वफ़ा का ईनाम कहानी – Cheating love story
Cheating love story
धोखेबाज प्रेमी की कहानी / तोता-मैना के किस्से की रोचक दास्ता “वफ़ा का ईनाम कहानी” Cheating love story in hindi, एक दग़ाबाज प्रेमी जिसने अपनी ही प्रेमिका को धोख़ा दिया! Romantic love story hindi
रतनगिरी नगर में वीर प्रताप नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राजान का पुत्र श्याम सुन्दर काफी सुन्दर और बुद्धिमान था। एक दिन राजमहल में एक सौदागर व्यापार करने आया। उस सौदागर ने श्याम सुन्दर को एक लड़की की तस्वीर दिखाई। उस तस्वीर को देखकर राजकुमार काफी खुश हुआ। पहली ही नजर में राजकुमार को वह लड़की भा गई।
राजकुमार का ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे वह उसे बरसों से जानता है। राजकुमार का दिल तेजी से धड़कन लगा था, उसे ऐसा लगने लगा था जैसे उसे इस तस्वीर में अंकित लड़की से प्यार हो गया है। राजकुमार ने अधीर होकर सौदागर से पूछा–
“यह किसकी तस्वीर है महानुभाव, जिसकी सुन्दरता के उजाले ने मेरी आंखों में चकाचौंध पैदा कर दी है। इसे देखकर तो मेरे हृदय में प्रेम की ज्वाला भड़क उठी है। अगर इसकी तस्वीर इतनी मनमोहक है तो वह स्वयं चन्द्रमा की चांदनी से कम न होगी।’
सौदागर राजकुमार की आंखों में चमक देखकर खुश हुआ।
यह सुनकर वह सौदागर बोला–”हे राजकुमार! इस स्त्री के समान सुन्दर स्त्री सात द्वीपों में भी नहीं मिलेगी। इसके सामने चन्द्रमा भी शरमाता है। इसके नैन कटोरे देखकर मृग भी घबराकर भाग जाते हैं। इसकी मदमाती चाल को देखकर नागिन को अपनी चाल बेहद व्यर्थ मालूम होती है और इसके कपोलों की लालिमा से फूलों को भी शरमाना पड़ता है। राजकुमार! सात समन्दर पार कंचनपुरे शहर है, जहां के राजा इन्द्रमन हैं, यह उन्हीं की पुत्री है।”
सौदागर की यह बात सुनकर राजकुमार ने उस सौदागर को इनाम देकर वहां से विदा किया। वह मन में विचार करने लगा कि जब तक यह स्त्री नहीं मिल जाती तब तक जीवित रहना व्यर्थ है, इस स्त्री को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
यह सोचकर राजकुमार ने अपने शाही कपड़े उतारकर फेंक दिए और साधुओं का रूप धारण करके जंगल की ओर चल दिया।
जब राजा को यह पता चला कि राजकुमार शाही ठाट-बाट छोड़कर जंगल में भटकने के लिए जा रहा है तो वह सोचने लगे कि आखिर राजकुमार पर ऐसी क्या विपत्ति आ पड़ी है जो वह राजमहल के सुख त्याग कर वनवास लेना चाहता है। वह तुरन्त अपने बेटे के पास पहुंचे और बोले-
“बेटे! ऐसी क्या विपत्ति आ गई जो तुम राजमहल छोड़कर जंगल की खाक छानने के लिए जाना चाहते हो?”
अपने पिता की बात सुनकर राजकुमार बोला-“मेरा मन एक सुन्दर स्त्री की चाह में भटक रहा है, मैं उसी को प्राप्त करने के लिए जा रहा हूं।”
राजकुमार श्याम सुन्दर माता-पिता के काफी प्रयास करने पर भी नहीं रुका और जैसे ही राजमहल से जाने लगा तो उसकी पत्नी उसके पैरों में गिरकर रो पड़ी,
लेकिन राजकुमार का कठोर दिल अपनी पत्नी के आंसुओं से भी नहीं पिघला और वह जंगल की ओर चला गया।
मैना बोली-“देख तोते! श्याम सुन्दर के समान कोई बेवफा होगा? उसकी प्रिय पत्नी किस प्रकार विलाप कर रही थी। लेकिन निर्दयी श्याम को उस पर तनिक भी दया नहीं आई।” मैना ने कहा अब सुन्दर की बात सुन- “काफी दिन यात्रा करने के पश्चात् राजकुमार श्यामसुन्दर कंचनपुर जा पहुंचा और राजकुमारी के महल के सामने आसन जमाकर बैठ गया। संयोगवश एक दिन राजकुमारी जब महल की खिडकी में खड़ी थी तो उसकी दृष्टि उस जोगी बने श्यामसुन्दर पर पड़ी। ठीक उसी समय राजकुमार ने भी उधर देखा। जब उन दोनों के नैन मिले तो राजकुमारी को भी राजकुमार अच्छा लगा और वह उस पर मोहित हो गयी और रानी चन्द्रकिरण उससे कहने लगी-
“हे योगी तुम कौन हो और कहां से आए? देखने में तुम मुझे अच्छे लगते हो।”
चन्द्रकिरण की बात सुनकर राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा- “राजकुमारी मुझे तुम्हारी सुन्दरता यहां खींच लाई है। मैं अपना रांजमहल, माता-पिता और अपनी पत्नी को छोड़कर तुम्हारे पहलू में आया हूं। तुम्हें देखकर दिल को सुकून मिलता है।”
यह सुनकर चन्द्रकिरण ने कहा-“योगी तू भी मुझे अच्छा लगता है लेकिन में डरती हूं कहीं महाराज तुझे कैद में न डाल दें ।”
चन्द्रकिरण की बात सुनकर श्यामसुन्दर ने उत्तर दिया–“जो होगा देखा जाएगा, अपने दिल की रानी के लिए मैं हर कष्ट सहने के लिए तैयार हूं।”
श्याम सुन्दर की बात सुनकर चन्द्रकिरण बोली-“ऐ जोगी! मेरे प्रेम में तेरे प्राणों का भी खतरा है, क्योंकि जो भी मुझसे प्रेम करता है, मेरे पिता उसको कैद कर लेते हैं। एक व्यक्ति तो अब भी उनकी कैद में पड़ा सड़ रहा है। इसलिए उचित यही है कि तू अपने देश को वापस चला जा। प्रेम में अपने प्राण मत गंवा ।”
यह सुनकर श्यामसुन्दर ने उत्तर दिया- ”मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता राजकुमारी। अगर मेरे प्रति तुम्हारे दिल में जरा भी जगह है तो मुझे अपने पहलू में आने की इजाजत दे दो।”
राजकुमार श्यामसुन्दर की बात सुनकर चन्द्रकिरण ने अपने महल से कमन्द नीचे डाली और श्यामसुन्दर उसके द्वारा महल में प्रवेश कर गया और अपने भाग्य को सराहने लगा।
तब चन्द्रकिरण उसके गले में बांहें डालकर कहने लगी- “मैं तुझे दिलो जान से चाहने लगी हूं, तूने मेरे लिए अपना घर-बार और वतन छोड़ा है। मेरे करीब आ प्रियतम, मैं तुझे जी भरकर प्यार करना चाहती हूं। लेकिन अपने पिता जी से भयभीत हूं। कहीं वह तुझे भी कैद में न डाल दें।”
मैना बोली- ‘‘ऐ तोते! इस तरह दोनों को ऐशो-आराम करते-करते बहुत दिन बीत गए। फिर एक बार की बात है कि रात के अंतिम पहर में श्यामसुन्दर जब कमन्द के द्वारा नीचे उतर रहा था, उसी समय एक कोतवाल आ गया। वह श्यामसुन्दर को चोर समझकर कहने लगा–“तू कौन है जो चोरों की तरह महल से निकल रहा है, अवश्य ही तू चोर है।”
“मैं चोर नहीं हूं एक शरीफ इन्सान हूं, मुझ गरीब पर रहम करो।’ श्याम सुन्दर कोतवाल से क्षमा-याचना करने लगा।
श्यामसुन्दर के क्षमा मांगने से भी कोतवाल प्रभावित न हुआ और सिपाहियो को उसे गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दी और बोला- “यह बहुत बड़ा बदमाश है। इसने सारी प्रजा को परेशान कर रखा है।”
यह कहकर कोतवाल उसको लेकर कोतवालीं चला गया। अगली सुबह दरबार में ले जाकर सारा हाल राजा के सामने कह सुनाया–”महाराज! यह बहुत बड़ा चोर है। रात के समय यह महल में चोरी करने गया था। जब यह उतरकर जा रहा था तो मैंने इसे पकड़ लिया था।”
राजा को यह सुनकर वहा क्रोध आया और उसने श्यामसुन्दर को सख्त सजा का हुक्म दिया। सिपाही उसे लेकर चले गए। जब यह बात चन्द्रकिरण को पता चली कि उसके प्रेमी को राजा ने कैद कर लिया है और सख्त सजा की आज्ञा दी है तो वह बेहोश होकर गिर पड़ी।
जब उसे होश आया तो वह विलाप करने लगी और कहने लगी–“मेरे प्रेमी को किस अपराध की सजा दी है महाराज ने। अगर मेरे प्रिय श्यामसुन्दर को कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रह सकूगी। जिस प्रकार मरे पिता ने मेरा दिल दुखाया है, उसी प्रकार बेटी के विरोह में उन्हें भी दारुण द:ख मिलेगा।” कहने के साथ-साथ वह फूट-फूट कर रोती भी जा रही थी। उसकी सखियां उसे धीरज बंधाने का प्रयास करने लगीं। इस पर राजकुमारी चन्द्रकिरण ने कहा- ‘‘हे सखी, मैं किस प्रकार धीरज धरू। मुझे पिया के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता।”
मैना बोली- “ऐ तोते ! इस प्रकार चन्द्रकिरण हर समय राजकुमार श्यामसुन्दर के विरह में व्याकुल होकर रोती रहती। अब मैं यहां का किस्सा समाप्त करके राजकुमार श्यामसुन्दर की पहली पत्नी का हाल कहती हूं—
वफ़ा का ईनाम कहानी – Cheating love story
रानी भी अपने पति के विरह में बुरी तरह व्याकुल रहती थी। एक बार की बात है कि रानी महल में सो रही थी कि अचानक उसने सपना देखा कि एक बच्चा रानी से कह रहा था कि रानी! तेरा पति श्यामसुन्दर कंचनपुर में कैद हो गया है।
यह स्वप्न देखकर रानी एकदम चौंक पड़ी और व्याकुल हो चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी। रोने की आवाज सुनकर दासियां दौड़ी हुई आई और कहने लगीं- ‘‘राजकुमारी जी! क्या हुआ? शायद आपने कोई भयानक सपना देखा है।”
अपनी दासी का यह वचन सुनकर रानी कहने लगी- “मैं सो रही थी कि एक बच्चे ने आवाज दी और कहा कि तु सो रही है, वहां तरी पति कंचनपुर में कैद हो गया है। ऐ दासी! वह जल्दी आने का वचन देकर गये थे, मगर अभी तक नहीं लौटे। ऐसा प्रतीत होता है वह अवश्य ही किसी विपत्ति में पड़ गए हैं और गिरफ्तार हो गए हैं। मैं जोगिन बनकर उनकी सहायता करने का विचार कर रही हूं।”
रानी की यह बात सुनकर उसकी दासी बोली-“आप दिन-रात रो-रोकर क्यों स्वयं को नष्ट कर रही हैं? आपके पति कुशलपूर्वक हैं और कुशलपूर्वक आ जाएंगे, आप चिन्ता न करें ।”
दासी ने रानी को बहुत समझाया मगर रानी को समझ में नहीं आया । वह आह भरकर बोली-“ऐ दासी, मैं अपने पति परमेश्वर को तलाश करने अवश्य जाऊंगी। मेरे महल की रखवाली करना और होशियार रहना।”
यह कहकर रानी ने अपना सारा श्रृंगार व जेवर उतार दिए और शरीर पर राख मलकर जोगन बन गई और हाथ में वीणा लेकर जंगल की ओर चल पड़ी।
मैना बोली-“ऐ तोते! वह पति की तलाश करने चल पड़ी और बहुत दिनों तक शहरों और जंगलों की खाक छानते-छानते वह कंचनपुर जा पहुंची। वहां जाकर वहां के लोगों से अपने पति का हाल पता किया। लोगों ने बताया कि उसे तो राजा ने चोरी करने के अपराध में कैद कर लिया है। यह सुनकर रानी मन-ही-मन बहुत रोई। वह सोचने लगी कि–“अब क्या उपाय करना चाहिए, जिससे प्राणनाथ को वतन्त्र कराया जा सके।” यह सोचकर उसने लोगों से वहां के राजा के बारे में पूछा कि राजा को किस चीज का शौक है? लोगों ने बताया कि राजा को गाना-बजाना सुनने का बहुत शौक है।
यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुई, क्योंकि गायन-विद्या में कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था। अब रानी ने शहर के प्रमुख स्थानों पर जाकर गाना प्रारंभ कर दिया। थोड़े ही दिनों में वह प्रसिद्ध हो गई । एक दिन शाम के समय वह किसी उद्यान में खड़ी वीणा हाथ में लिए कोई खूबसूरत गजल गा रही थी।
मैना कहने लगी-:-“ऐ तोते! उस जोगन की गजल सुनने के लिए बहुत सारे लोग वहां एकत्र हो गये और सब वाह-वाह करने लगे। रानी ने गजल इतने सुन्दर ढंग से गायी कि लोग ठगे से खड़े रह गए। वे लोग गजल को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उड़ते-उड़ते उसकी प्रशंसा राजा के कानों तक जा पहुंची।”
राजा ने उसी समय चोबदार को आज्ञा दी कि नगर के उद्यान में जो जोगन ठहरी हुई है, उसे सम्मान के साथ हमारी सभा में ले आओ।
उस चोबदार ने रानी के पास जाकर हाथ जोड़कर कहा-“महाराज ने आपको याद किया है, आप मेरे साथ चलिए।”
यह सुनकर रानी ने कहा-“ऐ चोबदार! हमें राजा के दरबार से क्या काम? हम तो मन के मौजी हैं। जहां इच्छा होती है, वहीं रहते हैं। जिस स्थान पर मैं आसन जमाकर बैठ जाती हूं मुझे तो वही स्थान राजदरबार प्रतीत होता है।”
जोगिन की बात सुनकरे चोबदार बोला–“जोगिन जी! आप को तो ऐसा ज्ञान प्राप्त है कि लाखों राजा-महाराजा आपकी सेवा में खड़े रहें। लेकिन फिर भी यह आपका धर्म है कि जो व्यक्ति आप से हरिगुण सुनना चाहे, उसे सुना दो।”
यह सुनकर जोगिन चलने को तैयार हो गई।
चोबदार के साथ वह राजा के यहां आई, उसे देखकर सब लोग सम्मानार्थ खड़े हो गए। उसके दरबार में आते ही सन्नाटा छा गया । नौकरों ने उसे मृगछालासन दिया।
तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा- “ऐ जोगिन जी! आपका स्थान कहां है?”
“मैं रतनगिरी की रहने वाली हूं, मैं अपने पिया की तलाश में दर-दर भटक रही हूं।” जोगन ने दु:खी स्वर में कहा।
जोगिन का यह राग सुनकर राजा बोले-“ऐ जोगिन जी! अब कुछ अपने मुख से हरि गुणगान कीजिए, क्योंकि यही हम सबकी अभिलाषा है।”
जोगन गाने-बजाने में काफी निपुण थी। उसने मधुर कण्ठ से राजा को एक भक्ति गीत सुनाया, जिसे सुनकर राजा भाव विभोर हो उठा। वह गीत राजा को बहुत पसन्द आया।
जोगिन का यह भजन सुनकर राजा ने कहा-“जोगिन जी! मैं तुम्हारा गीत सुनकर बेहद प्रसन्न हुआ। अब तुम्हें जिस वस्तु की आवश्यकता हो, वो मुझसे माग लें। मैं अवश्य दूंगा।”
यह सुन जोगिन ने कहा- “हे राजा! मेरा पति आपकी बेटी चन्द्रकिरण के प्रेम में फंसकर यहां आया और आपने उसे कैद कर लिया है। मैं उसको मांगती हूं। आप उसे छोड़ दीजिए और अपनी बेटी चन्द्रकिरण की शादी उसके साथ कर दीजिए।”
राजा वचनबद्ध हो चुका था। अतः उसने जोगिन की बात मान ली। उसने श्यामसुन्दर को स्वतन्त्र कर दिया और अपनी बेटी चन्द्रकिरण की शादी उसके साथ कर दी।
मैना बोली- “ऐ तोते! श्यामसुन्दर की पत्नी की वफादारी देख, किस प्रकार उसने उसको छुड़वाया और अब मैं तुझे श्यामसुन्दर की बेवफाई का हाल सुनाती हूं।”
जब श्यामसुन्दर की शादी चन्द्रकिरण के साथ हो गई तो उसने सोचा कि अब अपने देश वापिस चलना चाहिए। ससुराल से बहुत-सा धन दौलत लेकर श्यामसुन्दर चन्द्रकिरण और अपनी पहली पत्नी को साथ लेकर अपने देश की ओर रवाना हुआ।
जब वह दो-चार मील निकल आया तो सोचने लगा–“जब मेरे माता-पिता पूछेगे कि बेटा चन्द्रकिरण को तुमने कैसे प्राप्त किया तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूंगा? मेरी पहली पत्नी मेरे जेल जाने और कैद होने का हाल सबको बता देगी और मुझे शर्मिन्दगी उठानी पड़ेगी। इससे तो अच्छा यही है इसे मार डालना चाहिए।”
मन में यह विचार आते ही उसने रात के समय अपनी पहली पत्नी को, जो उस समय सो रही थी, तलवार से मार डाला और उसकी लाश दबा दी फिर चन्द्रकिरण को लेकर आगे चल दिया।
‘‘ऐ तोते! राजकुमार श्यामसुन्दर की बेवफाई और निर्दयता देखकर मेरा हृदय फटता है और मर्दो के नाम से मेरा बदन कांपता है।”
तोता बोला-“ऐ मैना! इसका उत्तर मैं तुझको देता हूं।”
तब मैना ने कहा-‘‘सवाल-जवाब में सारी रात बीत गई है और अब सुबह होने वाली है लेकिन हमारे प्रश्न-उत्तरों का कोई अंत नहीं है। इसलिए उचित यह है कि तुम भी दाना-पानी खाओ और मैं भी खा-पी लू, फिर शाम के समय इसी वृक्ष पर आ जाना क्योंकि तुम मेरे दिल को कुछ पसन्द आ गए हो। फिर शाम के समय इसका उत्तर देना।
यह कहकर मैना वहां से उड़कर चली गयी और तोता भी दाने-पानी की तलाश में दिन भर हवा में उड़ता रहा। शाम को दोनों फिर अपने स्थान पर आ गए। मैना के आते ही तोते ने एक दास्तान सुनानी शुरू कर दी।
अगला भाग: कातिल पत्नी
पिछला भाग: वासना की पुतली
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