New Moral Hindi Kahani – चतुरमल की चतुराई – Hindi Kahani
चतुरमल की चतुराई – Hindi Kahani
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हिमाचल प्रदेश के गोविंदपुर नगर में मंगलदीप नामक राजा राज्य करता था | उसका सलाहकार चतुरमल बहुत चतुर था | एक दिन राजा और सलाहकार दोनों आपस में ग्रंथों को लेकर चर्चा कर रहे थे | बातों बातों में राजा मंगलदीप ने चतुरमल से पूछा – “ चतुरमल जी ! हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण हाथी की करुणापूर्ण पुकार सुनकर पैदल ही बिना किसी सेवक को साथ लिये उसकी रक्षा के लिए दौड़ पड़े थे | आखिर इतनी सवारियां और नौकर-चाकर कब काम आते हैं? अपने साथ कुछ भी नहीं ले गये |”
चतुरमल उस समय कोई भी उत्तर नहीं दे सके लेकिन बोले – “ महाराज ! समय आने पर आपको मैं इसका उचित उत्तर दूंगा |”
राजा ने चतुरमल की बात मान ली | राजा को अपना पुत्र बहुत प्यारा था | राजा प्रतिदिन उसे गोद में खिलाया करते थे |
प्रतिदिन की तरह एक दिन नौकर राजा के प्रिय पुत्र को राजा के पास ले जा रहा था | यह देख चतुरमल को राजा का प्रश्न याद आया तथा उसे उसका उत्तर मिल गया |
अगले दिन उसने एक मूर्तिकार को अपने पास बुलाया और राजकुमार का चित्र दिखाकर कहा – “ देखो! यह महाराज का पुत्र है और मैं चाहता हूं, कि तुम बिलकुल इसके समान मोम का पुतला बनाकर तैयार करो | अगर तुमने ऐसा कर दिया तो तुम्हें बहुत बड़ा इनाम मिलेगा |”
कलाकार बोला – “ ठीक है, सलाहकार जी ! कल आपको राजकुमार का पुतला मिल जायेगा |” इतना कहकर वह तस्वीर लेकर चला गया |
अगले दिन कलाकार मोम का पुतला लेकर आया और उसे सलाहकार को दिखाया | मोम के पुतले को देखकर चतुरमल हैरान रह गया क्योंकि पुतला हू-ब-हू राजकुमार की तरह था | चतुरमल ने पुतले की प्रशंसा करते हुये कलाकारों को बहुत-सा इनाम देकर विदा किया |
अब चतुरमल ने राजा के बेटे को संभालने वाले नौकर को बुलवाया और कहा – “ कल तुम शाम को राजा के बेटे को लेकर राजा के पास जाओ तो उसके स्थान पर इस मोम के पुतले को कपड़ा पहना कर ले जाना |”
यह सुनकर नौकर थोड़ा घबरा गया; किंतु बोला कुछ भी नहीं |
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चतुरमल ने उसके भावो को पढ़ते हुये आगे कहा – “ जब तुम इसको लेकर आना तो झूठ-मूठ तालाब पर फिसलने का नाटक करके गिर पड़ना; किंतु ध्यान रहे यह पुतला पानी में ही गिरे | अगर तुमने ऐसा ही किया तो मैं तुम्हें बहुत सारी नाम दूंगा और अगर आनाकानी की अथवा मेरी बात नहीं मानी तो महाराज से कहकर तुम्हें नौकरी से निकलवा दूंगा |”
चतुरमल की बात सुनकर नौकर भयभीत हो गया और अपनी नौकरी को खतरे में जानकर उसने सलाहकार की बात मान ली |
शाम के समय नौकर ने पुतले को राजकुमार के कपड़े पहनाकर अच्छी तरह से तैयार किया | जब राजा के पास उसके बेटे को ले जाने का समय हुआ तो नौकर उसे लेकर चल पड़ा |
तालाब के किनारे पहुंचकर वह जानबूझकर फिसल गया | उसके फिसलते ही मोम का पुतला तालाब में गिर गया | राजा दूर बैठा नौकर को आते देख रहा था | बेटे को गिरते देख वह दौड़ पड़ा और बिना किसी को साथ लिये ही तालाब में बेटे को बचाने की खातिर कूद पड़ा | फिर पुतले को बाहर निकाला |
बाहर आकर जब उन्होंने अपने बेटे की जगह मोम का पुतला देखा तो उन्होंने नौकर को डांटना शुरू कर दिया | तभी चतुरमल सामने आया और मुस्कुराते हुए बोला – “ महाराज !आखिर आप इतनी दूर से पैदल नंगे पैर दौड़ते हुए क्यों आये? इतनी सवारी तथा नौकर-चाकर कब काम आयेगे |”
चतुरमल की बात राजा समझ गये |
“ महाराज भगवान कृष्ण को अपने भक्तों से अत्यंत प्रेम था | उस प्रेम के सामने उन्होंने अपना सुख-ऐश्वर्य सब त्याग दिया |” यह सुनकर राजा ने नौकर को क्षमा कर दिया और चतुरमल को पुरस्कार दिया |
अपना वचन निभाते हुये चतुरमल ने नौकर को भी पुरस्कार दिया |
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