दो गीदङ भाई Story

दो गीदङ भाई Story – नई मोरल हिंदी कहानी

दो गीदङ भाई Story

New Hindi Moral Stories / वन में रहने वाले दो धूर्त और चुगलखोर तथा चालक गीदड़ भाइयों की हिंदी कहानी- दो गीदङ भाई Ki Story |


चम्पा वन के राजा सिंहनाद के यहाँ दो गीदड़ भाई मन्त्री पद पर आसीन थे। दोनों अत्यधिक चालाक, धूर्त और चुगलखोर थे। दोनों ने राजा को अपनी धूर्तता से अपने वश में कर रखा था। राजा उनकी सलाह के बिना कोई कार्य ना करता। दोनों भाइयों ने अपनी चालाकी से पूरे दरबार में धूम मचा रखी थी।

एक बार चम्पा वन से गुजरते हुए बनिए का बैल दलदल में फंस गया, बहुत कोशिश करने पर भी वह बैल दलदल से ना निकल सका तो बनिए ने बैल को ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया और वापस लौट गया।

पर ईश्वर को कुछ और ही मन्जूर था। हाथ-पैर फेंक-फेंक कर आखिरकार बैल दलदल से निकल ही गया। अब तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा, वह वन में घास चरता, जुगाली करता और मस्ती में भरकर गर्जना भी करता। इसी प्रकार उसके दिन व्यतीत होने लगे।

एक दिन संयोगवश वन के राजा सिंहनाद ने वह गर्जना सुनी। गर्जना सुनकर वह घबरा गया। इतना तो वह समझ ही गया था कि यह गर्जना किसी सिंह की नहीं थी। यह कोई मुझसे भी बड़ा खुखार जानवर है। उसने सोचा और

उसी दिन से वह डरा-डरा सहमा सहमा-सा रहने लगा। आप यह कहानी lokhindi.com पर पढ़ रहे है !!

यह बात उसके मन्त्री गीदड़ों से छुपी ना रही। वे समझ गये कि सिंहनाद अवश्य ही उस बैल की गर्जना से डर रहा है।

“भय्या! यह अच्छा अवसर है, राजा डर से सहमा हुआ है। यदि हम उसके डर को दूर कर दें, तो उस पर हमारा एहसान हो जाएगा और हमारे पद में भी वृद्धि होगी।” छोटे गीदड़ ने बड़े गीदड़ से कहा।

“अच्छी युक्ति है भया। चलो इस युक्ति पर अमल करो।” सलाह-मशविरा कर दोनों भाई चल पड़े।

एक बैल के पास जा पहुँचा और दूसरा वन के राजा सिंहनाद के पास। एक ने बैल को डराया और दूसरे ने राजा को। फिर कहा कि यदि वे उनका कहा मान लें तो वे उनके डर को दूर कर सकते हैं।

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राजा और बैल दोनों इस पर सहमत हो गये।

दोनों गीदड़ भाइयों ने उनकी आपस में मित्रता करा दी। मित्रता इतनी गहरी हुई कि बैल की मित्रता के सामने सिंहनाद दोनों गीदड़ भाइयों को भूल गया ।

यह बात उन दोनों गीदड़ भाइयों को बहुत ज्यादा खटकी और दोनों फिर से सलाह-मशवरा करने बैठ गये ।

छोटे गीदड़ ने कहा-“भय्या! यह तो हमने आप अपनी राह में कांटे बो दिये ।”

“हाँ भय्या, तू ठीक कहता है. .. ।” बड़े गीदड़ ने छोटे की हाँ में हाँ मिलाई–”जब से यह बैल राजा का मित्र बना है, राजा तो हमें भूल ही गया लगता है।”

“और भय्या अगर जल्दी ही इसका इन्तजाम नहीं किया गया तो हो सकता है कि राजा हमें पहचानने से ही इन्कार कर दे। वह बैल जितना सीधा लगता है, उतना सीधा है नहीं।” छोटे ने कहा।

“यह भी तू बिल्कुल ठीक बोला भय्या, अब क्या करें, कुछ सोच, वरना अगर एक बार मौका हाथ से निकल गया तो फिर वापस नहीं आएगा ।”

“हाँ ।” छोटा गीदड़ कुछ सोचने लगा।

बड़ा भी खामोशी से उसके मुखमण्डल को निहारता रहा।

“भय्या!” काफी देर बाद छोटा गीदड़ बोला ।

“हाँ भय्या।” बड़ा’ वाला बोला। आप यह कहानी lokhindi.com पर पढ़ रहे है !!

“एक युक्ति है मेरे पास बहुत अच्छी है, यदि हम चाहें तो चम्पा वन के राजा भी बन सकते हैं।” – ।

“कैसे-कैसे जल्दी बता भया।” बड़ा गीदड़ उतावला हो उठा तो छोटा धीरे से मुस्कराकर बोला-”सुनो भय्या! डर एक ऐसी चीज है, जो घुस जाये तो मरते दम तक जीव के मन से नहीं निकलता और राज़ा तथा बैल के मन में एक-दूसरे के प्रति डर घुस चुका है। अब वह कभी नहीं निकलेगा भले ही वे उसे भूल जाएँ, लेकिन यदि उस डर की याददाश्त ताजा की जाये तो वह डर फिर बाहर जा जाएगा।”

“तब..।” वह कुछ देर के लिए रुका फिर पुन बोला-”तब भय्या, एक ओर से तुम और दूसरी ओर से मैं, राजा और बैल को भड़का देंगे- और फिर- फिर तुम जानते ही हो कि क्या होगा।”

“हाँ-मैं जानता हूँ।” बड़े गीदड़ ने प्रसन्नचित्त होकर कहा।

“अब चलिए ।” और फिर दोनों उठकर अपनी-अपनी मंजिल की तरफ चल दिये। बड़ा राजा के पास और छोटा बैल के पास जा पहुँचा।

बड़े ने राजा से कहा-“महाराज! यदि आज्ञा दो तो एक बात कहूँ?”

“कहो।” राजा ने उसे आज्ञा दे दी।

दो गीदङ भाई Hindi Story

वह बोला-“महाराज! गलती माफ। बैल आपको मारकर चम्पा वन का राजा बनने की फिराक में है।”

“क्या बक रहे हो?” राजा अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। क्रोध उसके मुखमण्डल पर झलक रहा था। मगर गीदड़ देख रहा था कि उसका शरीर थरथर काँपने लगा था। यह देख वह मन ही मन मुस्कुराया।

फिर बोला-“महाराज! वह बैल अत्यधिक बलवान है। उसने शिवजी की सवारी नन्दी के कुल में जन्म लिया है, वह एक साथ कई-कई शेरों को मार सकता है, मैंने आपका नमक खाया है महाराजइ सलिए यह बताने चला आया ।”

“क्या, नन्दी के कुल में जन्मा है वह ? ” राजा ने थर-थरकाँपते स्वर में पूछा ।

“जी महाराज रात को मेरे सपने में भगवान् विष्णु आए , उन्होंने मुझसे कहा कि तुम अपने राजा से मोह रखते हो, इसीलिए मैंने तुम्हें सब बता देना उचित समझा।” चालाक गीदड़ ने अपनी पुरानी चाल चली। वह अब से पहले भी राजा को इसी प्रकार से कई बार बहका चुका था।

राजा को तत्काल उसकी बात पर विश्वास हो गया ।

वह बोला-“अब हम क्या करें?”

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“महाराज! एक उपाय है मेरे पास ।” धूर्त गीदड़ ने दूसरी चाल चली।

“क्या, जल्दी बताओ?” राजा ने तेजी से पूछा।

“महाराज! आज यदि आप बैल के के पास आते ही उस पर आक्रमण कर उसे समाप्त कर दें तो आपकी जान बच सकती है, लेकिन महाराज ध्यान रहे कि यदि बैल ने आप पर एक भी प्रहार कर दिया तो फिर आपका बचना मुश्किल है।”

“ठीक है, हम आज आते ही उसका काम तमाम कर देंगे।” राजा ने गीदड़ को कम और अपने दिल को अधिक सांत्वना दी। राजा की बात पर धूर्त गीदड़ मन-ही-मन खिलखिला पड़ा।

इधर छोटे गीदड़ ने बैल को फंसा लिया था। आप यह कहानी lokhindi.com पर पढ़ रहे है !!

अन्त में थरथर काँपते बैल ने चालाक गीदड़ से पूछा-“अब मैं क्या कहूँ, चालाक गीदड़ भोली सूरत बनाकर बोला-“भाई! एक ही उपाय बचा है, यदि तुम आज ही राजा का काम तमाम कर दो तो, तुम्हारी जान बच सकती है,

लेकिन एक बात से सावधान रहना–कि अगर राजा को वार करने का एक भी अवसर मिल गया तो तुम बच न पाओगे। और हाँ, यदि तुम यहाँ से भागे तो राजा तुम्हें डुढ़कर मार डालेगा, अतः बेहतर यही है कि तुम विकट स्थिति के आने से पहले ही राजा का काम तमाम कर दो, बाकी के हालात मुझ पर छोड़ दो।”

इसी तरह नाना प्रकार से समझाने पर राजा के दिमाग में बात घुस गई।

अगले दिन वह राजा से मिलने बाग में जा पहुँचा। उधर राजा तो उसी का इन्तजार कर रहा था। राजा बाग में अकेला ही टहल रहा था। बड़े गीदड़ की योजना अनुसार वह दोनों बांहें फैला कर बैल की ओर बढ़ा।

दो गीदङ भाई Hindi Moral Story

बैल ने समझा कि राजा उस पर आक्रमण करना चाहता है, वह तेजी से आगे बढ़ा और आगे की दोनों लातें उसने शेर के सीने पर जड़ दीं।

शेर को लगा जैसे उसके सीने से वज्र टकराया हो। वह दहाड़ता हुआ पीछे को जा गिरा।

शेर को पछड़ता देख बैल दुगने उत्साह से आगे बढ़ा ।

तभी! शेर ने कठिनता से खुद को सम्भाला और बैल की पूंछ को जबड़े में भर कर काट डाला।

बैल भयंकर गर्जना करता पीछे को हटा।

मगर पीछे हटते-हटते भी उसने शेर के सीने पर एक और लात जड़ दी।

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शेर लात खाते ही गिर पड़ा मगर वह जल्दी ही बड़बड़ाता हुआ उठा और बैल की गर्दन पर प्रहार कर दिया और पुनः गिर पड़ा।

फिर जल्दी ही दोनों ने लड़-लड़कर प्राण छोड़ दिये।

दोनों के मरते ही झाड़ियों में छिपे दोनों गीदड़ भाई बाहर निकले । दोनों के मुखमण्डल पर कुटिल मुस्कान बिखरी हुई थी।

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छोटे गीदड़ ने बड़े से कहा-”देखो कैसी चुगली खाई। मित्रों में भी हुई लड़ाई !! क्यों भाई!”

“ठीक कहा भाई ।” बड़े गीदड़ ने कहा।

और दोनों दरबार की ओर चल पड़े-एक नया ढोंग रचाने, चम्पा वन का राजा बनने के ख्वाब आँखों में सजाए।

इसीलिए तो बड़ों ने कहा है कि चुगलखोर से हमेशा बचना चाहिए, क्योंकि जहाँ चुगली और चुगलखोर निवास करते हैं वहाँ विनाश का ताण्डव होता है,

बाकी कुछ नहीं!

शिक्षा-सीख तो पत्थर को भी तोड़ देती है। यदि शेर गीदड़ों की झूठी बातों में न आता तो अपने घनिष्ठ मित्र बैल से इस प्रकार न लड़ता और दोनों अपनी जान न गवां बैठते।

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Written by lokhindi
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