सम्राट समुद्रगुप्त History – Samrat Samudragupta Biography Hindi
सम्राट समुद्रगुप्त History
– सम्राट समुद्रगुप्त का इतिहास / Samrat Samudragupta Biography in Hindi। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त का जीवन परिचय History – सम्राट समुद्रगुप्त की कहानी हिंदी में !
जब चन्द्रगुप्त सन 311 ईस्वी में साकेत की गद्दी पर बैठे, साकेत बहुत छोटा राज्य था। लेकिन चंद्रगुप्त ने अपने प्रताप से उसे प्रयाग तक बढ़ा लिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र समुद्रगुप्त 335 ईस्वी में सिंहासन पर बैठे। इतना प्रतापशाली नरेश किसी भी देश में शताब्दियों में कोई होता है। यूरोप के जो विख्यात विजयवीर कहे जाते हैं, वह भी तुलना करने पर समुद्रगुप्त के पराक्रम की कोटि में नहीं आते हैं।
छत्तीसगढ़, बस्तर, आंध्र, कलिंग आदि थोड़े ही प्रदेशों पर समुद्रगुप्त को सेना लेकर चढ़ाई करनी पड़ी। सीमांत के अन्य सभी नरेशो ने उनके प्रबल प्रताप के सामने स्वयं मस्तक झुका दिया। उन्हें सम्राट स्वीकार करना राजाओं के लिए गौरव की बात बन गई। त्रिपुरा, कामरूप, कुमायूं आदि सभी राज्यों ने उन्हें अपना महाराजाधिराज माना।
किंतु भारतीय चक्रवर्ती सम्राट केवल विजेता नहीं होते थे। किसी राज्य को पराजित करके वहां के लोगों को पराधीन बनाना तो क्रूरता माना जाता था। सम्राट विजेता होने के साथ राज्यों के स्थापक होते थे। उनकी उदारता, कीर्ति और प्रताप के कारण काबुल, सीहल जैसे प्रदेश एवं दूसरे सभी भारतीय द्वीपो के राजा उन्हें कर देते थे तथा अपना सम्राट मानते थे।
दिग्विजय करके समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया। द्वापर के अंत में जन्मे जये ने यह यज्ञ किया था। कलयुग में इस महान यज्ञ को कर सकना अत्यंत कठिन माना गया है। समस्त नरेश जिसे अपना सम्राट मान ले, वही इसे कर सकता है और इस यज्ञ में जो श्रम में तथा व्यय होता है, उसका तो कुछ ठिकाना ही नहीं है; यह समुद्रगुप्त के वैभव और प्रताप की महानता ही थी कि वे इस यज्ञ को कर सके।
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अद्वितीय विजेता होने के साथ सम्राट समुद्रगुप्त आदर्श राजा थे। वे स्वयं विद्वान थे। काव्य और संगीत में वे अत्यंत निपुण थे। इसी के साथ में भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। स्वयं वैष्णव होने पर भी बौद्ध प्रजा के साथ उनका व्यवहार बहुत ही उदार था। उनकी अनुमति से ही लंका के बौद्ध राजा ने बुद्ध गया में एक ‘विहार’ बनवाया था।
उदार, न्याय, दानी, वीर तथा प्रजावत्सल होने के साथ कवि, संगीतज्ञ और भगवत भक्त ऐसे प्रतापी नरेश किसी देश के लिए भी गौरव के हेतु हैं। लगभग 380 ईस्वी एक समुद्रगुप्त ने शासन किया।।
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