हिंदी भाषा पर निबंध – Essay on Hindi language
हिंदी पर निबंध
Official Language Hindi: Status and Conflict Full Essay / राजभाषा हिंदी: स्थिति और संघर्ष पर आधारित पूरा निबंध 2019 (हिंदी भाषा पर पूरा निबंध)
Contents
हिंदी: संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा:
हिंदी भाषा के अनेक रूप हैं – संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा । हिंदी प्रदेशों एवं हिंदी प्रदेशों में हिंदी भाषा आम बोलचाल, बाज़ार, व्यापार, राजनीति, पत्रकारिता, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में आपसी वैचारिक आदान-प्रदान के रूप में काम में आ रही है। बल्कि अब इलेक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा देश की सीमाओं से परे विदेशों में भी फैलती जा रही है। यह हिंदी का एक संपर्क भाषा का रूप है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीयता की भावना का माध्यम बनकर संपूर्ण राष्ट्र की वाणी का प्रतिनिधित्व करने के लिए हिंदी को अपनाया गया और उसे स्वतंत्रता के बाद देश की अन्य 22 भाषाओं को साथ-साथ राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली भाषाओं के रूप में संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया। सरकारी कामकाज के माध्यम के रूप में हिंदी को भारत संघ द्वारा एवं हिंदी प्रदेशों द्वारा अपनाया गया है, वह हिंदी का राजभाषा का रूप है। किंतु विचारणीय यह है कि हम आज़ादी के बाद हिंदी को राजभाषा के रूप में अधिक विकसित करते हा रहे हैं या उसकी भूमिका को सिकोड़ते जा रहे हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व हिंदी की स्थिति:
अंग्रेज़ी शासन से पूर्व मुगल शासन में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में तो थी किंतु राजकाज की भाषा फ़ारसी या उर्दू ही थी । यद्यपि निचले स्तर पर सर्वसाधारण के हिसाब-किताब हिंदी में रखे जाते थे। अक़बर के राजस्व मंत्री टोडलमल के आदेश से सरकारी कागजात फ़ारसी में लिखे जाने लगे तथा फ़ारसी सरकारी नौकरी से जुड़ गई और तीन शताब्दियों तक एक विशिष्ट मुंशी वर्ग के द्वारा फ़ारसी ही राजभाषा के रूप में काम में ली गई । सन् 1830 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने फ़ारसी और हिंदी को राजभाषा के रूप में यथावत रखा और 20 नवंबर, 1831 को कानून बनाकर बंगाल, उड़िया, गुजराती, असमिया आदि को तो संबंधित प्रांतों में राजभाषा बना दिया कितु हिंदी प्रदेशों में फ़ारसी के स्थान पर हिदा के बजाए उर्दू को राजभाषा बना दिया। फलस्वरूप उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार आदि में उर्दू, जिसमें फ़ारसी के शब्दों की बहुतायत थी, के स्थान पर देवनागरी लिपि में हिंदी को राजभाषा बनाने का आंदोलन भी हुआ । इसलिए 1870 से 1981 तक अनेक आदेश जारी हुए जिसमें देवनागरी लिपि को अनिवार्य करना भी शामिल था किंतु बीसवीं शताब्दी शुरू होने तक धीरे-धीरे उच्च स्तरों पर एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में फ़ारसी एवं हिंदी के स्थान पर अंग्रेज़ी का फैलाव होता गया। 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद हिंदी को संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में बराबर स्थान मिलता गया । हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के लिए बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में आंदोलन चला किंतु भाषाई-राजनीति के कारण स्वतंत्र भारत के संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का नहीं ‘राजभाषा’ का दर्जा मिला ।
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हमारा संविधान और राजभाषा हिंदी:
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी के राजभाषा संबंधी व्यवस्था के निर्देश हैं । अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि लिखी जानेवाली हिंदी को संघ की राजभाषा कहा गया है, साथ ही प्रारंभ के 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी के प्रयोग को भी सभी शासकीय कार्यों के लिए मान्यता दी गई। अनुच्छेद 344 के अनुसार प्रत्येक पाँच वर्ष के पश्चात् राष्ट्रपति एक भाषा आयोग की नियुक्ति करेंगे। वह आयोग हिंदी का उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने और अंग्रेज़ी का प्रयोग घटाने की सिफ़ारिश करेगा। अनुच्छेद 345, 346, 347 के अनुसार दो प्रदेशों के बीच अथवा एक प्रदेश और संघ के बीच संवाद विनिमय के लिए अंग्रेज़ी अथवा हिंदी का और परस्पर समझौते से केवल हिंदी का प्रयोग किया जा सकेगा । किसी राज्य की विधानसभा विधि द्वारा अपने प्रदेश की भाषा को मान्यता प्रदान कर सकेगी। यदि कोई राज्य अंग्रेजी को जारी नहीं रखना चाहता तो विधि द्वारा उस प्रदेश की भाषा राजभाषा हो जाएगी । उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेज़ी होगी किंतु राष्ट्रपति या राज्यपाल की पूर्व सम्मति से हिंदी अथवा उस राज्य की भाषा का प्रयोग उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिए प्राधिकृत किया जा सकेगा।
राजकीय प्रयोजनों में हिंदी के विकास के लिए अनुच्छेद 351 का विशेष महत्व है। संघ को यह कार्य 15 वर्षों में कर लेना चाहिए था किंतु राजनीतिक इच्छा के अभाव में छह दशकों के बाद भी संघ अपने कर्तव्य को बहुत कम पूरा कर पाया है। राजभाषा अधिनियम, 1967 के द्वारा अंग्रेज़ी के प्रयोग को अनिश्चित समय तक जारी रखने का उपबंध भी किया गया है जिसके फलस्वरूप अब कोई प्रदेश तक चाहेगा, अंग्रेजी को भी संघ की राजभाषा के रूप में अपनाता रह सकेगा। इस प्रावधान से अब मिज़ोरम, नगालैंड आदि प्रदेश जिन्होंने अपनी प्रादेशिक भाषा ही अंग्रेजी अपना रखी है, हिंदी से जुड़ने की मानसिकता से मुक्त हो गए हैं।
राजकाज में हिंदी का प्रयोग:
संघीय स्तर पर राजभाषा के रूप में अंग्रेज़ी का वर्चस्व आज भी कायम है। जो स्थिति मुगल काल में जनता से परे की भाषा, शासकों की भाषा फ़ारसी की थी, कमोबेश वही स्थिति आज अंग्रेज़ी की है। अंग्रेज़ी आज दक्षिण भाषा-भाषियों के विरोध के कारण ही नहीं, बल्कि प्रशासकों एवं समाज के उच्च वर्ग के अपने निहित स्वार्थ के कारण, राजकाज के स्तर पर, उच्च शिक्षा के स्तर पर छाई हुई है। जब तक अंग्रेज़ी के साथ प्रतिष्ठा, सत्ता, नौकरी और पैसा जुड़ा रहेगा, तब तक लोगों से यह अपेक्षा करना कि वे अपने बच्चों को अंग्रेज़ी न पढ़ाएँ, एक तथ्य को अनदेखा करना होगा । जब तक ये अंग्रेज़ी के मानस-पुत्र सत्तारूढ़ रहेंगे, तक तब अंग्रेज़ी शिक्षा भी प्रचलन में रहेगी और राजभाषा के रूप में भी। गाँधी जी ने अंग्रेज़ी के इस मोह से पिंड छुड़ाना ‘स्वराज’ का अनिवार्य अंग माना था, किंतु देश की विडंबना है कि वह इस मोह से छूटने की बजाय दिन-प्रतिदिन उसमें जकड़ता जा रहा है। यही हमारी गुलाम मानसिकता का परिचायक है और हिंदी की अपनी त्रासदी भी है।
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राजभाषा की वर्तमान स्थिति:
हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने में राष्ट्रीय-प्रतिबद्धता की कमी तथा क्षेत्रीयवाद एवं चंद शासक वर्ग द्वारा आम जनता को पिछड़ा रखने की साज़िश तो है ही साथ ही राजभाषा के रूप में कभी हम अंग्रेज़ी के अनुवाद बहुत जटिल कर बैठते हैं, कभी वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करके भ्रम फैलाते हैं, कभी हिंदी के शब्द-कोश, टंकण, कंप्यूटर आदि खरीदने में शिथिलता बरतते हैं, कभी अंग्रेज़ी का जो ढर्रा चला आ रहा है उसे बदलने में संकोच या आलस करते हैं। प्रत्येक 14 सितंबर को सरकारी कार्यालय प्रायः हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा या मास का आयोजन करते हैं किंतु जितनी निष्ठा से हिंदी को अपनाने का कार्य होना चाहिए वह नहीं करते । दरअसल हर सरकारी कर्मचारी यदि अपने राष्ट्रीय एवं भाषाई बोध से गर्वित होकर कष्ट उठाकर भी हिंदी को अपनाने का संकल्प कर ले तो राजभाषा के रूप में हिंदी का शत-प्रतिशत व्यवहार संभव हो सकता है । हम संकल्प लें और करें, अन्य कोई उपाय नहीं है।
राजभाषा हिंदी: राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक गरिमा का सवाल:
संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को अपनाना और अंग्रेज़ी से मुक्ति चाहना न केवल प्रबल राजनीतिक इच्छा की अपेक्षा करता है बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और भारतीय जनता की अपनी भाषा को गौरवान्वित करने की समझ से भी जुड़ा हुआ है । हिंदी का प्रश्न आम जनता के विकास का प्रश्न भी है क्योंकि अंग्रेज़ी के 3 प्रतिशत लोग हैं जबकि 44 प्रतिशत जनता की भाषा हिंदी ही है। अतः न केवल राजनीतिक निर्णय के रूप में बल्कि आम जनता के भावात्मक एवं बौद्धिक विकास की दृष्टि से हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप पूरे देश में, सभी प्रादेशिक सरकारों द्वारा अंगीकार करना चाहिए तथा अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक गरिमा एवं राष्ट्रीयता को सम्मान देने का परिचय देना चाहिए।
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