साधु की प्रेयसी – पत्नी की बेवफ़ाई की हिंदी कहानी
साधु की प्रेयसी हिंदी कहानी
साधु की प्रेयसी की हिंदी कहानी / Hindi story of Wife Affair with sadhu – किस प्रकार एक पत्नी ने अपने पति की धोका दिया तथा एक साधु के साथ रही हिंदी में कहानी (तोता-मैना किस्सा)
कहावत है जब दिल आया गधी पर तो परी क्या चीज है। इस कहावत को रजनी ने चरितार्थ किया था। उसकी नजरें एक साधु से लड़ गईं। वह साधु, साधु नहीं था, स्वादू था। जवानी दीवानी होती है। रजनी भी जवान थीं, खूबसूरत थी और उसकी इसी खूबसूरती पर साधु भी रीझ गया था।
साधु की झोंपड़ी गांव से काफी दूर थी। इसकी झोंपड़ी के करीब ही एक नदी बहती थी। रजनी हर रोज देर रात में जब पूरा गांव नींद के आगोश में समाया होता था, चुपचाप उठकर साधु की झोंपड़ी में चली जाती और कई घंटे वहां रात बिताकर लौटती थी। रजनी और साधु का यह प्रेम मिलन महीनों चलता रहा। किसी को इसकी खबर नहीं थी। वह जानती थी कि उसकी इस हरकत का शायद किसी को भी पता नहीं था क्योंकि यदि पता होता तो कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई तो कुछ कहता ही या कोई रोक-टोक करता।
रजनी और साधु की यह रासलीला चलती रही। वह गांव में भिक्षा मांगने आता ही था। अगर कुछ कहना होता तो वहीं पर कह जाता। उसका खाना वह स्वयं ले जाया करती थी। उसे स्वयं हाथों से खिलाती भी थी।
रजनी तो साधु के मोहपाश में बंधी हुई थी लेकिन उसके घरवालों ने उसकी शादी तय कर दी। हो सकता है कि उन्हें रजनी और साधु के मिलन पर शक हो गया हो या किसी ने उनसे शिकायत कर दी हो।
उस साधु से रजनी का पिण्ड छुड़ाने का और कोई तरीका नहीं था। यह सबसे अच्छा तरीका था कि विवाह होने के बाद वह अपनी ससुराल चली जाएगा और उनका मिलन बन्द हो जाएगा। रजनी की शादी हो गयी।
दो चार दिन बाद जब वह अपनी ससुराल से वापस आयी तो साधु के पास गयी।
साधु ने रजनी के कई झापड़ लगाए और काफी बुरा-भला भी कहा उस कामी साधु ने यहां तक कहा कि अपने पति को छोड़कर क्यों नहीं आ गयी। जैसे-तैसे रजनी ने अपने प्रेमी को खुश किया। मर्द त्रिया चरित्र के आगे तो मात ही खा जाता है, सो वह भी खा गया।
रजनी का फिर वही क्रम चालू हो गया।
कुछ दिनों बाद उसकी ससुराल से उसका पति उसे विदा कराने आ गया। उसके पति राकेश के साथ उसके परिवार के और लोग भी थे। एक दो शायद उसके मित्र भी थे। रात्रि में काफी देर तक खाने-पीने का क्रम चलता रहा। रजनी को रात में बारह बजे के बाद समय मिला। तब वह अपने प्रेमी का खाना लेकर चल दी। जब वह घर से बाहर जा रही थी उस समय उसका पति राकेश जाग रहा था। आप यह साधु की प्रेयसी नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
उसने जब किसी को अर्धरात्रि के समय में जाते देखा तो उसे आश्चर्य हुआ और वह भी उठकर उसके पीछे-पीछे चल दिया। रजनी काफी तेज चाल चलती हुई उस साधु की झोंपड़ी पर पहुंची। रजनी ने खाना रख दिया।
“तू अब तक कहां थी? मैं भूखा मर रहा हूं। तेरी राह देखते-देखते मेरी आंखें भी पथरा गयीं।” देर हो जाने की वजह से साधु रजनी को तेज स्वर में डांटने लगा।
“शंकर…।’ रजनी ने कहा-“आज मेरी ससुराल वाले मुझे लिवाने आए हैं, इसी वजह से देर हो गयी है।”
साधु ने उसके दो-तीन झापड़ और रसीद किए और कहा-“तू तो चली जाएगी उसके बाद मेरा क्या होगा?”
“शंकर…।”
“बोल क्या बात है?” उसने कहा-“मेरे अन्दर ज्वाला धधक रही है।”
“तुम फिक्र क्यों कर रहे हो शंकर।” रजनी ने कहा-“मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगी।’
“तुम कल मत जाना।” शंकर ने कहा-“परसों चली जाना। तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा।”
“फिक्र न करो।” रजनी ने कहा-“यदि सम्भव हुआ तो मैं कल रुक जाऊंगी और उसके बाद यदि मैं ज्यादा दिन तक न आ पायी तो तुम वहां आ जाना। मैं किसी न किसी बहाने तुमसे मिलने आती रहूंगी।”
“यही ठीक रहेगा।” शंकर ने कहा-“मैं वहीं आ जाऊंगा। फिर तुम्हें यहां नहीं आना पड़ेगा और हमारा मिलन होता रहेगा।”
राकेश झोंपड़ी के पीछे खड़ा हुआ सब सुन रहा था, सब देख रहा था। उसकी आंखों में खून उतर आया था। उसके जी में आ रहा था कि उसी समय उन दोनों को जान से मार दे। मगर न जाने क्या सोचकर वहां से चला आया और आकर चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गया।
दूसरे दिन राकेश ने जानबूझकर जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। यह जानकर की जाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया रजनी बहुत प्रसन्न हुई। लेकिन उसने अपनी प्रसन्नता पति पर या घर के किसी अन्य सदस्य पर जाहिर नहीं की।
पत्नी की बेवफ़ाई की हिंदी कहानी
दूसरे दिन रात्रि में…।
भोजन करने के बाद राकेश चुपचाप वहां से चला गया। वह वहां से तेज-तेज चलता हुआ उस साधु की झोपड़ी पर आया। उसने वहां जाकर साधु शंकर के दो टुकड़े कर डाले।
और फिर वह वहीं पर खड़े एक पेड़ पर चढ़ गया। वह अपने आपको पत्तों में छुपाए हुए था। करीब एक घंटे बाद उसकी पत्नी रजनी वहां आ गयी। वह एक हाथ में थाल में शंकर के लिए भोजन लिए हुए थी। उसने दुल्हन की तरह श्रृंगार कर रखा था। रजनी शंकर की झोंपड़ी में पहुंची। उसने वहां जाकर शंकर के दो टुकड़े देखे। शंकर की यह हालत देखकर रजनी की जो हालत हुई वह देखने लायक थी। आप यह साधु की प्रेयसी नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
उसने वहीं पास में पड़ा हुआ गंडासा उठा लिया था और नदी किनारे पर इधर-से-उधर तक दौड़ती फिर रही थी। निश्चित था कि यदि शंकर का कत्ल करने वाला उसे मिल जाता तो वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालती।
प्रेम और विरह की अग्नि ने उसके तन-बदन में आग लगा रखी थी। उसने नदी के किनारे पर इधर-से-उधर कई चक्कर काटे और जब कोई नजर न आया तो गंडासे को वहीं पर डालकर लकड़ियां इकट्ठी करने लगी।
कुछ लकड़ियां तो उसकी झोंपड़ी में थीं। कुछ और इकट्ठी कीं और फिर उसके सिर को धड़ से जोड़कर उसने झोंपड़ी का फूस नीचे गिराया और धूने की आग से उसमें आग लगा दी।
शंकर की चिता जलने लगी।
जब चिता खूब धू-धू कर जलने लगी तो वह थके से कदमों से अपने घर की ओर चल दी। उसके जाने के बाद राकेश पेड़ से नीचे उतरा और वापस चल दिया।
वह आकर अपने बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर बाद नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया।
रजनी भी आकर अपनी चारपाई पर लेट गयी। वह पूरी रात एक मिनट को भी न सो सकी थी। वह अपने प्रेमी साधु शंकर की याद में पूरी रात आंसू बहाती रही।
सुबह उठकर प्रतिदिन के आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर तैयार हो गयी अपनी ससुराल जाने के लिए।
यह सत्य है कि नारी का हृदय भी सागर की तरह विशाल और गहरा होता है। उसमें न जाने क्या-क्या समा जाता है।
सुबह उसके चेहरे पर रात की घटना की जरा-सी भी परछाईं नहीं थी। चेहरे पर किसी तरह की कोई शिकन नहीं थी।
राकेश! राकेश ने भी कमाल का काम किया था। उसने रात को घटना की किसी से कोई जिक्र नहीं किया था। वह अपनी पत्नी को विदा कराकर ले आया था।
उसने शायद यह सोचकर अपनी पत्नी रजनी को माफ कर दिया था कि जीवन में गलती किससे नहीं होती। गलती को यदि माफ न किया जाए तो गलती करने वाला गलती और भी करता चला जाता है।
शायद राकेश ने रजनी को इसलिए भी माफ कर दिया होगा क्योंकि उसने उसका काम ही तमाम कर दिया था और अब पत्नी द्वारा किसी भी तरह की हरकत करने का कोई चांस नहीं था।
“मैना।”
“हां तोते।”
“देख लिया मर्द कितने दरियादिल और क्षमा करने वाले होते हैं। उसने उस औरत को भी माफ कर दिया जिसे उसने गैर की बांहों में देख लिया था। जिसे वह जानता था कि वह बदचलन है।”
‘‘माफ कर दिया तो क्या हुआ?” मैना ने कहा- “उसने तो उसके प्रेमी को जान से मार दिया था।”
“खैर…” तोता बोला–‘‘राकेश रजनी को अपने घर ले आया। वह उससे उसी तरह ईमानदारी से प्यार करता रहा जैसे कि लोग अपनी पत्नियों को प्यार करते हैं। काफी समय बीत गया। उनके मध्य किसी किस्म की कोई बात नहीं हुई। वे दोनों ही अपनी-अपनी ड्यूटी निभाते रहे।
साधु की प्रेयसी – पत्नी की बेवफ़ाई
मगर एक दिन रात में राकेश और रजनी दोनों बाहर बैठे हुए थे। राकेश भोजन कर रहा था। राकेश ने रजनी को सम्बोधित करते हुए कहा-‘‘रजनी, जरा एक गिलास पानी ले आना।’
“अन्दर कैसे जाऊं, डर लगता है।”
उसकी बात सुनकर राकेश को हंसी आ गई।
“क्या बात है?” रजनी ने कहा-“तुम हंस क्यों रहे हो?”
हंसी इस बात पर आ रही है।” राकेश ने कहा “तुम्हें अन्दर घर में से गिलास लाते हुए डर लग रहा है और उस समय डर नहीं लग रहा था जब तुम आधी रात को शंकर की लाश के लिए नदी किनारे लकड़ियां चुराती फिर रही थीं।”
न जाने कैसे अचानक यह बात उसके दिल में आ गयी थी और उसने कह दी। वरना वर्षों गुजर गए थे, कभी इस बात का उसने जिक्र तक नहीं किया था और-तो-और उससे कभी यह भी नहीं पूछा था कि उसने कभी किसी से प्यार भी किया था या नहीं। आप यह साधु की प्रेयसी नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
राकेश के मुंह से इस बात को सुनते ही रजनी की आंखें मशाल की तरह जल उठीं। वहीं थोड़ी दूरी पर गंडासा रखा था। उसने लपककर उसे उठा लिया और अपनी पूरी शक्ति से राकेश पर वार कर दिया।
राकेश एकदम सतर्क हो गया था। वह चारपाई से कूदकर एक तरफ खड़ा हो गया।
रजनी ने इतनी जोर से गंडासे का वार किया था कि चारपाई की पाटी भी कट गयी।
उसने राकेश पर कई वार किए।
राकेश को अपनी भूल का अहसास हुआ। वह सोच रहा था कि उसने यह सब कहकर बहुत बड़ी भूल कर दी है। मगर अब क्या हो सकता था। तीर तो कमान में निकल चुका था। उसने बार-बार उससे कहा ”रजनी, होश में आओ। गुस्से को थूक दो, तुम्हें परेशान करने या बेइज्जत करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। तुम खुद सोचो कितने वर्ष हो गए, आज तक मैंने इस विषय में कोई जिक्र नहीं किया। में आज भी इस बारे में कुछ नहीं कहता। पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में बात आ गयी और मेरे मुंह से निकल गयी, मुझे माफ कर दो ।”
रजनी पर राकेश की बातों का कोई असर नहीं हुआ। वह वार पर वार करती रही।
रजनी की आंखों में वैसा ही खून उतर आया था जैसा साधु शंकर की दो टुकड़े हुई लाश को देखकर उतरा था। राकेश ने आज वक्त की राख में दबी चिंगारी को हवा दे डाली थी। उसी वजह से उसके हाथों में गंडासा आ गया था और वही दृश्य उपस्थित हो गया था। इसी बीच काफी समय गुजर गया।
राकेश को ऐसा लगने लगा था कि रजनी उसे जिन्दा नहीं छोड़ेगी। कई पलों के बाद उसने गंडासा अपनी ही गरदन में मार लिया। उसने अपनी गरदन को धड से अलग कर लिया।
वह मर गयी थी।
राकेश अपनी भूल पर अफसोस कर रहा था। उसे बार-बार अपनी गलती का अहसास हो रहा था।
जो होना था वह तो हो गया था। उसका कोई इलाज तो था नहीं। एक तरह से यह कहा जा सकता था कि उसका घर बरबाद हो गया था। जिसका जिम्मेवार वह स्वयं है।
बातों-ही-बातों में उसकी पत्नी का अन्त हो गया था। मेहरबानी यह हुई थी कि उसकी पुलिस रिपोर्ट नहीं हुई थी। यदि रिपोर्ट होती तो लाश पोस्टमार्टम के लिए जाती और पुलिस का चक्कर पड़ता। राकेश ने उसकी अर्थी तैयार करानी आरम्भ कर दी।
क्रिया कर्म के कुछ आवश्यक कार्य पूर्ण करने के बाद रजनी के मृत शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया गया।
‘‘मैना।”
“हां तोते ।”
“देख लिया मर्दो को।” तोते ने कहा-“आदमी कितने दरियादिल होते हैं। राकेश ने रजनी की भूल को उस समय माफ कर दिया था जब उसने उसे उस दशा में देखा था जिस दशा में देखने के बाद कोई भी मर्द किसी भी हालत में उसे जिन्दा नहीं छोड़ता। लेकिन उसने आज भी उसे माफ कर दिया था लेकिन वह नहीं मानी। और उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।” आप यह साधु की प्रेयसी नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
“देख लिया मर्दो की दरियादिली और औरतों की बेवफाई। ओरत बेवफा होती है।”
“तोते, तुम इतनी बढ़-चढ़कर बातें मत करो। सुनो मैं तुम्हें मर्दो की बेवफाई की एक और कथा सुनाती हूं।”
तोता बेचारा उसकी कथा सुनने के लिए मजबूर था। वरना वह उसे उस डाल पर से हटा देती।
मैना फिर कथा सुनाने लगी।-
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