बुद्धिमानी Moral Story – शिक्षाप्रद कहानी हिंदी में
बुद्धिमानी Moral Story
– शिक्षाप्रद कहानी हिंदी में। ठगपुर गांव के ठगों की एक अनोखी कहानी/ (बुद्धिमानी Moral Story) Hindi Moral Kahani
गाँव का नाम था ठगपुरा। गाँव का बच्चा-बच्चा जैसे माँ के पेट से ठगी सीख कर आया था । ठगी के काम से गाँव का कोई भी इन्सान खुद को बचा ना सका था। उसी गाँव में नन्दू के चाचा भी रहते थे। ठगपुरा में रहने कारण नन्दू के चाचा भी इस ठगी की संज्ञा से बच न सके थे। ठगी के बेमिसाल ज्ञाताओं में उनकी गिनती होती थी।
इसी कारण उन्हें गाँव वालों ने चाचा ठग का नाम दे दिया था। मगर सब उन्हें सिर्फ चाचा ही कहते थे। नन्दू आज पहली बार अपने चाचा के गाँव आया था, इसी कारण वह गाँव के लोगों के स्वभाव से परिचित न था।
शाम को चाचा ने उससे पूछा-“बेटा! तुम यहाँ कितने दिन रहने आये हो?”
अपने चाचा के इस प्रश्न पर नन्दू हड़बड़ा गया। वह बोला- “बस चाचा, तीन-चार दिन, फिर मुझे मामी के यहाँ जाना है।”
“ठीक है बेटे!” कहकर चाचा अपने काम में लग गये । मगर नन्दू की समझ में यह ना आया कि उसके चाचा ने उससे ऐसा प्रश्न क्यों किया था, इस बारे में वह काफी देर तक सोचता रहा, मगर उसकी समझ में ना आया। आखिरकार वह सो गया।
अगले दिन उसके चाचा ने कहा-बेटे मैं खेत पर जा रहा हूँ, मगर जाने से पहले एक बात बता देना उचित समझता हूँ। देखो बेटा, समय बहुत खराब है। वैसे भी यह गाँव बदनाम है और गाँव वाले भी कुछ ऐसे ही हैं। बाहर से आने वाले को यहाँ खास सावधानी बरतनी पड़ती है । अतः घर से ज्यादा दूर मत जाना।” कहकर चाचा खेत पर चले गये।
दोपहर के समय नन्दू ने सोचा कि क्यों ना गाँव की रौनक ही देख ली जाए। यह सोचकर वह घर से बाहर निकल गया। अभी वह कुछ दूर चला ही था कि अचानक उसके पास एक आदमी आया। नन्दू ने देखा कि वह एक आंख
से काना था। नन्दू के पास आते ही वह बोला।
“काहे भैया! का हाल है। मेरा नाम अच्छन है, तुम राघव हो ना ?”
“नहीं, मेरा नाम नन्दू है।” नन्दू ने कहा।
“ओहो” वह व्यक्ति अंगड़ाई तोड़ बोला-“अच्छा-अच्छा! नाम में कुछ गलती हो गयी। वैसे मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ। तुम्हारे दादा से मेरे बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। अच्छी बैठक रहती थी, हुक्का पानी रहता और भी साथ था वे मेरे मेरहबानों में से… ।”
नन्दू ने उसकी बात काटकर कहा-“उन्हें तो गुजरे हुए भी वर्षो हो गये। आपकी उम्र तो अभी बहुत कम है। इसीलिए आप उनके साथियों में से मालूम नहीं पड़ते।”
“ओह यह बात नहीं है बेटे! असल में मैं अपनी देखरेख बहुत ज्यादा रखता हूं। इसलिए मेरी उम्र का एहसास नहीं होता। खैर छोड़ो ! अब काम की बात पर आ जाओ।” वह व्यक्ति बोला।
“काम की बात? कौनसे काम की बात?” नन्दू ने हैरानी से उस व्यक्ति को घूरा। “मैं बताता हूँ बेटे! जरा कान खोल कर सुनो!” वह व्यक्ति बहुत ही प्यार से बोला-“वैसे तो तुम खुद ही देख रहे हो मेरी एक आँख नहीं है, जानते हो इसका क्या कारण है?”
“ना तो मैं जानता हू और ना जानना चाहता ।” नन्दू बिना वजह गले पड़ी इस मुसीबत से पीछा छुड़ाना चाह रहा था। अत: इतना कहकर जैसे ही वह आगे बढ़ा, उस व्यक्ति ने उसका हाथ थाम लिया और बोला-
“सुनो बेटे! पहले मेरी सुनो! जानते हो मेरी एक आंख क्यों है, क्योंकि दूसरी आख तुम्हारे दादा पास गिरवी रखी है। उन्होंने वायदा किया था तुम उनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी से भी ले लेना। संयोग से आज उनके पोते यानि तुमसे भेट हो गई। इसलिए लाओ, दे दो मेरी आँख” वह बहुत ही मीठे स्वर में बात कर रहा था।
यह सुनकर नन्दू घबरा गया- “यह तो अजीब मुसीबत है। उसने सोचा।”
नन्दू की खामोशी देखकर वह व्यक्ति गरमी अख्तियार करने लगा। बात बढ़ने लगी तो नन्दू को एक उपाय सूझा। वह उस व्यक्ति से बोला-“ठीक है। भाई! यदि तुम्हारी आँख हमारे यहाँ गिरवी रखी है तो तुम घर चलो। चाचा के पास रखी तो है, मगर वे मुझे हाथ नहीं लगाने देंगे। तुम्हीं चलकर ले लो।”
यह सुनकर अच्छन नामक वह व्यक्ति नन्दू के साथ चाचा के घर की ओर रवाना हो गया।
घर पहुंचकर उसने पाया कि चाचा उसी का इन्तजार कर रहे हैं, उसने जल्दी-जल्दी चाचा को सारी बातें बताईं। हालांकि चाचा उसके साथ अच्छन को देखते ही समझ गये थे कि मामला गड़बड़ है, फिर भी नन्दू से सारी बात सुनने के बाद उन्होंने अन्जान बनकर अच्छन से पूछा- “कहो भाई अच्छन! कैसे आना हुआ?”
“जी कुछ ऐसी वैसी बात नहीं है, वैसे आप तो जानते ही होंगे कि इनके दादा, यानि आपके पिताजी बड़े सज्जन पुरुष थे। सारे गाँव की देखभाल रखते थे और आड़े टैम मै सबकी मदद भी करते थे ।” अच्छन ने कहा।
“जी! वह तो ठीक है, मगर यह तो बताइये कि आज आपको हमारे पिताजी की याद कैसे आ गई?” चाचा ने मुस्कुराकर पूछा।
“अब काहै बताऊँ चाचा । याद तो बहुत दिनों से आ रही थी मगर अब तक दिल में ही छुपा रखी थी।” अच्छन अपनी बात पर खुद ही ठहाका लगा बैठा। मजबूरी वश चाचा को भी उसकी हंसी में हिस्सा लेना पड़ा।
“असल में चाचा बात ये है कि एक बार गाँव में बड़ी भयंकर बीमारी फैल गई थी, तो मैंने अपने बीवी-बच्चों और जमीन को बचाने के लिए आपके पिताजी के पास अपनी एक आँख गिरवी रख दी थी। अब यह रही उधार ली गई रकम और अब मैं नन्दू से अपनी आँख वापस मांग रहा हूं। यह इस बात के फैसले के लिए मुझे आपके पास ले आया ।”
तब चाचा ने अच्छन को समझा बुझाकर एक दिन की मोहलत ले ली।
अच्छन के जाने के बाद चाचा ने नन्दू से कहा-देखा! हो गया ना लफड़ा, इसीलिए तो मैं तुमसे पूछ रहा था कि कितने दिन रहोगे ।”
नन्दू चुप रहा। फिर चाचा पास के बूचड़खाने की ओर रवाना हुए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कुछ भेड़ बकरियों की आँखें खरीदीं और वापस लौट आए। वापस आकर उन्होंने नन्दू को कुछ समझाया और दोनों सो गये।
बुद्धिमानी Moral Story in Hindi
अगले दिन अच्छन मियां चाचा के यहाँ पहुँचे। उन्होंने देखा कि चाचा घर पर नहीं हैं, उन्होंने नन्दू पर अपनी हेकड़ी जमानी शुरू कर दी । बोले- “देखो नन्दू भाई, जल्दी से मुझे मेरी आँख ला दो।” वह जानता था कि नन्दू के पास आँख होगी ही नहीं तो वह देगा कहां से?”
मगर नन्दू ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। वह तेजी से अन्दर गया और चाचा की योजना के तहत वह अन्दर से एक बकरी की आँख ले आया।
और अच्छन से बोला-“लो भाईतुम्हारी आँख”
अच्छन ने चौंक कर नन्दू की हथेली पर रखी आँख को देखा फिर उसे अपने हाथ में लेकर उलट-पुलट कर देखने लगा। वह मन ही मन परेशान भी हो रहा था, मगर आखिरकार ठगपुरा की इज्जत का प्रश्न था। उलट-पुलट कर देखने के बाद अच्छन ने मुंह बनाकर कहा।
यह तो बड़ी है, यह मेरी आँख नहीं है।” वह समझ रहा था कि नन्दू के पास वही एक आँख होगी।
मगर ऐसा तो था ही नहीं। नन्दू वापस अन्दर गया और दूसरी आँख ले आया और बोला- “तब यह वाली होगी?”
दूसरी आँख देखते ही अच्छन के होश-मन्तर होने को तैयार हो गये।
मगर जल्दी ही उसने खुद को सम्भाल लिया और बोला-“नहीं, यह भी मेरी आँख नहीं है
तब नन्दू ने योजनाबद्ध तरीके से एक-दो बार और आँखें दिखाईं, मगर जब अच्छन ने उन्हें अपनी आंखें ना बताई तो नन्दू झुझलाकर वह टोकरी जिसमें आंखें रखी थीं, उठा लाया और अच्छन के सामने पटक कर बोला-“इसमें से छाँट ले अपनी । तुम्हारे जैसे बहुत से गरीबों ने दादाजी के पास अपनी आँखें गिरवी रख दी थीं।”
यह सुन और देखकर अच्छन ने झेप उतारने के लिए सभी आँखों से अपनी आँख ढूंढ़ने का नाटक किया फिर कुछ देर बाद गुस्से में भरते हुए बोला-“यह क्या मजाक है?”
“क्यों, क्या हुआ?” नन्दू ने जल्दी से पूछा।
“देखो चुपचाप, शराफत से मुझे मेरी आँख वापस लौटा दो… ” वह आग-बबूला होने का भरसक प्रयास करते हुए बोला।
क्यों इसमें तुम्हारी आँख नहीं है क्या?” नन्दू ने उसकी बात काट कर पूछा।
“लड़के मुझे ज्यादा बकवास पसन्द नहीं है, शराफत से मेरी आंख दो वरना.दुगुनी रकम वसूल लुगा।” उसने नन्दू के आगे टोकने से पहले ही जल्दी-जल्दी सब कुछ कह डाला।
यह गरमा-गरमी सुनकर अन्दर खामोश बैठे, नन्दू से यह सब नाटक करवा रहे चाचा फुर्ती से बाहर आए -“बोले
अच्छन भाई! इस तरह तो तुम्हारी आँख मिलने से रही। ऐसा करो तुम अपनी आँख नन्दू को दे जाओ, ताकि कल वह तुम्हारी दूसरी आंख से मिलाकर वैसी ही आँख तलाश दे।”
“क्या?” अच्छन का मुंह खुला का खुला रह गया।
“अगर कहो तो मैं निकाल दें अच्छन भाई?” चाचा ने गम्भीर मुद्रा बनाकर कहा।
इतना सुनते ही अच्छन मियाँ वहाँ से इस तरह भागे जैसे उनके पीछे यमदूत पड़े हों।
अच्छन मियाँ को इस तरह भागते देख चाचा-भतीजे खिल-खिलाकर हंस पड़े। इस तरह चाचा ने नन्दू की जान बचा कर बुद्धिमत्ता की नई मिसाल कायम कर दी।
यह कहानी सिद्ध करती है कि बुद्धिमान कभी मात नहीं खाता, अतः हमें बुद्धिमान बनने के लिए सतत् प्रयास करते रहना चाहिए।
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Bachon ke liye itni seekh dene waali stories share karne ke liye bahut bahut shukriya.
Thanks a lot.