Stories For Kids – एक अनार दो बीमार – Short Stories For Kids

Stories For Kids – एक अनार दो बीमार

Short Stories For Kids / Moral Stories

भगवान शिव और देवी पार्वती के दो पुत्र थे | दोनों बहुत छोटे थे | वे अपनी माता के पास भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल-खेलते रहते थे | उनकी क्रियाएं पर्वती को आनंद विभोर करती रहती थी |

एक दिन दोनों बच्चे खेल रहे थे | चारों और प्रेम-वर्षा हो रही थी | देवताओं ने यह दृश्य देखा तो वे भी पुलकित हो  उठे |

उन्होंने अत्यधिक प्रसन्न होकर पार्वती को एक लड्डू दिया | उसे देखकर दोनों बच्चे मचलने लगे |

गणेश कहते – “ मैं लूंगा ”

कार्तिकेय कहते – “ मैं लूंगा ”

यह देख पार्वती ने कहा – “ तुम दोनों के लिए मैं इस लड्डू के दो टुकड़े नहीं करूंगी |”

“ तब क्या होगा ” दोनों ने पूछा |

“ मैंने एक उपाय सोचा है |”

दोनों बच्चों की जिज्ञासा ने तूल पकड़ा |

पार्वती ने कहा – “ तुम दोनों में से जो खुद को अधिक धर्मात्मा सिद्ध कर देगा | यह लड्डू में उसी को दूंगी |”

और बस !

यह सुनते ही कार्तिकेय मोर पर सवार होकर तीर्थ यात्रा पर निकल पडे | वह सोचते थे कि “ तीर्थ यात्रा से उन्हें जो लाभ होगा, उन्हें उनके भाई से अधिक धर्मात्मा सिद्ध कर देगा |”

यह सोचकर उन्होंने जितने बड़े-बड़े तीर्थ थे, सभी की यात्रा की |

उधर गणेश ने सोचा की “ सबसे बड़ा धर्मात्मा तो वह है, जो अपने माता-पिता की सेवा करता है | यह तीर्थ सब तीर्थों से बड़ा है |”

यह सोचकर अपने माता-पिता की आदर, सम्मान सहित परिक्रमा की और उनके चरणों में प्रणाम करने बैठ गये |

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इधर कार्तिकेय ने एक के बाद सभी तीर्थों की यात्रा की और अपने अंतिम लक्ष्य अर्थात माता-पिता की ओर रवाना हो गये |

वे मन ही मन यह सोचकर प्रसन्न हो रहे थे, कि “ अब वे सबसे बड़े धर्मात्मा है व लड्डू उनका ही है |’

जबकि इधर गणेश ने अपने माता-पिता की सेवा में दिन-रात एक कर दिया था |

हर समय अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना ही उनका धर्म रह गया था |

और फिर…,

वह समय भी आ गया | जब कार्तिकेय अपने लक्ष्य पर पहुंचे और पार्वती से लड्डू की मांग की |

पर्वती ने पूछा – “ प्रभु! पहले अपने धर्मात्मा होने का प्रमाण दो |”

कार्तिकेय ने कहा – “ हे माता ! मैंने सभी तीर्थों कि यात्रा की व अपने घर लौटा | क्या सभी तीर्थों की यात्रा करने वाला धर्मात्मा नहीं होता |”

“ होता है, पुत्र ” पार्वती ने शांत भाव से कहा – “ केवल धर्मात्मा हो सकता है, सबसे बड़ा धर्मात्मा नहीं |”

“ सबसे बड़ा धर्मात्मा कौन है, माता ” कार्तिकेय ने पूछा |

“ वह जो सच्चे हृदय से माता-पिता की सेवा करता है, और तुम्हारे भाई गणेश ने यही किया है | अतः इस लड्डू का अधिकारी वही है |”

इतना कहकर पार्वती ने लड्डू गणेश को दे दिया |

शिक्षा – “ इस धर्म कथा में हमें यह शिक्षा मिलती है, कि संसार का सारा पुण्य माता-पिता के चरणो में ही है | जो लोग मां-बाप की सेवा से विमुख होकर, पुण्य कमाने दूर-दूर जाकर भटकने लगते हैं | उनका पुण्य कई बार निष्फल होता है | जैसा कि गणेश और कार्तिकेय के मामले में देखने को मिला |”

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Written by lokhindi
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