Story in Hindi – राजा का न्याय – Story in Hindi
Story in Hindi – राजा का न्याय
Story in Hindi
बहुत पुराने जमाने की बात है | अनंतपुर नगर में एक राजा राज्य करता था | वह बड़ा बुद्धिमान और न्याय प्रिय था | उसको अपनी प्रजा से बहुत प्रेम था, इसलिए वह अपनी प्रजा को सदा प्रसन्न देखना चाहता था |
वह चाहता था कि उसके राज्य में सभी को उचित न्याय मिले – इसलिए उसने अपने सभी दरबारियों को एकत्र किया |
सभी दरबारी जब इकट्ठे हो गये तो राजा ने उनके सामने एक प्रस्ताव रखा | वह बोला – “ हम चाहते हैं, कि हमारे राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को न्याय मिले | यदि किसी भी व्यक्ति की कोई भी समस्या हो, तो वह सीधा बिना किसी झिझक के हम से आकर मिले |”
सभी दरबारियों ने राजा के प्रस्ताव को उचित ठहराया |
तब राजा ने आदेश दिया –
“ हमारे महल की मीनार में एक बहुत बड़ा घंटा लगाया जाये | उसकी रस्सी नीचे जमीन तक लटकी होनी चाहिये |”
आदेश का पालन हुआ |
घंटा मीनार में लटकाया गया और उसमें एक लंबी मजबूत रस्सी बांधी गयी |
फिर राजा ने अपने राज्य में ऐलान करा दिया कि ‘ यदि किसी के साथ कोई अन्याय हो, तो वह केवल घंटे को बजा दे | उस व्यक्ति को न्याय अवश्य मिलेगा |’
ऐलान को सुनकर राजा के लोग बहुत प्रसन्न हुये | लोगों में चर्चाएं होने लगी | हमारा राजा बहुत अच्छा है, इतना अच्छा राजा किसी दूसरे राज्य का नहीं हो सकता |
कोई कुछ कहकर अपने राजा की तारीफ करता, तो कोई कुछ कहकर |
लोगों की परेशानियों का हल अब सुविधापूर्वक होने लगा |
कई वर्षों तक यही सिलसिला चलता रहा | लोगों को उचित न्याय मिलता और वे खुशी-खुशी अपने घर लौट जाते |
राजा भी अपने वचन का सच्चा साबित हो रहा था | उसने अपनी तरफ से पूरा-पूरा प्रयत्न किया था | अपनी प्रजा को उचित न्याय प्रदान करने का | राज्य की प्रजा आती, रस्सी खींचती और घंटा बजता |
तुरंत कुछ समय बाद रस्सी काफी पुरानी होने के कारण कमजोर पड़ चुकी थी |
एक दिन राजा ने रस्सी का निरीक्षण किया, तो उन्होंने पाया कि वास्तव में रस्सी की हालत इस समय बहुत कमजोर हो गयी है | तब राजा ने अपने नौकरों से उस रस्सी को बदलने का आदेश दिया –
“ घंटे में बंधी रस्सी अब पुरानी और कमजोर हो गुयी है, इसलिए उसे बदलकर नई तथा मजबूत रस्सी बांध दी जाये |”
राजा के आदेश का पालन किया गया | नई तथा मोटी और मजबूत रस्सी का प्रबंध किया गया |
लेकिन यह नई रस्सी इतनी मजबूत और मोटी नहीं थी, जितनी की पहले वाली थी |
तब राजा के नौकरों के दिमाग में एक युक्ति आयी –
उन्होंने सोचा कि क्यों ना वे उस रस्सी के स्थान पर मोटी सी अंगूर की बेल लटका दें |
उनकी युक्ति नौकरों के कमांडर की समझ में आ गयी | अत: उन्होंने एक लंबी मोटी और मजबूत अंगूर की बेल घंटे से बांधकर लटका दी |
बेल काफी मजबूत और ताजी होने के कारण जल्द ही उसमें कोपले निकल आयी |
ऊपर से नीचे तक वह हरी-भरी हो गयी | हरी-भरी होने के कारण वह बेल बहुत सुंदर लगने लगी |
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उस राज्य में एक सैनिक रहता था | उसके पास अपना एक वृद्ध घोड़ा था | घोड़े की तरह वह सैनिक भी अब बुड्ढा हो चुका था |
परंतु उस सैनीक को अपने वृद्ध घोड़े से बहुत प्यार था | क्योंकि उसने प्रत्येक युद्ध में उसका साथ दिया था |
किंतु अब सैनिक से अपने घोड़े की पहले जैसी देखभाल नहीं हो पाती थी, इसलिए एक दिन उसने अपने घोड़े को आजाद कर दिया |
घोड़ा इधर-उधर भटकने लगा |
उसकी आंखें भी कमजोर हो गयी थी | उसे अपना चारा भी कम ही दिखाई देता था |
भटकता हुआ एक दिन वह राजा की उसी मीनार की ओर निकल गया | जिसमे घंटा लटक रहा था और अंगूर की बेल उससे बंधी थी |
घोड़े ने हरी-भरी अंगूर की बेल की कोपले देखी, तो उसका मन ललचाने लगा |
उसने अपना मुंह बढ़ाकर कोपले खानी आरंभ कर दी |
लेकिन जैसे ही उसने कोपल खाने के लिये उन्हें अपने मुंह में दबाकर खिंचा, तो उससे बंधा घंटा बज उठा |
घंटा बजते ही वहां लोग एकत्र होने लगे |
मगर वहां उन्हें कोई भी व्यक्ति दिखायी नहीं दिया |
वे सोचने लगे कि “ यहां तो कोई भी व्यक्ति नहीं है, फिर घंटा किसने बजाया |”
उन्होंने चारों ओर देखा, लेकिन उन्हें कोई भी व्यक्ति नहीं दिखायी दिया |
राजा के सेवक भी वहां पहुंचे | मगर वे भी किसी ऐसे व्यक्ति की खोज न कर पाये, जिसने घंटा बजाया हो |
दरबार में हलचल मच गयी |
बात राजा तक पहुंची, वह भी उसी स्थान पर आ गया |
तभी –
घोड़े ने एक बार फिर कोपले खाने के लिए अपना मुंह आगे बढ़ाया | कोपले अपने मुंह में दबोची और बेल को खींच दिया |
घंटा एक बार फिर बजा |
इस बार वहां मौजूद राजा सहित सभी लोगों ने घोड़े की इस क्रिया को देख लिया था |
सभी अचंभित रह गये |
तब राजा ने अपने दरबारियों को आदेश दिया, कि वे घोड़े को पकड़कर दरबार में हाजिर करें |
घोड़े को दरबार में पेश किया गया |
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तब राजा ने अपने दरबारियों से सलाह मशवरा किया, कि इसके साथ क्या न्याय किया जाये |
किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ कहा |
एक दरबारी ने सलाह दी कि “ महाराज यह तो घोड़ा है, इसे क्या न्याय चाहिये |”
परंतु राजा उसकी बात से सहमत नहीं हुआ | उसने आदेश दिया कि – “ घोड़े के मालिक को ढूंढकर दरबार में लाया जाये | उसी से इसके के बारे में पूछताछ की जायेगी |”
और फिर राजा के सैनिक राज्य में घोड़े के मालिक को तलाश करने के लिए निकल पड़े |
शाम तक वे उसे ढूंढकर दरबार में ले आये |
घोड़े का मालिक बुड्ढा सैनिक जब राजा के सामने पेश किया गया, तो राजा ने उससे घोड़े के विषय में पूछा –
“ यह घोड़ा तुम्हारा है ”
“ जी हुजूर ” उसने हाथ जोड़कर कहा |
“ फिर तुमने उसे लावारिसो की तरह क्यों छोड़ रखा है ” राजा ने कड़कदार आवाज में उसे पूछा |
“ हुजूर ! अब यह बूढ़ा हो चुका है, इसलिए मैंने इसे आजाद कर दिया |”
“ तो क्या जवानी में भी यह तुम्हारे पास ही था |”
“ जी हुजूर ! यह घोड़ा दस सालों से मेरे पास ही है, कई युद्धों में इस ने मेरा साथ दिया है |”
“ ओह ” राजा ने कुछ सोचते हुये कहा – “ तो जवानी में तुमने इसकी सेवाएं प्राप्त की और अब यह है जब बूढ़ा हो चला है, तो तुमने इसे इस प्रकार छोड़ दिया | शर्म आनी चाहिये तुम्हें |” राजा ने क्रोधित होकर कहा |
सैनिक का सिर शर्म से झुक गया | उससे कुछ कहते ना बन पाया |
तब राजा ने आदेश दिया इसे – “ अपने घर ले जाओ और जिस प्रकार जवानी में तुम इसे चारा दिया करते थे | उसी प्रकार अब भी इसकी सेवा करो | यह हमारे दरबार में न्याय मांगने के लिये आया था इसलिए हमारा कर्तव्य है, कि हम इस घोड़े को भी उसी प्रकार में प्रदान करें | जिस प्रकार हम मनुष्य को करते हैं | अलबत्ता इसकी देखभाल का खर्च राजकोष से तुम्हें हर माह प्राप्त होता रहेगा |”
राजा का न्याय सुनकर दरबार में मौजूद सभी व्यक्ति आश्चर्यचकित होकर, उनके मुंह को देखने लगे |
राजा का न्याय उसके राज्य के सभी प्राणियों के लिए बराबर था |
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