रुखसत किया। कुत्ता अपने मालिक के पास रवाना हो गया।
कई दिनों के बाद जब बंजारे को अपना कुत्ता नजर आया तो उसे देखकर बंजारे को बहुत क्रोध आया।
“इसने बहुत बड़ा पाप किया जो भाग कर यहां चला आया। मेरी बनी-बनाई साख खराब कर दी।” बंजारे ने क्रोधित स्वर में कहा।
इतने में कुत्ता भी करीब आ पहुंचा। उसी समय बंजारे ने क्रोध में बिना सोचे समझे उसकी गर्दन पर तलवार का ऐसा वार किया कि कुत्ते का सिर धड़ से अलग हो गया।
तभी उसकी नजर कुत्ते के गले में बंधे पर्चे पर पड़ी। उसने उठाकर उसे पढ़ा और कुत्ते की स्वामी भक्ति को देखकर वह बहुत रोया और कहने लगा-“मैंने बड़ी भूल की जो निर्दोष कुत्ते को मार डाला ।’
परन्तु अब क्या हो सकता था? अब में एक और दास्तान सुनाता हूं-
इतनी दास्तान कहते-कहते सवेरा हो गया। तब ठग की बेटी ने महेन्द्रगुप्त से कहा- “आज की रात तो तूने मुझे बातों में लगाकर अपनी जान बचा ली, परन्तु आज मेरी बहन की बारी है। वो तुझे हरगिज जीवित नहीं छोड़ेगी।”
यह सुनकर ठग की छोटी बेटी बहुत प्रसन्न हुई और अपनी बहन को दिखाने के लिए ऊपरी मन से बोली-“तुम निश्चिन्त रहो बहन। मैं इससे लाल लिए बगैर छोड़ने वाली नहीं हूं।”
यह कहकर वह महेन्द्रगुप्त के पास आई और बोली-“भगवान का शुक्र है, जो तूने चालाकी से अपनी जान बचा ली। हमारी ये रीति है कि मेरे भाई और बाप मुसाफिरों को पकड़कर लाते हैं और हम अपनी चालाकी से उससे माल हथियाकर उसे मार डालते हैं।” उसने फिर आगे कहा- “आज मेरी बारी है। मैं दिलो जान से तेरी दासी हूं, तुझे जैसा अच्छा लगे वैसा ही कर ।’
यह सुनकर महेन्द्रगुप्त बोला- ‘‘प्रिये! जब से मैंने तुम्हें देखा है, तब से हर ओर तुम ही तुम दिखाई देती हो और दिल करता है कि हर पल तुम्हारे पास ही रहूं। तुमसे मेरे दिल का हाल छिपा हुआ नहीं है।”
उसकी बात सुनकर ठग की बेटी ने कहा “आप कहते हैं कि मुझसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है तो फिर वे लाल कहां हैं?”
“वो चारों लाल मेरी जांघ में हैं, अगर तुम निकालना चाहो तो निकाल लो।”
महेन्द्रगुप्त ने अपनी जांघ उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा -“प्यारे! वो लाल तुम्हें ही मुबारक हों। मैं तो तुम्हारी दासी हूं और तुम्हारे दर्शनों की प्यासी हूं।” ठग की छोटी बेटी ने उसके गले में बांहें डाल दीं।
यह सुनकर महेन्द्रगुप्त ने कहा- “जो कुछ तुमने कहा है, वह सब तुम्हारे दिल की भावनाएं हैं लेकिन यहां रहकर मेरा तुम्हारा प्रेम आगे बढ़ पाना कठिन है, क्योंकि जब तुम्हारे बाप और भाइयों को इसका पता चलेगा तो हम दोनों की खैर नहीं। अगर तुम्हारी इच्छा हो तो यहां से भाग निकलना ही उचित है।”
“मुझे यहां से चलने में कोई आपत्ति नहीं। यहां से निकलने का एक ही उपाय है। मेरे पिता के पास दो सांडनियां हैं। एक तो दिन भर में साठ कोस चलती है और दूसरी दिन भर में सौ कोस चलती है। तुम उनमें से बड़ी वाली को खोल लाओ। उसी पर बैठकर हम दोनों निकल चलेंगे। और इस प्रकार मेरे घरवाले भी हमको नहीं पकड़ सकेंगे।’ छोटी बेटी ने महेन्द्रगुप्त को मशवरा देते हुए कहा।
यह सुनकर महेन्द्रगुप्त सांडनी खोलने चला गया।
महेन्द्रगुप्त सांडनी ले तो आया, मगर जल्दबाजी में वह बड़ी के स्थान पर छोटी सांडनी ले आया।
ठग की बेटी बहुत सा माल लेकर सांडनी पर बैठ गई । महेन्द्रगुप्त भी बैठ गया और दोनों चल दिए। सांडनी जब चलते-चलते साठ कोस पहुंची तो जंगल में रुक कर खड़ी हो गयी। बीच जंगल में सांडनी को खड़ा देखकर महेन्द्रगुप्त व उसकी प्रेमिका के होश उड़ गए। इधर जब सवेरा हुआ तो ठग ने देखा कि उसकी बेटी और मुसाफिर
दोनों गायब हैं। उसने सोचा कि निःसंदेह वह बदमाश मेरी बेटी को भगा ले गया है।
यह सोचकर तबेले में जाकर देखा तो छोटी सांडनी गायब है और बड़ी सांडनी वहीं है। यह देखकर वह कहने लगा-‘अब वो कहां जाएंगे, मैं अभी उन्हें पकड़कर लाता हूं।’
यह कहकर सांडनी पर सवार होकर उसने उसे तेजी से दौड़ा दिया और थोड़ी ही देर में जंगल में उस स्थान पर जा पहुंचा जहां वे दोनों ठहरे थे।
महेन्द्रगुप्त ने जब उसको आते देखा तो बहुत घबराया और कहने लगा-“देखो! तुम्हारे पिताजी आ रहे हैं, अब उनसे अपनी और तुम्हारी जान बचानी मुश्किल पड़ जाएगी।”
लड़की ने कहा_“घबराओ नहीं और पेड़ पर चढ़ जाओ। जब मेरा बाप तुम्हें पकड़ने के लिए आएगा और पेड़ पर चढ़ेगा तो मैं बड़ी सांडनी पर चढ़कर सांडनी को तुम्हारी डाल के नीचे खड़ा कर देंगी। तुम कूदकर उस पर बैठ जाना। इस प्रकार हम दोनों बचकर साफ निकल जाएंगे।”
यह सुनकर महेन्द्रगुप्त पेड़ पर चढ़ गया। इतने में ठग भी वहां आ पहुंचा। महेन्द्रगुप्त को पेड़ पर चढ़ा देखकर ठग सांडनी से उतरा और उसे पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगा।
इधर मौका पाते ही ठग की बेटी सांडनी पर चढ़कर उसे महेन्द्रगुप्त की डाल के नीचे पेड़ के पास ले आई। महेन्द्रगुप्त कूदकर उस पर बैठ गया। फिर दोनों चल दिए। ठग देखता ही रह गया।
महेन्द्रगुप्त वहां से चलकर कई दिन के बाद एक शहर में पहुंचा और वहां ठग की बेटी के साथ बहुत दिनों तक ऐशो-आराम के दिन गुजारता रहा।
जब महेन्द्रगुप्त को वहां रहते हुए बहुत दिन हो गए और उसके देश निकाले की अवधि भी पूरी हो गयी तब वह सोचने लगा—“अब अपने देश की ओर चलना चाहिए, किन्तु इस लड़की को साथ लेकर कैसे जाऊं? इसे साथ देखकर पिताजी फिर से देश निकाला दे देंगे।”
यह सोचकर उसने लड़की को मारकर कमरे में बन्द किया और स्वयं तमाम माल-दौलत लेकर चल दिया।
मैना ने कहा-“तू ही देख तोते। ठग की बेटी ने महेन्द्रगुप्त के साथ कैसा व्यवहार किया। उसके प्राण भी बचाए और साथ में लाल भी। इस सबके बदले में उसे अपने प्राण गंवाने पड़े। इसीलिए मैं मर्दो से घृणा करती हूं।”
तोते ने कहा-“तेरा कहना सच है लेकिन मैं भी एक दास्तान सुनाता हूँ।”
जरा गौर से सुन–
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