New Kahani in Hindi – साहसी सिंदबाद – Kahani in Hindi
साहसी सिंदबाद – Kahani in Hindi
New Kahani in Hindi
प्राचीन समय की बात है | बगदाद में सिंदबाद नाम का नाविक रहा करता था | उसका घर काफी बड़ा और सुंदर था | उसकी सेवा के लिए बहुत से नौकर-चाकर थे | हर सप्ताह वह निर्धन लोगों को भोजन कराया करता था, जो उसकी दान शीलता का परिचायक था | पर काफी धन होने के बावजूद भी उसका मन शांत नहीं रहता था |
इसका कारण यह था कि अब तक अपने द्वारा किए गये किसी भी कार्य से वह संतुष्ट नहीं था | वह अपने जीवन में कोई ऐसा काम करना चाहता था, जो वीरता और साहस से भरपूर हो |
लेकिन अभी तक उसे ऐसा कोई भी काम नहीं मिल सका था |
तब एक दिन उसका एक साथी उससे मिलने उसके घर आया | उसने उसे बताया कि वह एक लंबी समुद्री यात्रा पर रवाना होने जा रहा है, तो सिंदबाद ने सोचा कि उसके जीवन में इससे अच्छा मौका नहीं आयेगा | इसलिए उसने अपने मित्र के साथ समुद्री यात्रा पर रवाना होने की ठान ली |
उसकी इस योजना से उसका मित्र बहुत प्रसन्न हुआ और अगले दिन यात्रा पर जाने की योजना बना ली | उसके बाद सिंदबाद ने नौकरों से कहकर अपने जहाज पर रेशम और मसाले लादने का आदेश दिया |
जहाज रेशम और मसालों से लाद दिया गया | सिंदबाद जहाज पर सवार होकर यात्रा पर निकला | उनका काफिला तेजी से आगे बढ़ने लगा |
वह अपने माल का सौदा करने के उद्देश्य से कई नये-नये स्थानों पर ठहरा | नये-नये स्थान देखकर उसे अपने जीवन का नया आनंद प्राप्त हो रहा था | वह खुद को भाग्यशाली समझ रहा था |
विभिन टापूओ पर ठहरता हुआ | उनका काफिला ऐसे टापू पर पहुंचा | जहां हरी-भरी घास उगी थी और पेड़ों पर मन को लुभाने वाले सुंदर-सुंदर फल लगे थे |
सिंदबाद ने इतनी सुंदर जगह पहले कभी नहीं देखी थी | इसलिए वह उसी स्थान पर ठहरकर प्रफुल्लित हो रहा था |
मगर लंबा सफर तय करने के कारण वह थक चुका था |
पेड़ों पर लदे स्वादिष्ट और सुंदर-सुंदर फल खाकर उस पर नींद का खुमार छाने लगा |
वह एक पेड़ की छाया में लेट गया और जल्द ही उसे नींद ने आ दबोचा |
काफिले के अन्य लोग भी अपनी-अपनी जगह तलाश करके आराम करने लगे |
लेकिन काफिले को अभी और आगे जाना था | इसलिए काफीले के लोग कुछ देर आराम करने के पश्चात आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे |
किसी को भी सिंदबाद की याद नहीं आयी | वे उसे वही सोता हुआ छोड़कर अपनी यात्रा पर आगे निकल पड़े |
जिस समय सिंदबाद की आंख खुली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा |
सूर्य अस्त होने जा रहा था | उसके साथी भी उसे कहीं नजर नहीं आ रहे थे | वह सोचने लगा कि क्या वह इतनी गहरी नींद में सो गया था, कि जब उसके काफिले वाले वहां से रवाना हुये तो उसकी आंख ना खुली |
हड़बड़ाकर वह उठा | अपने साथियों को इधर-उधर तलाश किया | काफी तलाश करने के बाद भी वे उसे ना मिले | वह बहुत दु:खी हो रहा था | उस निर्जन टापू पर सिंदबाद अब अकेला रह गया था |
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वह वहां से निकलने का यत्न करने लगा | उसने टापू पर चारों ओर घूम-घूमकर देखा | लेकिन उसे टापू से बाहर निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया | तब उसने वही ठहरने की सोची |
सूर्य का प्रकाश अभी इतना था, कि प्रत्येक वस्तु को वह देख सकता था | उसने रात बिताने के लिए किसी ऐसे स्थान की खोज करनी आरंभ कर दी जिससे कि वह खुद को टापू पर रहने वाले जंगली जीवो से बचा सके |
अंत: में उसे एक बहुत बड़ा वट का वृक्ष दिखायी दिया | उसने सोचा कि वह इसी वृक्ष की मोटी-सी डाल पर लेटकर रात बितायेगा |
वह वृक्ष पर चढ़ा और मोटी-सी डाल पर लेट गया | कुछ देर बाद वह गहरी नींद में सो गया | अगली सुबह भोर होते ही उसके कानों में किसी पक्षी के फड़फड़ाने की आवाज पड़ी | जिससे उसकी आंख खुल गयी |
आंखें खुलते ही उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा | क्योंकि जिस पंछी के पंखों की फड़फड़ाहट से उसकी आंख खुली थी | वह आकार में इतना बड़ा था कि उससे पहले सिंदबाद ने इतने बड़े आकार का पंछी कभी नहीं देखा था | वह एक ऐसी डाली पर बैठा था, जो उस वृक्ष की काफी मजबूत और मोटी थी |
पंख फड़फड़ाकर वह पंछी उड़ गया |
उसके उड़ने के बाद सिंदबाद की जान में जान आयी | वह उससे काफी भयभीत हो गया था | मगर फिर जब उसे याद आया कि वह तो ऐसा कोई काम करने की तमन्ना अपने दिल में रखता है, जो साहस और वीरता से परिपूर्ण हो उसके दिल की दहशत काफूर हो गयी |
अब वह निडर और साहसी बन चुका था |
वह वृक्ष से नीचे उतरा | टापू पर इधर-उधर घूमता-फिरता रहा | पूरे दिन उसने फल वगैरह खाकर अपनी भूख को शांत किया |
जब शाम होने वाली थी, तो उसे सोने की चिंता ने आ घेरा |
काफी सोच विचार के बाद वह उसी पक्षी के घोसले में जाकर बैठ गया | पंछी के आकार के अनुरूप उसका घोंसला भी काफी बड़ा था | सिंदबाद जैसे यदि पांच व्यक्ति भी उस घोसले में बैठ जाते तो वे भी उसमें समा सकते थे | बैठ जाने के बाद वह उस पक्षी के आने का इंतजार करने लगा |
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जैसे ही सूरज ने अपना प्रकाश समेटा वैसे ही पक्षी अपने-अपने घोसले की ओर बढ़ने लगे |
कुछ ही देर में सिंदबाद ने उसी पक्षी को अपनी और आता देखा | वह सतर्क होकर लेट गया |
पंछी ने एक दो चक्कर वृक्ष के इर्द-गिर्द काटे और फिर वह भी अपने घोसले में रैन बसेरे के लिए समा गया |
सिंदबाद ने अपने सिर पर बधी पगड़ी उतारी और जल्दी से उस पक्षी के पैरों से उसे बांध दिया तथा खुद उस पगड़ी के कपड़े में लिपटकर लेट गया |
रात जैसे-तैसे करके उसने गुजारी |
सुबह होते ही पक्षी अपने घोसले से उड़ा | उसके पंजों से बंधा सिंदबाद भी आकाश में उड़ता चला गया |
वह नीचे जमीन के दृश्यों को देख-देख कर खुश हो रहा था | पहाड़ियों, टापूओ पर ऊगे वृक्ष ऊपर से देखने पर उसे आकार में छोटे-छोटे नजर आ रहे थे | वह सोच रहा था कि क्या वह इतनी ऊंचाई पर उड़ रहा है, जिससे कि उसे वृक्षों का आकार भी इतना छोटा दिखाई दे रहा है |
समुद्र के नीले पानी की लहरों से निकलने वाली रश्मियां उसे किसी फुलझड़ी के समान दिखाई दे रही थी |
काफी देर की उड़ान के बाद सिंदबाद ने देखा कि वह पक्षी उसे लेकर एक घाटी में नीचे उतर रहा है | वह समझ गया कि अब वह खुद भी पृथ्वी पर उतर जायेगा और जैसे ही पक्षी पृथ्वी की ओर लपका – ‘ सिंदबाद ने खुद को बंधन मुक्त करने की पूरी तैयारी कर ली |’
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पक्षी घाटी में नीचे उतरा और तभी सिंदबाद ने उसके पंजों में बंधी अपनी पगड़ी के बंधन खोल दिये | पक्षी इधर-उधर घूमकर वापस आकाश की ओर उड़ गया |
पर सिंदबाद ने जब घाटी में इधर-उधर नजरे दौड़ायी तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा |
उसने देखा घाटी में अनेकों छोटे-बड़े ऐसे पत्थर बिखरे पड़े हैं | जिनसे प्रकाश की रश्मियां फूट रही हैं | उन्होंने घाटी के अंदर पर्याप्त मात्रा में प्रकाश फैला रखा है |
वह आगे बढ़ा एक छोटा सा पत्थर उठाकर उसने देखा कि वह पत्थर क्या हो सकता है ?
सिंदबाद पत्थरों के विषय में काफी जानकारी रखता था | वह समझ गया कि यह चमकदार पत्थर “हीरे” हैं |
यह देखकर सिंदबाद की खुशी का ठिकाना ना रहा | हालांकि वह पहले ही कम धनी नहीं था | परंतु इतने सारे हीरे देखकर किसका मन ना ललचायेगा | अतः सिंदबाद ने बड़े-बड़े हीरे अपने कुर्ते की जेबों में भर लिये और उसको अपनी कमर में कसकर बांध लिया |
वह खुशी-खुशी घाटी में घूमने लगा | पर यह सोचकर वह उदास हो गया कि अब वह उस घाटी से बाहर कैसे निकलेगा ? घाटी के चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे और वहां से बाहर निकलना बहुत मुश्किल था |
वह परेशान मन से एक छोटे से पत्थर पर बैठ गया और ईश्वर को याद करने लगा – “ हे भगवान ! अब मैं यहां से बाहर कैसे निकल लूंगा |”
सिंदबाद की प्रार्थना कुछ ज्यादा ही प्रभावी थी, या यूं कहिए कि दु:खी मन से की गयी प्रार्थना भगवान जल्दी ही सुन लेता है | भगवान ने उसकी भी प्रार्थना सुन ली थी |
अचानक वह चौक उठा, क्योंकि जिस जगह पर वह बैठा था | वहां से कुछ ही दूरी पर कोई वस्तु आकर गिरी थी | वह तुरंत उठा और उस वस्तु के पास पहुंचा | उसने देखा वह मांस का एक बहुत बड़ा टुकड़ा था |
मांस का टुकड़ा देखते ही वह समझ गया कि कुछ चतुर व्यक्ति पहाड़ियों के नीचे घाटी में मांस के टुकड़े फेंक रहे हैं | जिससे कि हीरे उससे चिपक जाये और पक्षी उस टुकड़े को उठाकर अपने घोसले में ले जाये तथा वे व्यक्ति घोसले से हीरे निकालकर अपने कब्जे में ले ले |
उन लोगों की चतुरायी पर सिंदबाद आश्चर्यचकित हुये बिना ना रहा | उन्होंने हीरे प्राप्त करने की तरकीब ही ऐसी निकाली थी, कि जो भी व्यक्ति उनकी तरकीब के बारे में सुनता, उसे आश्चर्य ही होता |
उनकी यह तरकीब सिंदबाद के काम भी आयी | उसने अपने आप उस मांस के टुकड़े से बांध लिया और किसी पक्षी के वहां पहुंचने का इंतजार करने लगा |
जल्द ही उसके इंतजार की घड़ियां समाप्त हुयी |
पहले जैसा विशालकाय एक पक्षी उस मांस के टुकड़े की ओर लपका | उसने टुकड़े को अपने पंजों में दबोचा और फिर उसे लेकर आकाश की ओर उड़ने लगा |
सिंदबाद भी उसके साथ आकाश में उड़ रहा था |
जल्द ही वह पक्षी मांस के टुकड़े और सिंदबाद सहित अपने घोसले में जा पहुंचा |
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वहां पहुंचकर सिंदबाद ने राहत की सांस ली | परंतु कुछ ही देर बाद उसने देखा कि एक व्यक्ति घोसले वाली डाल पर आया और उस पंछी को हा – हा करके उड़ाने लगा |
पंछी आकाश में उड़ गया |
वह व्यक्ति तुरंत घोसले में पहुंचा तो घोसले में सिंदबाद को देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा |
उस व्यक्ति को देखकर सिंदबाद भी चौके बिना नहीं रह सका | उसने हड़बड़ाकर उससे पूछा – “ तुम कौन हो |”
अपने बारे में सिंदबाद को बताया और फिर सिंदबाद से उसने उसके बारे में पूछा |
तब सिंदबाद ने अपनी आपबीती बात उसे सुनायी |
उसकी आपबीती बात सुनकर वह व्यक्ति प्रसन्न हुआ | वह बोला – “ सिंदबाद ! तुम कितने बहादुर हो, जो एक पक्षी के पंजों से लिपटकर उस घाटी में पहुंच गये और फिर वहां से सुरक्षित वापस भी आ गये | अच्छा अब तुम यहां से मेरे साथ चलो | मैं तुम्हें तुम्हारे देश पहुंचा दूंगा |”
उसकी बात सुनकर सिंदबाद बहुत प्रसन्न हुआ | वह उसके साथ वृक्ष से नीचे उतर आया |
वह व्यक्ति उसे उस बंदरगाह पर ले गया | जहां से सिंदबाद को अपने देश जाने के लिए जहाज मिल सके |
जहाज में बैठकर वह अपने देश वापस पहुंचा |
अब वह पहले से भी ज्यादा धनी आदमी हो गया था | उसकी साहसिक यात्रा विश्व के साहसी व्यक्तियों के लिए सदा ही प्रेरणा बनी रहेगी |
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