बेवफा बीवी (प्रेमिका) की हिंदी में कहानी
बेवफा बीवी की कहानी
बेवफा बीवी की हिंदी कहानी / Hindi story of Bewafa Biwi (Girlfriend) – किस प्रकार उसने अपने पति को धोखा दिया और अपने देवर के साथ रंगरेलियाँ मनाती हिंदी कहानी।
राजेन्द्र काफी गरीबी में दिन गुजार रहा था। सारे दिन मेहनत-मजदूरी करके जो कुछ उसे मिलता था उससे सिर्फ उसके परिवार का खर्च ही पूरा हो पाता था। एक तरफ तो राजेन्द्र को चारों ओर से गरीबी की चादर ने लपेट रखा था, ऊपर से उसके यहां चार बेटियां पैदा हो गई थीं। गुजरते वक्त के साथ-साथ बेटियां जवानी की दहलीज पर पैर रख चुकी थीं। लेकिन पैसे के अभाव में वह अपनी एक भी बेटी के हाथ पीले नहीं कर सका था। गरीबी की बैसाखियां थामे राजेन्द्र इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि अगर उसे अपनी बच्चियों की शादी करनी है तो उसे ढेर सारी दौलत चाहिए, जो उसके पास थी नहीं।
राजेन्द्र को रात-दिन अपनी बेटियों की शादी की चिन्ता घेरे रहती थी। वह सेठ राजा राम के यहां माल ढोने का काम करता था। एक दिन उसने सोचा कि वह अपने मालिक से इस विषय में बात करे, शायद वह उसकी मदद कर दे।
राजाराम की उम्र लगभग पचास वर्ष की थी। वह शक्ल से काफी भद्दा लगता था, मगर उसकी दौलत ने उसके इस भद्देपन को ढक रखा था। राजेन्द्र उसके ऑफिस में आया और झुककर उसका अभिनन्दन किया। राजाराम ने चेहरा उठाकर उसकी ओर देखते हुए कहा-
“कहो राजेन्द्र! कैसे आना हुआ?”
“मालिक।”
“बोलो।”
आपके पास एक आशा लेकर आया था।” राजेन्द्र ने कहा-“आपकी मदद से एक गरीब का भला हो जाएगा।”
“कुछ बताओ तो सही राजेन्द्र।”
“मालिक।” राजेन्द्र ने कहा-“मुझ अभागे की चार बेटियां हैं और सभी जवान हो रही हैं। यदि आप मुझे कुछ रुपया एडवांस दिला दें तो मैं अपनी एक बेटी के हाथ पीले कर दू। वह धन आप मेरी तनख्वाह से काट लीजिएगा।”
राजाराम कुछ पलों तक सोचता रहा। फिर बोला-“राजेन्द्र।”
“जी मालिक।”
“बैठो।”
राजेन्द्र डरता हुआ-सा सामने पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया। राजाराम ने अपने सामने रखे इन्टरकाम का एक बटन दबाया और कहा-
‘दो चाय भिजवा दो।’
राजाराम के इस रूप को देखकर राजेन्द्र मन ही मन बौखला गया। उसकी समझ में नहीं आया कि यह सब क्या है? वह उसके लिए चाय क्यों मंगवा रहा है। बात राजेन्द्र की समझ में नहीं आयी। क्योंकि उसने सुन रखा था कि राजाराम अपने सामने किसी को बैठाना भी पसन्द नहीं करता। फिर उसे बैठने के लिए क्यों कहा? क्यों उसके लिए चाय मंगवा रहा है? ऐसे ही ढेर सारे सवालों का तूफान उसे मथने लगा।
वह विचारों में खोया हुआ था। तभी एक नौकर एक सुन्दर-सी केतली में चाय रखकर चला गया। पास ही दो कप रख गया था।
सेठ राजाराम ने अपने हाथों से चाय बनायी। एक कप राजेन्द्र की ओर बढ़ाया- “लो राजेन्द्र! चाय पियो।”
“मालिक।’ राजेन्द्र ने कहा- ‘मैं भला आपके सामने चाय कैसे पी सकता हूं। कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली। यह आप क्या कर रहे हैं? आपके पास अपनी एक छोटी-सी दरख्वास्त लेकर आया हूं। आपके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है।”
“राजेन्द्र ।”
“जी मालिक।”
“तुम बेफिक्र होकर चाय पियो।” राजाराम ने कहा-“बाद में हम उस विषय में बातें करेंगे।”
डरते-डरते राजेन्द्र चाय पीने लगा। ट्रे में बिस्किट्स रखे थे। मगर उसने उनमें से कोई बिस्कुट उठाया नहीं। उसने अपने जीवन में कभी यह नहीं सोचा था कि वह एक दिन सेठ राजाराम के साथ बैठकर चाय भी पी सकता है, जिसके कई मिल हैं और न जाने कितने किस्म के व्यापार हैं। चक्कर उसकी समझ में नहीं आया। एक बार उसने यह अवश्य सोचा था कि कहीं ऐसा न हो कि सेठ राजाराम जो कि विधुर है, अपने साथ उसकी बेटी का विवाह करना चाहता हो। लेकिन अपने इस ख्याल को उसने अपने दिल से निकाल दिया। भला उसके ऐसे भाग्य कहां कि जो उसकी बेटी इतने बड़े घर में चली जाए।
इसी पसोपेश में उसने चाय का कप खाली करके वापस ट्रे में रख दिया। राजाराम ने भी चाय समाप्त कर ली थी। उसके बाद राजाराम ने राजेन्द्र की ओर मुखातिब होते हुए कहा-“राजेन्द्र !”
“जी मालिक।”
“शायद आप यह जानते होंगे कि गत वर्ष हमारी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था।” राजाराम ने बात प्रारम्भ करते हुए कहा।
“जी मैं जानता हूं।”
‘‘राजेन्द्र जी।” राजाराम ने कहा—”हमारे पास बेपनाह दौलत है लेकिन कोई वारिस नहीं है। बस एक हमारा छोटा भाई है। जब तक इस धन का उपभोग करने वाला कोई न हो, तब तक यह सब बेकार है।”
‘‘जी मैं यह जानता हूं।”
आप अपनी बेटी से जाकर बात कीजिए।” राजाराम ने कहा- ”यदि वो हमारे घर की लक्ष्मी बनना कबूल करे तो हमें प्रसन्नता होगी और हां, आप एक बात भली-भांति समझ लें कि आप पर किसी भी किस्म का कोई दबाव नहीं है। अगर वो स्वेच्छा से इस बात को स्वीकार करेगी तो हम आपको इतना धन देंगे कि न केवल आपकी हालत सुधर जाएगी बल्कि आप अपनी बाकी की तीनों बेटियों का विवाह भी बड़ी शान से कर सकेंगे।”
“ज…ज…जी।” राजेन्द्र हकलाता हुआ बोला।
अब आप आराम से घर जाइए और अपने बच्चों से बातें कीजिए। यदि हमारी बात उन्हें ठीक लगे तो आप सुबह घर पर आ जाइए। बाकी बातें वहीं होगी।”
“जी।”
और राजेन्द्र वहां से उठकर चला गया। उसके चले जाने के बाद राजाराम अपने ऑफिस कार्य में लग गया।
राजेन्द्र प्रसन्नता से चलता हुआ अपने घर पर आया। उसने आते ही अपनी पत्नी से वह सब बातें कह दी जो राजाराम ने उससे कहीं थीं।
राजाराम की तरह उसकी पत्नी भी प्रसन्न हुई। उसे लगा कि उनके मुसीबत के दिन खत्म हो गए हैं। लेकिन अगले ही क्षण उसने कहा- “अलका से तो पूछ लो?”
‘‘बुलाओ उसे ।”
अलका को उन्होंने वहीं बुला लिया। वही उनकी सबसे बड़ी बेटी थी। अलका की मां ने उससे कहा-“बेटी! आज तेरे लिए मिल मालिक सेठ राजाराम का पैगाम आया है। उसकी उम्र जरूर ज्यादा है लेकिन जिन लोगों के पास धन होता है वो कभी बूढ़े नहीं होते। फिर भी उन्होंने यह कहा है कि आप लोग अपनी बेटी से पूछ लें। हां, मैं अपनी ओर से यह कहूंगी कि यदि तुम उनके साथ शादी की हां कर लोगी तो न केवल हमारे दिन फिर जाएंगे बल्कि तुम्हारी बाकी तीनों बहनों के भी रिश्ते समय से और अच्छे परिवारों में हो सकेंगे।” आप यह बेवफा बीवी की कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
“जी।”
“तुम खूब अच्छी तरह से सोच लो। हमें सुबह बता देना।” मां ने काफी प्यार भरे अंदाज में कहा।
“मम्मी ।”
“हां, बोलो बेटी ।”
इसमें सोचना क्या है?” अलका ने कहा-“यदि मैं सेठ राजाराम से शादी कर लू और उसकी पत्नी बन जाऊं तो निश्चित ही हमारे परिवार की दरिद्रता दूर हो जाएगी। इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है। अपने परिवार की खातिर मैं यह बलिदान देने के लिये तैयार हूं।”
राजेन्द्र और उसकी पत्नी ने बलिदान शब्द पर ध्यान ही नहीं दिया। वे दोनों बेटी की स्वीकृति पाकर प्रसन्न हो गए। उनकी आंखों के सामने तो नोटों का ढेर घूम गया था। अगले दिन राजेन्द्र सुबह नौ बजे सेठ राजाराम की कोठी पर पहुंचा।
द्वारपाल ने उसे अन्दर जाने से नहीं रोका। वह जानता था कि वह सेठजी के यहां काम करता है और किसी काम से आया होगा। वह लॉन की ओर बढ़ गया। सेठ राजाराम लॉन में बैठा चाय पी रहा था। उसके हाथ में सुबह का समाचार पत्र था।
उसके पास पहुंचकर राजेन्द्र ने नमस्ते की।
उसकी नमस्ते का उत्तर देते हुए राजाराम ने उसे सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का संकेत किया।
राजेन्द्र सामने बैठ गया।
सेठ राजाराम के पास उसका छोटा भाई विनय बैठा हुआ था। उम्र यही होगी सत्रह-अट्ठारह वर्ष। बेहद खूबसूरत नौजवान। अंग-अंग गठीला व कसरती ।
राजाराम ने विनय से चाय बनाने को कहा। विनय ने चीनी दूध प्याले में डालकर चाय की पत्ती के ऊपर से पानी डाल दिया और प्याले में चम्मच लगाकर प्याला उसकी ओर बढ़ा दिया।
राजेन्द्र चाय पीने लगा।
राजाराम ने कुछ देर बाद समाचार पत्र एक ओर रख दिया और फिर उसकी ओर मुखातिब होते हुए कहा-“कहिए, आपको क्या विचार है…?”
“जी हम तैयार हैं।” राजेन्द्र ने कहा–“हमने स्वयं अलका से पूछ लिया है। उसे भी कोई एतराज नहीं है।’
“गुड…।”
जब राजेन्द्र ने चाय समाप्त कर ली तो राजाराम राजेन्द्र को अपने साथ लेकर अन्दर गया।
अन्दर आकर उसने राजेन्द्र को दो लाख रुपये दिए और ढेर सारा जेवर दिया और साथ ही यह भी कहा–”आप तैयारी कीजिए और आज से ही आप हमारी दूसरी कोठी में चले जाइएगा, वह खाली पड़ी है।”
“सेठ जी यह सब कुछ मैं कैसे लू?” राजेन्द्र ने कहा-“मैं बेटी वाला हूं। बेटी वाले लेते नहीं देते हैं।”
“आप चिन्ता न कीजिए।’ राजाराम ने कहा–”आप ऐसा कुछ मत सोचिए। मेरे पास अथाह दौलत है। इसमें दो-चार या दस-बीस लाख निकलने से कोई फर्क नहीं पड़ता।’
“जी।”
“आप आराम से अपनी तैयारी कीजिए। हमारे नौकर आज ही आप लोगों को हमारी दूसरी कोठी में पहुंचा देंगे। कोठी पर आवश्यकता की हर चीज आपको मौजूद मिलेगी। बाकी दो-चार लाख रुपये कल आपके यहां पहुंच जाएंगे। सेठ राजाराम का श्वसुर बनने लायक आप अपने आपको बनाइए। पैसे की कोई चिन्ता मत कीजिए ।”
“ज…ज…जी ।”
“और हां।” राजाराम ने कहा-“अब आपको फैक्ट्री जाने की आवश्यकता नहीं है। आराम से रहिए, दिल खोलकर पैसा खर्च कीजिए। राजेन्द्र मन-ही-मन अत्यधिक प्रसन्न था। उसने अपने जीवन में इस कभी स्वप्न में भी एक साथ नहीं देखा था। दो लाख रुपये बैग में, ऊपर से जेवर। वह मन-ही-मन सोच रहा था कि घर जाकर इन नोटों को एक बार जी भर कर देखूगा। कभी-कभी वह सोचता था कि कहीं इतने नोटों को एक साथ से उसका हार्ट फेल न हो जाए।
वह अपने आपको सम्भालने का प्रयास कर रहा था। बाहर आकर राजाराम ने ड्राइवर से कहा-‘‘ड्राइवर! इन्हें इनके घर ले जा और वहां से इनके परिवार को सामान सहित हमारे दूसरे बंगले पर पहुंचा देना तथा वहीं पर इनकी सेवा में रहना।”
“जो आज्ञा सेठजी।”
तब…।
राजेन्द्र के दिल की धड़कनें बढ़ती चली जा रही थीं। उसे लगा यह सब स्वप्न है। हकीकत से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। राजेन्द्र ने अपनी उंगली दांत के नीचे देकर दबायी। दर्द हुआ तो वह समझ गया कि यह स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत ही है। ड्राइवर ने गाड़ी के पीछे का द्वार खोला और राजेन्द्र पीछे वाली सीट पर बैठ गया। ड्राइवर ने द्वार बन्द किया और फिर गाड़ी स्टार्ट करके चल दिया।
राजेन्द्र ने ड्राइवर को अपने घर का पता बता दिया था।
राजेन्द्र का तो जैसे भाग्य ही बदल गया था।
तभी तो कहते हैं-
“स्त्रियः चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं दैवो न जानाति कुतो मनुष्यः ।”
अर्थात् स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य के विषय में तो देवता भी नहीं जानते. फिर मनुष्य कैसे जान सकता है।
ड्राइवर ने राजेन्द्र को ले जाकर उसके द्वार पर उतार दिया।
राजेन्द्र बैग लेकर अन्दर गया।
उसकी पत्नी उसका इन्तजार कर रही थी। उसके हाथ में बैग देखकर बोली-
“इसमें क्या है?”
“आओ, दिखाता हूं।”
और उसने अन्दर जाकर उस बैग को एक पुरानी-सी मेज पर रखा और खोल दिया। बैग में सौ-सौ के नोटों की गड्डियां लगी पड़ी थीं। एक ओर कोने में जेवर पड़े थे।
“ये सब क्या है, अलका के पापा?”
“यह सब हमारा है अलका की मां ।’ राजेन्द्र ने कहा-“सेठ जी ने कहा है। कि तुम लोग शादी की तैयारी करो। कल और पैसा मिल जाएगा। सेठ जी ने रहने के लिये अपनी एक कोठी भी दे दी है।”
“आप सच कह रहे हैं अलका के पापा?” उसने गद्गद कण्ठ से पूछा।
“हां, अलका की मां ।” राजेन्द्र की आवाज खुशी की वजह से कांप रहीं था। राजेन्द्र की पत्नी उन नोटों के बण्डलों को काफी देर तक इस तरह से देखती रही जैसे फिर नोटों का यह ढेर उसे कभी दिखायी नहीं देगा।
तभी…।
ड्राइवर ने अन्दर आकर कहा-“आप लोग बंगले पर चलिए। सेठ जी ने कहलवाया है कि जो वहां ले जाने लायक आवश्यक सामान होगा वहां पहुंच जाएगा।”
“अच्छा भाई।”
“अलका की मां।”
“जी।”
“इनसे कहो कि तैयार हो जाएं।” राजेन्द्र ने कहा-“हम लोग बंगले पर चलेंगे।”
“क्या अब हम उस बंगले में ही रहेंगे?”
“हां भाई।”
और तब राजेन्द्र की पत्नी ने अपनी चारों जवान बेटियों को तैयार होने के लिए कह दिया। वे सब तैयार होकर गाड़ी में आ बैठे।
खुदा जब देता है छप्पर फाड़कर देता है और राजेन्द्र के साथ ऐसा ही हुआ था। ड्राइवर ने उन लोगों को लाकर सेठ के बंगले पर छोड़ दिया और वहीं पर रुक गया। दूसरे नौकर राजाराम का आवश्यक सामान उठा लाए।
राजेन्द्र की पत्नी और लड़कियां पागलों की भांति महलनुमा बंगले को देख रही थीं। उनमें से किसी को भी यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि यह सब सच है। उनकी नजर में यह सब स्वप्न था।
तभी…।।
वहां एक आदमी आ गया। उसने राजेन्द्र को दो-तीन दुकानों के पते बताए और कहा–”इन दुकानों से आप लोग आवश्यकता की सब चीजें जितनी आवश्यकता हो खरीद लें। सेठ जी ने फोन कर दिए हैं।”
“अच्छा भाई ।’
और इस तरह से तीन-चार दिन तक वे खरीदारी करते रहे। कल तक जो राजेन्द्र मामूली मजदूर था जिसे कोई जानता तक नहीं था आज सेठ राजेन्द्र कहलाने लगा था।
उन सबके ठाठ निराले थे। उसकी बेटियां सजी-धजी परियां-सी लगने लगी थीं। खूबसूरत तो वे थी हीं दौलत आ जाने पर सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो गयी थी।
शादी की तैयारियां शुरू हो गयीं। कोठी को दुल्हन की तरह सजाया जाने लगा और फिर बड़ी धूमधाम के साथ एक माह बाद अलका और राजाराम की शादी हो गयी।
अलका दुल्हन बनकर उस बंगले में आ गयी।
सेठ राजाराम के बंगले पर अलका का भव्य स्वागत हुआ। वह अपने कमरे में चली गयी।
फूलों से सुहाग सेज सजायी गयी थी।
रात्रि में अलका अपनी सुहाग सेज पर आकर बैठ गयी। कुछ ही देर के बाद सेठ राजाराम भी आ गया। और वही हुआ जो सुहागरात में होता है।
अलका ने अपने परिवार की खुशियों के लिये सेठ राजाराम से विवाह करने पत्र के समान की हां कर ली थी लेकिन इस शादी से वह मानसिक तौर पर जरा भी प्रसन्न नहीं थी। उसने तो केवल अपने परिवार की खातिर कुर्बानी दी थी।
उसकी नजर राजाराम के भाई विनय पर थी जिसे राजाराम अपने पुत्र के समान प्यार करता था। सेठ राजाराम जब फैक्ट्री चले जाते ती अलका विनय के पास आ जाती थी। क्योंकि रिश्ता देवर भाभी का था ही इसलिए उससे मजाक करने लगती थी। आप यह बेवफा बीवी की कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
विनय सामाजिक तौर पर नादान था। उसे लोगों के पास उठने-बैठने का पता ही नहीं मिला था। यहां तक कि उसकी शिक्षा भी घर पर ही हुई थी।
जब अलका उसके साथ छेड़छाड़ करती तो उसे अजीब-सा महसूस होता था, शरीर के अंगों में तनाव-सा आ जाता था।
एक दिन जब राजाराम फैक्ट्री चला गया तो अलका विनय के रूम में आ गयी। वह बैठा कुछ पढ़ रहा था।
अलका ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा-“क्या पढ़ रहे हो देवर जी?”
“कुछ नहीं भाभी जी, बस यूं ही दिल बहला रहा था।”
“अच्छा !”
अलका अपने पीछे द्वार बन्द कर आयी थी। उसे उसके पास आने-जाने से कौन रोक सकता था? उसके पास आते ही अलका ने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
बेचारा विनय कुछ नहीं बोल पाया। उसका सारा अंग कंपकंपा गया और न जाने उसे कैसा-कैसा लगने लगा।
अलका ने उसकी ओर देखते हुए कहा-‘‘विनय ।”
‘‘जी भाभी जी।”
“एक बात बोलू?”
‘‘कहिए।”
अगर हम कोई बात कहें तो आप अपने भाई साहब से तो नहीं कहेंगे?”
“यदि आप मना करेंगी तो नहीं कहेंगे।”
“गुड ।” अलका ने कहा-“आओ हम तुम्हें कुछ सिखाएंगे, लेकिन इसके विषय में अपने भाई साहब से भूलकर भी कुछ न कहना।”
‘‘जी।”
और अलका विनय को अपने साथ लेकर बिस्तर पर आकर लेट गयी। वह भी उसके पास ही लेट गया।
बेवफा बीवी की हिंदी कहानी
उसके बाद…।।
अलका ने विनय को वह सब कुछ सिखा दिया जो उसे नहीं सिखाना चाहिए था। दरअसल उसने पहले से ही निश्चय कर लिया था कि वह शादी राजाराम से जरूर कर रही है लेकिन विनय की होकर रहेगी। अब विनय को कुछ कहने या बताने की आवश्यकता नहीं थी। वह अलका के लिये ट्रेंड हो गया था।
राजारामं के फैक्ट्री जाते ही वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में समा जाते। विनय को इतनी अक्ल आ ही गयी थी कि जो खेल अलका उसके साथ खेल रही है उसके विषय में राजाराम से हर्गिज नहीं कहना है।
अलका की वजह से उसका सारा परिवार सुखी हो गया था और अब उसे भी कोई अफसोस नहीं था।
अलका राजाराम को इस बात का जरा भी शक नहीं होने देना चाहती थी कि वह उसे नहीं चाहती है या उसके भाई को प्यार करती है।
समय बीतता गया।
राजाराम को भी किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ था। पत्नी से पत्नी का सुख मिल रहा था।
एक दिन जब राजाराम फैक्ट्री चला गया तो उसके जाने के बाद ही अलका विनय के कमरे में आ गयी।
जवान विनय भी उसकी प्रतीक्षा में रहता था। उसके आते ही विनय ने अलका को बांहों में भर लिया। वे दोनों बिस्तर पर आ गए।
उधर…।
किसी जरूरी फाइल को लेने के चक्कर में राजाराम वापस कोठी पर आ गया। जब वह विनय के कमरे के पास से गुज़रा तो उसे अन्दर से आवाजें आती सुनाई दीं। दैवयोग से उसी दिन अलका दरवाजा बन्द करना भूल गयी थी।
उन आवाजों को सुनकर एक बार तो उसने सोचा विनय और उसकी भाभी बात कर रहे होंगे। क्योंकि यहां उसके अलावा बातें करने वाला और कोई नहीं है।
वह आगे बढ़ गया। मगर अचानक न जाने उसके मन में क्या आया कि उसने द्वार को अन्दर की ओर ढकेल दिया।
अगर राजाराम ने विनय को आवाज दे दी होती तो गनीमत थी। वे उठ जाते या होशियार हो जाते। उसने तो एकदम द्वार खोल दिया और अन्दर प्रवेश कर गया।
जब सेठ राजाराम ने अन्दर प्रवेश किया उस समय अलका और विनय एक-दूसरे की बांहों में थे।
उनको इस स्थिति में देखने की तो राजाराम ने कभी सपने में भी आशा नहीं की थी। जिस भाई को वह अपने पुत्र की तरह पाल रहा था और पुत्रवत् प्यार करता था वह ऐसा नीच काम करेगा उसके सोचने का प्रश्न ही नहीं था। आप यह बेवफा बीवी की कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
सेठ राजाराम को वहां देखकर अलका और विनय बुरी तरह से बौखला गये। बौखला जाने और हड़बड़ा जाने की बात भी थी।
सेठ राजाराम फिर वहां एक पल के लिए भी नहीं रुका। वह वहां से अपने कमरे में गया। उसने सेफ खोली। उसमें लोडेड रिवॉल्वर रखा हुआ था। रिवॉल्वर निकाला और अपनी कनपटी से सटाकर ट्रेगर दबा दिया।
धांय…।
एक आवाज हुई और सेठ राजाराम का काम तमाम हो गया।
विनय और अलका उनके रूम की ओर भागे। मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी।
कोई परिवार में इस बात को न जान सका कि सेठ राजाराम ने क्यों अपनी जान दे दी। पुलिस आयी और पोस्टमार्टम के लिए लाश ले गयी। रिवॉल्वर पर राजाराम की उंगलियों के निशान थे इसलिए आसानी से यह बात साबित हो गयी कि उन्होंने आत्महत्या की है। क्यों की है? इस बात को सिर्फ अलका और विनय ही जानते थे।
सच बात यह है कि अलका तो उसकी आत्महत्या से खुश थी। उसके रास्ते का कांटा स्वयं ही निकल गया था।
रीति के अनुसार तेरह दिन तक उसका शोक मनाया गया और फिर समाज की रीति के अनुसार अलका और विनय पति-पत्नी घोषित हो गए।
विनय को अधिक ज्ञान नहीं था इसलिए फैक्ट्री में भी अलका विनय के साथ जाने लगी थी।
“मैना।”
“हां तोते।”
“देख लिया।”
“क्या?”
“उस बेमुरव्वत औरत को।” तोते ने कहा-“सेठ राजाराम ने अलका और उसके परिवार के लिए क्या नहीं किया? धरती से उठाकर आसमान पर बिठा दिया था। उसके परिवार को इतना धन दिया जिसके बारे में वे स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे। गाड़ी, बंगला दिया और उस अलका को रानी बनाकर रखा।”
एक पल रुककर तोते ने फिर कहना प्रारम्भ किया-“उसने उसके उसी भाई को खराब कर दिया जिसे वह अपने पुत्र के समान प्यार करता था। अब तुम ही बताओ मैना भला औरतों का है कोई ईमान?”
“तोते।”
“बोलो मैना।”
“एक बात कहूं?”
“कहो।”
“मैं मानती हूं कि अलका ने अपने पति के साथ बुरा किया। उसकी अमानत में खयानत की। पर क्या राजाराम ने जब अलका के साथ शादी की वह उसकी शादी की उम्र की थी। उस समय तो उसे अपने भाई की शादी करनी चाहिए थी न कि अपनी। आप यह बेवफा बीवी की कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
“मैना।” तोते ने कहा-“राजाराम की गलतीं तब तुम बताती जब वह जबरदस्ती राजेन्द्र को परेशान करके या दबाव में अलका के साथ विवाह करता। उसने बातें आईने की तरह साफ कर दी थीं और स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि इच्छा हो तो करे। शादी के लिए तो स्वयं अलका ने हां की थी। अगर उसे यह लग रहा था कि का निर्वाह राजाराम के साथ नहीं हो पाएगा तो साफ मना कर देती।”
“अब तुम यह बताओ कि तुम कहना क्या चाहते हो?”
“केवल यह मैना।” तोते ने कहा -“तुम हार मान लो और इस बात का तसलीम कर लो कि औरत जात बेवफा होती है, बेमुरव्वत होती है।”
‘‘तोते, यह मैं मानने के लिए तैयार नहीं हूं।”
‘‘क्यों?” तोते ने कहा-“क्या मैंने अभी साबित नहीं कर दिया कि औरत जात बेवफा होती है?”
“यह तो मैं भी कई बार साबित कर चकी हं।” मैना ने कहा- ‘‘लो मैं तुम्हें मर्दो की बेवफाई की एक और कथा सुनाती हूं।”
“मैना!’ तोते ने कहो_“क्यों न हम इन बेवफाई के किस्सों को छोड़कर एक-दूसरे के पास आ जाएं और बाकी की रात मिल-जुलकर गुजारें।”
“खबरदार तोते!” मैना ने कहा_भूलकर भी मेरे पास आने का विचार मत करना। मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मुझे मर्द जात से नफरत है। अगर मेरे पास आने की सोचोगे तो पेड़ की डाल पर भी नहीं बैठने दूंगी।”
‘‘ओह!”
‘‘हां।”
“अच्छा, अगर ऐसी ही बात है तो तुम कहानी सुनाओ। कम-से-कम मन तो लगा रहेगा और रात कट जाएगी।”
“ठीक है सुनो…।”
मैना कहानी सुनाने लगी।
तोता उसके मुख की ओर देख रहा था।
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