Kids Story in Hindi – तेजस्वी राजा – Best Story Collection
Kids Story in Hindi – तेजस्वी राजा – Kids Story in Hindi
Moral Stories / Kids Story in Hindi | Hindi Moral Stories
पुराने समय में एक राजा था |
वह जितना प्रभावशाली था, उतना ही तेजस्वी भी था |
उसकी तेजस्विता के सामने सूर्य का प्रकाश और चंद्रमा की चांदनी भी फिकी मालूम होती थी |
वह सदा अपराजित रहा | जीवन में कभी उसे कोई हरा नहीं पाया था |
उसकी पत्नी बहुत सुंदर थी |
एक दिन वह अपने कुलगुरू से मिलने गया | वहां उसने अपने कुलगुरु से पूछा – “ मान्यवर ! इस जन्म में, मैंने जो कुछ पाया है किस पुण्य के प्रताप के कारण मिला है | मैं यह जानना चाहता हूं, कि वह पुण्य क्या है |”
कुलगुरु ने पूछा – “ क्यों जानना चाहते हो, राजन !” कहकर वे राजा के चेहरे के भाव पढ़ने की चेष्टा करने लगे | “ इसलिये गुरुवर, ताकि मैं आगे उस पुण्य से भी ज्यादा पुण्य का काम कर सकूं और फल स्वरूप भविष्य में इस जन्म से भी अधिक धन और यश अरिजीत कर सकूं ” राजा ने बताया |
कुलगुरू मुस्कुरा दिये बोले – “ राजन ! वह पुण्य संतुष्टि था |”
“ क्या मतलब गुरुवर ”
“ सुनो राजन, पूर्व काल में एक स्त्री थी और तुम उस स्त्री के सेवक थे | वह स्त्री सदा शिव की आराधना में लीन रहती थी | यही उसका कर्म था, यही उसका धर्म |”
उसने एक बार पुष्कर में लवण चल का दान किया था | उसने सोने का एक वृक्ष भी बनवाया था | जिस पर सोने के फूल और देवी-देवताओं की स्वर्ण प्रतिमाएं लगवाई गयी थी |”
Kids Story in Hindi
Kids Story : Hindi Moral Stories – अपना दुख – Hindi Stories with Moral
“ यह वृक्षी देवताओं की सभी प्रतिमाओं से जड़ित होने के कारण सुंदर स्वच्छ था | वह स्त्री हर रोज उस वृक्ष पर जड़ी देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा करती थी | उस वृक्ष को बनवाने में तुमने निष्फल भाव से सेवा की थी |
जब इस काम में तुम्हें अतिरिक्त पैसे दिये जाने लगे, तो तुमने उन्हें लेने से इंकार कर दिया |”
“ तुम्हारा कहना था, कि यह तो धर्म का कार्य है | तुम्हारी स्त्री ने भी वृक्ष के फूलों और देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को चमकाने में निस्वार्थ भाव से मदद की थी |”
अत: इस जन्म में तुम्हें जो कुछ मिला है, उसी जन्म के पुण्य ओर संतुष्टि के कारण मिला है राजन !”
कुलगुरू कुछ देर के लिए रुके फिर वापस बोले – “ राजन ! उस समय तुम सामान्य व्यक्ति थे | अब तुम राजा हो, अन्न के पर्वत दान करो | जब तुम्हारे श्रमदान करने से तुम्हें इतना पुण्य मिल सकता है, कि तुम राजा बन सकते हो | तो अन्न के पर्वत दान करने से कितना फल मिलेगा | इसकी तुम सहज ही कल्पना कर सकते हो |”
कुलगुरु की बात राजा के समझ में आ गयी |
अगले ही दिन उसने उनकी आज्ञा का पालन किया |
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