सन्देह की ज्वाला – राजकुमार की हिंदी कहानी
सन्देह की ज्वाला कहानी
सन्देह की ज्वाला हिंदी कहानी / Hindi story of King, Rajkumar (Flame of doubt) – एक राजकुमार और राजकुमारी के प्रेम की हिंदी में कहानी (तोता-मैना किस्सा)
ज्योतिपुर में शिवदत्त नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार बेटे थे। शिवदत्त के सबसे छोटे बेटे का नाम अजयकुमार था। वह बड़ा साहसी, वीर और बुद्धिमान था। इन गुणों के साथ-साथ वह सुन्दर भी था। उसकी पत्नी का नाम मीना था। वह भी रूपवान एवं गुणवान थी।
अजय और मीना में काफी प्रेम था। मीना अपने पति के बगैर एक पल भी नहीं रह सकती थी। एक बार राजकुमार अजय अपने मित्र तथा कुछ सैनिकों के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। वहां उन दोनों को एक बहुत ही सुन्दर व मोटा ताजा हिरण दिखाई दिया। उसे देखकर दोनों मित्रों ने अपने घोड़े उस हिरण के पीछे दौड़ाए। वह हिरण भी दोनों राजकुमारों को देखकर अपने प्राण बचाने के लिए जंगल में बहुत दूर निकल गया। राजकुमार का मित्र जिसका नाम अक्षय था, वह तो रुक गया मगर राजकुमार उस हिरण के पीछे घोड़ा दौड़ाता ही रहा।
मगर काफी प्रयास के बाद भी हिरण हाथ नहीं लगा। राजकुमार थक गया। उसे प्यास और गर्मी सताने लगी। इसलिए वह एक तालाब के निकट बैठकर मुंह-हाथ धोकर जल पीना ही चाहता था कि एक पक्षी ने उस पर मल कर दिया। राजकुमार ने क्रोधित होकर धनुष बाण से पक्षी को निशाना बनाना चाहा, परन्तु वह पक्षी उड़ गया। राजकुमार ने पक्षी को काफी बुरा-भला कहा, फिर कुछ देर बाद सामान्य होकर ठंडा पानी पिया और हाथ-मुंह धोकर घोड़े पर सवार होकर आसपास के क्षेत्र में टहलने लगा। वह थोड़ा आगे चला तो उसने देखा कि वहां एक बड़ा मनोहारी बाग है और उसके चारों ओर रंगीन दीवार खिंची हुई है। राजकुमार अपने घोड़े को बाग के दरवाजे पर बांधकर बाग के भीतर सैर करने लगा। वहां उसे पेड़ों की ओट से कुछ स्त्रियों के बोलने की आवाजें सुनाई दे रही थीं।
थोड़ी दूर जाकर देखा कि मखमली घास पर तीन स्त्रियां फूलों की कलियां हाथ में लेकर टहल रही हैं। वे स्त्रियां इतनी सुन्दर थीं कि उनके रूप को देखकर राजकुमार उन पर मोहित होकर अपने होशो-हवास खोने लगा, परन्तु वह हिम्मत बांधकर खड़ा रहा। राजकुमार अपने मन में कहने लगा-‘ये स्त्रियां इतनी सुन्दर हैं कि राजा के निवास में भी इतनी सुन्दर स्त्रियां नहीं होंगी। इन तीनों में से बीच वाली तो मानो साक्षात् कामदेव की पत्नी रति है। ऐसी रूपवान स्त्री मैंने आज तक नहीं देखी। यह देवकन्या है या अप्सरा, इसका भेद अवश्य जानना चाहिये। आप यह सन्देह की ज्वाला नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
यह बात मन में विचार कर राजकुमार आगे बढ़ा तो उस स्त्री की निगाह भी राजकुमार पर षड़ी, जब उन दोनों की नजरें चार हुईं तो वह भी राजकुमार पर मोहित हो गई। परन्तु लज्जावश सखियों का साथ छोड़कर दूसरी ओर चली गई और चम्पा की ओट से राजकुमार को देख सखियों से कहने लगी-“देखो तो सही, सूर्य के समान तेजवान तथा कामदेव के समान रूपवान वह पुरुष कौन है, जो यहां आया है?”
इतने में राजकुमारं सखियों के पास आया और पूछने लगा-“तुम कौन हो? यह बाग किसका है और तुम्हारी सखी का क्या नाम है?”
“हे परदेसी! यह बाग महाराज स्वर्गसेन का है और यह उनकी बेटी है। इसका नाम चम्पकलता है। हम दोनों उसकी सहेलियां हैं। मेरा नाम चित्रलेखा तथा इसका नाम मोहिनी है। हम लोग आज बसन्त होने के कारण बाग की सैर करने आए हैं।” सखी ने कहा।.
“आपका कहना सत्य है, जैसा आप की सखी का नाम है, वैसी ही रूपवान व गुणवान वह स्वयं हैं।” राजकुमार चम्पकलता की प्रशंसा करने लगा।
राजकुमार यह कह ही रहा था कि इतने में चम्पकलता ने चित्रलेखा और मोहिनी को पुकारा “सखियो! यहां आओ, देखो यह पापी भंवरा मुझे सता रहा है। चमेली और मालती के फूलों को छोड़कर मेरे ही मुख पर बैठता है। इसको बहुत भगाती हूं, पर यह नहीं भागता। आओ इससे कहीं दूर चलें।”
“ऐसा कहकर चम्पकलता दूसरी क्यारी में खड़ी हो गयी। तब वहां भी भंवरों के झुण्ड उड़ने लगे। चम्पकलता अपनी सखियों से कहने लगी–‘देखो सखी, यहां भी इन बेईमान भवरों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा।”
यह कहकर वह वहां से भी चल दी। परन्तु भंवरों ने तब भी उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसके आसपास मंडराने
लगे। तब चम्पकलता अपनी सखियों से कहने लगी-“हे प्यारी सखियो! मुझे इन पापी भंवरों से बचा लो।”
तब सखियों ने उन्हें बहुत उड़ाया, मगर भंवरे कब मानते हैं। खूबसूरती पर तो भंवरे मंडराते ही हैं।
लाचार होकर चम्पकलता वहां से चलने को हुई तो वह राजकुमार क्यारी से भंवरे उड़ाने लगा और बोला “हे राजकुमारी! अब तुम किसी बात की चिन्ता न करो, तुम्हारी रक्षा के लिए मैं हाजिर हूं, क्योंकि राजाओं का धर्म है कि वह भयभीत की रक्षा करें।’
चम्पकलता शरमाकर चम्पा के पेड़ के पीछे चली गई।
“हे राजकुमारी, आप अलग क्यों चली गईं। देखो, यह भी कोई राजकुमार हैं, इनका अनादर नहीं करना चाहिए।” यह देखकर चित्रलेखा बोली।
सखियों की बात सुनकर चम्पकलता ने इशारे से कहा कि अच्छा इन्हें यहां बुलाओ।
चित्रलेखा राजकुमार से बोली-“आओ मुसाफिर! तुम यहां आओ और कुछ जलपान करो ।”
तब राजकुमार बोला-“हमारा हृदय तो आपके मीठे वचनों से ही ठंडा ही रहा है तथा आपके दीदार से हमारा पेट भरा जा रहा है।”
लेकिन चित्रलेखा ने बड़े आदर से गलीचे बिछाकर राजकुमार को आदर सहित बैठाया। राजकुमार ने कहा-“आप लोग भी बैठे।” .
जब वे सब बैठ गईं तो चित्रलेखा बोली “आपका देश कहां है? उसका क्या नाम है तथा आपका क्या नाम है और आपका यहां किस कारण से आना हुआ?”
तब राजकुमार ने उन्हें अपने बारे में सब कुछ बता दिया और उनसे कहा- “अब आप अपनी राजकुमारी के विषय में कुछ बताएं।”
तब चित्रलेखा बोली-“यह राजा स्वर्गसेन की बेटी हैं। राजा इनका विवाह अभी नहीं करना चाहते।”
‘‘तुम्हारी सखी ने ऐसा कौन-सा अपराध किया है जो इनके पिता इनका विवाह नहीं करते?” राजकुमार ने अधीर होकर पूछा।
तब चित्रलेखा ने बताया- ‘‘इनके पिता के पास एक नारंगी के समान मोती है, वह कहते हैं कि जो व्यक्ति इस मोती का जोड़ा लाकर देगा, मैं उसी से अपनी बेटी का विवाह करूंगा। यह बात सुनकर राजकुमार कई आए और उस की खोज में गए, परन्तु आज तक उनका कोई पता नहीं चला कि वे कहां गायब हो गए। इसीलिए अब तक इनका विवाह नहीं हुआ।” आप यह सन्देह की ज्वाला नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
मैना बोली -“ऐ तोते! चित्रलेखा और राजकुमार बातें कर रहे थे। उधर चम्पकलता उस पर मोहित होकर अपनी अन्य सखियों से कहने लगी–”हे सखियो! शाम का समय हो गया है, अब महल को चलो क्योंकि यदि पिता जी ने विलम्ब से लौटने का कारण पूछा तो हम क्या जवाब देंगे?”
ऐसा कहकर वे चलने को तैयार हो गईं। राजकुमार उसके विरह में निराश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा।
राजकुमार-राजकुमारी की हिंदी कहानी
राजकुमार चम्पकलता के वियोग में तड़पने लगा और लगभग बेहोश अवस्था में वहां पड़ा रहा। उधर राजकुमार का मित्र, जो उससे बिछड़ गया था, उसे तलाश करता हुआ सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचा।
राजकुमार की यह दशा देखकर उसके मित्र ने उस पर पानी के कुछ छाट डाला जब राजकुमार को होश आया तब अक्षय ने उससे पूछा-“तुम्हारी यह हालत प्रकार हुई।”
“मैं एक स्त्री पर दिलोजान से फिदा हो गया हूं। अब उसके बिना मेरा जीना असम्भव है मित्र।” राजकुमार ने विलाप करते हुए कहा और ठंडी आहें भरने लगा”
मित्र राजकुमार से कहने लगा-“तुम अपना सारा हाल मुझसे कहो। वह स्त्री कौन है जिस पर तुम मोहित हुए हो। देखो, परमेश्वर ने तुम्हें एक चन्द्रकान्ता के समान सुन्दर पत्नी दी है। उसके समान सुन्दर संसार में कोई स्त्री नहीं है, फिर ऐसी स्त्री को छोड़कर दूसरी स्त्री पर क्यों मोहित हो रहे हो। यह अच्छी बात नहीं है, क्योंकि राजाओं का यह धर्म नहीं होता।”
मित्र की बात सुनकर राजकुमार बोला-“हे मित्र! आप भी केवल तभी तक चतुर और वीर हैं, जब तक चम्पकलता के नैनों की धार आपके कलेजे तक नहीं पहुंची। यदि आपके हृदय में उसके नैनों के तीर पहुंचते तो आप मुझसे अधिक व्याकुल होकर जंगल में भटकते फिरते।”
तब वह मित्र बोला-“हे मित्र! क्या वह ऐसी देव कन्या या इन्द्र की अप्सरा है जो आप उसे देखकर ऐसे अधीर हो रहे हैं?”
राजकुमार बोला-“हे मित्र! मैं उसकी सुन्दरता का कहां तक वर्णन करूं ।”
पूरी बात सुनकर मित्र ने कहा-“हे मित्र! अब मैंने आपके कहने से जान लिया है कि वह स्त्री कोई देव कन्या थी। वह आपको छलने के लिए आई थी। आप उसके जाल को नहीं जान पाए। खैर, यह भी अच्छा हुआ कि आपको वह उड़ा नहीं ले गई, वरना अगर हम सारे मुल्क की खाक छानते तो भी आप को नहीं पा सकते थे।”
इस परं राजकुमार बोला-“हे मित्र! वह देव कन्या नहीं थी। वह इस राज्य के राजा स्वर्गसेन की बेटी थी और उस राजा के पास नारंगी के समान एक मोती है। उसका प्रण यह है कि जो कोई उस मोती के समान दूसरा मोती लाकर देगा, वह उसी के साथ अपनी कन्या का विवाह करेगा। उस मोती की तलाश में बहुत से राजकुमार गए लेकिन अब तक उनका कुछ पता नहीं लग पाया। उसकी सखियों से यह बात सुनकर मैं बड़ा व्याकुल हूं, क्योंकि न तो वैसा मोती मिलेगा और न हम चम्पकलता को प्राप्त कर सकेंगे।”
“यदि आप उस पर ऐसे आशिक हैं तो मैं उस मोती को लाने का उपाय करूंगा, आप धीरज रखिए।’ मित्र ने यह कहकर सिपाहियों को ज्योतिपुर शहर को रवाना कर दिया और स्वयं वे दोनों मित्र उसी बाग में ठहरे।
तभी उस बाग की मालिन वहां आ गई।
इनको देखते ही मालिन उन पर बिगड़ पड़ी। अक्षय ने अपनी जेब से पांच अशर्फियां निकालकर उसे दीं और कहा-“हमको एक मास यहां रहने दो, हम तुम्हें खुश कर देंगे।”
अशर्फियां देखकर मालिन खुश हो गयी और अपने मकान में एक कोठरी उन्हें रहने को दे दी। मैना बोली- “ऐ तोते! अब राजकुमारी चम्पकलता का हाल तुझसे कहती हूं- “जब से राजकुमार को छोड़कर वह महल में आई थी तब से खाना-पीना और सोना छोड़ दिया। यह देखकर चित्रलेखा बोली-“हे प्यारी! बिन जाने पहचाने एक परदेसी पर कोई भी ऐसे मोहित नहीं होता। न जाने वह कौन है?”
“हे सखी! जब से मैंने बांकी अदा वाले उस कामदेव के समान सुन्दर राजकुमार को देखा है, तब से यह नैन उसकी मोहिनी छवि के प्यासे हैं और मन उसकी सूरत भुलाए नहीं भूलता। इसलिए हे सखी, उसे देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलेगा।”
यह सुनकर चित्रलेखा बोली-“हे प्यारी! तुम नादान हो। एक अनजान युवक पर मोहित हो गयी हो। अगर इस बात को कोई सुनेगा कि राजा की बेटी एक अनजान परदेसी पर मोहित है और अगर आपके पिता को यह हाल पता लगेगा तो हम दोनों को तो बेड़ा ही गर्क हो जाएगा। देखो, आपका मुख कैसा मलिन हो रहा है, अतः मेरा कहना मानो और इस रंज से दूर रहो।” आप यह सन्देह की ज्वाला नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
“हे प्यारी चम्पकलता! देखो आपका रूप रंग एक दिन में ही कैसा हो गया, मेरी मानो तो उसका खयाल अपने मन से निकाल दो।”
लेकिन राजकुमारी को इस वक्त अपनी सखी की कोई भी बात अच्छी नहीं लग रही थी। उसकी आंखों के सामने तो बस वही बांका युवक घूम रहा था। तभी उसकी दूसरी सखी मोहिनी वहां आ गई। चम्पकलता ने उसे देखते ही तड़प कर पूछा- “वह राजकुमार कहां है, जिन्होंने मेरे मन को चुराकर मेरी ऐसी गति कर दी।”
यह बात सुनकर मोहिनी कहने लगी–“उसकी हालत तुमसे क्या कहूं? कहने से कलेजा फटता है, परन्तु तुम पूछती हो तो कहती हूं वह भी तुम्हारे लिए बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा है। मैंने उसे बहुत समझाया, परन्तु उसके मन में एक न आई। जब मैं वहां से आपके पास आने लगी तो उसने यह पत्र लिखकर दिया और कहा कि यह अपनी सखी चम्पकलता को दे देना।”
यह वचन और उस पत्र को पढ़कर चम्पकलता मूछ खाकर गिर पड़ी। कुछ क्षण बाद जब उसे होश आया तो राजकुमारी ने मोहिनी से पूछा-“अब मेरा वह चित्तचोर कहां है?”
तब मोहिनी बोली–“मैं तो उसको वहीं छोड़ आई थी, अब मुझे उसके विषय में कुछ नहीं मालूम।”
हताश चम्पकलता ने कहा-“अब उनकी तलाश करके उन्हें यह पत्र देना।”
एक पत्र में अपने दिल का हाल लिखकर उसने मोहिनी को दे दिया। मोहिनी वहां से चली गई और राजकुमारी के आदेशानुसार राजकुमार को ढूंढ़कर उसे खत दे दिया। राजकुमार ने उस पत्र को सीने से लगाया फिर अपने मित्र अक्षय को पढ़कर सुनाया।
तब अक्षय कहने लगा–‘‘हे मित्र! अब घबराने की कोई बात नहीं, क्योंकि चम्पकलता के हृदय में भी आपके प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया है। इससे आपकी इच्छा पूरी होने में कोई सन्देह नहीं। परन्तु आप भी इस पत्र का उत्तर अपनी प्रेमिका को लिखें।”
तब राजकुमार ने अपने दिल की हर बात उस खत में लिख दी और अपना यह प्रेम पत्र मोहिनी को देते हुए कहा-“मेरी प्यारी को यह पत्र दे देना।”
मैना बोली-“अब मैं थोड़ा-सा चम्पकलता की दशा का वर्णन करती हूं।”
दूसरे दिन सवेरा होते ही बसन्त का दिन मानकर चम्पकलता के साथ की सारी सखियां आ गईं और उसे उदास देखकर कहने लगीं—“प्यारी! ऋतुराज बसन्त को उत्सव सारे शहर के नर-नारी मनाते हैं और आप इस प्रकार उदास बैठी हैं। आपका मुख भी पीला पड़ गया है इसका क्या कारण है।”
तभी मोहिनी राजकुमार का पत्र लेकर आ गई। उसे देखकर चम्पकलता बोली- “हे प्राण प्यारी! क्या समाचार लाई हो?”
मोहिनी ने खुश होकर राजकुमार का खत राजकुमारी को दिया और कहा-“ईश्वर चाहेगा तो उसकी और आपकी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी। वह राजकुमार आपके विरह में गिरफ्तार है। प्यार की अग्नि दोनों ओर लगी है।”
राजकुमारी ने खत पढ़कर उसे अपने सीने से लगा लिया।
मैना बोली-“हे ताते! इसी प्रकार विरह में कई दिन बीत गए। जव चम्पकलना की मां को पता चला कि चम्पकलता ने खाना, पीना, सोना सव त्याग रखा है, तब वह उसके पास आई तथा उसकी दुर्दशा देखकर वोली ”बेटी में क्या सुन रही हू। तुमने खाना-पीना और सोना क्यों त्याग दिया है। क्या कष्ट है तुझे?”
माता के वचन सुनकर चम्पकलता ने कहा ”मुझे एक राजकुमार से प्रेम हो गया है, मैं उसकी याद में तड़प रही हूं।”
चम्पकलता के वचन सुनकर माता कहने लगी ‘‘हे बेटी! आज तूने क्या अनर्थ बात कह दी है। तेरी बात को सुनकर लोग क्या कहेंग और यदि तेरे पिता ने सुन लिया तो तेरे साथ ही मुझे भी मरवा देंगे।”
“मुझे अब किसी की लाज नहीं है माता, मैंने अपने दिल की व्यथा तुम्हें सुना दी है। राजकुमार के बिना तो अब मेरा यह जीवन व्यर्थ है।” चम्पकलता ने दु:खी मन से कहा।
चम्पकलता के ऐसे बेशर्मी के वचन सुनकर उसकी माता ने अलग जाकर चित्रलेखा और मोहिनी से सारा हाल पूछा। तब चित्रलेखा ने आदि से लेकर अन्त तक राजकुमार और चम्पकलता के मिलन का सारा हाल कह सुनाया। इस बात को सुनकर रानी अपने महल में आ गई।
सन्देह की ज्वाला – राजकुमार की कहानी
रात्रि में जब राजा महल में आए तो रानी हाथ जोड़कर चम्पकलता का सारा हाल कहने लगी। अन्त में बोली “आपके प्रण को पूरा करने की किसी में सामथ्य न हुई और न होगी। चम्पकलता यौवन काल में है। अतः मेरी विनती मानकर उसका विवाह कर दीजिए, क्योंकि परमेश्वर ने घर बैठे चम्पकलता के लिए वर भेज दिया है। यह समय तथा इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा।” आप यह सन्देह की ज्वाला नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
रानी की यह बात सुनकर राजा ने कहा-“ठीक है! मुझे आपकी यह बात स्वीकार है।”
दूसरे दिन सवेरा होते ही राजा ने दरबार में जाकर आज्ञा दी ‘‘हमारे बाग में दो राजकुमार रह रहे हैं। उनको हमारे पास ले आओ। उनसे कहना राजा ने तुम्हें याद किया है।”
यह सुनकर दरबान बाग में गया और राजकुमार से कहा- ‘‘महाराज ने आपको याद किया है, मेरे साथ चलिए।”
राजकुमार सोचने लगा-‘पता नहीं क्या बात है जो राजा ने याद किया है, परमेश्वर भला करे। लेकिन साथ ही साथ यह भी सोचने लगा, अगर राजकुमारी से प्यार करने की सजा मौत है तो खुशी से मौत को ही राजकुमारी समझकर गले लगा लूंगा।”
राजकुमार को घबराया हुआ देखकर अक्षय बोला- “हे मित्र! घबराना मर्दो का काम नहीं है, चलो, जो होना है, वह तो होगा ही।”
यह बात सोचकर दोनों मित्र अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर दरबार में पहुंच गए। वहां जाकर राजा को प्रणाम किया। राजा ने उनको अपने सीने से लगाकर अपने पास बैठा लिया और हालचाल पूछने लगे। राजकुमार ने राजा को अपने विषय में सबकुछ बता दिया। सब कुछ सुनकर राजा प्रसन्न हुए और बड़े ही प्रेमभाव से राजकुमार से बोले-“बेटा, तुम किसी बात की चिन्ता न करो, तुम्हारी प्रीति व साहस देखकर मैंने अपनी बेटी तुम्हें सौंप दी है।”
इस बात को सुनकर राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ। फिर राजा से विदा लेकर आ गया। उधर राजा ने ज्योतिषियों को बुलाकर लगन व शगुन का मुहूर्त निकलवाया।
ज्योतिषियों ने शुभ दिन देखकर लगन विवाह का दिन बताया। राजा ने ज्योतिषियों को दक्षिणा देकर विदा किया तथा स्वयं विवाह की तैयारियां करने लगे।
सारे नगर में यह बात फैल गई। सब नर-नारियों में बड़ा आनन्द छा गया। जब लगन का दिन आया तब राजा ने हाथी, घोड़े, वस्त्र तथा बहुत सा धन आदि लग्न में भेजा और शहर में नगाड़ा बजवा दिया कि ‘सब नर-नारी’ रंगीन वस्त्र पहनें-यदि कोई सफेद वस्त्र पहने दिखाई देगा तो उसे दण्ड मिलेगा।’
हर तरफ रंग ही रंग नजर आने लगे। जगह-जगह गुलाल उड़ने लगे। केसर के छिड़काव से सारा शहर कश्मीर की भांति हो गया। गली-गली नाच-गाना होने लगा।
हिन्दुओं के लिए पूरी, मिठाई तथा मुसलमानों के लिए पुलाव-बिरयानी आदि तरह-तरह के मिष्ठान व पकवान बनाए जाने लगे। इस प्रकार शहर में धूम हो रही थी। इतने में शाम का समय हो गया और बारात चलने को तैयार हुई तो राजकुमार के महल से राजा के महल तक दोनों ओर बिल्लौरी झाड़-फानूस लगा दिए गए, जिसमें बत्तियों की गिनती न थी। जिस समय दूल्हा तैयार हुआ, उस समय हर तरफ एक शोर मचा था। कोई कुछ बोल रहा था, कोई कुछ, धीरे-धीरे बारात आगे बढ़ रही थी।
बारात बड़ी धूम-धाम से राजा के महल के दरवाजे पर पहुंची। पंडितों ने सब कार्य रीति-रिवाज के अनुसार पूरे किए। फेरे हो जाने के बाद दुल्हा-दुल्हन दोनों चित्रसारी में गए। उस समय दोनों की इच्छा पूरी हुई।
मैना बोली_‘‘ऐ तोते! राजा ने लाखों रुपये का माल, जेवर, हाथी, घोड़े, दहेज़ में दिए और इस प्रकार राजकुमार बड़े आनन्द में दिन काटने लगा। अब राजकुमार को बहुत दिन बीत गए। वह अपने माता-पिता को भी भूल गया।”
एक दिन उसके मित्र अक्षय ने कहा-“हे मित्र! परमेश्वर ने आपकी इच्छा पूरी की। अब अपने वतन को चलना चाहिए, क्योंकि आपको घर से आए हुए बहुत दिन हो गए। न जाने आपके माता-पिता की क्या दशा हो रही होगी, क्योंकि जब से आप आए हैं, तब से उनके विषय में कोई समाचार नहीं मिला ।”
मित्र की बात सुनकर राजकुमार अजय कुमार ने अपने ससुर से कहा- “पिताजी! यदि आप आज्ञा दें तो हम अपने देश जाना चाहते हैं।”
राजा ने कहा-“बहुत अच्छा, जैसी आपकी इच्छा हो वैसा करो।” तब राजा ने राजकुमार को विदा करने की तैयारी की तथा लाखों रुपये का माल सम्पत्ति साथ में दी।
राजकुमार चम्पकलता को अपने साथ लेकर चल दिया। कई दिन चलते रहने के बाद उन्होंने एक स्थान पर डेरा डाला। जब शाम का समय हुआ तो राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर सैर करने चल दिया और अपने मित्र अक्षय को अपने लश्कर की देखभाल के लिये छोड़ दिया।
इधर रानी चम्पकलता अपने डेरे में राजकुमार की चिन्ता में बैठी थी कि अचानक उसकी नजर एक अंगूठी पर पड़ी और राजकुमार की अंगूठी पड़ी जानकर उसने अंगूठी को पहन लिया।
इतने में चिराग जलाने का समय हो गया। राजकुमार भी सैर से वापस गया और खाने-पीने से निश्चिन्त होकर राजकुमारी के डेरे में गया। उस समय रानी से केलि आनन्द करते समय उसने उससे जैसे ही हाथ मिलाया तो रानी के हाथ में अपने मित्र की अंगूठी देखकर मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। वह सोचने लगा यह अंगूठी इसके पास कहां से आई? हो न हो मेरे मित्र की भी इससे मित्रता हो गई है। किसी ने सत्य ही कहा है स्त्री जाति का क्या भरोसा? किसी दिन यह मेरे भी प्राण की शत्रु बन जाएगी। आप यह सन्देह की ज्वाला नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
यह सोचकर क्रोध में भरकर उसने तलवार का एक ऐसा वार चम्पकलता की गरदन पर किया कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
इसके पश्चात् वह अपने मित्र के खेमे में गया और उसका भी सिर काट डाला और उन दोनों को वहीं गाड़कर अपने देश की ओर चल पड़ा।
मैना बोली-“ऐ तोते! पहले तो राजकुमार ने राजकुमारी चम्पकलता से कैसी प्रीति की और बाद में कैसी निर्दयता का व्यवहार किया। बिना सोचे समझे दोनों के प्राण ले लिए। ऐ तोते! जरा न्याय कर इसमें रानी का क्या दोष था?”
तोता बोला- “मैना! इसमें सारा दोष रानी का ही था, क्योंकि यदि वह अंगूठी का सारा हाल कह देती तो वह क्यों मारी जाती। तू नहीं जानती, दूसरे पुरुष की वस्तु अपनी स्त्री के पास देखकर कैसा दुःख होता है। इसमें राजकुमार का कोई दोष नहीं। अब आगे तू इस दास्तान का उत्तर मुझसे सुन-
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