Hindi Moral Story For Kids – कविता का चमत्कार – हिंदी कहानी
कविता का चमत्कार – Moral Story in Hindi
Hindi Moral Story For Kids
जोधपुर नगर में एक राजा राज्य करता था | वह बहुत ही दयालु तथा विद्या प्रेमी राजा था | उसके दरबार में विद्वानों का जमघट लगा रहता था | उसके दरबार में दूर-दूर से विद्वान आया करते और अपनी विद्या दिखाकर उचित पुरस्कार प्राप्त किया करते थे | राजा का कविता से विशेष लगाव था | कवि लोग अपनी योग्यता के अनुसार कविता सुनाते तथा पुरस्कार प्राप्त करते | कभी-कभी अयोग्य लोग भी कविता सुनाकर कुछ धन प्राप्त कर लेते थे |
राजा के दरबार से कोई भी विद्वान खाली हाथ नहीं लौटता था | इसलिए राजा सभी राजाओं में महाविद्या प्रेमी कहलाता था |
जोधपुर नगर से कुछ दूरी पर एक गांव था | उस गांव में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहा करता था | उसकी पत्नी ने विद्यापारखी राजा के विषय में सुना | उसे किसी ने बताया कि उसके यहां कोई भी ब्राह्मण खाली हाथ नहीं लौटता है | लाचार होकर एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति से कहा – ” अजी सुनते हो!
” कह क्या कहती है ? बहरा नहीं हूं |”
” आप भी गुनी राजा के पास जाओ | सुना है! उसके यहां सभी को हाथ-के-हाथ पुरस्कार प्राप्त हो जाता है | कोई भी निराश होकर नहीं लौटता है |”
” लेकिन भाग्यवान! वह राजा कविता का प्रेमी है | मैं तो ठहरा ब्राह्मण | मैं भला कविता कहना क्या जानू|”
उसकी पत्नी उसे समझाते हुए बोली – ” अरे कविता करना तो सबसे आसान काम है |”
” तू तो पागल है! कविता वही कर सकता है, जिसकी जुबान पर सरस्वती विराजित हो |”
उसकी पत्नी गुस्सा होते हुए बोली – ” व्यर्थ का दिमाग खराब करते हो | जाओ कोई तुकबंदी कर के दरबार पहुंचाओ | कुछ तो मिल ही जायेगा | जिसे कुछ दिनों के लिए दाल रोटी का प्रबंध हो जाएगा |”
इस प्रकार उसकी पत्नी उसे प्रतिदिन कहती रही | पंडित उसे बार-बार समझाता कि ” यह काम सरल नहीं है ” लेकिन नारी हट तो नारी हट होती है |
अंत में पंडित अपनी पत्नी की हट के आगे हार गया | वह बेचारा बिना कविता के ही राजा के दरबार में जाने की तैयारी करने लगा |
उसकी पत्नी ने बाजरे की रोटी बनाकर एक अंगोछे में रखकर उसे दे दी |
ब्राह्मण चल दिया | चलते-चलते दोपहर हो गयी | धूप बहुत तेज थी | ब्राह्मण को भूख भी लगने लगी |
वह एक तालाब के पास पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया | उसने अपने कंधे पर लटके अंगोछे को खोला | उसमें से बाजरे की रोटी निकाली | रोटी सूख गई थी | इसी कारण वह रोटी को पानी में भिगो-भिगो कर खाने लगा |
इसी बीच न जाने कहां से वहां पर एक कौवा आ टपका | वह कौवा बार-बार पानी में अपनी चोंच भिगोता और रगड़ता था |
बेचारा पंडित कवि नहीं था | किंतु फिर भी वह सारे रास्ते कविता बनाने की चेष्टा कर रहा था | लेकिन उसे कोई विषय ही नहीं सूझ रहा था | उसे कोई दर्शय-घटना भी नजर नहीं आ रही थी | जिसके आधार पर वह कविता बना सकता |
किंतु जैसे ही उसने कौवे को चोच रगड़ते देखा | वैसे ही उसके मन में पंक्तियां अचानक पैदा हो गयी | उसने तुरंत ही तुकबंदी करने की चेष्टा की –
” घिसता है फिर घिसता है, सम-सम गिरता पानी |
” तेरी मन की बात कालिया, सारी मैंने जानी ||”
ब्राह्मण खुशी से उछल पड़ा | वह सवयं से बोला – ” वाह! यह तो कविता बन गयी | अच्छी खासी कविता ” वह गर्व से फूले नहीं समाया |
वह वहां से सीधा राजा के दरबार में पहुंचा | एक बार फिर उसने अपनी कविता दोहरायी | मन-ही-मन कहा कि ” क्या शानदार कविता बनी है |”
राजा ने उसे बुलाया –
पंडित अपनी तुकबंदी की प्रशंसा करते हुए बोला – ” राजन! मैंने एक श्रेष्ठ रचना रची है | आप कहे तो मैं आपको सुनाऊं |”
” अवश्य पंडित जी ” राजा उसका सम्मान करते हुए बोला
पंडित जी ने अपना गला खखारा और कहना शुरू किया –
” घिसता है फिर घिसता है, सम-सम गिरता पानी |
” तेरे मन की बात कालिया, सारी मैंने जानी ||”
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राजा ने पंक्तियां सुनकर कहा – ” पंडित जी! इन पंक्तियों में कौन सी खास बात है | यह तो बिल्कुल अर्थहीन है |”
इस पर पंडित ने गुस्सा करते हुए कहा – ” राजन! हम जानते हैं कि आप बड़े कद्रदान है, किंतु मुझे निराशा ही हुयी | मेरी कविता महान है या नहीं | यह तो आपको समय ही बताएगा |”
राजा ने सोचा कि कहीं पंडित जी नाराज न हो जाये | इसलिए उन्हें कुछ धन देकर विदा कर दिया | पंडित दक्षिणा लेकर राजा को आशीर्वाद देकर चला गया |
कुछ दिनों बाद उस राज्य के मंत्री की राजा की ओर से नियत खोटी हो गयी | वह सोचने लगा कि – “क्यों न राजा को मारकर खुद राजा बन जाऊं |” इसके लिए उसने अनेक प्रकार के उपाय किये, किंतु वह सफल नहीं हो सका |
राजा ने अपनी सुरक्षा का खूब प्रबंध कर रखा था | मंत्री राजा को मारने की चाल-पर-चाल चलता, किंतु उसकी सारी चाले निष्फल हो जाती |
अंत में मंत्री ने एक षड्यंत्र रचा –
एक दिन राजा बैठा था | उसका नाई हमेशा की तरह राजा की दाढ़ी बनाने आया, किंतु उस दिन नाई को न जाने क्या हो रहा था | वह राजा की दाढ़ी नहीं बना रहा था | उसका हाथ बार-बार कांप जाता था |
वह बार-बार उसतरे को पानी में भिगोकर पत्थर पर उसकी धार को घिस रहा था | उससे घिस-घिस की आवाज़ आ रही थी | उस घिस-घिस ने राजा को पंडित की पंक्तियों को स्मरण करा दिया |
राजा कहने लगा –
” घिसता है फिर घिसता है, सम-सम गिरता पानी |
” तेरे मन की बात कालिया, सारी मैंने जानी ||”
संयोग से उस नाई का रंग काला था | लोग उसे कालिया कह कर पुकारते थे | उसने जैसे ही पंक्तियों को सुना वैसे ही वह है, पत्ते की तरह कांपने लगा | वह पसीने से भीग गया | नजरे जमीन पर चली गयी |
राजा समझ गया कि आज अवश्य ही कोई न कोई गड़बड़ तो है | वह नाई को डांटते हुए बोला – ” क्या बात है! तू इस तरह काम क्यों रहा है | अगर कोई भेद छुपाया है, तो जिंदा जमीन में गढ़वा दूंगा |”
नाई ने सोचा कि राजा मेरे मन की बात तो जान ही गया है | इसलिए वह राजा के पैर पकड़ कर बोला – ” अन्नदाता! मुझे क्षमा कर दीजिए | मेरा कोई दोष नहीं है | वैसे तो आप मेरे मन की सारी बात जान ही गये हैं | फिर भी मैं आपको सब कुछ बताऊंगा | मुझे दुष्ट मंत्री ने लालच देकर कहा – ” कि मैं आप की हत्या कर दूं, मैं आज आपकी गर्दन पर उसतरा चलाने वाला था, किंतु आप तो अंतर्यामी हैं | सब कुछ पहले ही जान गये | लेकिन अन्नदाता मैं नीरपराध हूं |”
राजा दुष्ट मंत्री की नीचता सुनकर आग बबूला हो गया | उसने तुरंत ही सेनापति को बुलाया और उससे कहा कि – ” मंत्री को गिरफ्तार करके लाया जाये |”
मंत्री को राजा के सामने लाया गया | मंत्री ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया |
राजा ने मंत्री को फांसी पर चढ़ा दिया | अब राजा को पंडित का ध्यान आया | उसने तुरंत ही रथ भेजकर सम्मान के साथ पंडित को बुलवाया | राज्यसभा में उसका सत्कार किया और उसे बहुत सारा धन तथा एक बढ़िया हवेली दी |
ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ हवेली में सुख से रहने लगा | दो पंक्तियों की तुकबंदी से उसके दिन फिर गये | इसलिए कहा गया है कि –
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