लालची न्यायधीश – Kahani Hindi – हिंदी कहानी – Moral Stories

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एक बार एक धनी व्यक्ति अपने घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहा था | रास्ते में एक जंगल पड़ता था | वहां पहुंचते-पहुंचते धनी व्यक्ति को रात हो गई | वह रात गुजारने के लिए इधर-उधर निगाहें दौड़ाने लगा | उसे कुछ दूरी पर एक टूटी-फूटी झोपड़ी नजर आई |

वह झोपड़ी वाले के पास जाकर बोला – ” मैं एक व्यापारी हूं ! शहर जा रहा था, रास्ते में रात हो गई | क्या ? आप मुझे अपनी झोपड़ी में रात गुजारने देंगे |” उस व्यक्ति की बात सुनकर झोपड़ी वाला बोला – ” आप आराम से मेरी झोपड़ी में रात बिता सकते हैं | लेकिन घोड़ा आपको झोपड़ी के बाहर ही बांधना होगा |”

” ठीक है ! कोई बात नहीं, मगर कोई जंगली जानवर आकर परेशान ना करें | ऐसी जगह जरूर हो सेठ बोला |’

” हां-हां क्यों नहीं ! अरे आपके घोड़े से मेरी कोई दुश्मनी थोड़ी है | मैंने पालतू जानवरों को पालने के लिए एक बड़ा बना रखा है | वह चारों ओर से जंगली झाड़ियों से घिरे होने के कारण बिल्कुल सुरक्षित है | अपने घोड़े को आप उसी में बांध आये |” हाथ के इशारे से झोपड़ी वाले ने उस सेट को अपने जानवरों का बाड़ा दिखा दिया |बाड़े में घोड़े को बांधकर सेठ झोपड़ी में चला गया, और रात भर आराम से सोया | सुबह उठकर जब वह बाड़े में से अपने घोड़े को लेने गया तो ,उसे घोड़े की पूंछ गायब मिली | घोड़े की पूंछ को इस तरह गायब देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ | घोड़े की पूंछ आखिर कौन ले गया, वह मन ही मन सोच रहा था | तभी उसे एक कटीली झाड़ी में से घोड़े की पूंछ उलझती हुई नजर आई |

वह समझा कि घोड़े की पूंछ किसी प्रकार झाड़ी में फंस गई होगी, और उसे छुड़ाने की कोशिश में ही घोड़े द्वारा झटका मारने से उखड़ गई होगी |घोड़े की यह हालत देखकर वह बहुत दु:खी हुआ | वह बड़बड़ाता हुआ झोपड़ी के मालिक के पास जाकर गुस्से से बोला – “अरे ओ ! इस ठहराने से तो यही अच्छा था, कि तू ठहराने से इंकार कर देता |”

” क्या हो गया भाई ? मेरी भलाई का बदला इस प्रकार न चुकाओ | झोपड़ी के मालिक ने दुखी होते हुए कहा |”

” हुआ तेरा सिर ! मेरे घोड़े की कितनी सुंदर पूछी थी| देख उसका कैसे सत्यानाश हुआ | शायद मेरे घोड़े की पूंछ को काटने के लिए ही तूने यह कटीली झाड़ी का बाड़ा यहां बनवाया हुआ है | मैं तो न्यायाधीश के पास जाकर तेरे ऊपर मुकदमा दायर करूंगा |”

वह सेठ इस प्रकार कहकर अपने बिना पूछ के घोड़े पर सवार होकर चला गया |

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न्यायाधीश बहुत पाखंडी था | सदा धनवान व्यक्तियों के पक्ष में ही अपना निर्णय देता था | न्यायधीश का नाम सुनते ही झोपड़ी वाला भयभीत हो गया है | ” हे ईश्वर ! नेकी कर के मुझे तो मुसीबत उठानी पड़ रही है |” मन ही मन सोचता हुआ, वह आने वाली मुसीबत की प्रतीक्षा करने लगा

शाम को न्यायाधीश की अदालत से सुबह के लिए बुलावा आ गया | वह सुबह थके कदमों से न्यायधीश की अदालत की ओर चल दिया | रास्ते में वह सोचने लगा, कि अब काजी मुझे जरूर सजा देगा | इसलिए क्यों न उसे मजा चखाया जाए |

ऐसा सोचकर उसने तलवार की धार समान नुकीला कांच का टुकड़ा उठा लिया और अपने अंगोछे के पल्लू में बांध लिया कि अगर न्यायाधीश ने सही निर्णय नहीं किया तो इसका कॉच के टुकड़े से उसकी नाक काट डालूंगा |

यह सोचते हुए पहाड़ी से उतर रहा था, कि वह पहाड़ी से लुढ़क गया | नीचे एक सड़क थी, उस सड़क पर एक तांगे में एक बूढ़े बीमार को वैध के पास ले जाया जा रहा था | वह पहाड़ी से लुढ़क कर सीधा बुड्ढे के पैर पर जा गिरा | उसके गिरते ही उस बुड्ढे के प्राण पखेरु उड़ गए |

बुड्ढे के लड़के भी उसके साथ थे | उन्होंने उस झोपड़ी वाले को पकड़ लिया, और बोले – ” मनहूस क्या तुझे दिखाई नहीं दे रहा था ? हम तो अपने पिता का इलाज करवाने वैद्य के पास ले जा रहे थे, तू यमदूत के समान कहां से आ पड़ा और हमारे पिता के प्राण हर लिए | हम तुझे न्यायाधीश के पास सजा दिलवाएंगे |”

” सत्यानाश न होकर, सवा सत्यानाशी सही | मैं तो न्यायधीश की अदालत में ही जा रहा था |” दिल ही दिल में झोपड़ी वाला बड़बड़ाया और अपने अंगोछे मैं बंदे कांच के टुकड़े को टटोलकर देखने लगा |

अब तो मरे हुए बुड्ढे के लड़कों ने अपना तांगा न्यायधीश की अदालत की ओर मोड़ लिया और बड़बड़ाते हुए झोपड़ी वाले को गालियां देते रहे |

न्यायधीश की अदालत में पहुंचते ही झोपड़ी वाले पर सेठ वाला मुकदमा शुरू हो गया | तभी बुड्ढे के लड़कों ने अपनी पूरी कहानी कह सुनाई |

यह सुनकर न्यायधीश ने झोपड़ी वाले को गुस्से से घुरा | न्यायधीश के घूरने से वह डर से कांपने लगा और अंगोछे में बंधे कांच को टटोल कर देखने लगा |

अंगोछे में बंधी वस्तु को टटोलने का मतलब न्यायधीश अच्छी प्रकार जानता था | वह समझा कि वह अपराधी अपने अंगोछे में बंधी किसी वस्तु को रिश्वत के रूप में देने का प्रयास कर रहा है |

यह देखकर न्यायधीश कुछ देर मुकदमे को ध्यान से सुनने नाटक करता रहा | फिर उसने अपना फैसला सुनाया – ” घोड़े वाले सेठ वास्तव में घोड़े की पूंछ उखड़ने में झोपड़ी वाले का हाथ मालूम होता है | तुम ऐसा करो जब तक तुम्हारे घोड़े की पूंछ पहले की तरह नहीं उग आती, तब तक तुम इस घोड़े को झोपड़ी वाले को दे दो |”

न्यायाधीश का फैसला सुन सेठ ने अपना माथा पीट लिया | झोपड़ी वाले ने अपने पक्ष में फैसला सुना तो उसने सोचा कि कांच के टुकड़े से डरकर न्यायधीश ने उस के पक्ष में निर्णय सुनाया है | अब तो वह उस टुकड़े को और ज्यादा टटोलने लगा |

अब न्यायाधीश ने बुड्ढे के लड़कों से कहा – ” भाइयों ! पिताजी के मरने का मुझे दु:ख है, वह व्यक्ति जिसने आपके पिता की हत्या की है | आपके तांगे में बैठकर उसी पहाड़ी के नीचे से होकर गुजरने और आप चारों भाई एक-एक करके पहाड़ी से लुढ़क कर ऊपर गिरे तो क्या यह व्यक्ति बच पाएगा नहीं, कभी नहीं | इतना कहकर न्यायधीश ने अदालत समाप्त कर दी |

न्यायधीश के इंसाफ से झोपड़ी वाला बहुत खुश हुआ; किंतु सेठ और बुड्ढे के लड़कों का मुंह उतर आया |

सेठ जल्दी से उसके पास पहुंच कर बोला – ” मुझे क्षमा कर दो ! भाई घोड़े को अगर तुम ले लोगे तो मेरा बहुत नुकसान होगा | इसलिए तुम कुछ रुपए मुझ से लेकर सुलह कर लो |”

झोपड़ी वाले को भला इसमें क्या परेशानी थी | उसने कुछ रुपए लेकर सुला कर ली |

बुड्ढे के लड़के झोपड़ी वाले से गिड़गिड़ाते हुए बोले – ” भैया ! पहाड़ी से गिरकर तो हमारा दम ही निकल जाएगा | तुम हमसे भी रुपए लेकर इस झगड़े से हमारी जान छुड़ाओ |

उसने उस लड़को से भी काफी धन ले लिया, और न्यायधीश का शुक्रिया अदा करने पहुंचा |

” अरे शुक्रिया कैसा, यह तो तुम्हारे अंगोछे में बंधे कीमती रतन का कमाल है |” न्यायधीश कुटिलता से मुस्कुरा कर बोला | “ओ है ! तो यह बात है, तब तो आप चूक गए | यह न्याय करने वाला अनमोल रतन न होकर कांच का टुकड़ा है |” यह कहकर अंगोछे मैं बंधे कांच के टुकड़े को उसने न्यायधीश के आगे रखा और वहां से चल दिया.

” बेवकूफ तथा लालची न्यायधीश उसे जाता हुआ देखता रहा |”
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Written by lokhindi
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