Hindi Moral Stories – अक्षय लोक – Moral Stories
Hindi Moral Stories – अक्षय लोक
Hindi Moral Stories / Moral Stories in Hindi
बहुत पुरानी बात है | एक बार सप्तऋषि ब्रह्मलोक पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से तीर्थ यात्रा पर निकले |
संयोगवश उसी समय भयानक अकाल पड़ गया | लोग अन्न के दाने-दाने को तरसने लगे | भिक्षाव्रती पर जीवन यापन करने वाले सप्तऋषियों को भी भयानक कष्ट होने लगे |
अब प्राय उन्हें उपवास करना पड़ता | एक बार तो तीन दिन तक भूखे रहना पड़ा |
जल्दी वे एक ऐसे नगर में जा पहुंचे, जहां का राजा अति उदार व प्रजा वत्सल था |
उसने सप्तऋषियों को अन्न की तलाश में भटकते देखा तो उनसे प्रार्थना की – “ मुनिवर! मैं आपको अन्न, वस्त्र, स्वर्ण आदि सुविधाएं देना चाहता हूं | मेरी सेवाओं को स्वीकार करें, आपकी अति कृपा होगी |”
किंतु सप्तऋषियों ने इससे इनकार करते हुये कहा – “ राजन! हम दान नहीं लेते, राजा का दाम तो वैसे भी निशिदृ है |” इतना कहकर वे आगे बढ़ गये |
तब राजा ने एक अन्य उपाय निकाला | उसने गुलर के फलों में सोना भरवाकर रास्ते में डलवा दिया |
सबसे पहले अत्री ऋषि को वह फल मिला | उन्होंने उसे उठाकर देखा तो वह भारी था, इसलिए उन्होंने अन्य ऋषियो से कहा – “ मैं राजा की चाल को अच्छी तरह समझ गया हूं, इन गुलर के फलों में द्रव छिपा है और वह हमारे लिए त्याजय है |”
तब अन्य ऋषियो ने भी कुछ ज्ञान की बातें कहीं और उन फलों को वहीं छोड़कर आगे बढ़ गये |
वे कुछ दूर आगे गए थे, कि एक आदमी आया और उनकी टोली में शामिल हो गया |
वे आगे बढ़ते गये |
Moral Stories / Hindi Kahani
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आगे जाने पर उन्हें एक विशाल सरोवर दिखायी दिया, जो कमल पुरुषों से भरा हुआ था |
सातों ऋषियों ने कमल की नालों को जमा कर लिया | जिससे कि वे भगवान को भोग लगा सके | फिर सरोवर में स्नान करने हेतु उतर गये |
स्नान करने के पश्चात वे कमल नालों वाली जगह पर गये |
किंतु यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये, कि कमल नाले अपने स्थान से गायब हैं |
“ यह क्या हुआ ”
किसने उन्हें चुरा लिया |
किंतु कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था, कि उसने कमल नालों को चुराया है |
उन्होंने आपस में शपथ खाई और एक दूसरे का विश्वास किया, कि उन्होंने कमल नाले नहीं चुराये |
फिर अंत में,
जब उस व्यक्ति की बारी आयी जो उन ऋषियों के दल में बाद में शामिल हुआ था तो उसने कहा – “ जिस ने चोरी की है, वह दबूदरी ब्रह्मलोक को जाये |”
उसकी बात सुनते ही सप्तऋषि समझ गये, कि चोरी उसी ने की है | उन्होंने उससे कहा – “ क्यों चोरी तुमने ही की है न |”
उस व्यक्ति ने अपना अपराध स्वीकार करके कहा – “ मुनिवर! आपके मुंह से धर्म तत्व सुनने के लिए ही मैंने यह कार्य किया है | आप लोगों ने लोभ-लालच पर विजय प्राप्त करके अक्षय-लोक पर भी विजय प्राप्त कर ली है | मैं इंद्र हूं, और बड़े ही सम्मान के साथ आपको अक्षय लोक पहुंचाने आया हूं |”
इतना कहकर इंदर ने सप्तऋषियों को विमान में बैठाया और अक्षय-लोक की ओर लेकर उड़ गये |
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