सूचना का अधिकार निबंध: Right to information Essay
सूचना का अधिकार निबंध
Right to Information: Democratic Participation / सूचना का अधिकार : लोकतांत्रिक सहभागिता का महाद्वार पर आधारित पूरा हिंदी निबंध 2019 (सूचना का अधिकार हिंदी निबंध)
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सूचना का अधिकार : लोकतांत्रिक प्रक्रिया का वाहन
सूचना व्यक्ति के ज्ञान का स्त्रोत है। वह विकास की आधारभूत ‘शक्ति’ है । सूचना व्यक्ति के जीने और संघर्ष करने की सामर्थ को बढ़ाती है, जो सूचना दे रहा है उसमें सहयोग, पारदर्शिता और संयम को विकसित करती है । सूचना व्यक्ति और व्यक्ति के बीच सहकार और सह-जीवन को बढ़ाती है जोकि लोकतांत्रिक संस्कृति की, यहाँ तक कि सामाजिकता की आधारभूत प्रक्रिया है। इसलिए सूचना को रोकना एकाधिकार, स्वार्थ और भ्रष्टाचार को प्रश्रय देना है। उपनिवेश काल के दौरान अंग्रेज़ों ने सन् 1923 में ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (शासकीय गुप्त बात अधिनियम) पारित कर भारतीय जनता को सरकारी स्तर की जानकारी से वंचित करके अपना दमन-चक्र चलाया। आज़ादी की अदर्धशती के बाद तक भी वह अधिनियिम बरक़रार रहा है जिससे भारतीय राजनीति और नौकरशाही का चरित्र सहयोगात्मक, पारदर्शी और ईमानदाराना होने के बजाय दमनात्मक, छद्मपूर्ण और भ्रष्ट बना रहा है। विचारणीय प्रश्न यह है कि आज जो सूचना के अधिकार है वह हमारी शासन-प्रणाली की लोकतंत्रात्मक प्रक्रिया को, विशेष रूप से जन-सहभागिता आधारित समृद्ध करने की दृष्टि से प्रभावी है, क्या इस अधिकार का प्रयोग और जन-चेतना दोनों एक-दूसरे को संवर्धित कर रहे हैं ?
सूचना का अधिकार क्यों ?
आज़ादी के बाद का प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायी है, किसी राजा-महाराजा या सम्राट-साम्राज्ञी के प्रति नहीं। इसलिए शासन के काम-काज में जो-जैसा घटता है उसकी सूचना जनता को होनी चाहिए ताकि न केवल जनता उससे लाभान्वित हो सके बल्कि उसमें भागीदार से हो सके । जनता अपने शासन का अवलोकन करे, समीक्षा करे और उसकी बेहतरी के लिए योगदान दे, क्योंकि वह प्रशासन मूलतः जनता का है और अंततः जनता के लिए ही है किंतु ब्रिटिश काल के शोषक, दमनकारी और भ्रष्ट शासन की ही तर्ज़ पर आज़ादी के बाद भी शासन-प्रक्रिया को जनता से छिपाकर रखा गया है और उसका मुख्य उदेश्य अपनी अकर्मण्यता को छिपाना, अपने भ्रष्ट चरित्र पर पर्दा दालना तथा जनता के सेवक नहीं बल्कि उसके स्वामी बनकर कार्य करना रहा है।
आज़ादी के बाद देश की केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के शासन ने जैसा ढीला-ढाला, निकम्मा और तथा गबन तथा घूसखोरी का व्यवहार प्रस्तुत किया है वह जनता को सूचना नहीं देने या जनता द्वारा सूचना मांगने पर उसे उससे वंचित रखने के कारण भी हुआ है। इसलिए पंचायत से लेकर संसद तक और पटवारी से लेकर प्रधानमंत्री तक फैले भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता को नियंत्रित करने के लिए सूचना के अधिकार का मुद्दा भारतीय प्रेस द्वारा एवं विभिन्न जन-आंदोलन द्वारा उठाया जाता रहा है।
जनतांत्रिक समझ के विकास के साथ-साथ सूचना इसलिए भी आवश्यक होती जा रही है कि सूचना के उपयोग से लोग व्यक्तिगत एवं सामूहिक कायों की योजना बना सकते हैं, योजनाओं के अमल करवाने के लिए संबंधित लोगों पर दबाव बनाए रख सकते हैं। इस प्रकार जनता अपने निजी एवं सार्वजनिक विकास के मार्ग के सूचना द्वारा प्रशस्त कर सकती है तथा किसी की भी कोताही, बेईमानी अथवा अक्षमता सामने आने पर उसके सकारात्मक विकल्पों पर विचार कर सकती है। अतः सूचना का अधिकार जनतंत्र में जन-सहभागिता की प्रक्रिया को समृद्ध करता है और प्रशासनिक कमज़ोरियों को उजागर कर उसे सुधारने का अवसर देता है।
यदि लोगों को प्रशासन द्वारा समय-समय पर नियम, प्रक्रिया एवं तथ्यों की सूचना मिलती रहे तो वे उन्नत बीज, खाद, ऋण, यंत्र आदि की जानकारी से लाभान्वित हो सकते हैं, न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, ठेकेदारी के स्तर पर होनेवाली गड़बड़ियों को रोक सकते हैं, पंचायत के बजट का सदुपयोग कर सकते हैं, खाने-पीने की वस्तुओं, दवाओं रसायनों, खादों आदि में होने वाली मिलावट पर नियंत्रण कर सकते हैं, प्रशासन को स्वच्छ और कर्मठ बना सकते हैं। सूचना का अधिकार जनतंत्र में न केवल अधिकार है बल्कि एक जागरूक नागरिक के लिए कर्तव्य भी है। वह सूचना को प्राप्त करे तथा प्रशासन में अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करे। अत: सूचना का अधिकार जन-सहभागिता एवं प्रशासन के साथ जनता की सहभागिता को बढ़ानेवाला महत्वपूर्ण माध्यम है। आज के निकम्मे और भ्रष्ट प्रशासन बदलने में यह क्रांतिकारी हथियार की भूमिका अदा कर सकता है।
भारतीय संविधान और सूचना का अधिकार
भारतीय संविधान के बनाने से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में मानव अधिकारों की घोषणा 10 दिसंबर, 1948 को ही कर चुका था जिसके मद 19.2 में सूचना के अधिकार भी उल्लिखित है। इसमें एक व्यक्ति को मौखिक, लिखित या मुद्रित किसी भी रूप में अथवा किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा सभी तरह की सूचनाओं और विचारों को चाहने, प्राप्त करने या प्रदत्त करने का अधिकार अंकित है। इसके बाद जर्मनी, अमेरिका, स्वीडन, कनाडा आदि अनेक देशों में सूचना के अधिकार से संबंधित अधिनियम पारित किए गए किंतु भारतीय संविधान में सूचना प्राप्त करने संबंधी किसी विशिष्ट अधिकार का उल्लेख नहीं है, हाँ अनुच्छेद 19 (1) ए में बोलने और अभिव्यक्त करने का अधिकार है। हमारे उच्चतम न्यायालय ने इसी अनुच्छेद के परिप्रेक्ष्य में समय-समय पर अनेक निर्णय देते हुए सूचना के अधिकार को प्रकारान्तर से सांवैधानिक अधिकार घोषित किया है। हमदर्द दवाखाना बनाम भारत सरकार’ (1960) वाद में कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति का अधिकार’ में सार्वजनिक हित के विचार और सूचनाएँ प्राप्त करने तथा प्रदान करने का अधिकार भी सम्मिलित है। इसी प्रकार उत्तरप्रदेश बनाम राजनारायण (1975) में न्यायमूर्ति मैथ्यू ने कहा कि- ‘इस देश की जनता को हर सार्वजनिक कार्य के बारे में जानने का अधिकार है। वह हर उस बात को जानने का अधिकार रखती है जो सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा सार्वजनिक रूप से किया जाता है।” इस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने भी सूचना के अधिकार को स्थापित करने की कोशिश की है किन्तू संविधान संशोधन द्वारा इस संबंध में विशिष्ट एवं स्पष्ट प्रावधान करने की आवश्यकता थी, क्योंकि आज़ादी से पूर्व सन् 1923 में बना ‘शासकीय गुप्त बात अधिनियम’ (ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट) भी लागू है जिसके अंतर्गत सरकार जिस सूचना, काग़ज़ात या पत्रावली को ‘राष्ट्रहित’ में जारी नहीं करने देना चाहती उसको गोपनीय बनाए रखने का सरकार के पास अधिकार है तथा उस गोपनीयता को भंग करनेवाले सक्षम अधिकारी, कर्मचारी को दंडित किया जा सकता है। सरकारें इस क़ानून के तहत जब चाहें किसी भी सूचना को बताने से इन्कार कर देती हैं। इसलिए सूचना के अधिकार के संबंध में संविधान में संशोधन करके अलग से स्पष्ट प्रावधान करने की आवश्यकता थी और भारतीय संसद ने इसे संविधान संशोधन के माध्यम से अंगीकार कर लिया है।
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सूचना के अधिकार के लिए सरकारी प्रयास
राजस्थान की विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने 5 अप्रैल, 1995 को एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी कि ‘हम राजस्थान की जनता को सूचना का अधिकार अभी तक नहीं दे पाए हैं। 1990 से 1995 तक पंचायतों या ग्रामीण क्षेत्रों में जितने भी विकास के काम हुए हैं उसकी सूचना कोई पंच या सरपंच लेना चाहेगा तो फोटो कॉपी की कीमत देने के बाद सारी सूचना मिलेगी । अगर कोई गड़बड़ हुई तो उसकी जाँच भी होगी।”एक वर्ष बाद अप्रेल 1996 में सूचना के अधिकार के संबंध में राजस्थान सरकार द्वारा आदेश जारी किया गया।
जिसके अंतर्गत हर नागरिक को निर्धारित शुल्क जमा कराकर पंचायतराज संस्थाओं के अभिलेखों के निरीक्षण करने तथा इसमें से आवश्यक सूचना अंकित करने का अधिकार प्राप्त है किंतु उसको फ़ोटो कॉपी प्राप्त करने की महत्वपूर्ण माँग का उल्लेख नहीं हुआ और अंतत: यह मुद्दा राजस्थान में एक संगठन द्वारा आंदोलन चलाए जाने का आधार बना। अशोक गहलोत सरकार ने अपने 15 सूत्रीय कार्यक्रम में सूचना के अधिकार को भी सम्मिलित किया तथा इस संबंध में विधेयक भी पारित किया गया ।
सूचना के अधिकार के लिए जनता के प्रयत्न
जनता के स्तर पर भी सूचना के अधिकार को लेकर, विशेष रूप से भारतीय प्रेस द्वारा समय-समय पर सभा-संगोष्ठियाँ होती रही हैं किंतु इसे जन-आंदोलन के रूप में उठाया राजस्थान के ‘किसान मजदूर शक्ति संगठन’ ने। अरुणा राय के नेतृत्व में इस संगठन ने ब्यावर कस्बे से लेकर राजधानी जयपुर तक महीनों तक आंदोलन चलाया और राजस्थान सरकार को सूचना के अधिकार संबंधी उक्त आदेश जारी करने के लिए मजबूर किया । दरअसल यह संगठन ब्यावर के पास भीम एवं जवाजा पंचायत समिति के क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर हो रहे विकास-कार्यों के भ्रष्टाचार को उजागर करना चाहता था और उसने इस मार्ग में सूचना प्राप्त करने का अधिकार न होना आड़े आ रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री शेखावत द्वारा विधानसभा में की गई घोषणा का कार्य रूप में कोई प्रभाव दिख नहीं रहा था, अतः इस संगठन ने सूचना के अधिकार को आंदोलन का मुद्दा बनाया। इस संगठन के आंदोलन से राष्ट्रीय स्तर पर भी इस संबंध में अधिनियम पारित करवाने का वातावरण बना।
सूचना के अधिकार के सदुपयोग का सवाल
सूचना अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य कर रहे सरकारी एवं गैर-सरकारी तंत्रों को लोकतांत्रिक संस्कृति में ढालने का, उसे जनता के प्रति ज़िम्मेदार, कर्मठ एवं ईमानदार बनाने का एक क्रांतिकारी हथियार है, किंतु एक तो इस अधिकार का सकारात्मक भाव से एवं जनहित को लेकर ही उपयोग किया जाना चाहिए, ईमानदार अफसरों को डराने, परेशान करने के लिए इसका दुरुपयोग उपयुक्त नहीं होगा; दूसरे इस अधिकार को उपयोग करने के लिए ग्राम एवं पंचायत से लेकर संसद तक गैर-सरकारी संगठन एवं मंच तैयार करने होंगे, नहीं तो सरकार आदि के विरुद्ध संघर्ष व्यक्तिगत स्तर पर संभव नहीं होगा। इसलिए हर स्तर पर जागरूक जन समूहों के गठित होने, कार्यालय स्थापित करने, जनता को उस सूचना की सही रूप में जानकारी देने आवश्यकता है । सूचना का अधिकार दिए जाने से अधिक महत्त्व का कार्य इस अधिकार को को प्राप्त करने एवं उपयोग करके जन-जागृति फैलाने का है,जिसकी आज सबसे अधिक आवश्यकता है। सूचना के अधिकार का उपयोग करने वालों पर निहित स्वार्थवालों ने हत्याएँ तक करवाई हैं अतः उसके लिए ‘व्हिसिल ब्लोवरों’ की सुरक्षा के लिए भी संसद ने विधेयक पारित किया है, लोक-सहभागिता सूचना के अधिकार का सवाल खङा करने और उसको प्राप्त करने तथा प्रसारित करने से बदती है । यदि हम सूचना के अधिकार का समुचित उपयोग कर सके तो न केवल सरकारी स्तर की योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन हो सकेगा बल्कि प्रशासन में पारदर्शिता भी आ सकेगी जिससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होगा। वस्तुत: सूचना का अधिकार लोकतांत्रिक विकास-प्रक्रिया को समृद्ध और स्वच्छ करने का कारगर हथियार है, ख़ास तौर से इस दौर में जहाँ हम शोषण एवं भ्रष्टाचार को और अधिक व्यवस्थित करने से ग्रस्त होते जा रहे हैं ।
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