Love Story Hindi | वासना की पुतली | किस्सा तोता-मैना
Love Story
तोता मैना के किस्से की रोचक दास्ता वासना की पुतली love story hindi में! वासना में भरी एक धोखेबाज़ पत्नी की और प्रेमिका की दास्ता हिंदी में
कैलाश और बीना की उम्र में काफी अन्तर था। कैलाश लगभग चालीस वर्ष का अधेड़ पुरुष था जबकि बीना केवल चौबीस वर्ष की युवती थी। मगर वक्त और हालात का कहर तो हमेशा गरीबों की झोंपड़ी पर ही टूटता है। बीना एक गरीब बाप की बेटी थी। वहां शराफत थी मगर दौलत नहीं थी।
बीना के पिता जब बेटी का विवाह उसके हम उम्र लड़के से न कर पाए तो हार कर उन्होंने अपनी बेटी की शादी कैलाश से कर दी। वह जानते थे कि कैलाश उनकी बेटी से उम्र में काफी बड़ा है। मगर बेटी के हाथ तो पीले करने ही थे। समाज का मुंह तो बन्द करना ही था।
धीरे-धीरे समय गुजरता चला गया और उनकी शादी हुए पूरे चार साल बीत गए। कैलाश के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। वह व्यापार करता था। बाजार में उसकी दुकान थी। कैलाश जहां बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा था वहीं बीना पर और अधिक निखार आता जा रहा था। सच बात यह है कि बीना पर जवानी छाती जा रही थी। वैसे भी पच्चीस से चालीस वर्ष तक की उम्र में नारी पर शबाब कुछ अधिक ही रहता है।
शायद कैलाश अपनी पत्नी बीना की इच्छा को पूरी नहीं कर पा रहा था। वह ललचायी नजरों से लोगों को देखा करती थी।
उसके पड़ोस में ही दीपक नाम का एक गायक रहता था। वह भरे-पूरे बदन का चौबीस-पच्चीस वर्ष का नवयुवक था। अभी दीपक का विवाह नहीं हुआ था।
दीपक शादियों में या इधर-उधर गीतों के प्रोग्राम किया करता था। कभी-कभी वह बीना की ओर देख लेता था। लेकिन उसने कभी यह नहीं सोचा था कि वह उससे किसी प्रकार के सम्बन्ध बनाए।
बीना का पति सुबह दस बजे अपनी दुकान पर चला जाता था। बीना घर पर अकेली रहती थी। आज बीना ने अपने पति के चले जाने के बाद एक बार बाहर निकलकर देखा। बाहर कोई भी नहीं था। सब लोग अपने कामों में लगे हुए थे।
दीपक के कमरे में से हारमोनियम की आवाज आ रही थी। वह शायद कोई धुन बना रहा था।
बीना ने अपना द्वार बन्द किया और तेजी से दीपक के घर की ओर चल दी और वहां जाकर एक पल के लिए दीपक के द्वार पर खड़ी हो गयी। वहां खड़े-खड़े उसने एक बार चारों ओर देखा और फिर धीरे से द्वार को अन्दर की ओर धकेला द्वार खुल गया। बीना अन्दर दाखिल हो गयी।
बीना पर दृष्टि पड़ते ही दीपक के हाथ रुक गए। हारमोनियम बन्द हो गया और वह अपने स्थान से उठकर खड़ा हुआ। उसके मुंह से स्वयं ही निकल पड़ा-
“आप और यहां?”
‘‘हां देवर जी।’ बीना ने रिश्ता जोड़ते हुए कहा–“आपके पास आने में कोई परहेज तो नहीं है?”
बीना को अपने कमरे में देखकर एक क्षण के लिए तो दीपक बौखला-सा गया था। फिर उसने अपने आप पर काबू किया और बोला “आप यहां किस लिए आयी हैं?”
“बैठने के लिए नहीं कहोगे देवर जी?”
“ब…ब…बैठो।’ दीपक ने हकलाते हुये कहा।
“तुम तो घबरा रहे हो।” बीना ने मुस्कराकर कहा–’मैं कोई हव्वा तो नहीं”
अब तक दीपक ने अपने आपको संयत कर लिया था।
उसने बीना को गौर से देखा। बीना काफी सुन्दर लग रही थी। जवानी से भरपूर बड़ी-बड़ी हिरणी जैसी आंखें। टमाटरी गाल । सुन्दर दन्त-पंक्तियां। आंखों में सुरमे का डोरा और नागिन जैसे काले लहराते बाल। कई पलों तक दीपक एकटक उसे देखता रह गया।
और फिर उसने बीना की ओर देखते हुए कहा-“अब बताओ, मेरी याद कैसे आई?”
“दीपक ।”
“जी।”
“तुम कैसे मर्द हो?” बीना ने कहा-“यह भी नहीं जानते कि कोई भाभी अपने देवर के पास अकेले में क्यों आती है?”
बीना की इतनी साफ बात सुनकर दीपक हक्का-बक्का रह गया। उसे इस बात की कतई आशा नहीं थी कि वह इस कदर साफ बात करके उसे अपने हुस्न की खुली दावत देगी। आप यह love story hindi लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
आवाज दोनों की धीमी थी।
दीपक तो बेचारा घबरा रहा था। उसे बीना की हिम्मत पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था। वह सोच रहा था कि यदि उसे किसी ने देख लिया तो वह क्या जवाब देगा?
दीपक ने उसे वहां से जल्दी से टरकाने का निश्चय किया।
“बीना जी।”
‘‘भाभी नहीं कह सकते क्या?”
“भाभी।”
“बोलो देवर जी ।”
आप यह बताइए कि आप मुझसे चाहती क्या हैं?”
‘‘बताऊं?”
“हां।”
बीना अपनी जगह से उठकर उसके करीब चली आई और अपने होंठ उसके अधरों पर रख दिए।
उफ्फ् …।।
दीपक तो जैसे पागल-सा हो गया था। उसके सारे बदन में चींटियां-सी रेंग गयी थीं। सारा बदन कंपकंपा गया था।
कई पल इसी स्थिति में गुजरे।
फिर अपने होंठों को उसके अधरों से हटाने के बाद बीना ने कहा-“जवाब मिल गया देवर जी?”
“भाभी।”
“बोलो।”
यह सब जो आप कर रही हैं क्या यह उचित है?” दीपक ने पूछा- “क्या किसी शादीशुदा स्त्री को यह सब शोभा देता है? ये तुम्हारा अपने पति के साथ विश्वासघात है।”
‘‘दीपक।”
“जी।”
“मैं तुम्हारे पास भाषण सुनने नहीं आयी हूं।” उसने कहा-“मैं तुमसे प्यार करती हूं। क्या शादीशुदा स्त्रियों को प्यार करने की इजाजत नहीं होती है?”
“होती है।” दीपक ने कहा-“उसका सारा प्यार उसके पति के लिए होता है। अब तुम जाओ भाभी। अगर तुम्हें यहां किसी ने देख लिया तो मैं और आप दोनों बदनाम हो जाएंगे। दुनिया कहती है- “बद अच्छा, बदनाम बुरा।”
“कुछ नहीं होगा।” बीना ने कहा-“तुम तो बेकार घबरा रहे हो।”
“यह बात नहीं है।’ दीपक ने कहा-“आदमी को अपनी इज्जत का ख्याल रखना चाहिए।’
दीपक की बातों की परवाह किए बिना ही बीना ने एक बार और उसके होंठों को चूमा और मुस्कराती हुई वहां से चली गयी।
दीपक ठगा-सा चुपचाप देखता रह गया। बीना जा चुकी थी।
दीपक बुरी तरह से डर गया था। वह सोच रहा था कि यदि किसी ने उन दोनों को बात करते हुए देख लिया तो वे बदनाम हो जाएंगे। अब इस स्थिति में वह क्या करे? ऐसी स्थिति से निकलने का क्या उपाय है?
वह हारमोनियम बजाना भूल गया था।
और बीना…?
वह बेहद खुश थी। उसे विश्वास था कि उसने जो हरकत कर दी है वह रंग अवश्य लाएगी।
वासना की पुतली Love Story Hindi
दो दिन बीत गए। कोई बात नहीं हुई।
तीसरे दिन दोपहर में जब सब लोग अपने-अपने दरवाजे बन्द करके सो गए थे, बीना दीपक के यहां जा पहुंची।
दीपक का द्वार बन्द नहीं था। कूलर चल रहा था और वह आंखें बन्द किए कोई गीत गुनगुना रहा था।
बीना ने धीरे से द्वार खोला था। वह चुपचाप आकर दीपक के बिस्तर पर जा बैठी।
दीपक हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसने बीना को अपने पास देखा तो घबरा गया और बोला-‘भाभी तुम यहां? तुम्हें यहां आते हुए किसी ने देखा तो नहीं? तुम जाओ यहां से।”
बीना ने उठकर अन्दर से कुण्डी बन्द कर दी।
दीपक बुरी तरह से घबरा गया और कहने लगा-“ये क्या कर रही हो?”
“अभी तो सिर्फ दरवाजा बन्द किया है।”
‘भाभी।”।
“बोलो देवर जी ।”
“अगर आप नहीं मानेंगी तो मैं आपके पति से आपकी शिकायत करूंगा।’
“बेवकूफ हो तुम?”
“क्यों…?”
“इसलिए कि मैं स्वयं तुम्हारे पास आयी हूं।” बीना ने कहा-“तुम क्यों घबरा रहे हो, जब मैं नहीं घबरा रही हूं। एक बात और याद रखो, अगर मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं अभी शोर मचाती हूं। मैं लोगों को इकट्ठा करती हूं। मैं कह दूंगी मुझे जबरदस्ती खींचकर द्वार बन्द कर लिया है और मेरी इज्जत लूट लेना चाहता है।”
दीपक को एकदम पसीना आ गया। उसने यह तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस तरह की हरकत भी कर सकती है।
उसने बीना की ओर दयनीय दृष्टि से देखते हुये कहा-“तुम चाहती क्या हो भाभी?”
“तुम्हारा प्यार।” उसने साफ-साफ कहा।
वह दीपक के पास बिस्तर पर बैठ गयी थी।
दीपक ने भी सोच लिया कि जब बीना स्वयं उसे प्रोत्साहित कर रही है तो जो होगा देखा जाएगा। भगवान जानता है कि वह बेकसूर है। वह स्वयं तो कोई पाप नहीं कर रहा। यह सोचकर उसने बीना को अपने करीब खींच लिया।
बीना के मन की मुराद पूरी होने लगी।
एक घंटे के बाद वह वहां से निकलकर चली गयी। रास्ता सुनसान पड़ा था। उसे किसी ने नहीं देखा था।
धीरे-धीरे दीपक को बीना के प्यार में वासना का चस्का लग गया था उसके बाद कभी वह बीना के घर पर आ जाता और कभी बीना उसके कमरे में आ जाती।
एक दिन किसी ने बीना के पति से कहा-‘‘कैलाश! तुम्हें कुछ खबर है। तुम्हारी बीवी क्या गुल खिला रही है?”
‘‘क्या…?”
“वह तुम्हारी अमानत में खयानत कर रही है?”
कैलाश को बहुत गुस्सा आया। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे ? एक बार तो जी में आया था कि उसकी अच्छी तरह से धुनाई करे। फिर उसने सोचा कि जो कुछ उसने सुना है वह सच न हुआ तो? दाल में कुछ काला अवश्य है। उसने स्वयं पता लगाने का निश्चय किया। उसे बताया गया था कि वह अक्सर दोपहर में दीपक के कमरे पर जाती है। आप यह love story hindi लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
कैलाश रोज दोपहर को आकर वहीं एक जगह छिप जाता था और दोपहर ढलने के बाद ही वापस दुकान पर जाता था। उसने बोना से कुछ नहीं कहा था।
हर रोज की तरह कैलाश आज भी दोपहर में घर के बाहर आकर एक जगह छिप गया। करीब एक घंटे के बाद उसने बीना को निकलकर जाते हुए देखा। वह सब कुछ देख रहा था। बीना ने एक बार चारों ओर देखा और फिर दीपक का द्वार खोलकर अन्दर घुस गयी।
दस मिनट बाद…। ।
कैलाश उसके द्वार पर आया। क्रोधावेश में उसका चेहरा लाल हो रहा था।
उसका जी चाह रहा था कि अपनी पत्नी और दीपक को गोली मार दे। लेकिन कैलाश ने अपने आप पर नियंत्रण रखा। वह जल्दबाजी में कुछ नहीं करना चाहता था। उसने कैलाश के द्वार पर जाकर द्वार खटखटाया।
‘‘क…कौन है?” अन्दर से दीपक की घबरायी हुई आवाज सुनायी दी। .
‘‘दरवाजा खोलो।’
बीना समझ गयी थी कि यह उसके पति की आवाज थी। उसने बहुत जल्दी अपने कपड़े ठीक किए।
दीपक ने भी अपने कपड़े ठीक किए।
बीना पलंग के नीचे दुबक गयी।
बाहर खड़ा कैलाश द्वार की दराज से सब कुछ देख रहा था। दीपक ने द्वार खोल दिया और बाहर खड़े कैलाश को देखकर उसका चेहरा पीला पड़ गया।
‘‘बीना! बाहर आ जाओ।” कैलाश की आवाज क्रोध से कांप रही थी।
बीना को बाहर आना पड़ा। उसका पूरा शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। चेहरा पीला पड़ गया था। उसने गर्दन झुका रखी थी।
“चलो।’ कैलाश ने इतना ही कहा।
बीना चुपचाप गरदन झुकाकर चल दी। वह रंगे हाथों पकड़ी गयी थी और उसकी हालत रंगे हाथों पकड़े जाने वाले चोरों जैसी थी। भगवान का लाख शुक्र था कि किसी ने उसे देखा नहीं था।
कैलाश बीना को लेकर घर आ गया। उसने बिना कुछ कहे सुने ही उस पर इण्डा बजाना शुरू कर दिया।
कैलाश ने बीना को जी भरकर पीटा। उसके शरीर में जगह-जगह निशान पड़ गए थे। वह रोती रही मगर कैलाश ने उसके रोने की कोई परवाह नहीं की। खूब तबीयत से पीट लेने के बाद कैलाश ने कहा- “याद रखना, यदि आज के बाद मैंने तुम्हें उसके साथ देखा या किसी से सुना तो मैं तुम्हें बिना सोचे समझे गोली मार दुगा।”
बीना चुपचाप एक ओर बैठ गयी। उसने भी मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो कुछ भी हो जाए। दीपक का साथ नहीं छोड़ेगी।
मगर दीपक ने पक्का निश्चय कर लिया था कि वह बीना से बिल्कुल बात नहीं करेगा। यदि वह आयी भी तो उसे दुत्कारकर भगा देगा। लगभग एक सप्ताह बाद बीना दीपक के कमरे में जा पहुंची और आते ही उसके गले में बांहें डाल दीं।
‘‘बीना।” ।
‘‘जी।”
“आप यहां से जाइये।” दीपक ने कहा- “मैं नहीं चाहता कि मेरी और आपकी बदनामी हो।’
‘‘दीपक।”
‘‘हां बीना।”
‘‘तुम क्यों चिन्ता करते हो?” बीना ने उसके गाल पर चुम्बन अंकित करते हाए कहा- ‘मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं अब उसके साथ नहीं रहूंगी। मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी। अगर तुम्हें यहां मेरे साथ रहने में परेशानी है तो यहां से भाग चलो।”
‘‘यह तुम क्या कह रही हो?’
“वही जो सच है।” बीना ने कहा- “मैं तुम्हारे साथ रहूंगी। तुम्हारी बनकर रहूंगी।”
‘नहीं बीना।” दीपक ने कहा-“ये ठीक नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता ना ही मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूं। समाज क्या कहेगा, लोग मेरे विषय में क्या सोचेंगे, यही न कि मैं एक गैर मर्द की औरत को लेकर भाग गया।”
“दीपक।”
‘‘हां बीना, मैं सच कह रहा हूं।”
“क्या मेरे प्यार में कोई कमी है?” बीना ने पूछा-“क्या मैंने तुम्हें दिल से प्यार नहीं किया है?”
”में कब इन्कार करता हूं।”
‘‘फिर ये वेरुखी क्यों?” बीना ने कहा- ”हसीन हूं। जवान हूं। तुम्हारी उम्र हैं। जब में नहीं घबरा रही हूं तो तुम क्यों घबराते हो? तुम्हारे साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम करूंगी। हम दोनों मिलकर अपनी दुनिया बसाएंगे।”
दीपक अजीब पशोपेश की स्थिति में था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस अवस्था में वह क्या करे ?
बीना ने उसकी ओर देखते हुए कहा- ‘‘बोलो दीपक, क्या सोच रहे हो?”
‘‘बीना।” दीपक ने कहा- “मुझे इस विषय में सोचने का कुछ समय ना दो।”
”सोच लो।” कहकर वह चली गयी।
दो दिन बाद फिर बीना उसके पास आयी और बोली- ”चलो आज भाग चलें ।’
कुछ क्षण दीपक सोचता रहा और अपने आपको हालात के हवाले करते हुए कहा ”ठीक है, तुम स्टेशन पर मिलना, में शाम को पांच बजे वहीं मिलूंगा।”
दीपक के मुंह से यह शब्द सुनकर वह खुशी-खुशी वहां से चली गई । घर जाकर वह अपनी तैयारी करने लगी। उसने घर से सब नगदी और जेवर ब्रीफकेस में रख लिया था। वह चार बजे अपने घर से निकली। उसने घर से निकलते वक्त मेज पर एक पचा लिखकर रख दिया था। उसमें लिखा था–
बीना को किसी ने देखा नहीं था। अगर देखा भी होता तो किसी को क्या मतलब था। बीना टैक्सी में बैठकर स्टेशन पहुंच गयी। उस समय साढ़े चार बजे थे। गाड़ी का टाइम साढ़े पांच बजे का था। पांच बजे दीपक भी स्टेशन पर आ गया था। दीपक ने दो टिकट खरीद लिए थे। साढ़े पांच बजे गाड़ी आयी और ये दोनों सवार होकर चल दिए।
वासना की पुतली Cheat Love Story in Hindi
गाड़ी दौड़ रही थी।
रात को जब कैलाश घर पहुंचा तो उसने बाहर से द्वार बंद पाया। ताला लगा हुआ था। उसके पास दूसरी चाबी थी। उसने द्वार खोला लेकिन उसकी समझ में यह नहीं आया कि उसका द्वार बन्द क्यों है? बीना इस समय कहां जा सकती है?
उसने सोचा हो सकता है अपने घर चली गयी हो । द्वार खोलकर वह अन्दर पहुंचा और उसने बटन दबाकर बल्व जलाया। सामने मेज पर रखे हुए कागज पर उसकी नजर पड़ी। उसने आगे बढ़कर वह कागज उठाया और उस एक ही सांस में पढ़ गया। उसका दिमाग खराब हो गया।
काफी देर के बाद वह अपने आपको आश्वस्त कर पाया। फिर वह सामान्य हो गया।
वह सोच रहा था–“एक तरह से अच्छा ही हुआ। बदजान औरत से पिण्डा टूट गया। वह किसी दिन उसे मरवा भी सकती थी। कहते हैं ना कि ‘त्रिया चरित्र जाने ना कोय, खसम मारके सती होय ।’ कैलाश चुपचाप बैठ गया। उसने पुलिस में खबर करना भी उचित नहीं मझा। वह उस औरत को पाना ही नहीं चाहता था। यदि वह आ भी गयी तो फिर उसी तरह के काम करेगी। बदनामी से तो मर जाना कहीं अच्छा है।”
उधर…।
दीपक और बीना एक नगर में पहुंच गए। बड़े नगर के स्थान पर उन्होंने एक छोटे नगर में रहना अधिक उचित समझा था। दो दिन की भाग-दौड़ के बाद उन्हें एक मकान मिल गया। किराया अधिक नहीं था।
उन दोनों की उम्र लगभग बराबर थी। पति-पत्नी की तरह लगते थे इसलिये किसी को यह शक नहीं हुआ था कि वे पति-पत्नी नहीं हैं। वे आराम से रहने लगे।
एक सप्ताह तक दीपक ने समाचार पत्र प्रतिदिन देखे। वह यह जानना चाहता था कि बीना के पति ने कोई रिपोर्ट आदि करायी है या नहीं? पेपर में अभी तक इस प्रकार की कोई खबर प्रकाशित नहीं हुई थी।
फिर वे दोनों अपने काम में लग गए।
बीना अपने साथ काफी नगदी व जेवर भी लाई थी। इसलिए फिलहाल उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।
दीपक होटलों के चक्कर लगा रहा था ताकि उसे गाने का काम मिल जाए।
बीना इस तरह की स्त्री थी कि जो किसी एक की बनकर नहीं रह सकती थी।
वहां आकर उसने गली के एक पहलवान टाइप यवक को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। दीपक तो काम की तलाश में निकल जाता था। उसे इस बात की सपने में भी आशा नहीं थी कि बीना उसके साथ भी विश्वासघात कर सकती है। आप यह love story hindi लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
जो नारी अपने पति को छोड़कर उसके साथ आयी थी, वह भला उसके विषय में यह कैसे सोच सकता था कि वह उसे धोखा दे सकती है। लेकिन अगर इस बात को इस तरह से लिया जाए कि जो औरत अपने पति की न हुई वह प्रेमी की क्या होगी।
और उसने दो महीने में ही उसे धोखा दे दिया। वह उस पहलवान टाइप युवक अमर की बांहों में आ गयी।
अमर ने प्रस्ताव रख दिया था कि यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ शादी करने को तैयार हूं। यह सब इसलिए हुआ था कि बीना ने उसकी बांहों में आते ही बता दिया था कि दीपक उसका पति नहीं है बल्कि वह उसे भगा लाया है। यहां भी बीना ने झूठ बोला था, क्योंकि हकीकत यह थी कि उसी ने दीपक को भाग चलने के लिए प्रेरित किया था। दीपक ने उसे नहीं भगाया था बल्कि वह दीपक को भगा लाई थी।
इसीलिए अमर ने शादी का प्रस्ताव रख दिया था और स्वेच्छा से बीना ने स्वीकार कर लिया था।
शाम को जब दीपक दिन भर की भाग-दौड़ के बाद वापस घर आया तो उसने बीना के पास अमर को बैठा हुआ पाया।
उसे देखकर दीपक ने कहा-“बीना, ये यहां क्यों बैठा है?”
“दीपक।’ बीना ने कहा-“मैं अमर के साथ शादी कर रही हूं।”
“ओह!”
“हां दीपक।” ।
“बीना।’ दीपक ने कहा-“मैं पागल था जो तुम्हारी बातों में आ गया और अपना बना बनाया काम छोड़कर यहां आ गया। मैंने यह नहीं सोचा कि जो औरत अपने पति की नहीं हुई वह मेरी क्या होगी। तुम जैसी औरतों को या तो गोली मार देनी चाहिए या किसी वेश्या के कोठे पर ले जाकर बैठा देना चाहिए।’
“दीपक।” अमर ने कहा-“अब तुम जाओ और अपना काम करो।”
“अमर।”
“दीपक, अब मैं तुम्हें अपने सामने एक पल भी सहन नहीं कर सकता। मैं तो जा रहा हूं।” दीपक ने कहा-“मगर एक बात याद रखना कि यह वासना की पुतली तुम्हारी भी बनकर नहीं रह सकेगी। उस दिन जब ये तुम्हें धोखा देकर किसी और की बांहों में चली जाएगी तब तुम्हें भी मेरी तरह से अपनी भूल का अहसास होगा। वासना की पुतली को कोई मर्द खुश नहीं कर सकता। अच्छा बीना, मुझसे जो गलती हुई हो उसे माफ करना। अमर तुमसे मुझे कोई शिकायत नहीं है।”
और इन शब्दों के साथ ही दीपक अपना गिटार उठाकर वहां से चल दिया।
उसे कोई विशेष दुःख नहीं था। जल्दी ही दिन निकल आया था। कहते हैं न कि यदि सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।
दीपक तो वापिस अपने शहर में आकर अपने काम में लग गया।
करीब दो साल के बाद एक दिन दीपक ने समाचार पत्र में पड़ा कि अमर की पत्नी बीना अपने नये प्रेमी जयदेव के साथ भाग गयी। उस समाचार को पढ़कर दीपक मुस्कराया। वह स्वयं ही बड़बड़ाया–“ये तो होना ही था।’
एक पल चुप रहने के बाद तोते ने कहा-“मैना! सुन रही हो ना?”
“हां तोते।”
“तुमने देखा, उस वासना की पुतली ने अपने पति को धोखा दिया और फिर लगातार अपने प्रेमियों को धोखा देती चली गयी। उसके सब प्रेमियों ने उस पर अपनी जवानियां कुर्बान कीं। मगर वह किसी की न हो सकी।”
फिर कुछ क्षण चुप रहने के बाद तोते ने कहा-“अब तुम्हें पता चला कि औरतों की जात कितनी बेवफा होती है।”
“तोते।”
“बोल मैना।”
“लगता है तुम मुझे आज की रात सोने नहीं दोगे।”
“क्यों भला?”
“मैं तुम्हें मर्दो की बेवफाई की एक और कथा सुनाती हूं।”
“अगर तुम सुनाना चाहती हो तो सुनाओ, मैं सुनूंगा, हालांकि मुझे नींद आ रही है।”
“यहां तो तुम वैसे भी नहीं सो पाओगे।”
“क्यों भला?” ।
“मैंने बताया न कि मर्दजात से मुझे सख्त नफरत है।”
“ओह!”
“खैर तुम कहानी सुनो।”
“सुनाओ।” ।
और तोते ने अपना पूरा ध्यान मैना की कहानी की ओर लगा दिया।
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