Moral Stories in Hindi For Class 8 – जादुई परियां

Moral Stories in Hindi For Class 8- जादुई परियां

Moral Stories / Moral Stories in Hindi For Class 8

किसी गांव में एक लकड़हारा अपने परिवार के साथ रहता था | उसका नाम धनु था | धनु आस-पास के जंगल से

लकड़ियां काटकर बेचता और अपने परिवार का पेट पालता था |
किंतु अब वे सब जंगल, वन ठेकेदारों ने खरीद लिए थे | जिससे धनु को अपने परिवार का पालन-पोषण करने में कठिनाई होने लगी थी |
उसके परिवार को कई बार भूखा ही सोना पड़ जाता था | इस बात से वह और उसकी पत्नी बेहद परेशान रहने लगे थे |

एक दिन धनु की पत्नी ने उससे कहा – “ ऐ जी, ऐसे तो हमारे बिल्कुल भूखे मरने के दिन आ जाएंगे | तुम कुछ और काम ही करना शुरू कर दो |”
“ हां भाग्यवान, कह तो तुम ठीक रही हो | लेकिन हमारे गांव में तो और कोई काम भी नहीं है जिसे मैं कर सकूं |” धनु ने बड़ी मासूमियत से अपनी पत्नी से कहा |

“ मेरी समझ में एक बात आ रही है जी, कि तुम शहर चले जाओ | वहां तो कोई-ना-कोई काम अवश्य मिल जाएगा |” पत्नी ने उसे सलाह दी |
“ तुम ठीक कहती हो, भाग्यवान | अब मुझे ऐसा ही करना पड़ेगा |”

फिर दूसरे दिन धनु की पत्नी ने सात रोटियां नमक-मिर्च लगाकर बनाई और अपने पति को देते हुए बोली – “ यह सात रोटियां है, इनमें से तुम रोज एक रोटी खाया करना | इस तरह यह सात रोटियां सात दिन चलेगी | तीन दिन तुम्हें शहर जाने में लगेंगे और शहर जाकर अगले चार दिनों में तुम्हें कोई-ना-कोई काम जरूर मिल जाएगा | शहर जाकर तुम खूब मेहनत करके काम करना और अपने परिवार के लिए खूब सारे पैसे कमाकर लाना | तब तक घर को मैं अपने आप संभाल लूंगी | तुम घर की तरफ से बिल्कुल चिंतित ना होना |”
“ ठीक है! भाग्यवान, जैसी तुम्हारी मर्जी |”
कहकर धनु अपनी पत्नी से रोटी लेकर शहर की ओर चल दिया, शहर जाने का रास्ता घने जंगल से होकर जाता था  |
घने जंगल को पार करता-करता शाम को जब धनु थक कर चूर हो गया तो वह एक घने वृक्ष के नीचे बैठ गया और रोटियां की पोटली खोलने से पहले अपने आप से बोला – “ यह सात हैं, एक को आज खाऊंगा | आज मंगलवार है, एक को कल बुधवार को खाऊंगा, तीसरी को बृहस्पतिवार को खाऊंगा, चौथी को शुक्रवार को, पांचवी को शनिवार को, छठी को इतवार को और सातवी को सोमवार को खाऊंगा | इस प्रकार सब खत्म हो जाएंगी |”

भाग्यवस जिस वृक्ष के नीचे बैठा धनु यह बातें कर रहा था | उसी वृक्ष पर सात नन्ही-नन्ही परियां विश्राम कर रही थी |
उन्होंने जब लकड़हारे की बातें सुनी तो वे डर गई और सोचने लगी “ यह आदमी तो हम को खा जाएगा |”

वे वृक्ष से नीचे उतरी और हाथ जोड़कर धनु के सामने खड़ी हो गई |
उनको अपने सामने खड़े होते हुए देखते ही धनु की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई |

उसने देखा कि सात परियो जैसी सुंदर कन्याएं उसके सामने हाथ जोड़ कर बैठी हैं | अंतर केवल इतना था कि उन कन्याओं के पंख नहीं थे, वरना वो अपने रूप सौंदर्य में परियों से कम नहीं थी |

धनु ने स्वयं को शांत किया फिर बोला – “ तुम कौन हो और इस घने जंगल में क्या कर रही हो |”
तब उन सातों में से एक ने उत्तर दिया – “ हे मानव! वास्तव में हम परियां है, हमने इंद्रलोक में कुछ शैतानी कर दी थी | जिस कारण हमसे हमारे पंख छीन लिए गए और हमें एक महीना पृथ्वी पर बिताने की सजा दी गई है | हम दिनभर जंगल में नाचती-कूदती रहती हैं और रात में इस वृक्ष पर आकर आराम करती हैं | मेहरबानी करके हमें मत खाइये | अगर आपको कोई कष्ट हो तो आप हमें बताओ, हम आप की सहायता अवश्य करेंगी |”

उनकी बात सुनकर धनु पहले तो हैरान हो गया फिर धीरे-धीरे उसकी समझ में आ गया |
फिर उसने अपनी गरीबी की हालात बताते हुए कहा कि – “ वह शहर में नौकरी करके कुछ धन कमाने के उद्देश्य से जा रहा है |”

धनु की गरीबी की हालत सुनकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ | तब उस परी ने उसको पीतल की एक पतीली दी और कहा – “ हे मानव! तुम इस पतीली को लो और अपने घर लौट जाओ | जब भी भूख लगे इस पतीली में पानी भरकर  जलते हुए चूल्हे पर चढ़ा देना | चढ़ाते हुए जो तुम खाना चाहते हो वही अपने मुंह से कह देना तो पतीली में वही भोजन बनकर तैयार हो जाएगा | इस प्रकार तुम्हारा परिवार कभी भूखा नहीं रहेगा |”

परी की आश्चर्यजनक बात सुनकर धनु लकड़हारे को अचंभा हुआ | उसने वह पतीली अपने हाथों में ली और परियों को धन्यवाद दिया |

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फिर वे परियां तो पुन: उसी वृक्ष पर चढ़ गई और धनु वापस अपने घर की तरफ चल दिया |
रास्ते में उसे रात हो गई, फिर उसने सोचा कि “ अब क्या किया जाए |”
परंतु जल्द ही उसे वहां एक छोटी सी झोपड़ी दिखाई दी | धनु ने रात वही बिताने की बात सोचकर झोपड़ी की तरफ कदम बढ़ा दिए |

उस झोपड़ी में एक बुढ़िया रहती थी | धनु ने उससे वहां रात गुजारने की अनुमति मांगी |
बुढ़िया ने धनु को वहां ठहरने की अनुमति देकर अंदर बैठने को कहा और फिर वह उससे इतनी रात गऐ आने का कारण पूछने लगी |

तब सीधे-साधे धनु लकड़हारे ने अपनी सारी कहानी सुना दी |

धनु की कहानी सुनकर जंगल में पड़ी बुढ़िया के मन में लालच जाग उठा |
उसने सोचा कि लकड़हारे की पतीली चुरा ली जाए, तो वह आराम से अपनी जिंदगी गुजार सकती है |
अतः जब धनु लकड़हारा सो गया, तो बुढ़िया ने उसी पतीली जैसी एक अन्य पतीली रख दी और फिर वह खुद भी सो गई |

सुबह उठकर धनु ने दूसरी पतीली उठाई और बुढ़िया से विदा लेकर वह अपने घर की ओर चल दिया |
वह खुश होता हुआ अपने घर जा रहा था |

जब वह घर पहुंचा तो उसकी पत्नी की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा | उसने तो अपने पति को सात दिन का खाना बना कर दिया था और शहर जाकर कुछ कमाकर लाने के लिए उससे कहा था | परंतु वह तो दूसरे दिन ही वापस लौट आया था |

तब उसने आश्चर्यचकित होते हुए अपने पति से पूछा – “ क्यों जी, मैंने तो तुम्हें सात रोटियां सात दिन के लिए बना कर दी थी और तुम दूसरे दिन ही वापस लौट आए | क्या हम इसी तरह भूखे मरते रहेंगे |”

पत्नी के गुस्से को देखकर धनु ने उसे मजे लेकर सारी कहानी सुनाई और पतीले में पानी भरकर चूल्हे पर चढ़ाने को कहा –
पत्नी ने उसकी आज्ञा का पालन किया | उसने चूल्हे में आग लगाई और धनु चूल्हे के पास बैठ गया |
उसका मन दाल-चावल खाने को कर रहा था | चूल्हे पर पतीली रखते समय उसने यही कह दिया |
फिर परिवार के सारे सदस्य चूल्हे के पास आकर बैठ गए |

काफी देर तक पतीली में पानी उबलता रहा | वह उबल-उबलकर कम होता जा रहा था | लेकिन पतीली में दाल-चावल का कहीं नामो-निशान नहीं था |
बहुत देर तक जब यही सब कुछ चलता रहा तो उसकी पत्नी ने कहा – “ ऐ जी, अब तो बहुत देर हो चुकी है | कहीं दाल-चावल पतीली में जल न जाएं | कहो तो मैं चूल्हे से पतीली उतार लूं |”

“ हां भाग्यवान, अब तो काफी देर हो चुकी है | तुम पतीली को चूल्हे से नीचे उतार लो |”
और जैसे ही धनु की पत्नी ने पतिली को पकड़कर चूल्हे से नीचे उतारी तो उसमें दाल-चावल तो दूर पहले जितना पानी भी नहीं था |

यह देख कर धनु बहुत शर्मिंदा हुआ |
उसकी पत्नी ने कहा कि – “ अब वह सीधा शहर ही जाए, रास्ते में किसी के चक्कर में ना पड़े |”
धनु यह सोचकर कि परियों ने उसके साथ धोखा किया है | क्रोध में भरकर अगले दिन फिर शहर की ओर चल दिया |

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अपनी पत्नी से उसने यही कहा कि “ इस बार वह शहर ही जाएगा |”
लेकिन धनु मारे गुस्से के उसी वृक्ष के नीचे पहुंचा और वहीं बैठकर उसने वही शब्द दोहराए |
उसकी आवाज सुनकर वे परीया फिर से वृक्ष से नीचे उतरी उससे पूछने लगी – “ पतीली का क्या हुआ |”

तब धनु ने आक्रोशित होकर पतीली के विषय में सब कुछ बताया |
धनु लकड़हारे की बात सुनकर उन्होंने उसे इस बार एक हाथ की चक्की दी और बताया की “ चक्की में बिना गेहूं डाले भी अगर वह आटा निकलना चाहे तो निकाल सकता है और यदि उससे बनी बनाई रोटियां निकालना चाहेगा तो वह भी उस चक्की में से निकाल सकता है |”

धनु ने परियों से चक्की ली और फिर पहले की तरह अपने गांव की तरफ बढ़ चला |
रास्ते में उसे फिर रात हो गई | घना जंगल होने के कारण वह उस समय आगे नहीं बढ़ सकता था | इसलिए फिर उसी बुढ़िया की झोपड़ी में रात बिताने के उद्देश्य से ठहर गया |

उस रात बुढ़िया ने उसकी अच्छी आव-भगत की | अच्छे-अच्छे पकवान खिलाए और फिर उसने उससे आने का कारण पूछा |

सीधे-साधे धनु लकड़हारे ने फिर अपनी कहानी उस बुढ़िया को सुना दी | बुढ़िया ने पहले की तरह ही धनु की चक्की चुराकर वैसी ही दूसरी चक्की रख दी |

धनु सुबह को उठा | बुढ़िया से विदा ली और फिर चक्की उठाकर खुशी-खुशी अपने गांव की तरफ चल दिया |

और जैसे ही धनु अपने घर पहुंचा तो उसे देखकर उसकी पत्नी आग बबूला होते हुए बोली – “ लगता है, तुम फिर किसी की बातों में आकर शहर काम ढूंढने नहीं गए |”

धनु ने अपनी पत्नी के गुस्से को ठंडा करके, फिर उस चक्की के विषय में बताया और चक्की चलाने लगा |
भला चक्की चलाने पर उसमें से क्या निकलने वाला था | कुछ नहीं निकला उसमें से |

धनु की पत्नी को यह देखकर फिर गुस्सा आ गया | वह बोली – “ लगता है, तुम्हारे साथ फिर कोई दिल्लगी कर रहा है और तुम्हें मूर्ख बना रहा है | अब तक तो तुम शहर भी पहुंच गए होते | जाओ मेरा कहना मानो, शहर जाओ और इस बार पतीली और चक्की की जादू की कहानियां साथ लेकर नहीं लौटना | बस शहर जाना और कुछ कम आकर हि आना |”

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धनु लकड़हारा फिर गुस्से में भर गया | फिर जंगल में उसी वृक्ष के नीचे पहुंचकर चिल्लाने लगा |
“ आज मैं तुम सातों को जरूर खाऊंगा, क्योंकि तुमने मुझे मूर्ख बनाया है | अब मैं तुम्हें हरगिज़ नहीं छोडूंगा |”

उसकी आवाज सुनकर वे सातो परिया वृक्ष से नीचे आई और उसके सामने हाथ जोड़कर बैठी तथा बोली – “ हे मानव! हम भला तुम्हें मूर्ख क्यों बनाएंगी | हमने तुम्हें जो दोनों चीजें दी थी | उसमें जादू की शक्ति थी | लगता है, तुम्हारे साथ कोई और धोखा कर रहा है | अच्छा तुम एक बात बताओ तुम यहां से सीधे अपने घर जाते हो या रास्ते में कहीं रुकते हो | हमें ठीक-ठीक पूरी बात बताना |”

तब धनु लकड़हारे ने दोनों दिन बुढ़िया की झोपड़ी में रात बिताने की बात बताई |

तब परियों ने कहा – “ हे मानव! हमें लगता है, वह बढ़िया लालची है और वही तुम्हें धोखा दे रही है | अब तुम ऐसा करो, हम तुम्हें एक डंडा दे रहे हैं और उस बुढ़िया के झोपड़े में जाकर डंडे से कहना कि ‘ जिसने भी तुम्हारी पतीली और चक्की चुराई है | उसको पीटना शुरू कर दो ’ चाहे वह बुढ़िया हो या अन्य फिर डंडा उसे तब तक पीटता रहेगा | जब तक तुम्हारी दोनों चीजें नहीं मिल जाती |”

डंडा लेकर धनु फिर वहां से चल दिया तथा पहले की तरह आज भी वह बुढ़िया की झोपड़ी में गया |
तब बुढ़िया के पूछने पर धनु ने जवाब दिया – “ जादू की चीजें लाने का क्या फायदा, क्योंकि जब मैं उन्हें अपने घर ले जाता हूं तो वह काम नहीं करती | लगता है, मुझे अपने दिन गरीबी में ही काटने पड़ेंगे |”

फिर बुढ़िया ने उससे आगे कुछ नहीं पूछा और दोनों झोपड़ी में सो गए |
सुबह उठकर धनु लकड़हारा अपने घर जाने के लिए तैयार हुआ तो बढ़िया उसे विदा करने बाहर तक आई |
तब धनु ने डंडे को अपने हाथ में लेकर कहा – “ हे मेरे प्यारे डंडे! जिसने मेरी चीजें चुराई हैं, तू उसकी पिटाई शुरू कर दे |”

फिर क्या था बस | धनु का इतना कहना था कि वह डंडा उस बुढ़िया पर दना-दन बरसने लगा |
बुढ़िया भागकर जिधर भी जाती | ठंडा उसकी पिटाई करता हुआ, उसके पीछे-पीछे जाता |

बुढ़िया धनु के पैरों में गिर पड़ी और बोली – “ बेटे ! दोनों चीजें मेरे पास है | तुम उन्हें ले जाओ, मगर अपने डंडे को रोको |
फिर धनु लकड़हारे ने डंडे को रोका और बढ़िया से अपनी पतीली तथा चक्की लेकर अपने घर चला गया |
फिर अपने घर में जाकर उसने जादू के उन दोनों वस्तुओं का कमाल अपनी पत्नी को दिखाया | जिससे उसकी पत्नी और बच्चे बेहद खुश हुए | अब वे आराम से अपना जीवन व्यतीत करने लगे |

शिक्षा – “ धोखा, फरेब, दगाबाजी यदि कोई व्यक्ति करता है तो ईशवर उस व्यक्ति को इसी दुनिया में इसकी सजा देता है | उनका अंजाम अच्छा नहीं होता | जिस प्रकार भोले-भोले धनु लकड़हारे को उस बुढ़िया ने धोखा दिया और  उसको अपनी करनी का फल यहीं मिल गया |”

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Written by lokhindi
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