प्यार में धोखा Love Story – Cheating Story Hindi
प्यार में धोखा Love Story
किस्सा तोता-मैना/प्यार में धोखा love story की रोचक दास्तान हिंदी में ! Love and cheating stories hindi- sad story in hindi
गरीब परिवार में पली नीना काफी सुन्दर एवं हसीन थी। कोई उसे अप्सरा की संज्ञा देता तो कोई कहता कि वह कामदेव की कामिनी है। यदि वह किसी धनी परिवार में पली होती तो शायद उसके रूप में और भी चार चांद लग जाते।
लेकिन कहावत के अनुसार कमल कीचड़ में खिलता है और हीरा कूड़े के ढेर में भी दमकता है। नीना दिन भर अपने घर का काम-काज करती थी और घर में रहती थी। घर से बाहर वह केवल पढ़ने जाती थी। वहां भी वह किसी से बात न करती थी।
डिग्री कॉलेज में सब ऊंचे घरों की लड़कियां आती थीं। शायद वही एक गरीब घर की लड़की थी। गरीब होने के कारण सीधे घर आना और सीधे कॉलेज जाना। कोई क्या कह रहा है इससे उसे कोई मतलब नहीं था। गरीबी भी अपने आप में एक बड़ी मुसीबत है। गरीब आदमी जीता नहीं है केवल घिसटता है।
नीना की भी वही हालत थी।
जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती थी।
लेकिन जवानी की उम्र ऐसी होती है कि वह गरीबी-अमीरी कुछ नहीं देखती। बस प्यार की फुहार ही उसे नजर आती है।
नीना भी प्यार कर बैठी।
उसी के कॉलेज का एक छात्र था “महेश।” वह धनवान बाप का बेटा था। नौकर-चाकर, बंगला सभी कुछ था उसके पास। एक दिन उसने महेश को नाटक में देखा था। उसने नाटक में एक अमीर बाप का बेटा होते हुए भी एक गरीब लड़की से विवाह किया था और यही बात उसे भा गयी थी। वह स्वयं ही उसके निकट आने लगी थी।
नीना जैसी खूबसूरत हसीना किसी को प्यार करे तो वह भला इन्कार कैसे कर सकता था। नीना और महेश दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे। साथ-साथ घूमने लगे थे। प्यार में उन दोनों ने कसमें खायी थीं। साथ-साथ जीवन बिताने का निश्चय किया।
प्यार का उफान ऐसा ही होता है। युवक और युवतियां फौरन साथ-साथ जीवन बिताने का वादा करने लगते हैं। इस बात की किसी को परवाह नहीं होती कि उनकी इन कसमों के खाने का अन्जाम क्या होगा? पुरुष अक्सर प्यार में नारी का शरीर पाकर सुख पाने के लिए लालायित रहता है।
महेश भी अन्य पुरुषों से अलग तो नहीं था।
लेकिन।
नीना ने कभी भी महेश की अनधिकृत चेष्टा को पूरा नहीं होने दिया। उसने साफ-साफ कह दिया था कि “महेश हम प्यार करते हैं यह अलग बात है, लेकिन कभी भी मुझे पाने की कोशिश मत करना। जब तक हमारा विवाह नहीं हो जाएगा तब तक मैं अपनी देह को हाथ नहीं लगाने दूंगी।”
महेश ने कई बार प्रयास किया मगर असफल रहा।
अगर महेश उसे पा लेता तो शायद वह उससे कभी शादी न करता। लेकिन उसकी सुन्दर देह उसे उससे शादी करने पर विवश कर रही थी। एक दिन महेश ने अपने पिता सेठ दीन दयाल से अपने दिल की बात कह दी।
“मैं नीना से शादी करना चाहता हूं।” उसने कहा।
“किस सेठ की बेटी है वह?” ।
वह किसी सेठ की नहीं बल्कि एक गरीब की बेटी है। मैं उससे प्यार करता हूँ।
“सुनो महेश।” सेठ दीन दयाल ने कहा-“यह प्यार का व्यापार छोड़ो। प्यार का भूत दो-चार दिन का होता है और जब यह भूतिया प्यार उतरता है तो दिमाग ठिकाने लग जाता है। जाओ अपना काम करो। ये गरीब घराने की लड़कियां इसी तरह से अमीरों के लड़कों को फांसती हैं ताकि धन वसूल सकें।”
“मगर नीना ऐसी नहीं है डैडी।” महेश ने साहस करके कहा-“वह मुझे प्यार करती है, मेरी दौलत से नहीं।”
“बहस मत करो।” सेठ दीन दयाल ने कहा-“शुरू-शुरू में सब लड़कियां इसी तरह की हरकतें करती हैं।”
महेश के पास अब कहने के लिये कुछ नहीं था। दूसरे दिन महेश नीना से मिला। उससे मिलकर वह बोला-“नीना।”
“हां ” ।
“क्या बताऊं, मेरे पिता जी ने शादी से साफ इन्कार कर दिया है।” महेश ने कहा-“मैंने उन्हें बहुत समझाया लेकिन उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि वह तुमसे मेरी शादी हर्गिज नहीं करेंगे। उनकी नजर में गरीब घरों की लड़कियां इसी तरह से अमीर घरों के लड़कों को फंसाती हैं।”
“ओह…।” ।
“हां नीना।”
“क्या तुम्हें मैं ऐसी नजर आती हूं?” नीना ने कहा-“मैंने तुमसे प्यार किया है, तुम्हारी दौलत से नहीं ।”
“मैं जानता हूं नीना।” महेश ने कहा-“मैं यह सब नहीं कह रहा हूं, मेरे पिता जी ऐसा सोचते हैं।”
“फिर…।”
“फिर क्या?” महेश ने कहा-“यदि तुम साथ दो तो मैं तुम्हारे साथ भागने के लिए तैयार हूं।”
नीना काफी देर तक सोचती रही। फिर बोली-“ठीक है, मैं तैयार हूं।”
“अगर ऐसी बात है तो कल तैयार होकर आना।” महेश ने कहा।
“ठीक है।”
दूसरे दिन महेश अपने घर से तिजोरी में से एक लाख रुपया और कुछ जेवर निकाल लाया। नीना भी तैयार होकर आयी थी। महेश नीना को लेकर रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया।
स्टेशन पर आकर उसने सीधा बम्बई का टिकट लिया। महेश की नजर में बम्बई एक ऐसा शहर था जहां वह दोनों आराम से रह सकते थे और किसी को पता न चलेगा।
गाड़ी आयी और वे दोनों फर्स्ट क्लास के कम्पार्टमेन्ट में सवार हो गए।
खाने-पीने के लिए फल और एक पानी की सुराही ले ली थी।
उन्होंने चेहरा इस तरह का बना रखा था ताकि किसी को इस बात का जरा भी शक न हो कि वे घर से भागकर आए हैं। गाड़ी दौड़ती रही। साथ ही साथ उन दोनों के मस्तिष्क भी तेजी से हरकत करते रहे।
उन दोनों को घर से भागने का जरा भी अफसोस नहीं था। दोनों ही अपनी मर्जी से आए थे। घरवालों पर उनके भाग जाने से क्या गुजरेगी इसका उन्हें जरा भी अहसास नहीं था। बम्बई पहुंचकर दोनों गाड़ी से उतरे और एक टैक्सी लेकर किसी होटल के लिये चल दिए।
महेश ने होटल में कमरा लिया। कमरा लेते समय नीना को उसने अपनी पत्नी बताया था। नीना ने कोई विरोध नहीं किया था।
महेश इस बात को जानता था कि उन लोगों का अधिक दिन तक होटल में रहना ठीक नहीं है। होटल में वे पकड़े जा सकते हैं। उसने दो-तीन दिन में ही पच्चीस हजार रुपये पगड़ी देकर एक फ्लैट ले लिया और वह दोनों आराम से पति पत्नी का जीवन व्यतीत करने लगे।
महेश एक बात से चिन्तित था कि यदि जेब का सारा पैसा समाप्त हो गया तो फिर वे क्या करेंगे? बम्बई जैसी जगह में तो एक दिन भी बगैर पैसे के गुजार पाना असम्भव है।
अब तक करीब पैंतीस हजार रुपये खर्च हो चुके थे।
महेश ने फ्लैट लेने के बाद सबसे पहले काम यह किया था कि खाना बनाने का सब सामान घर में लाकर डाल दिया था।
नीना खाना बनाने लगी थी।
एक दिन, रात को महेश ने नीना को सम्बोधित करते हुए कहा-“नीना।” .
“हां महेश ।”
‘‘मैं सोच रहा हूं कि कोई काम शुरू कर लूं।’ महेश ने कहा-“क्योंकि यदि कुछ काम नहीं करूंगा तो ये सब पैसा समाप्त हो जाएगा और उसके बाद यहां रहना मुश्किल हो जाएगा।”
“ठीक है।” नीना ने कहा-“जो इच्छा हो कर लो। काम तो कोई ना कोई होना ही चाहिए।”
अगले दिन से महेश किसी काम की तलाश में लग गया। वह छोटा-मोटा कोई अपना ही काम करना चाहता था। व्यापारी का बेटा था, उसे व्यापार का थोड़ा बहुत तजुर्बा भी था।
नीना फ्लैट में ही रहती थी। वह बाहर इसलिए नहीं जाती थी क्योंकि वह वहां के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी।
एक दिन जब महेश अपने काम के सिलसिले में बाहर गया हुआ था, किसी ने द्वार खटखटाया। नीना चौंक पड़ी और धीमी आवाज में कहा-
“कौन है?’
“दरवाजा खोलो।”
नीना ने दरवाजा खोल दिया। सामने एक सुन्दर युवक खड़ा था। नीना ने उसकी कई पलों तक एकटक देखा। फिर कंहा-“कहिये?”
“क्या आप अन्दर आने के लिए नहीं कहेंगी?”
“आइए।”
वह अन्दर आ गया। नीना भी अन्दर आ गयी। उसने द्वार बन्द नही था।
“कहिए, क्या बात है?” नीना ने उसके पास आकर कहा।
“मुझे विवेक कहते हैं।” उसने बताया- “मैं आपके बगल में रहता हूँ, सोचा आप लोगों से परिचय कर लें। पड़ोसी होने के नाते हम लोगों में कम से कम परिचय तो होना ही चाहिए।’
“आप शाम को आइएगा।” नीना ने कहा- “अभी वो काम पर गए हैं।”
“ओह!”
‘जी।”
“मैं तो यह कहने आया था।” विवेक ने कहा- ‘‘यदि आप चाहें तो मैं आपको फिल्मों में काम दिला सकता हूं। क्या आप जानती हैं कि आप कितनी खूबसूरत हैं? यदि फिल्मों में आ गयीं तो आप तहलका मचा देंगी।”
नीना के चेहरे के भाव बदल गए।
विवेक की नजरें नीना के चेहरे पर टिकी हुई थीं। वह उसके चेहरे के बदलते भावों को देख रहा था।
उसने फिर कहा-“यदि आप एक बार फिल्मों में आ गयीं तो तहलका मचा देंगी। प्रोड्यूसर आपके आगे-पीछे चक्कर लगाएंगे। सारे देश में आपके नाम के डंके बजेंगे।” ,
फिल्मों का ऐसा आकर्षण है कि हर कोई उसमें फंस जाता है। विवेक ने देखा था कि उसका तीर निशाने पर बैठा था। नीना के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आए थे।
उसने फिर कहा “आप शाम को आइएगा।”
“ठीक है।” कहकर वह चलने लगा।
उसी दिन, रात्रि में दस बजे विवेक फिर आया। उसने आकर अपना परिचय दिया–“मुझे विवेक कहते हैं, मैं फिल्मों में काम करता हूं। आपका पड़ोसी हूं।”
“मुझे महेश कहते हैं।” महेश ने कहा–”ये है मेरी पत्नी नीना।”
“मैं इनसे मिल चुका हूं।”
“हां, नीना ने मुझे बताया था।”
“जी।”
‘‘मिस्टर महेश ।’
“जी।”
“मेरे प्रोड्यूसर एक नयी फिल्म बना रहे हैं।” विवेक ने कहा-“यदि आप कहें तो मैं आपकी पत्नी की बात करूं। यदि आपकी पत्नी फिल्मों में आ गयी तो ये सबकी छुट्टी कर देंगी।”
“मैं सोचूंगा।” ।
“ठीक है।” उसने कहा-“सोचकर बता दीजिए।”
तब तक नीना चाय बना लायी थी। वे दोनों चाय पीने लगे। एक प्याला नीना ने भी ले लिया था।
विवेक चाय पीकर चला गया।
उसके बाद नीना और महेश ने सलाह की। महेश ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया“यदि तुम कर सकती हो तो कर लो, “मुझे कोई एतराज नहीं है।”
”ठीक है ।”
और दो दिन बाद जब विवेक आया तो नीना ने उसका जोरदार ढंग से स्वागत किया और कह दिया”मैं फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हूं।”
विवेक के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान फैल गयी। उसने कहा-“मैं कल आपको अपने साथ ले चलूंगा।’
“ठीक है।” नीना खुशी से उछल पड़ी।
दूसरे दिन विवेक नीना को अपने साथ लेकर चल दिया। वे दोनों पास-पास बैठे हुए थे। नीना का शरीर विवेक से सटा हुआ था।
टैक्सी एक वहुत बड़े बंगले के समक्ष जाकर रुकी। विवेक ने किराया चुकाया। दोनों बंगले के अन्दर दाखिल हो गए।
अन्दर जाकर विवेक ने नौकर से कहा-“वाटलीवाला से कहना कि विवेक आया है और नीना को साथ लाया है।”
नौकर अन्दर गया और लौटकर आया तो वोला–“आप लोग अन्दर चले जाइए।”
वे दोनों अन्दर चले गए।
अन्दर ड्राइंगरूम में तीस-पैंतीस साल का एक सुन्दर व्यक्ति बैठा था।
दोनों ने एक साथ उसको नमस्ते की। उसके संकेत पर वे दोनों सोफे पर बैठ गए।
कई पलों तक वहां चुप्पी छायी रही। फिर वाटलीवाला ने इस चुप्पी को तोड़ते हुए कहा-“तो ये है नीना।”
“जी।”
“ठीक है।” उसने कहा-“पहले इनका स्क्रीन टेस्ट कराओ, उसके बाद कोई बात होगी।’
तब विवेक नीना को एक अन्य कमरे में ले गया।
उस कमरे में कैमरा लगा हुआ था। सामने एक कुर्सी पड़ी हुई थी। कमरे में अंधेरा था। चारों ओर चित्र लगे हुए थे। उनमें कुछ नग्न चित्र भी थे।
नीना ने कमरे में चारों ओर देखा।
विवेक ने नीना के कई तरह से पोज लिए।
नीना यदि सही स्थिति में होती तो वह उस तरह के पोज कभी न देती। कई पोज तो लगभग नग्नावस्था में लिए गए। उन पोजों को देते समय स्वयं नीना को शर्म आ रही थी।
लेकिन…।
फिल्मों का लालच विवेक द्वारा दिखाए गए सब्जबागों ने उसका दिमाग खराब कर दिया था।
विवेक ने कई बार उसके तन को छुआ था।
पोज देने के बाद नीना बाहर आयी तो बाटलीवाला ने एक बार नीना को ऊपर से नीचे तक पारखी नजरों से देखा। फिर उसकी ओर देखते हुए कहा–’बैठो नीना।”
नीना सामने पड़े कीमती सोफे पर बैठ गयी।
कई पलों तक बाटलीवाला उसे गौर से देखता रहा। तभी नौकर वहां चला गया।
विवेक भी वहीं आ गया था।
काफी देर तक छाई खामोशी को बाटलीवाला ने चाय का एक घूट भरकर तोड़ते हुए कहा-“नीना जी ।”
जी।”
“काम करने से पहले कुछ बातें आपको साफतौर पर बताना उचित होगा,
‘जी।”
“फिल्म में काम करने के दौरान आपको पूरी-पूरी रात भी अपने घर से रहना पड़ सकता है। कभी-कभी आउटडोर शूटिंग के लिए बाहर भी जाना पड़ सकती है, जहां कई-कई दिन लग सकते हैं। इसके अतिरिक्त फिल्मों में चुम्बन जैसी बातें आम हो गयी हैं। इन सब बातों पर आप अच्छी तरह से गौर कीजिएगा तथा अपने पति से सलाह कीजिएगा। उसके बाद कोई फैसला लेना।”
‘‘जी।”
“आप दो-चार दिन में फैसला कर लें। तब तक स्क्रीन टेस्ट का रिजल्ट भी मिल जाएगा।”
“जी।”
कुछ देर बाद चाय पीकर. विवेक और नीना बाहर आ गए। बाहर आकर कुछ दूर जाने के बाद उन्होंने टैक्सी ली और चल दिए।
“नीना और विवेक पीछे की सीट पर बैठे हुए थे। रात हो चली थी लेकिन ड्राइवर ने अन्दर की लाइट नहीं जलायी थी।
विवेक जानबूझकर नीना से सटकर बैठा था। वह देखना चाहता था कि वह किसी प्रकार का विरोध करती है या नहीं? लेकिन उसने किसी तरह का विरोध नहीं किया था। विवेक का कुछ साहस बढ़ा और उसने उसकी पतली कमर के गिर्द अपनी बांह डाल दी।
गाड़ी दौड़ती रही।
विवेक ने अपनी बांह से एक बार नीना को भींच दिया था। मगर उसने कुछ कहा नहीं। नीना और तरह से सोच रही थी। वह सोच रही थी कि जो अवसर उसे विवेक के द्वारा मिल रहा है फिर पता नहीं मिलेगा या नहीं। वह यह भी जानती थी कि यदि वह फिल्मों में आ गयी और उसकी फिल्म चल गयी तो उसकी गिनती भारी चोटी के कलाकारों में हो जाएगी और उसके पास धन का अम्बार लग जाएगा। इसी वजह से उसने विवेक की हरकतों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। टैक्सी बताए हुए पते पर आ रुकी।
नीना को विवेक ने मुस्करा कर विदा किया।
नीना ने दरवाजा खुलवाया।
महेश उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
वहां पहुंचकर नीना ने पहले भोजन तैयार किया। जब वे दोनों भोजन करने लगे तो महेश ने पूछा-“क्या हुआ नीना?”
‘‘स्क्रीन टेस्ट के लिए पोज ले लिए हैं। वैसे इस बात की आशा तो है कि काम मिल जाएगा।” नीना ने आशा भरी नजरों से पति की ओर देखते हुए कहा।
तीन दिन बाद विवेक रात को नीना के यहां आया। उस समय महेश भी वहीं था।
नीना ने विवेक का हंसकर स्वागत किया।
विवेक सामने बैठ गया।
नीना चाय बनाने चली गयी।
कछ देर बाद वह चाय ले आई और तीनों चाय पीने लगे।
चाय का घुट भरते हुए विवेक ने कहा-“बोलो नीना जी, आप का क्या प्रोग्राम है? स्क्रीन टेस्ट में आप पास हो गयी हैं और बाटलीवाला आपको साइन करने के लिये तैयार है।”
“ठीक है, मैं भी तैयार हूं।” नीना ने कहा।
आपका क्या विचार है “मिस्टर महेश?”
“मेरी नजर में फिल्मों में काम करने में कोई हर्ज नहीं है।”
तो ठीक है।” विवेक ने कहा-“मैं कल इनको साइन करा दूंगा। आप चाहें तो साथ चलें ।”
“नहीं, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।” महेश ने कहा- “आप स्वयं सब संभाल लीजिएगा।”
अगले दिन महेश की पत्नी नीना को विवेक अपने साथ लेकर चला गया।
बाटलीवाला ने नीना को साइन किया। एडवांस के रूप में कुछ रुपए भी दिए।
उसके बाद…।।
शराब का दौर चला। नीना को भी दो पैग पीने पड़े थे। नीना ने ज्यादा विरोध नहीं किया। उसने सोचा अगर मना किया तो हाथ में आया हुआ कान्ट्रेक्ट न निकल जाए।
नीना को नशा हो गया। बाटलीवाला नीना को नशे की हालत में अपने बेडरूम, में ले गया। वे चार घण्टे के बाद बाहर आए थे। नीना को अभी भी हल्का-सा नशा था। नीना ने आज महेश के साथ विश्वासघात कर दिया था। फिल्म का काम प्रारम्भ हो गया था। फिल्म के दौरान वह कभी रात को तीन बजे आती तो कभी चार बजे।
महेश अकेला-सा रह गया था। इस दौरान वह स्वयं बनाकर खाना खाता था या भूखा ही सो जाता था।
नीना को कोई परेशानी नहीं थी। वह अच्छे से अच्छा खाना खाती थी और मौज लेती थी। कभी वह बाटलीवाला का बिस्तर गर्म करती तो कभी विवेक का, कभी फिल्मी हीरो का। उसके लक्षण महेश को भी खराब नजर आने लगे थे। उसने कई बार नीना से कहा भी था कि वह इस फिल्मी चक्कर को छोड़ दे लेकिन नीना ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया था। वह मनमानी करती रही।
तब…।
एक दिन महेश ने साफ-साफ कहा_नीना इस प्रकार की बेशर्मी मुझे बर्दाश्तनहीं है। यदि साथ रहना है तो ढंग से रहो। सही समय पर घर आओ।’
“महेश!” ।
“यस ।”
“यह सम्भव नहीं है।” नीना ने कहा-“मैं अपना कैरियर खराब नहीं कर सकती। यदि तुम साथ रखना चाहते हो तो ठीक है। वरना मैं अलग प्रबन्ध कर लुंगी”
“ठीक है कर लो।” महेश ने कहा।
“मैना…।” तोते ने अपनी बात बीच में ही रोककर उसे पुकारा और कहा-
‘‘सुन रही हो ना।”
“हां तोते, सुन रही हूं।’ उसने कहा।
नीना ने दूसरे दिन ही अपने लिए एक अलग फ्लैट ले लिया।” तोते ने फिर कहना प्रारम्भ किया और अपने आशिकों के साथ रंगरलियां मनाने लगी। पैसे की अब उसके पास कोई कमी नहीं थी। अन्य कई फिल्मों के कान्ट्रेक्ट उसे मिल गए थे।”
महेश एक-दो बार उसके फ्लैट पर गया लेकिन उसने मिलने से इन्कार कर दिया।
“मैना जिसने नीना के लिए अपना घर-बार, भाई-बहन और माता-पिता सबको छोड़ दिया। जिसके लिए धन-दौलत को ठुकरा दिया था, उसने उसी महेश को ठुकरा दिया था। उसकी कुर्बानियां उसे जरा भी याद नहीं आई। अपने नौकर द्वारा धक्के दिलवाकर अपने बंगले से बाहर खदेड़ दिया।
बेचारा महेश…।।
वह धोबी के कुत्ते की तरह घर का रहा ना घाट का । घर वह जा नहीं सकता था और नीना ने उसे ठुकरा दिया था।
एक महीने तक नीना के गम में घुलता रहा और फिर यह सोचकर कि औरत जात होती ही बेवफा है उसकी याद को दिल से निकाल दिया और अपने बिजनेस में लग गया।
और नीना…।।
वह लोगों के हाथों की कठपुतली बनती जा रही थी।
“मैंने कहा था ना मैना।” तोते ने कहा-“औरत जात बड़ी बेवफा होती है।”
मैना एक पल चुप रही। वह तोते के मुंह की ओर देखती रही। फिर बोली- “ये कोई बात नहीं है, सब औरतें एक जैसी नहीं होती हैं। यह मैं मानती हूं एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है। मगर तुम यह कथा सुनाकर ज्यादा खुश मत होओ। सुनो, मैं तुम्हें मर्दो की बेवफाई की एक और कथा सुनाती हूं।’
‘‘सुनाओ।” तोते ने कहा।
और फिर तोते ने मैना की ओर कान लगा दिए। मैना की भाव-मुद्रा ऐसी थी जैसे वह कुछ सोच रही हो।
रात मद्धिम गति से बीत रही थी।
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