प्यार में धोखा – प्रेम और धोखे की हिंदी (दास्तान) कहानी
प्यार में धोखा हिंदी कहानी
प्यार में धोखा हिंदी कहानी / Pyar me dhokha Hindi Kahani (Betrayal In Love) – प्रेम और धोखे की हिंदी दास्तान (तोता-मैना किस्सा)
राजेश अपने पिता सेठ मोहन लाल का इकलौता बेटा था। मोहन लाल के पास बेशुमार दौलत थी। राजेश पर आधुनिकता का रंग हावी था। वैसे भी जिस घर में अनाप-शनाप दौलत हो वहां तरह-तरह के ऐब और गन्दी आदतें भी अपना घर बसा लेती हैं। राजेश अपने पिता के कारोबार में पार्टनर भी था इसलिए वह अपने पिता के साथ व्यापार में पूरा हाथ बंटाता था और काम के बाद पूरी अय्याशी करता था।
बिल्कुल वैसा ही युवक था जैसे अक्सर अमीर घरों के युवक होते हैं। आमतौर पर होता यह है कि अधिक पैसे वाले परिवारों के बच्चे बिगड़ जाते हैं। पैसे की कोई कमी उनके पास नहीं होती इसलिए नशे आदि के ऐब सहज रूप से अपना लेते हैं।
आजकल राजेश एक फैक्टरी लगाने पर विचार कर रहा था। फैक्टरी लगाने के लिए जमीन की आवश्यकता थी। वह जमीन तलाश कर रहा था। जमीन की तलाश में वह आस-पास के गांवों के चक्कर लगा रहा था।
पैसे की सेठ मोहन लाल के पास कोई कमी नहीं थी। वे मुंह मांगी कीमत देने को तैयार थे लेकिन कोई जमीन बेचने को तैयार नहीं था।
एक जमाना था जब जमीन की कोई कीमत नहीं थी। लोग जमीन बेचना चाहते थे लेकिन खरीदार नहीं थे। समय बदलता गया और जमीन की कीमतें बढ़ती गयीं। लोग जमीन का महत्व समझने लगे और इसीलिये जमीन मिलनी बंद हो गई।
राजेश फैक्टरी की जमीन के चक्कर में पास के गांव में गया। पास के गांव में उसकी जमीन की बात चल रही थी। वह कई किसानों की थोड़ी-थोड़ी जमीं ले रहा था।
किसान काफी कोशिशों के बाद जमीन बेचने को तैयार हुए थे। वह भी तब तैयार हुए थे जब उनके परिवार के दो-दो आदमियों को नौकरी देने का वायदा किया गया था। आज राजेश उन लोगों को कुछ एडवांस देने जा रहा था। उसने नोटों का एक ब्रीफकेस पीछे वाली सीट पर रख दिया था।
उसकी गाड़ी तेज गति से दौड़ती जा रही थी। मेन रोड से हटकर वह गांव के रास्ते पर चल दिया। उस रास्ते पर कार की गति धीमी हो गयी थी।
अचानक उसके पैर ब्रेक पर दबाव डालते चले गए। गाड़ी एक झटके के साथ रुक गयी। सामचे एक लड़की चली जा रही थी। गाड़ी की चर्र की आवाज को सुनकर उस युवती ने पलटकर देखा।
गाड़ी में एक नवयुवक बैठा था। वह मुस्करा रहा था। युवती ने एक पल उस युवक को देखा। उसे मुस्कराते देखकर उसने गरदन झुका ली।
राजेश ने अपनी गाड़ी को लाकर बिल्कुल उसके बराबर में खड़ा कर दिया और कहा-“क्या नाम है तुम्हारा?”
“रीमा।”
“बड़ा प्यारा नाम है।”
रीमा प्रत्युत्तर में खामोश रही।
राजेश ने उसको सम्बोधित करते हुए कहा- “मुझे राजेश कहते हैं। सेठ मोहनलाल का बेटा हूं। हम आपके गांव में एक फैक्टरी लगाना चाहते हैं।”
रीमा को इन सब बातों से क्या लेना-देना था। वह उस समय तक खड़ी रही जब तक कि राजेश बोलता रहा और फिर वह आगे को चल पड़ी।
राजेश ने पुनः गाड़ी उसके बराबर में लाकर रोकते हुये कहा – “रीमा जी, आओ बैठो, मैं भी गांव ही जा रहा हूं। तुम्हें गांव में छोड़ दूंगा।”
“जी नहीं।” रीमा ने कहा-“मैं आपकी गाड़ी में नहीं बैढूंगी। मैं पैदल ही जाऊंगी।”
‘‘क्यों…?”
“मेरी मर्जी।”
फिर राजेश ने कुछ नहीं कहा। इस बात को भी वह जानता था कि ये मामला शहर का नहीं गांव का है। यहां किसी भी तरह की, की गई हरकत खतरनाक साबित हो सकती है।
वह अपनी गाड़ी आगे बढ़ा ले गया।
रीमा उसी तरह से पैदल चलती रही और वह अपने घर आ गयी।
शाम को राजेश रीमा के घर भी आया।
अपने पिता के आवाज देकर कहने पर रीमा राजेश के लिए चाय लेकर आयी। रीमा के सामने आने पर राजेश उसे कई पलों तक अपलक निहारता रह गया।
रीमा उसको इस तरह से अपनी ओर देखते पाकर शरमा गयी और चाय देकर वहां से चली गयी। राजेश ने रीमा के पिता शिवराज को एडवांस दिया, दस्तखत किये और अपनी कार में बैठकर चल दिया। रीमा राजेश को भा गयी थी। वह सोच रहा था कि चाहे जैसे भी हो रीमा हाथ ही आनी चाहिए।
गदराया बदन, अंग-अंग सांचे में ढला हुआ। बार-बार रीमा का चेहरा राजेश को विण्ड स्क्रीन पर चमकता नजर आ रहा था। उसने अपनी गरदन को जोर से झटका दिया, जैसे उसने रीमा के खयालों को दिमाग से निकाल दिया हो।
वह वापस लौट आया।
राजेश अपने मनोमस्तिष्क से रीमा को निकाल नहीं पाया। वह बार-बार उसके खयालों में आ जाती थी। राजेश ने एक बार फिर गांव जाने का निश्चय किया। उसने सोचा शायद रीमा उसके जाल में फंस जाए। वह अपनी गाड़ी लेकर आज एकदम रात को आया। वह ऐसे टाइम पर आया था कि रीमा के पिता उसे रात्रि में वहीं रोकने का प्रयास करें और वह रुक जाए। राजेश शिवराज के यहां पहुंचा तो शिवराज ने उसे आदर से बैठाया। कुछ देर बाद रीमा उसके लिए चाय व नमकीन ले आयी। आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
राजेश ने एक बार उसे प्यार भरी नजरों से देखकर गर्दन झका ली थी।
वह जमीन के बारे में शिवराज से काफी देर तक बातें करता रहा। इसी बीच खाना तैयार हो गया। शिवराज के कहने पर राजेश ने भोजन कर लिया। भोजनोपरान्त राजेश ने कहा “अच्छा शिवराज जी, अब मैं चलता हूं।”
‘‘राजेश जी। अब जाने का समय तो नहीं है।” शिवराज ने कहा-“ये शहर नहीं है, गांव है। कोई आपकी कार भी ले लेगा और आपको बांधकर डाल देगा।”
राजेश तो स्वयं ही वहां रुकना चाहता था। वह तो प्रोग्राम ही ऐसा बनाकर आया था ताकि वे रुकने को कहें और वह रुक जाए।
“ऐसी बात है तो ठीक है शिवराज जी।” राजेश ने कहा- “मैं सुबह चला जाऊंगा।”
शिवराज ने राजेश के लिए एक कमरे में बिस्तर लगवा दिया और वह लेट गया। करीब एक घंटे बाद रीमा दूध का गिलास लेकर आयी और उसने धीमी आवाज में कहा-“लीजिए, दूध पी लीजिए।”
“रीमा! क्या तुम जानती हो?” राजेश ने कहा-“मैं यहां किसलिए आया हूं।”
“जी नहीं।’
“मैं सिर्फ यहां तुम्हारे लिए ही आया हूं।”
“क्यों…?”
“क्या तुम इतना भी नहीं समझतीं।” राजेश ने कहा-“कोई युवक किसी युवती के पास कब और किसलिए आता है? रीमा मैंने जब तुम्हें पहली बार देखा था, मुझे तभी तुमसे प्यार हो गया था। उसी वजह से मैं यहां दोबारा आया हूं।”
“राजेश जी! ये शहर नहीं गांव है। यहां इस तरह की बातें करना भी पाप समझा जाता है। आज तो आपने कह दिया, फिर कभी मत कहना।”
‘‘क्या किसी से प्यार करना बुरा है?”
“नहीं।” कहने के साथ ही रीमा वहां से उठकर चली गयी।..
राजेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? उसे अपनी इच्छा पूरी होती नजर नहीं आ रही थी। रीमा ने उसमें जरा-सी भी दिलचस्पी नहीं दिखायी थी।
दूध पीकर वह लेट गया। इसके अलावा चारा भी क्या था? सुबह फिर रीमा उस लिए चाय व नाश्ते का सामान लायी थी। उस समय शिवराज वहां नहीं था।
प्रेम और धोखे की हिंदी कहानी
चाय का कप थामते हुये उसने कहा- “रीमा। मेरा यकीन करो।” राजेश ने कहा-“मैं सचमुच तुमसे प्यार करने लगा हूं।”
“राजेश जी।” रीमा ने कहा-“आप अपने काम से मतलब रखिए, इन बेफिजूल की बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है।”
उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि चाहे जैसे भी हो वह उसे पाएगा अवश्य। चाय पीकर वह चल दिया। कार में आकर बैठा। रीमा कहीं जा रही थी।
उसने कहा मैं कल दोपहर को तुम्हारा नदी पर इन्तजार करूंगा। रीमा ने उसकी बात का हां या न में कोई उत्तर नहीं दिया। वह अपने रास्ते चली जा रही थी।
राजेश गाड़ी स्टार्ट कर वहां से चला गया।
रीमा राजेश के बार-बार इस तरह की बातें करने के कारण यह सोचने पर विवश हो गयी थी कि क्या वह सचमुच उसे प्यार करता है और उसी के लिए यहां आता है। उसने अपने आप ही अपनी गरदन को झटका दिया, जैसे अपने विचारों को अपने मन से निकालकर फेंक देना चाहती हो। मगर दूसरे दिन जब दोपहर हुई तो रीमा के कदम स्वयं ही नदी की ओर उठ गए। वह यह देखना चाहती थी कि क्या सचमुच राजेश वहां आया है? क्या वह सचमुच उसे प्यार करता है? आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
रीमा ने देखा कि नदी किनारे राजेश की कार खड़ी थीं और राजेश उसी की ओर देख रहा था। रीमा की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे? उसकी ओर जाए या लौट जाए। रीमा के कदम अपने आप राजेश की ओर बढ़ते चले गए। कुछ ही देर में वह राजेश के पास आ गयी।
रीमा को देखकर राजेश प्रसन्न हो गया। उसके करीब आने पर उसने कहा- “आओ रीमा, मैं तुम्हारे इन्तजार में ही पलकें बिछाए बैठा था।”
‘‘राजेश जी। आप मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं?” रीमा ने कहा-“मैं गांव की रहने वाली हूं। यहां प्यार नाम की कोई चीज नहीं होती। आप मेरा खयाल छोड़िए और अपना काम कीजिए।”
‘रीमा ।’ राजेश ने कहा-“तुम्हें भुला पाना मेरे वश में नहीं है, इसलिए मैं क्या करूं?”
रीमा इस बात से डर रही थी कि उस ओर यदि कोई आ गया तो वह बदनाम हो जाएगी। राजेश ने अपनी जेब से एक अंगूठी निकाली और रीमा की उंगली में लगभग जबरदस्ती करते हुए पहना दी और कहा “यह हमारे प्यार की पहली निशानी है।”
वह कभी अंगूठी को देख रही थी तो कभी राजेश को। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्या न करे?
रीमा ने वह अंगूठी उतारकर राजेश को देते हुए कहा-“आप इसे वापस ले जाइए।” कहने के साथ ही रीमा गांव की ओर चली गयी।
“मैं कल भी इसी समय आऊंगा।” राजेश ने इस बार कुछ तेज स्वर में कहा था। रीमा कुछ नहीं बोली।
दूसरे दिन भी राजेश आया। रीमा भी उसके पास आयी थी। गुजरते दिनों के साथ-साथ वह दोनों रोज मिलने लगे। राजेश का जादू रीमा पर चढ़ता जा रहा था।
राजेश जल्द से जल्द रीमा को पा लेना चाहता था। दिन गुजरते चले गए। राजेश को रीमा का न मिल पाना अखर रहा था। एक दिन जब रीमा राजेश के पास आयी तो राजेश ने उसे अपनी कार में अपने पास बिठा लिया और शहर की ओर चल दिया।
उसे शहर की ओर जाते हुए देखकर रीमा ने पूछा-“तुम कहां जा रहे हो?”
“आज तुम्हें शहर दिखाऊंगा।” राजेश ने कहा-“आराम से बैठी रहो ।”
राजेश रीमा को लेकर अपने बंगले पर ही आ गया। पहले उसका इरादा रीमा को होटल ले जाने का था, बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया था।
रीमा का दिल धक-धक कर रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे यहां क्यों लाया है? वह यहां क्या करेगा यह भी उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
राजेश ने रीमा को अपनी बांहों में भर लिया और उसे अपने बिस्तर पर ले गया।
“राजेश ।”
“बोलो रीमा।”
“यह सब मुझे पसन्द नहीं है।” रीमा ने कहा–“न ही मैं कोई गलत काम करूंगी।”
“क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है?” राजेश ने कहा-“तुम चिन्ता क्यों कर रही हो?”
‘‘राजेश।”
“बोलो।”
“शादी से पहले यह सब मैं नहीं होने देंगी।” रीमा ने कहा-“मुझे मेरे घर पहुंचा दो।”
‘‘रीमा ।” राजेश ने कहा-“तुम आओ तो सही, घबरा क्यों रही हो?”
रीमा के मना करते-करते भी राजेश उसे बिस्तर पर ले गया और उसकी इच्छा के बिना ही उसने अपनी मनमानी कर ली।
बेचारी रीमा। वह कुछ न कर पायी। और फिर उसके बाद जब भी राजेश की इच्छा होती गांव आ जाता और रीमा को ले जाता। अपनी इच्छा पूरी करके उसके घर छोड़ जाता। रीमा राजेश से बार-बार शादी करने के लिए कहती और राजेश उसकी बात कल जाता था। बीतते समय के साथ-साथ रीमा को यह लगने लगा था कि वह शायद मां बनने वाली है। आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
रीमा को जब पक्का यकीन हो गया कि वह राजेश के बच्चे की मां बनने वाली है तो उसने राजेश से कहा-“राजेश ।’
“बोलो रीमा।”
“अब शादी में देर करना उचित नहीं है।” रीमा ने कहा-“मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं।”
“ये तुम क्या कह रही हो?”
“यह सच है।”
“अच्छा, मैं जल्दी ही तुम्हारे साथ शादी करने की तैयारी करूंगा।” राजेश ने कहा और वहां से चला गया। उसके बाद वह वहां नहीं आया।
रीमा अब अधिक दिन तक इस बात को नहीं छुपा सकती थी। उसे अपने पिता शिवराज से यह बात बतानी पड़ी। शिवराज की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे क्या न करे ? फिर भी अपनी बेटी को लेकर वह मोहन लाल के यहां आया।
मोहन लाल उस समय घर पर ही था। उसने शिवराज की ओर देखते हुए कहा- “आओ शिवराज जी, कैसे आना हुआ?”
“सेठ जी। राजेश जी हैं?”
“वो तो फैक्टरी गया है।” मोहन लाल ने कहा-“बैठो, बात क्या है?”
‘‘सेठ जी। राजेश जी ने मेरी बेटी रीमा से प्यार किया है, इससे शादी का वादा किया था। अब ये उसके बच्चे की मां बनने वाली है।” शिवराज एक ही सांस में कहता चला गया।
“ओह!” सेठ मोहनलाल गहरी सोच में डूब गए। फिर बोले-‘‘शिवराज जी! तुम उससे बात कर लो। यदि वह रीमा बेटी से विवाह करना चाहता है तो मुझे कोई एतराज नहीं है। मेरा इकलौता बेटा है। मैं तो उसकी खुशी चाहता हूं।”
शिवराज अपनी बेटी को लेकर वहीं रुक गया। उसे राजेश की प्रतीक्षा तो करनी ही थी। राजेश रात को लगभग दस बजे आया।
उसके आने पर मोहन लाल ने राजेश से कहा- “राजेश ।”
“यस डैडी ।’
“देखो।’ मोहन लाल ने कहा-“शिवराज और उसकी बेटी आए हैं। वे तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।”
राजेश पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह ड्राइंगरूम में आया। शिवराज और रीमा, वहां बैठे हुए थे।
राजेश ने उन लोगों की ओर देखा और कहा-“कहिए शिवराज जी, कैसे आना हुआ? पैसा तो मैं आपको दे आया था।”
“राजेश जी। रीमा कह रही थी।” शिवराज ने कहा-“आप और यह प्यार करते थे। आपने इससे शादी करने का वायदा भी किया था। ये आपके बच्चे का बोझ उठाए घूम रही है। अब आप यह बताएं कि कब शादी कर रहे हैं?”
“शिवराज जी ।’ राजेश ने कहा-“आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं भला इससे शादी की बात क्यों करूंगा? यदि आपको कुछ धन का लालच है तो वैसे ही मांग लीजिए। मैं दे दूंगा। लेकिन इस तरह इल्जाम तो मत लगाइए।”
“राजेश जी।” शिवराज ने कहा- “भला ऐसी कौन लड़की होगी जो स्वयं अपनी बेइज्जती कराएगी। इस तरह का जवाब देकर हमारी इज्जत से मत खेलो।”
“देखो शिवराज जी! मैं यह सब न तो बर्दाश्त करूंगा और न ही मैं इस तरह से शादी ही करूंगा। आप जहां चाहें इसकी शादी कर दीजिए। हां, यदि पैसों की बात है तो मैं दे दूंगा।”
शिवराज और रोमा।
उन दोनों के पास अब सिवाय रोने के और क्या चारा था? राजेश तो साफ-साफ मुकर गया था।
“चलो बेटी।” शिवराज ने कहा- “इससे और कुछ कहने का कोई लाभ नहीं है। यह किसी सेठ की कोठी नहीं रावण की लंका है।”
राजेश को शिवराज के यह शब्द नागवार लगे, लेकिन वह खामोश रहा।
वे उठकर चल दिए।
वे उनकी कोठी से बाहर निकल आए और एक ओर चल दिए।
रात्रि के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह इस समय अपनी बेटी को लेकर कहां जाए? वह इस बात को जानता था कि मोहन लाल से भी कुछ कहने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि उसने तो पहले ही कह दिया था कि अगर राजेश शादी करना चाहे तो मुझे कोई एतराज नहीं है और जब राजेश ने मना कर दिया तो फिर वह हां कैसे करेगा? आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
जैसे ही वह कोठी से बाहर आया उसे उनका एक ड्राइवर मिला। वह उनके पास आकर बोला_‘‘शिवराज जी!”
शिवराज ने उसकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। उसने एक-दो बार उसे देखा था, उसे मालूम था कि वह मोहन लाल का ड्राइवर था।
“मेरा नाम दीपक है। मैं ड्राइवर हूं।”
“हमसे क्या काम है?”
“मैंने आप लोगों की और राजेश की सब बातें सुन ली हैं।’ दीपक ने कहा- “मैं जानता हूं कि आप और आपकी बेटी जो कुछ कह रहे हैं, वह एकदम सत्य है। ये सेठ का बिगडैल बेटा इसी तरह से लोगों की लड़कियों की इज्जत खराब करता फिरता है और बाद में लोगों की इज्जत को पैसों से तौलने लगता है। उसके बाद किसी के पास करने को कुछ नहीं रह जाता है। इस समय आप लोग परेशान भी हैं और रात्रि का समय भी है। यदि आप लोग हर्ज न समझे तो मेरे घर चलिए, सुबह चले जाइएगा।”
शिवराज ने एक पल के लिए कुछ सोचा और फिर स्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा-“ठीक है, चलिए।”
दीपक उनको अपने साथ लेकर चल दिया।
रीमा बराबर आंसू बहाए जा रही थी। उसके पास सिवाय आंसू बहाने के और चारा भी क्या था?
शिवराज की स्थिति बड़ी खराब थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी बेटी का क्या करे? उसके कारण वह कहीं का नहीं रह गया था। उसे डूब मरने के लिए भी कोई जगह नजर नहीं आ रही थी।
उस समय दीपक का उन्हें मिलना डूबते को तिनके के सहारे के समान था। दीपक शिवराज और उसकी बेटी रीमा को लेकर अपने घर पर आ गया। उसका मकान बहुत बड़ा तो नहीं था पर ठीक था।
शिवराज और रीमा चारपाई पर बैठ गए और दीपक उनके लिए चाय बनाने लगा। वह चाय बनाकर ले आया और उसने एक-एक कप रीमा और उसके पिता को दे दिया और एक कप स्वयं ले लिया।
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वे तीनों चाय पीने लगे।
चाय पीते हुए दीपक ने शिवराज को सम्बोधित करते हुए कहा-“शिवराज जी!”
“हां दीपक!”
“इस समय आपकी क्या पोजीशन है मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूं। जिस किसी के साथ इस प्रकार की घटना घट जाती है, उसका जीना हराम हो जाता है।
“समाज में उसका कोई मान-सम्मान नहीं रह जाता।”
शिवराज क्या जवाब देता। उसकी तो जैसे बोलती बन्द हो गयी थी। ऐसी दशा में कोई भी बेटी का बाप क्या कह सकता था।
दीपक ने फिर कहा-“यदि आप उचित समझें तो इस समय जबकि आप परेशानी में हैं, मैं आपकी मदद कर सकता हूं। आपको जिल्लत और रुसवाई से बचा सकता हूं।”
“वो कैसे?”
दीपक ने कहा-“मैं आपकी बेटी रीमा से शादी करने को तैयार हूं।”
शिवराज ने आश्चर्य से दीपक को देखा। दीपक की उम्र बहुत अधिक नहीं थी। उसकी उम्र पच्चीस-छब्बीस वर्ष की रही होगी। देखने में वह सुन्दर भी था।
उसकी पत्नी मर गयी थी। वह विधुर का जीवन व्यतीत कर रहा था। इस समय उसे दीपक की बात मान लेने में लाभ लगा। फिर भी उसने रीमा की ओर देखा और पूछा- “बोलो बेटी, तुम्हारा क्या ख्याल है?”
“मैं तो कुछ भी कहने के काबिल नहीं हूं।” रीमा ने रो देने वाले अंदाज में कहा।
तभी दीपक ने कहा-‘‘सोच लीजिए शिवराज जी। ये कोई जबरदस्ती तो है नहीं कि जो आप इसकी शादी मेरे साथ ही करें। हां, यदि आप लोग तैयार हों तो मुझे कोई एतराज नहीं है।”
“ठीक है।” शिवराज ने कहा-“मुझे कोई एतराज नहीं है। मैं जल्दी ही तुम दोनों का विवाह कर दूंगा।”
इस समय जिल्लत और बेइज्जती से बचने के लिए इससे अच्छा उसके पास और कोई हल नहीं था। सुबह शिवराज और रीमा अपने गांव वापस चले गए। एक सप्ताह बाद शिवराज ने रीमा और उस ड्राइवर की शादी कर दी। रीमा शादी के बाद दीपक के घर आ गयी।
राजेश को भी इस बात का पता चल गया था कि रीमा का विवाह उनके ड्राइवर दीपक के साथ हो गया है। एक दिन वह ड्राइवर के जाने के बाद वहां आया।
राजेश ने वहां आते ही रीमा को अपनी बांहों में भर लिया और उसे चूमने लगा।
रीमा ने बड़ी सख्ती से अपने आपको उससे अलग किया और उससे कहा-“राजेश आज के बाद यहां मत आना। मुझे तुम्हारी शक्ल से भी नफरत है। यदि आज के बाद तुम यहां आए तो याद रखना मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगी। अभी तुमने औरत का प्यार ही देखा है, इन्तकाम नहीं ।”
राजेश उसे कोरी धमकी ही समझ रहा था। वह फिर रीमा की ओर बढ़ा।
वहीं पर एक छुरी पड़ी हुई थी। रीमा ने वह छुरी उठा ली और सीधी कर ली। अब राजेश को यह लग रहा था कि वास्तव में रीमा जो कुछ कह रही है उसे कर डालेगी।
वह चुपचाप वहां से निकलकर चला गया।
दैवयोग से दीपक बाहर खड़ा यह सब सुन रहा था। रीमा का यह रूप देखकर उसने सोच लिया कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है। वह भी चुपचाप ही वहां से चला गया।
“तोते।”
“बोलो मैना।”
“देख लिया उस राजेश को? उसने पहले रीमा से प्यार किया। उससे शादी का वादा किया और जब वह उसके बच्चे की मां बनने लगी तो साफ मुकर गया। जब उस बेचारी ने कहीं और शादी कर ली तो फिर अपना मुंह काला करने उसके पास पहुंच गया।” आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
एक पल रुककर मैना ने फिर कहा-“देख लिया न मर्दो को कितने बेवफा होते हैं। उस बेचारी को मंझधार में छोड़ दिया।”
“मैना।”
“हां तोते।”rt
“वह भी तो आदमी ही था जिसने उसको सहारा दिया और उसके सब दुःख दूर कर दिए। वह तो केवल एक समझौता था जो कि मजबूरन रीमा को करना पड़ा था। वरना उसका ड्राइवर के साथ शादी होने का क्या मतलब था?”
“तुम एक बात बताओ मैना?”
“पूछो तोते।’
“तुम कहना क्या चाहती हो?”
“यही कि तुम हार मान लो ।” मैना ने कहा-“इस बात को तस्लीम कर लो कि मर्दो की जात बेवफा होती है।”
“और यदि मैं हार न मानू तो…?”
“तो साबित करो कि मर्द बेवफा नहीं होते।” मैना ने कहा।
“मैं तो कहता हूं कि मर्द और औरत दोनों बेवफा होते हैं। तोते ने कहा- “मैंने जितनी भी दास्ताने सुनाईं वह सब बेवफा औरतों की दास्तानें थीं और जितनी तुमने सुनाईं वह बेवफा मर्दो की दास्तानें थीं।”
यह कहकर तोता-मैना के करीब खिसक आया। मैना ने उसे सावधान करते हुए कहा-“खबरदार तोते! मुझ से दूर ही रहना ।”
“मैना…।” तोता उससे दूर हटते हुए बोला-“हम और तुम दो रात और दो दिन से मर्द और औरत की बेवफाई की दास्ताने सुना रहे हैं। यह दास्तानें कभी खत्म नहीं होंगी। इसलिए अच्छा यही है कि हम आपस में समझौता कर लें।”
“मुझे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से मत फुसला तोते!” मैना ने कहा- ”मैं तुम जैसे मर्दो की चालें खूब समझती हूं।”
“अगर मर्द और औरत एक-दूसरे को बेवफा ही समझते रहे तो वह घर किसके साथ बसाएंगे। सृष्टि ने मर्द और औरत को एक दूसरे का पूरक बनाया है। वह दोनों एक-दूसरे के बगैर अधूरे हैं। इसलिए उनका मिलन होना भी आवश्यक है।”
“यह मिलन ही बेवफाई को जन्म देता है तोते।” मैना ने कहा।
“अगर नर और मादा का मिलन नहीं होगा तो धरती सूनी हो जाएगी मैना।”
तोते ने उसे समझाते हुए कहा-“अगर विश्वास नहीं होता तो विश्वासघात नहीं होता, अगर दुनिया में वफा नाम की चीज न होती तो बेवफाई जन्म नहीं लेती।”
धीरे-धीरे रात का अंधकार फैलने लगा था, पक्षी अपने-अपने घोंसलों में जा रहे थे। मैना भी अपने घोंसले में जाना चाहती थी, लेकिन तोते की मौजूदगी में वह अभी तक अपने घोंसले में नहीं गई थी। उन दोनों को बहस करते हुए दो रातें गुजर गई थीं। मैना के दिल में धीरे-धीरे तोते के प्रति हमदर्दी बढ़ने लगी थी, इसलिए वह अभी तक अपने घोंसले में नहीं गई थी।
“मैना! आज ठण्ड काफी है।” तोते ने कहा।
“मर्दो की तरह मौसम भी बदलते हैं।” मैना ने तोते को घूरते हुए कहा।
“इसका मतलब है मौसम भी बेवफा होते हैं, जो अपना प्रभाव बदलते रहते हैं।” तोते ने कहा।
“मौसम तो प्रकृति की देन है।” मैना ने ठण्ड में सिकुड़ते हुए कहा।
“नर और मादा भी तो प्रकृति की देन है।”
“तोते! तू मुझे उलझन में मत डाल।” मैना ने तोते को शंकित नजरों से देखा।
“मैना! मैं जानता हूं तुम काफी चतुर हो और में भी कम बुद्धिमान नहीं हूं। दो रातें तुम्हारे साथ मैं भी गुजार चुका हूं, लेकिन मैंने अन्य मर्दो की तरह तुम्हारे साथ न तो कोई जोर जबरदस्ती की है और न ही बेवफाई । इसलिए ऐ मैना! मुझ पर यकीन कर ले और मेरे साथ शादी कर ले। तेरी चतुराई और मेरी बुद्धिमानी के मिलन से बेवफाई जन्म नहीं लेगी।” आप यह प्यार में धोखा नामक कहानी लोकहिंदी पर पढ़ रहे है!
“तोते।” मैना की आवाज कांपने लगी।
“हां मैना! मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं तुम्हारे साथ कभी बेवफाई नहीं करूंगा।”
तोता इस बार मैना के करीब खिसक आया था। इस बार मैना ने कोई एतराज नहीं किया। दोनों की नजरें आपस में मिली और फिर वह आपस में चोंचें लड़ाने लगे। शायद उनकी दो दिनों की मुलाकात प्रेम में बदल गयी थी।
मैना ने तोते के साथ शादी करने का निश्चय कर लिया था। रात बढ़ती चली जा रही थी.और बीतती रात के साथ-साथ ठण्ड भी बढ़ रही थी। मैना अपने घोंसले में चली गई और उसके पीछे-पीछे तोता भी मैना के घोंसले में जा पहुंचा।
धीरे-धीरे रात बीतती रही। घोंसले के बाहर बारिश हो रही थी लेकिन उन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं थी। उन्हें ऐसा लग रहा था कि आज की रात काफी जवान है और अब आने वाली हर रात उनके लिए जवान ही रहेगी।
THE END
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