महिला सशक्तीकरण पर निबंध – Women empowerment Essay
महिला सशक्तीकरण
Women’s empowerment: How myth, how true Essay / महिला सशक्तीकरण: कितना मिथक, कितना यथार्थ पर आधारित पूरा हिंदी निबंध 2019 (महिला सशक्तीकरण पर हिंदी निबंध)
Contents
भूमिका : भारतीय समाज में महिला का मिथ और यथार्थ:
भारतीय समाज में महिला का मिथक एक ओर पूजनीया देवी, सती और सावित्री का है तो दूसरी ओर उसका यथार्थ बुझी हुई ‘आँखों में आंसू’, निरक्षर दृष्टि, व्यापारिक संबंधों में खरीद-फरोख्त की जानेवाली वस्तु तथा शारीरिक यातना और बलात्कार को झेलने वाली, साधारण सम्मान से भी वर्जित ‘अबला’ का है। भारतीय समाज में एक ओर रूढ़िगत सोच और आधुनिकता के उन्मेष के कारण नारी का शोषण होता रहा है तो दूसरी ओर 19वीं शताब्दी में शुरू हुई आधुनिकता की अवधारणा के साथ-साथ उसे पुरुषों के बराबर सामर्थ्यवान समझने का अभियान भी चला है । यद्यपि पिछली दो शताब्दियों में भारतीय नारी की छवि में और उसकी सामथ्र्य में आधारभूत परिवर्तन आया है किंतु अभी भी पुरुषों की तुलना में नारी इतनी अशक्त है कि उसको सबल करने के लिए भारतीय पुरुष और स्त्री दोनों को अपनी-अपनी भूमिकाओं के परिवर्तन पर चिंतन करने की ज़रूरत है।
महिला सशक्तीकरण का आशय:
महिला सशक्तीकरण का आशय वस्तुत: स्त्री और पुरुष दोनों की दृष्टि में महिला की समताप्रधान छवि होने एवं महिला के शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से सशक्त बनने तथा भागीदारी निभाने से है ।समाज में महिलाओं को पुरुषों की तरह ही निर्भरता के साथ जीने, सत्ता एवं संपत्ति में बराबरी का अधिकार प्राप्त करने, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की दृष्टि से मजबूत बनने तथा शारीरिक, मानसिक शोषण से मुक्ति प्राप्त करने के अवसर एवं अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता है। वे परिवार से लेकर हर सार्वजनिक क्षेत्र में निर्णय ले सकने में स्वतंत्र हों । किंतु सच यह है कि भारतीय समाज में महिला की स्थिति बहुत अशक्त बना दी गई है।
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भारतीय इतिहास में महिला का मिथ और वर्तमान दशा:
प्राचीन भारतीय समाज में हमने नारी को पूजे जाने पर ही देवताओं के रमने की शर्त स्वीकार की है। ज्ञानेश्वरी, गार्गी, विद्योतमा, तिलोतमा, कैकेई, रजिया सुल्ताना, नूरजहाँ, जीजा बाई, अहिल्या होल्कर, रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी आदि का उदाहरण देकर हम भारतीय समाज में नारी के व्यक्तित्व की उत्कृष्टता और पुरुष के समान उसकी सामथ्र्य का बखान कर रहे किंतु वर्तमान पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की तुलना में भोजन स्त्रियों की कैलोरी खपत काफी कम है, ज्यादातर महिलाएँ एनेमिक हैं, कुल 74.04 प्रतिशत साक्षरता में महिलाओं की साक्षरता 65.05 है, 1000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं का जनसंख्या अनुपात 940 है, बालिका मृत्यु-दर बालकों की तुलना में कहीं अधिक है। दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नगण्य हैं। संसद में केवल 11 % महिलाएँ हैं।
महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता:
आजादी की आधी सदी गुज़र जाने के बाद भी आज परिवार में भोजन को लेकर बालक की तुलना में बालिका की उपेक्षा है, शिक्षा की दृष्टि से लड़की को निरक्षर रखने या लड़कों की तुलना में साधारण-सी शिक्षा देने की औपचारिकता है। राजनीति, व्यापार तथा अन्य सार्वजनिक गतिविधियों में पुरुषों की तुलना में उसे पीछे रखने का और पुरुष की तुलना में बराबरी का हक माँगने पर शारीरिक और मानसिक यातना देने का क्रम अभी भी जारी है। वस्तुतः इस पुरुष प्रधान भारतीय समाज में नारी एक दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई है। वह घर और बाहर संस्कृति की पोषिका, अर्थव्यवस्था की धुरी और नीति आधारित राजनीति की संरक्षिका बनने की सामर्थ्य रखने के बावजूद समाज में उचित स्थान नहीं प्राप्त कर सकी है। नारी को स्वयं पुरुष ने तो पीछे रखा ही है, पुरुष-प्रधान मानसिकता से ग्रस्त नारियों ने भी स्वयं नारी को पीछे रखा है। इसलिए इस पुरुष-प्रधान कठोर, निर्मम, शोषक, दंभी माहौल में नारी सहमी, दुबकी, शोषिता और लुटी हुई-सी अपनी ज़िन्दगी जी रही है। संपन्न भारतीय समाज में विकास की दृष्टि से आज उसकी स्थिति सर्वाधिक विडंबनीय है।
आजादी के बाद महिला सशक्तीकरण के लिए किए गए सरकारी प्रयत्न:
आज़ादी के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 में नारी-हितों को संरक्षण दिया गया है, अनुच्छेद 51-क में महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध होने वाली किसी भी गतिविधि का विरोध किये जाने का उल्लेख है। भारत सरकार एवं अन्य राज्य सरकारों में महिला एवं बाल विकास विभाग स्थापित किए गए हैं, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर महिला आयोग गठित किए गए हैं, राष्ट्रीय महिला कोष स्थापित किया गया है। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किसी-न-किसी रूप में बालिका वृद्धि योजनाएँ शुरू की गई हैं। बलात्कार एवं दहेज की घटनाओं को कम करने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन कर दंड को कठोर बनाया गया है। पंचायतीराज व्यवस्था में महिलाओं का 50% आरक्षण निर्धारण किया गया है। संसद में एवं विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिलाओं के आरक्षण संबंधी प्रावधान का विधेयक लंबित है। सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में क्षेत्र में महिलाओं को 30% आरक्षण का लाभ दिया गया है। इन सबके फलस्वरूप महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ी है। वे उद्योग, व्यापार, सरकारी सेवा के क्षेत्र में आगे आने लगी है। संस्कति, खेल, पर्वतारोहण आदि के क्षेत्र में पुरुषों की तरह भागीदारी लेने लगी हैं। स्वयं महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में महिला के अशक्त होने के मिथक को तोड़ा है इसके बावजूद पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में समानता प्राप्त करने का लक्ष्य अभी बहुत दूर है।
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महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया:
महिला सशक्तीकरण का प्रश्न एक ओर सरकारी स्तर पर सुचिंतित नीति निर्धारित करने का है तो दूसरी ओर महिला में निहित शक्ति का भरपूर सदुपयोग करने और पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में उसकी भागीदारी बढ़ाने के ठोस प्रयत्न करने का है। महिलाओं ने समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर भूमिकाएँ निभाकर ‘रोल मॉडल’ तो प्रस्तुत किया है जिसमें हम अभी भी सोनिया गाँधी, सुषमा स्वराज, ममता बनर्जी, जय ललिता, कर्णम-मल्लेश्वरी, किरण बेदी आदि अनेक महिलाओं को गिना सकते हैं किंतु ये महिला-व्यक्तित्व मूलतः भारतीय समाज के किसी आधारभूत परिवर्तन का परिणाम नहीं है। देश में 25 करोड़ महिलाएँ निरक्षर हैं, करोड़ों महिलाएं बुर्के, घूंघट में बंद हैं। भारतीय समाज की मानसिकता पुरुष-केंद्रित है, अर्थात् पिता, पति और पुत्र के लिए पुत्री, पत्नी और माँ को समर्पित हो जाने की असमानता-आधारित सोच से ग्रस्त है। इसीलिए समाज में पुरुषों की तुलना में अधिक कार्य करने वाली अथवा कार्य कर सकने में अधिक सक्षम महिलाएँ भी अशक्त मानी जाती हैं। इसलिए महिला सशक्तीकरण का प्रश्न एक ओर महिलाओं के जीवन-स्तर को उन्नत करने, उन्हें अपने विकास के लिए स्वतंत्रता प्रदान करने, शिक्षा एवं समाज के सभी क्षेत्रों में सजगता पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने का प्रश्न एक और महिलाओं के जीवन-स्तर को उन्नत करने, उन्हे अपने विकास के लिए स्वतंत्रता प्रदान करने, शिक्षा एवं समाज के सभी क्षेत्रों में सजकता पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने का है दूसरी ओर उनमें पहले से ही विद्यमान शक्ति को पहचानने, उसका सही प्रयोग करने और उन्हें सही सम्मान देने का है। महिला सशक्तीकरण की छवि पुरुषों और महिलाओं दोनों में ही बढ़ाने की है। महिलाएँ अपनी अनावश्यक शर्म संकोच, आत्महीनता को छोड़े और जीवन की चुनौतियों भिड़ें, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सगभागी बनें । दूसरी ओर पुरुष भी उसे अनुकर्मी तथा परिचारिका के रूप में नहीं, जीवन-संगिनी और सहभागी के रूप में अपने साथ ले, प्रोत्साहित करे, प्रेरित करे । इस प्रकार स्त्री और पुरुष दोनों के ही दृष्टिकोण में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय महिला शक्ति-संपन्नता नीति-2001
भारत सरकार की ‘राष्ट्रीय महिला शक्ति-संपन्नता नीति-2001‘ के अनुसार वर्तमान कानूनों की समीक्षा की गई है, नारी के प्रति घरेलू हिंसा तथा व्यक्तित्व आक्रमण की रोकथाम के लिए कानून बनाए गए हैं, संपत्ति एवं विरासत में पुरुषों के समान अधिकार दिलाने के कतिपय प्रयास किए गए हैं, ग़रीबी रेखा से नीचे जीने वाली महिलाओं के लिए गरीबी एवं कार्यकर्ताओं के रूप में महिलाओं के योगदान को मान्यता दी जा रही है। गाँवों एवं शहरों में आवास कॉलोनियों में महिला परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखा गया है, विज्ञान-प्रौद्योगिकी में महिला भागीदारी बढ़ाई जाएगी, बालिकाओं के अवैध व्यापार, प्रसव-पूर्व लिंग-निर्धारण, बालिका भ्रूण हत्या, बालिका शिशु हत्या, बाल शोषण, बाल-विवाह और बाल-वेश्यावृति को रोकने के लिए कानून-निर्माण एवं चेतना-प्रसारण किया जा रहा है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी तथा पंचायतीराज संस्थाओं में महिला भागीदारी को व्यापक एवं प्रभावी बनाया गया है। इस नीति के तहत केंद्र एवं राज्य सरकारें महिला आयोगों के माध्यम से समयबद्ध कार्य-योजनाएँ बनाएँगी, क्रियान्वित करेंगी।
राजस्थान में महिला सशक्तीकरण हेतु इंदिरा महिला योजना (आर्थिक स्वायत्तता हेतु), किशोर बालिका योजना (लाड़ली), महिला राजगीर योजना (गैर-परंपरागत-पुरुष क्षेत्र के कार्यों से जोड़ना), स्वयं सहायता समूह (सामूहिक बचत से ऋण दिलाना), जिला महिला सहायता समिति (शोषित-उत्पीड़ित महिला को अविलंब सहायता), एकीकृत जनसंख्या व विकास परियोजना (प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य हेतु) एवं महिलाओं की आय वृद्धि एवं रोज़गार की योजना (नैराड) चल रही है। राज्य महिला आयोग कार्य कर रहा है तथा महिला नीति भी तैयार की है।
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उपसंहार : पुरुष एवं महिला दोनों के दृष्टिकोण-परिवर्तन एवं सगभागिता में वृधि आवश्यक:
महिला सशक्तीकरण का प्रश्न समाज के स्थाई एवं संतुलित विकास का प्रश्न है और यह पुरुषों तथा स्त्रियों सभी की सहभागिता एवं सार्थक अनुपूरकता से ही संभव है। भारतीय समाज को अपने परंपरागत, रूढ़िगत, सामंती सोच से बाहर निकलकर, समता आधारित स्त्री-पुरुषों के आपसी संबंधों को कारगर से बढ़ाने से होगा। संसद से लेकर पंचायत तक स्त्रियों की सहभागिता के लिए किए गए प्रयत्नों के साथ-साथ इस सहभागिता को प्रभावी बनाने के लिए प्रयत्न करने होंगे। विश्व के विकसित समाजों की तरह भारतीय समाज में स्त्रियों को अधिक स्वतंत्रता, समता और सम्मान देना होगा। दूसरी ओर स्त्रियों को भी स्वयं अपने जीवन की चुनौतियों को स्वीकार कर उसमें बदलाव लाने के लिए स्वयं संघर्ष करते हुए पुरुष के साथ अपनी सहभागिता बढ़ानी होगी।वस्तुत: यह प्रश्न पुरुषों द्वारा स्त्री पर कोई उपकार करने का नहीं बल्कि इतिहास की क्रोड़ में कहीं-न-कहीं अशक्त कर दी गई महिला को पुनः सशक्त करने का है। दोनों की सहभागिता जितनी सघन और व्यापक होगी उतना ही भारतीय समाज सशक्त होगा। अतः सवाल महिला सशक्तीकरण का नहीं, समग्र समाज के सशक्तीकरण का है।
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