Hindi kahani With Moral – कंजूस राजा – हिंदी कहानी
कंजूस राजा – Moral Story in Hindi
Hindi kahani With Moral
किसी नगर में एक राजा राज्य करता था | राजा बहुत ही कंजूस था | अपने राज्य के खजाने पर साप बनकर बेठा हुआ था | उसका पुत्र जवान हो गया था | किन्तु राजा उसे खर्च के लिए एक पैसा भी नही देता था | उसको पुत्री भी जवान हो गयी थी | किन्तु खर्च करने के भय से राजा उसकी शादी भी नही कर रहा था | इस प्रकार कंजुसी करते-करते राजा बुढा हो गया था |
एक दिन राजा के राज्य में कुछ नट आये | वे राज दरबार में उपस्थित हुये तथा उन्होंने प्राथना की कि वे अपना तमाशा दरबार में दिखाना चाहते है | राजा सोचने लगा की तमाशा देखने के पश्चात मुझे इन नटो को पेसे देने पड़ेगे | इसलिए उनसे बहाना बना दिया कि अभी उनके पास समय नही है | नट राजा की इस बात पर बड़े ही नाराज हुये | वे आकर नगर में ठहर गये |
इस प्रकार कई दिन गुजर गये | नट मंडली को आर्थिक समस्या ने आ घेरा | लाचार होके वे एक वार फिर से राजा के पास पहुचे | राजा ने फिर से बहाना बना दिया, लेकिन उसके दरबारीयो ने उससे प्राथना की – “ महाराज आपको तमाशा जरुर देखना चाहिए | अगर आप इन्हें इन्नाम नही देना चाहते, तो मत दीजियेगा लेकिन तमाशा जरुर देखिये | हम सब लोग मिलकर नट मंडली को पैसा दे देगे |”
मुफ्त का तमाशा देखने को राजा राजी हो गया | रात का समय तमासे के लिए रखा गया | बड़ी-बड़ी मशालों के उजाले में नट-मंडली ने अपना खेल दिखाना आरम्भ किया | एक रस्सी को दोनों ओर से बासों से बाधा गया | एक बहुत ही ऊचे बॉस पर एक पाया खडा था उसे एक आदमी ने अपने दातों से उठा रखा था | एक नटनी आग के भितर से निकल रही थी | दरबार के लोग ख़ुश होकर तालिया बजा रहे थे |
दरबारियों,राजा,राजकुमार,राजकुमारी, के अतिरिक्त राज्य के कुछ नामी लोग भी वह उपस्थित थे | उनमे से एक साधू भी था, उसके पास एक चादर थी |
नटो का प्रमुख तथा नटनी विचित्र तथा दिल दहलाने वाले दृश्य दिखा रहे थे, किंतु राजा अपने मन को दाबे हुए बैठा था | उसे मालूम था कि अगर उसने कुछ भी कहा या उसके मुंह से “वाह” भी निकली तो उसे नटो को कुछ-न-कुछ पुरस्कार अवश्य देना पड़ेगा | इसके विपरीत सभी दर्शक वाह-वाह कर रहे थे |
रात बीत रही थी | ऐसा मालूम देता था, कि दो घड़ी बाद ही सुबह हो जायेगी |
नटी सोचने लगी कि राजा की वाह-वाह के बिना नट हतोत्साहित हो जायेगा | अतः नट को साहस बंधाते हुए वह बोली –
” रात घड़ी भर रह गई, किस पिंजरे में आये ”
” कहे नटि सुण हो पिया, मीठा ताल बजाये |”
नट समझ गया कि नटी उसका उत्साह बढ़ा रही है, इसलिए वह उत्साहित होकर और भी सावधानी से अद्भुत दृश्य दिखाने लगा | एक पहर उसे भी ख्याल आया कि कहीं नटी भी उदास न हो जाये | सो नट ने नटी से ऊंचे स्वर में कहा –
” घड़ी गई थोड़ी रही, थोड़ी भी डूब जाये ”
” माखतनर नर सुन नायिका, ताल अंग नई लाय |”
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नट ने नटी से कहा है – ” हे नटी, रात बहुत चली गई है और अब थोड़ी रह गई है | ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की ताल भंग नहीं होनी चाहिये |”
वहां उपस्थित सभी जनता वाह-वाह करने लगी | लोगों ने अपनी हैसियत के अनुसार पुरस्कार दिया | उस साधु से नहीं रहा गया | उसने वाह-वाह करते हुए अपनी चादर ही दे दी |
तभी राजकुमार ने आगे बढ़कर नट को अपने गले का हीरे का हार दे दिया | राजा के ह्रदय पर बड़ा आघात लगा | राजकुमारी ने नट को अपनी हीरे की अंगूठी उतार कर दे दी | राजा मन-ही-मन रो पड़ा | ” हाय मेरे हीरे की अंगूठी |”
लेकिन इसके साथ ही राजा के मन में यह प्रश्न भी उठा, कि आखिर इन तीनों ने किस बात पर नटों को इस प्रकार पुरस्कार दिये हैं | तमाशा समाप्त हो गया था |
राजा अपने ह्रदय में उठने वाले प्रशन को लेकर बेचैन हो उठा था | उसने तुरंत ही राजकुमार, राजकुमारी और साधु को अपने सामने बुलाया |
तीनो लोग बड़े सम्मान के साथ राजा के सामने उपस्थित हुये | सबसे पहले राजा ने साधु से पूछा – ” साधु! तुमने अपने तन की चादर नट को क्यों दे दी |”
साधु भगवान का नाम लेकर बोला – ” महाराज! मैं सन्यासी हूं | जप-तप करना मेरा धर्म है, किंतु आप को देखकर मुझे अचानक लगा कि मैं भी क्यों न ठाठ-बाठ वाला जीवन व्यतीत करूं | मेरा मन विलास की ओर वीमुख हो उठा | तभी इस नट ने कहा – ” घड़ी गई, थोड़ी रही… मुझे लगा कि अब जबकि मेरा एक पांव कब्र में है, तो फिर ह्रदय में यह लालसा क्यों रखूं | इस नट की बात ने मुझे सत्य से परिचित करवा दिया था | मैंने प्रसन्न होकर अपनी चादर उसे दे दी |”
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अब यही सवाल राजा ने राजकुमार से किया राजकुमार नीचे गर्दन करके बोला – ” पिताजी! मैं युवक हूं | आप मुझे खर्च के लिए पैसा भी नहीं देते हैं | ऐसी स्थिति में मैं भला सुख से कैसे जी सकता हूं | इसलिए मैंने फैसला किया कि आप की हत्या करके मैं इस राज्य का स्वामी बन जाऊं | किंतु इस नट ने मेरी आंखें खोल दी | जब यह बोला कि – ‘ घड़ी गई, थोड़ी रही…’ तब मैंने सोचा कि मेरे पिताजी बूढ़े हो चले हैं, कितने दिन जियेगे | इन्हें मारकर मैं पाप का भागी क्यों बनूं | इस शुद्ध विचार के आते ही मैंने अपने गले का हार इस नट को दे दिया |”
इसके पश्चात राजा ने यही सवाल राजकुमारी से किया राजकुमारी बोली – ” अन्नदाता! मैं युवा हो गई हूं | आप पैसा खर्च करने के भय से मेरा विवाह नहीं करते हैं | लाख खुद को संभालने के बाद भी मेरा ह्रदय फिसल गया और मैं मंत्री के पुत्र से प्रेम कर बैठी | हमने सोचा था कि हम भागकर विवाह कर लेंगे, किंतु नट की इस बात की ‘ घड़ी गई, थोड़ी रही…’ ने मेरी आंखें खोल दी | मैंने सोचा कि पिताजी वृद्ध हो चले हैं और कितना जियेगे | ऐसी स्थिति में यह कलंक अपने साथ लेकर उनका मरना उचित नहीं है | इसी कारण मैंने भागने का विचार त्याग दिया, मैंने नट को इसी कारण अपनी अंगूठी दे दी |”
राजा यह बातें सोच कर आश्चर्यचकित रह गया | वह बेचैनी से तड़पने लगा | उसे बार-बार नट की कही पंक्तियां याद आ रही थी | उसे लगने लगा की कंजूसी करके उसने कोई अच्छा काम नहीं किया है | अगर नट यह बात नहीं कहता तो उसकी बेटी उसके मुंह पर कालिख पोत देती तथा उसका बेटा उसे मार डालता | तब मेरी कंजूसी मेरा क्या साथ देती | इससे तो अगर समय रहते विवाह कर देता तो उसके मन में यह विचार कदापि न आते | मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष रह गये हैं | इस बचे हुए दिनों को तो मैं सुख शांति से व्यतीत कर लूं | नट ने ठीक ही कहा था कि ‘ घड़ी गई, थोड़ी रही’ |”
अंत में राजा ने अपनी कंजूसी का विचार त्याग दिया और तुरंत पहरेदार को बुलाकर कहा – ” जाओ जाकर, उस नट की मंडली को हमारे सामने प्रस्तुत करो |”
पहरेदार राजा की आज्ञा पाकर वहां से चला गया और नट-मंडली के पास पहुंचकर उन्हें राजा की आज्ञा के बारे में बताया |
थोड़ी देर बाद नट-मंडली राजा के समक्ष उपस्थित हुयी | प्रमुख नट ने सिर झुकाकर राजा से पूछा – ” क्या आदेश है, अन्नदाता! क्या कोई तमाशा दिखाऊ |”
राजा ने उन्हें बहुत-सा धन इनाम में दिया तथा उसी दिन से उसने कंजूसी छोड़ दी | वह अक्सर बड़े-बड़े कलाकारों को अपने यहां आमंत्रित करने लगा तथा उनकी कला की परख कर उचित पुरस्कार प्रदान करने लगा | उसने अपने बेटे को युवराज घोषित किया तथा उसे भरपूर एश-आराम दिये | अपनी पुत्री का विवाह भी उसने उचित वर तलाश कर बहुत धूमधाम के साथ कर दिया |
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