Short Stories in Hindi – कंजूस और साधु
Short Stories in Hindi – कंजूस और साधु
हिंदी मोरल स्टोरी / Hindi Moral Stories | Short Stories in Hindi
गांव अमीर नगर में एक बहुत ही बड़ा कंजूस रहता था | उसकी कंजूसी का यह आलम था कि यदि वह खाना खाने बैठता था तो अपना दरवाजा इसलिए बंद कर लेता था कि कहीं उसके खाते समय कोई आ गया तो उसे भी खाना खिलाना ना पड़ जाये |
दुर्भाग्यवश एक दिन जिस समय वह खाना खाने के लिए बैठा तो दरवाजा बंद करना भूल गया |
अभी वह कंजूस खाना खाने के लिए बैठा ही था कि तभी एक साधु भिक्षा मांगने आ गया | उसने कहा – “ बेटा! भगवान के नाम पर एक रोटी तो दो |”
कंजूस तुरंत खाना छोड़कर उठा और उसने साधु को वहां से टालने की कोशिश की | मगर साधु अड़ीयल था | वह वहीं खड़ा रहा |
साधु को टलता न देख कंजूस ने सोचा “ यह साधु तो बड़ा अडियल है | इसे तो कुछ देकर ही टालना होगा |”
उसने आधी रोटी साधु को देनी चाही |
मगर साधु ने आधी रोटी लेने से मना कर दिया और कहा – “ मैं तो पूरी एक रोटी ही लूंगा |”
लेकिन कंजूस ने उसे पूरी रोटी नहीं दी और साधु ने आधी रोटी नहीं पकड़ी |
फिर वह कंजूस खाना खाकर अपने काम पर चला गया |
शाम को जब वह लौटकर अपने घर पर आया तो उसने साधु को अपने दरवाजे पर ही बैठा पाया |
तब उस कंजूस ने साधु की अडीकता देखकर उसे पूरी एक रोटी देनी चाही – “ लो बाबा तुम पूरी एक रोटी ही लो |”
“ अब एक नहीं मुझे दो रोटी चाहिए | क्योंकि अब खाने का दूसरा समय आ गया है |” एक रोटी अपनी और बढ़ता देखकर साधु महाराज ने तुरंत कहा |
“ ऐ….ऐ….. तुझे एक रोटी लेनी है तो ले |” कंजूस ने अकड़कर साधु को धिक्कारा |
मगर साधु ने उससे वह एक रोटी भी नहीं ली और कंजूस ने साधु के कहने पर उसे दो रोटी नहीं दी |
कंजूस अपने घर में घुसा दरवाजा बंद किया, खाना खाया और सो गया |
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वह सुबह उठा तो उसने साधु को अपने दरवाजे पर ही बैठा पाया | उसे देखकर कंजूस घबरा गया | वह सोचने लगा – “ यदि साधु मेरे दरवाजे पर भूखा मर गया, तो मैं खामखा फस जाऊंगा |”
तब उसने साधु को दो रोटियां देनी चाही |
मगर फिर साधु ने कहा – “ अब तो खाने का तीसरा समय आ गया है | अब मुझे तीन रोटियां चाहिए |”
लेकिन इस बार भी कंजूस ने उसे तीन रोटियां नहीं दी और साधु ने उससे दो रोटियां नहीं ली |
इस प्रकार चार दिन बीत गये | साधु चार दिनों तक भूखा रहा, तो उसके शरीर में परिवर्तन आना स्वाभाविक ही था |
वह मरने हाल में दिखाई देने लगा | न खाने के कारण वह अत्यधिक कमजोर हो गया | साधु की यह हालत देखकर कंजूस बहुत घबराने लगा |
फिर उसने साधु के सामने हाथ जोड़कर कहा – “ महाराज! आपको जितनी भी रोटियां चाहिए, ले लीजिए | मगर आप यहां से चले जाइए |
साधु महाराज बोले – “ बच्चे! अब रोटी से काम नहीं चलेगा | अब मैं तो यहां से तभी हटूगा जब तुम मेरे साथ मिलकर एक कुआं ख़ुदवाओगे |”
साधु महाराज की यह बात सुनकर कंजूस का दम खुशक हो गया | वह बोला – “ यह आप क्या कह रहे हैं ? महाराज! मैं कुआ नहीं खुदवा सकता |”
“ अच्छा फिर ठीक है, मैं भी यहां से नहीं हटूंगा |”
साधु की बात कंजूस ने सुनी अवश्य थी | लेकिन वह उसकी बात को टालकर अपने काम पर चला गया |
मगर फिर उसकी बुद्धि रह-रहकर साधु की ओर जा रही थी | उसका मन काम में नहीं लग रहा था |
और फिर वह बीच में ही अपना काम छोड़कर चला आया |
साधु को वही पाकर उसने कहा – “ महाराज! मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है | अब तो तुम रोटी खा लो |”
फिर साधु ने कहा – “ बच्चे! अब एक कुऐ से काम नहीं चलेगा | अब तो तुम्हें दो कुऐ खुदवाने पड़ेंगे | एक मेरे लिए और दूसरा अपने लिए |”
कंजूस ने फिर साधु की बात को अस्वीकार करनी चाही | मगर तभी उसने सोचा कि “ यदि उसने साधु की बात को अस्वीकार कर दिया तो जितनी बार भी उसने उसकी बात को अस्वीकार कर दिया | उतनी बार ही साधु कुएं की संख्या में वृद्धि कर देगा | नहीं मुझे “हां” कर देनी चाहिए |”
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फिर उसने दो कुए खुदवाने के लिए साधु से “हां” कर ली |
और कुछ दिन बाद दोनों को यह तैयार हो गये |
तब साधु ने कहा – “ हे मानव ! में एक वर्ष बाद फिर आऊंगा | तब यदि मेरे कुए का पानी तुम्हारे कुए के पानी से कम रहा | तो मैं तीसरा कुआ खुदवा लूगा |” इतना कहकर वह साधु वहां से चला गया |
उसके जाने के बाद कंजूस ने सोचा “ साधु जिद्दी किस्म का व्यक्ति है | मुझे एक काम करना चाहिए मैं| अपना कुआं खुला छोड़ देता हूं और साधु के कुए को बंद कर देता हूं | लोग मेरे कुए से पानी निकालेंगे और साधु का कुआ सुरक्षित रहेगा | इससे निश्चित ही मेरे कुए का पानी कम होगा और साधु के कुए का पानी ज्यों का त्यों बना रहेगा |” फिर कंजूस ने ऐसा ही किया |
उसने अपना कुआ खुला छोड़कर, साधु महाराज का कुआ ढक दिया |
एक वर्ष बाद साधु अपने कहे अनुसार पुन: आया |
साधु को देखते ही कंजूस ने गर्व से कहा – “ महाराज ! आप अपने और मेरे कुएं का पानी नाप लीजिए | मेरे कुए मैं आपके कुए से पानी कम है |”
साधु कंजूस के साथ कुएं के पास गया और बोला – “ तुम नापो |” फिर कंजूस ने दोनों कुओं का पानी नापा |
नापते ही वह हड़बड़ा गया | उसे साधु की शर्त याद आ गई उसने कहा – “ महाराज! आप मुझसे कैसी भी कसम ले ले | मैंने आपके कुए से किसी को भी पानी नहीं लेने दिया | जबकि मैंने अपने कुए को लोगों को पानी भरने के लिए खुला छोड़ दिया था | लोग केवल मेरे ही कुएं से पानी भरकर ले जाते थे | मगर फिर भी मेरे कुए में पानी ज्यादा कैसे हो गया | यह मेरी समझ में नहीं आया |”
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कंजूस की बात सुनकर साधु मुस्कुराया फिर बोला – अरे बुद्धू ! थोड़ी गहराई से सोचो तो सब कुछ समझ जाओगे |”
कंजूस ने अपने दिमाग पर बहुत जोर दिया | लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आया |
फिर साधु महाराज ने उसे समझाया – “ अरे बेवकूफ आदमी ! तूने मेरे कुए से किसी को पानी भरने नहीं दिया और अपना कुआ लोगों के लिए खुला छोड़ दिया | तू नहीं जानता अक्ल के अंधे आदमी! की दान देने से धन कभी नहीं घटता | तिजोरी में रखने से वह घट जाता है, इसलिए मेरे कुए से तुमने पानी नहीं निकलने दिया और अपने कुए से खूब पानी भरवाया | तभी तो तुम्हारे कुए का पानी मेरे कुए से ज्यादा रहा |”
साधु की बात सुनकर कंजूस की आंखें खुल गई और फिर वह उस दिन से दान करने लगा | अब वह जान गया कि दान करने से धन कभी नहीं घटता |
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