Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
Panchatantra Stories – चिड़ा और चिड़िया
हिंदी कहानी / Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values | हिंदी में पंचतंत्र की कहानियां_मोरल स्टोरी हिंदी | प्रेरणादायक कहानियाँ
नीम के एक पुराने पेड़ पर गोरैया (चिड़िया) का एक जोड़ा रहा करता था | उनको उस पेड़ पर रहते हुए काफी दिन हो गए थे | दोनों में बड़ा प्यार था |
पेड़ पुराना होने के कारण कमजोर हो गया था | उनका घोसला भी पेड़ की तरह कमजोर और पुराना हो गया था | तेज हवा चलती या कभी जोरदार वर्षा हो जाती तो वे कभी दूसरे पेड़ पर जाकर शरण लेते थे |
गर्मी के मौसम में दो घड़ी के लिए उस पेड़ पर बैठकर वे आराम भी नहीं कर सकते थे | क्योंकि पेड़ पर ज्यादा पत्तों से भरी डालिया भी नहीं थी | You Read This Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values on Lokhindi.com
अब उन्हें इस पेड़ पर दिन गुजारने में परेशानी होने लगी थी |
दोनों ने मशविरा किया कि “अब हमें घर बदलना चाहिए |”
दोनों की सहमति हुई |
फिर 2 दिन बाद ही चिड़ा कूदता-फूदता, खुशी-खुशी घर वापस लौटा, तो घोसले में मौजूद चिड़िया ने अपने खुश होते हुए चिड़े से पूछा –
“बड़े खुश नजर आ रहे हो, आज क्या मिल गया है तुम्हें |”
चिड़ा बोला – “जानती हो, आज क्या हुआ… |”
“क्या हुआ?” चिड़िया ने भी उत्सुकता दिखाई |
“आज मेरी मुलाकात धन्नो नाम की एक गोरैया से हुई |”
“अच्छा” दूसरी चिड़िया का नाम सुनकर उसकी उत्सुकता और बढी |
फिर चिड़ा आगे बताने लगा – “ मैं एक घर के आंगन में दाना चुप रहा था | वहीं पर वह भी आ गई, बातों ही बातों में उससे मैंने अपने घर की समस्या की चर्चा की, तो जानती हो उसने क्या कहा ?”
“क्या कहा उसने ?” चिड़िया ने आग्रहपूर्वक कहा |
उसने कहा – “अरे, गोरैया भी कभी पेड़ पर रहती है, गोरैया तो घरों में इंसानों के करीब रहती है | चलो… मैं तुम्हें रहने के लिए अच्छी जगह दिखाती हूं |”
“फिर क्या हुआ ?’ Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
“फिर… फिर….वह फुर्र से उड़ी और उसी घर के रोशनदान के अंदर चली गई | मैं भी उसके पीछे-पीछे चला गया | वह मुझे एक बड़े से कमरे में ले गई | वही एक बड़ी-सी अलमारी रखी थी, जिसे दिखाकर धन्नो गोरैया ने बताया कि वह उसी पर रहती है | मुझसे भी उसने जगह पसंद करने के लिए कहा |”
“तो तुमने कोई जगह पसंद की” चिड़िया खुश होती हुए बोली |
“हां, मैंने एक दूसरे कमरे की अलमारी के ऊपर रहने के लिए जगह चुनी है | सुनो, तुम देखोगी तो तुम्हें भी वह जगह जरूर पसंद आ जाएगी |”
“अच्छा जी, मगर वहां कोई कुछ कहेगा तो नहीं और अगर इंसानों ने हमें पकड़ लिया तो |”
उसकी इस बात पर चिड़ा हंसा – “अरे पगली, हम तो वहां खूब ऊंचाई पर रहेंगे | वे हमें कैसे पकड़ सकेंगे और फिर हम तो उसके रोशनदान से अपना आना-जाना रखेंगे | हम उन्हें परेशान थोड़ी ही करेंगे |”
“मगर रोशनदान तो बंद रहता है |” चिड़िया ने कुछ सोचते हुए कहा |
“अरी नहीं भाग्यवान, मुझे धन्नो ने बताया है कि उस कमरे का रोशनदान कभी बंद नहीं होता | वह तो वहां कई साल से रह रही है |”
“अच्छा जी, फिर तो ठीक है” चिड़िया ने नए घर में जाने की स्वीकृति दे दी |
फिर सुबह होते ही दोनों ने अपने पुराने घर को अलविदा कहा और रोशनदान के रास्ते अपने नए घर में आ गये |
चिड़िया नई जगह आकर बहुत खुश हुई | फुदक-फुदककर उसने कुछ ही देर में सारा घर देख डाला |
धन्नो भी उसके पास आकर बैठी | उससे उस चिड़िया ने बहुत से सवाल पूछे – “ बहन! तुम यह तो बताओ, हमें यहां कोई परेशानी तो नहीं होगी |” Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
“नहीं बहन! यहां तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी | तुम यहां आराम से रहोगी |”
यहां नीचे कौन लोग रहते हैं |
“नीचे मकान मालिक रहते हैं | बड़े भले लोग हैं बेचारे और सुनो बहन, मैं तो खाना-दाना भी इन्हीं के घर करती हूं | इनकी रसोई में बहुत-सा खाना रहता है | कभी-कभी तो मैं खुद परेशान हो जाती हूं कि इतना खाना मैं अकेले कैसे खाऊंगी |”
“अच्छा जी, यह बात है फिर तो हमें भी बाहर नहीं जाना पड़ेगा |”
“हां बहन! तुम किसी चीज की चिंता मत करो, आओ मेरे साथ मैं तुम्हें रसोई में ले चलती हूं |”
फिर तीनों वहां से उड़कर रसोई में आये |
एक बर्तन में सफेद रंग के दानों का ढेर लगा था |
दानों को देखकर नए आये मेहमानों के मुंह में पानी भर आया | उन्होंने पूछा – “धन्नो बहन! क्या हम इन्हें खा सकते हैं |”
“हां… हां… बस अब यह दाने हमारे लिए ही है, चाहे जितना खाओ |”
तीनों खाने पर टूट पड़े |
खाना बड़ा लजीज था | चिड़ा बोला – “क्यों जी यह तो वही दाने हैं, जिनको हम खेतों में कच्चा ही चबाकर खाते हैं |”
“हां भाई! यह उन्हीं दानों को पकाकर खाते हैं |”
“तो इनका स्वाद बहुत बदल जाता है” चिड़िया ने भी जीभ होठों पर फिराते हुए कहा |
“हां जी, देख नहीं रहे हो, कच्चो को चबाने में हमें कितनी परेशानी होती है और पकने के बाद यह इतने मुलायम हो जाते हैं” चिड़ा बोला |
तीनों खूब चहक-चहककर खाना खा रहे थे |
फिर किसी के आने की आहट पाकर वहां से उड़कर रसोई में ऊंचाई पर जा बैठे |
Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
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फिर धन्नो ने उन्हें रसोई का ऊपरी हिस्सा दिखाया – “देखो उधर जो सफेद सफेद डिब्बे रखे हैं न, उन में सूखे अनाज रखे रहते हैं | जिन्हें हम खेतों में जाकर चुगते हैं और सुनो इन डिब्बों के आस-पास इतने दाने पड़े रहते हैं कि उन्हें खाकर कई-कई दिन गुजारे जा सकते हैं |”
दोनों ने उधर गौर से देखा, वाकई उन डिब्बा के करीब अनाज के बहुत से दाने पड़े हुए थे |
इसके बाद वे रोशनदान में आराम से रहने लगे | उनको अब अपने घोसले के गिरने की चिंता या बारिश में भीगने की चिंता नहीं रही |
रोजाना सुबह उठते रोशनदान से बाहर निकल जाते | नए-नए पेड़ों पर बैठते, छोटे छोटे कीड़ों को अपना भोजन बनाते, अपने पुराने साथियों से मिलते और फिर दिन चढ़ते ही वापस लौट आते |
उन्हें तो खुली हवा सूरज के प्रकाश की आदत पड़ी हुई थी, इसलिए बाहर जाने में उन्हें बड़ा आनंद आता था |
और जिस दिन भी वह खेतों की ओर निकल जाते अपने पुराने साथियों के साथ मिलकर दाना चुगते, रेत में स्नान करते उस दिन तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता था |
बहुत देर से घर वापस लौटते और पका सफेद दाना खाए बगैर ही पंखों मे मुंह डालकर चैन से सो जाते |
धन्नो उन्हें बुलाने आती – “अरे तुम इतनी देर से आए हो, चलो खाना खा लो |”
वे दोनों कहते – “ नहीं धन्नो, आज हमारा खूब पेट भरा है | आज हम से कुछ नहीं खाया जाएगा |”
उनकी बात सुनकर धन्नो मुंह फुला लेती, तो क्या आज मैं अकेले ही खाना खाऊंगी |
“माफ करना बहन, आज हमारे पुराने दोस्त मिल गए थे | उनके साथ बातें करते हुए चुगते-चुगाते हम कुछ ज्यादा ही खा गये | अब तो शाम का खाना है ही हम तुम्हारे साथ खा सकते हैं |”
धन्नो को उनकी बात पर गुस्सा आता और वह पैर पटककर वापस अपने घर चली जाती |
फिर बरसात का मौसम आया |
चिड़ा और चिड़िया वर्षा के पानी में आंधी, तूफान का आनंद रोशनदान में लगे शीशे के सामने बैठकर लेते जरूर थे | मगर उनका मन उदास रहा करता था | Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
“क्यों जी, पिछले साल बरसात में हम कैसे भीगे थे, तुम्हें याद है ना ?” चिड़िया ने चिड़े को पिछले साल की बात याद दिलाई |
“हां, तुम अपने पंख फैला-फैला कर नहा रही थी |”
“अरे हां, तभी हमारा पेड़ चरमरा कर टूट गया था और फिर हम उड़कर पीपल के पेड़ पर जा बैठे थे |”
और थोड़ी देर बाद तुमने कहा था – “बाप रे, पीपल के पत्ते हवा लगने के कारण खूब बज रहे थे, इतनी आवाज हो रही थी कि मुझे तुम्हारी बात भी सुनाई नहीं पड़ रही थी |”
“हां….हां…. मुझे याद है |”
फिर दोनों हंसने लगे |
पानी बरसता देख उनका मन नहाने के लिए करने लगा |
“सुनो जी, मेरा तो नहाने का मन कर रहा है” चिड़िया ने अपने पंख फड़फड़ाये |
“चलो” चिड़ा भी उसके साथ नहाने के लिए चल दिया |
तभी धन्नो उन्हें बाहर जाता देख छीकती हुई चिल्लाई – “अरे, तुम दोनों बाहर कहां जा रहे हो, भीग जाओगे तो बीमार पड़ जाओगे, चलो वापस आ जाओ |” Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
धन्नो पानी से बहुत डरती थी | बरसात और जाड़े के मौसम में तो वह घर से बाहर ही नहीं निकलती थी, इसलिए उसे उन दोनों को बाहर निकलते देखकर और फिर बरसात के पानी में नहाता देखकर आश्चर्य हो रहा था |
कई घंटो तक वे दोनों पानी में नहाए और फिर वापस अपने घर आये | रोशनदान में बैठकर दोनों अपने पंखों का पानी सुखाने लगे |
उन्हें बहुत दिनों बाद इस प्रकार नहाकर बहुत अच्छा लग रहा था |
तभी वहां धन्नो आ गई |
अपने शरीर के पैरों को फुलाए छिकती हुई बोली – “अरे, तुम लोगों ने भीगकर अच्छा नहीं किया | तुम बीमार पड़ जाओगे, नजला हो जाएगा, तुम्हें बुखार भी हो सकता है |”
“अरे मेरी प्यारी बहन, हमें आदत है कुछ नहीं होगा हमें |” चिड़िया ने अपने पंख सुखाते हुए कहा |
“इतने दिनों बाद बरसात में नहाकर पुराने जमाने की याद ताजा हो गई | हम सब दोस्त मिलकर बरसात के पानी में बड़े मजे से नहाया करते थे |” चिड़ा भी बोला | Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values
फिर धन्नो वहां से उड़कर अपने घर में चली गई |
बरसात गुजर गई तो फिर जाड़े का मौसम आ गया | चिड़ा और चिड़िया का उस बंद कमरे में दम घुटने लगा | घर के अंदर धूप न आने के कारण होने जाड़ा भी लगता | बाहर धूप सेकने के लिए वे जाते जरूर थे, लेकिन फिर घर के अंदर आने पर उन्हें जाड़ा लगने लगता था |
चिड़ा बोला – “अरी चिड़िया.. सुनती है, अब इस घर में दम घुटने लगा है | बाहर की धूप, खुली हवा, नीला आसमान और रात का कोहरे का आनंद, मुझे ललचा रहा है की पेड़ पर बना अपना छोटा-सा घोसला ही अच्छा था |”
“तुम ठीक कहते हो जी, चिड़िया ने आगे बढ़कर उसकी हां में हां मिलाई | अब इस घर में मेरा भी दम घुटता है | कई रोज से मैं भी तुमसे इसी बारे में बात करना चाह रही थी कि अब यहां जी घबराने लगा है | चलो हम अपने पुराने घर में लौट चलें, यहां के बंद कमरे पका हुआ अनाज, अलमारी के ऊपर रखे हुए सामान के ऊपर सोना, अब यह सब कुछ मुझे अच्छा नहीं लग रहा है |”
“ठीक कहती हो तुम, चलो हम जहां पले बड़े हुए, वही हमारी असली जगह है, वही हमारा असली घर है | हमें उसे छोड़कर नहीं आना चाहिए था |” You Read This Panchatantra Stories in Hindi With Moral Values on Lokhindi.com
“आप ठीक कहते हो जी, चलो….फिर वही चलते हैं |”
और फिर दोनों ने एक साथ उस घर को अलविदा कह दिया |
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