महाराज रणजीतसिंह History – Ranjit Singh Biography Hindi
महाराज रणजीतसिंह History
-महाराज रणजीतसिंह का इतिहास / Maharaja Ranjit Singh in Hindi। महाराज रणजीतसिंह का जीवन परिचय – महाराज रणजीतसिंह की History और कहानी हिंदी में !
पहले पंजाब में सिक्खों का कोई राज्य नहीं था। वे छोटे-छोटे दलों में बँटे थे। इन दलों को ‘मिसल’ कहते थे। प्रत्येक मिसल का एक सरदार होता था। मिसलों के अतिरिक्त अकालियों का दल था जो गुरुद्वारों का प्रबन्ध करता था।
रणजीत सिंह के पिता महानसिंह ‘सुकर चकिया’ नाम की ‘मिसल’ के सरदार थे। रणजीतसिंह ने बचपन में ही युद्ध को शिक्षा पायी थी। पिता के बाद वे अपनी मिसल के सरदार हुए। धीरे-धीरे और कई मिसलों पर उन्होंने अधिकार कर लिया। 1779 ई० में वे लाहौर के राजा बन गये। अमृतसर पर भी उनका अधिकार हो गया।
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रणजीतसिंह बड़े ही नीतिज्ञ नरेश थे। उन्होंने अपनी सेना में यूरोपीय अफसर रखे। सेना को नये हथियार दिये। अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति को वे पहचान गये थे। भारत का मानचित्र देखकर उन्होंने कहा था-‘एक दिन यह सब लाल हो जायेगा।’ अंग्रेजों से उन्होंने संधि कर ली।
सतलज नदी उनके और अंग्रेजों के राज्य की सीमा मानी गयी। इस संधि के बाद उन्होंने मुलतान, पेशावर और काश्मीर तक का प्रदेश जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। पश्चिमोत्तर सीमा पर मुसलमानों ने विद्रोह अवश्य किया; किंतु उनको सरदार हरिसिंह नलवा ने दबा दिया। रणजीतसिंह ने नलवा को पेशावर का सेनापति बना दिया। वाइसराय लार्ड वटिंक ने सतलज नदी के किनारे भेंट की। इस भेट के फलस्वरूप अंग्रेजों तथा रणजीतसिंह में एक व्यापारिक संधि हुई।
रणजीतसिंह के मुखपर चेचक के दाग थे। शीतला ने उनकी एक आँख ले ली थी। वे पढ़े-लिखे भी नहीं थे। लेकिन बड़े ही योग्य शासक थे। उनकी स्मरण शक्ति विलक्षण थी। अपने वीर शत्रुओं का वे आदर करते थे। उनके उदार व्यवहार के कारण शत्रु भी मित्र बन जाते थे। वे स्वयं सादे ढंग से ही रहते थे। उनके शासन में धार्मिक पक्षपात तनिक भी नहीं था।
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घुड़सवारी और तलवार चलाने में रणजीतसिंह बहुत निपुण थे। वे इतने रोबीले थे कि उनके मुख की ओर देखने का साहस किसी को कदाचित् ही होता था। कोहिनूर हीरा शाहशुजा ने उनके आतंक से ही उन्हें भेंट किया था।
1839 ई० में महाराज रणजीतसिंह की मृत्यु हुई। उनके बाद ही उनका स्थापित सिक्ख राज्य अस्त-व्यस्त हो उठा। लेकिन सिक्खों में जो एकता, संगठन एवं साहस उन्होंने भर दिया था, उसका लाभ तो पर्याप्त समय तक उन्हें प्राप्त हुआ।
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